सोने की बिल्ली ब्राहमणों को दान देने से............
डॉ. लाल रत्नाकर
आज अद्भुद समाज है जिसका स्वरुप किसी न किसी रूप में समय और प्रकृति को प्रभावित कर रहा है, जिसमे अनेक प्रकार के विलक्षण महापुरुष अपने अपने तरह से पनप रहे हैं, उनकी प्रतिभा अपराध से और नाना प्रकार के दुष्कर्मो से बन रही है!
एसे में आज हमरे समाज के जो हालात है वह उत्थान की ओ़र होते हुए भी उसे किसी न किसी तरह से ये साबित करने का यह प्रयास हो रहा है जिससे उसे अपराधी बताया जाता हो,जब की इस समाज में लगभग बहुमुखी प्रतिभाएं है जो अपने परिश्रम और ज्ञान से आगे आयी है लाख रोकने के बावजूद . वहीँ समाज में जिस प्रकार के अभद्र आचरण को भद्र तरीकों से पेश करके भद्रता की दुहाई दी जा रही है वह अपने में जितना अनैतिक आचरण है, इसका लेखा जोखा कौन करेगा जो मूलतः शुरुआत से ही ये अपराधी छवि के द्विज ही इसके लिए अपराधी है. यही स्थिति कमोवेश सर्वत्र है जिसका पूरा का पूरा समाज नुकसान उठा रहा है.
यदि एसे आचरण मायावती अपने बुत लगाकर कर रही है तो हमें परेशान नहीं होना चाहिए परेशान तो उन्हें होना चाहिए जो बुतों के ठेकेदार है ! भारतीय समाज में बुतों की जगह है उनसे लोग गौरवान्वित होते है आने वाली कौमे याद रखती है की हमारा फला - फला महापुरुष हुआ है.
और हमें यह नहीं भुलाना चाहिए की माया ने कितने बड़े आन्दोलन किये है - दबों कुचलों को आवाज़ दी है -
ये वही आवाजें है -(१) ठाकुर बाभन बनिया चोर - इनको मारो जूते चार !
(२) जिसकी जीतनी हिस्सेदारी - उसकी उतनी भागेदारी !
(३) जो ज़मीन सरकारी है - वह ज़मीन हमारी है !
अब ये अलग बात है की सदियों के समझदारों ने समय को समझा और माया को अपनाया और गले लगाया पावं छुआ, यह कितना बड़ा बदलाव है, लोग अपने माँ बाप के पावं छुते शरमाते है सो मायावती पूज्यनीय है और उनकी भी जिसने सदियों पूजा करवाई है तो यैसी महाशक्ति के बुत क्यों नहीं लगने चाहिए घर घर लगने चाहिए यदि उतने न हो पायें तो कम से कम द्विज बस्तियों में जरुर लगने चाहिए ?
पर अगर मायावती स्वर्गीय जगजीवन राम को दलित महापुरुष नहीं मानती तो यह उनका भेदभाव पूर्ण नजरिया है, जब देश आजाद हुआ और नेहरू जी की कैबिनेट और आजाद भारत के पहले श्रम मंत्री से शुरू करके भारत के उप प्रधानमंत्री पद तक को उन्होंने शुशोभित किया हो और उनके बुत लोंगों को अच्छे लगते है पर मायावती जी को वह क्यों अच्छे नहीं लगते आश्चर्य है !
हमने तो अपने एसे हालात ही नहीं पैदा किये की बुत लगाये जाने चाहिए यदि बुत लगाने की कभी नौबत आयी भी तो किसका बुत लगायेंगे, स्वर्गीय चंद्रजीत यादव जी का या मंडल कमीशन के चेयरमैन स्वर्गीय बी.पी.मंडल का सबसे पहले इनका विरोध इसी समुदाय और उस आन्दोलन से सर्वाधिक लाभान्वित हुए नेता ही करेंगे, विरोधी तो तब भी किनारे खड़े रहेंगे क्योंकि उन्हें पता है की इनके बीच ही सर फुटौवल होनी है और सब कुछ रुक जाना है और तब शुरू होगा बुत पर व्याख्यान बुत लगाने चाहिए और इसकी एक एजेंसी होनी चाहिए यानि एक मंत्रालय यानि जैसे पेट्रोलियम मंत्रालय है रेल मंत्रालय है वैसे ही पर तब और गड़बड़ हो जायेगा यदि उसकी मंत्री ममता बन गयी तो सारी मुर्तिया बंगाल ही की होंगी पता नहीं दुर्गा ही दुर्गा हो, फिर कंग्रेशियों की ही मूर्तियाँ या बुत लगाये जाते रहेंगे !
क्योंकि नेता जी ने जब से विदेशी महिला के प्रधानमंत्री न बनाने देने का बीड़ा उठाया तब से अपने आप कांग्रेस ताक़तवर होती गयी और तब ये कल्याण को ढूढ़ कर लाये भजाप को कमजोर करने के लिए कहाँ बन पाए अडवानी प्रधानमंत्री रुक गयी भाजप जबकि इनसे ज्यादा भाजपाई ही अडवानी के खिलाफ खड़े थे और राजनाथ को एम् . पी .भी इसी वक़्त बनना था .
तो यह दशा है हमारे नेताओं का हमें चाहिए हम इनके बुत बनाये ताकि यह स्मरण रहे की गलती कहाँ हुयी है. बुत बनाने के अपने नफा नुकसान है- बुत तोडे तो जा सकते है पर उन्हें कब्जियाया नहीं जा सकता नेता जी ने तोड़ने की घोषणा करके काम सरल कर दिया, बुत के लिए सहानुभूति उपजी और सर्वोच्चन्यायालय ने हाथ खींच लिया,सारी ताकत धरी की धरी रह गयी - अब तो कानून ही बनना चाहिए तभी यह काम रुकेगा नहीं तो अब रुकने वाला नहीं है .
और रुके भी क्यों कला और संस्कृति को बढ़ावा देना कोई बुरी बात नहीं है कला को लेकर इतना बड़ा आन्दोलन ही कभी खडा नहीं हुआ यह उत्तर प्रदेश के लिए गौरव की बात है . अब यह अलग बात है की कला कैसी है मूर्तिकला के मर्मज्ञ पद्मश्री श्री राम सुतार जी की कला जिसकी कलाकृतियाँ देश विदेश में सम्मानित होती है, और उनकी कृतियों को सम्मानित करने का काम, वाह क्या समझ है ?
कलाएं हमेशा से राज्याश्रय में पलती और बड़ी होती रही हैं और इस पर इतना हाहाकार ठीक नहीं,मायावती को अक्षरधाम के तर्ज़ पर एक विशालकाय सामाजिक सरोंकारों का केंद्र बनना चाहिए,यह बात शायद काम लोंगों को ही पता हो की स्वामीनारायण आजमगढ़ से भागे हुए एक यादव थे जिन्हें पूर्वांचल के ब्राहमणवाद ने वहां से खदेड़ कर इतना महान बनाया (यद्यपि ब्राह्मणवाद की यही काबिलियती हमेशा की रही है की वह हर आगे बढ़ने वाले को अपना लेता है और समाविष्ट कर लेता है माया को ही लीजिये ) तो अक्षरधाम के सामानांतर !
यह फिर यही कहूँगा की उ.प्र.के सम्मान का सवाल है किसने मना किया था माननीय नेता जी को की उत्तर प्रदेश के हर द्वार पर चौसठ कलाओं के मर्मज्ञ और कर्म को महानतम सन्मान देने वाले महापुरुष की विशालकाय प्रतिमायों को स्थापित करने का गौरव तो उन्होंने न जाने क्यों गवा दिये .
माना की सैफई में सब कुछ होगा तो वह जगह तो खाली है!
प्रदेश भर में मायावती की प्रतिमाएँ लगनी चाहिए इससे यादवों का भी लाभ होगा क्योंकि पहली बार की सत्ता का स्वाद तो माया को भी यादवों के साथ आने से ही मिला था यह तो मायावती की समझ थी की अपने बुत लगवाने के लिए किसको साथ रखना वाजिब समझा, प्राण प्रतिष्ठा के लिए मिश्रा जी, दुबे जी, त्रिपाठी जी, चौबे जी, पाण्डेय जी, उपाध्याय जी व् शर्मा जी आदि आदि सब तो है . क्या परेशानी है नेता जी को इनके भी तो कर्मकांडी थे जब वे इतने काबिल नहीं थे की प्रधानमंत्री की कुर्सी देवगौड़ा के बाद खाली थी तो किसी ने नेता जी को बताया ही नहीं, याद ही नहीं दिलाया, पर पता नहीं अमर सिघ तब तक .इतने करीब नहीं थे या अपने लिए ताक में थे, यह तो पक्का है की कुछ न कुछ दाल में काला जरुर था ?
यह सब मायावती जी को प्रधानमंत्री बनायेंगे क्योंकि ये जानते है की देश कैसे बचता है ये आज़ादी का नया आन्दोलन है, देखिएगा की स्वदेशी प्रधानमंत्री का क्या रुतबा होगा, नेहरू से लेकर इंदिरा तक जीतनी प्रतिमाएँ देश भर में नहीं लगी होंगी उससे ज्यादा माया जी के बुत लगाने चाहिए .
इन्होने ही तो बताया है की यदि बिल्ली भी आप से मर जाये तो सोने की बिल्ली ब्राहमणों को दान देने से हत्या का पाप कम हो जाता सोने की मात्रा पापी के पाप से घटती बढ़ती जाती है. तो सदियों से दलितों के दमन का प्रायश्चित करने के लिए मिश्रा जी जितना बड़ा काम कर रहे है वह काम समाजवाद के छोटे लोहिया नेता जी के लिए सचमुच नहीं कर पाए .
6 टिप्पणियां:
Swagat hai aapka blog jagat mein is rachna dwaara
thik likha.narayan narayan
अच्छा लेख लगा, इस प्रयास के लिये लेखक को बधाई, हिन्दी ब्लाग्स की दुनिया में आपका स्वागत है. इसी तरह लिखते रहिये.
चारुल शुक्ल
http://dilli6in.blogspot.com
भाई हम यादव तो नहीं हैं।
एक आदमी हैं..समय है॥
क्या आदमियों को यहां टिप्पणी करने की इज़ाजत है?
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है।आपके भाव दिल में उतर गए। बहुत अच्छा लिखा है बधाई।
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