क्या सारे मंत्री चोर हैं !
डॉ.लाल रत्नाकर
डॉ.लाल रत्नाकर
सवाल यह नहीं है की सारे मंत्री चोर हैं, सवाल यह है कि जो चोर हैं उन्हें मंत्रीमंडल में क्यों लिया गया, इसका उत्तर तो यही है की 'जनता ने उन्हें चुना है'.पर राजा भैया हों या राजाराम यदि ये मंत्री बने हैं तो कोई तो कारण होगा, बिलकुल ! क्या ये पार्टी अनुशासन नहीं मानते हैं या तो पार्टी में अनुशासन ही नहीं है अन्यथा उत्तर प्रदेश के बारे में; राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद मोहन सिंह को इस तरह का बयान क्यों देना पड़ता , शायद राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद मोहन सिंह यह भूल रहे हैं की उनका यह बयां पार्टी और सरकार दोनों को कितना नुक्सान करने जा रहा है, उनके इस बयां ने उन्हें सरकार और पार्टी से बड़ा भले ही कर दिया हो, पर वह लोहिया नहीं हैं, लोहिया के नाम पर समाजवादी पार्टी भले पहचानी जाती हो पर यह कुवत न तो मोहन सिंह में है और न ही अमर सिंह में थी और मैं गलत नहीं हूँ तो राजा भैया और न किसी बाहुबली में है।
इसबार की सारी ताकत 'जनता की ताकत है'.
उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों को गलतफहमी थी की वह मायावती के नामपर प्रदेश को लूटेंगे जिसे जनता ने रोक दिया है। अब यदि मोहन सिंह सिद्धांतों की बात करके चाहते हों की पार्टी के प्रवक्ता बने रहेंगे तो वो दिन गए अब बच्चा जानता है की उसका हित कहाँ सध रहा है, और वह वोट भी उसी अनुसार करता है, मोहन सिंह जी लोक सभा जीत कर भी आये हैं पर अब जिस तरह के चुनाव हो रहे हैं उसमे कौन जीतेगा वह भी जानते हैं.
सर्कार कौन चलाता है क्या मोहन सिंह नहीं जानते ? सरकार के भीतर बैठे व्युरोकेट, वहां कौन बैठा है क्या उसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, कहना थोडा मुश्किल लगता है राजनेताओं को क्योंकि साड़ी नेतागिरी तो वहीँ से चलती है.
इसलिए अनुभव का सवाल नहीं है फिर सवाल खड़ा होता है 'सलाह' का और सलाह अखबारों में नहीं मुख्यमंत्री से मिलकर दी जानी चाहिए मोहन सिंह जी. अखिलेश यादव बिना अनुभव के मुख्यमंत्री बने हैं पर उनके इर्द गिर्द बड़े अनुभवी मंत्री दिखाई देते हैं ओ क्या कर रहे होते हैं जहाँ मुखिया ठहरता है वहां अपने लोग आ खड़े होते हैं, आपने यह सार्वजानिक करके क्या कहना चाहा है वह तो पार्टी और सरकार जाने पर एक समाजवादी और नेता जी का सम्मान पूर्वक मान करने एवं चाहत के कारण ऐसा लिखता रहता हूँ, चाहे वह अमर का अतिवाद रहा हो या आपका या भाई शिवपाल का.
रही बात अनुभव की तो कोई पेट से लेकर पैदा नहीं होता, राजा भैया मंत्री बने न बने उससे मुझे उतनी तकलीफ नहीं होगी आपकी तकलीफ जायज़ है क्योंकि वह किसी न किसी रूप में आपकी पहचान धूमिल कर रहे हैं, हर आदमी इस कदम की निंदा करता है, और आन्ख्मुद्कर मुख्यमंत्री की इस (...) को जानते हुए उनकी इज्जत भी और 'अपेक्षा भी, आप किसको बताना चाहते हैं की यहाँ मुख्यमंत्री की नहीं चली है.
आश्चर्य होता है उत्तर प्रदेश की जनता को इस कदर मुख्यमंत्री से अपेक्षा है, उसे लगता है की युवा मुख्यमंत्री उसके सपनों को पूरा करेंगे, आपका दर्द कहीं अवाम के सपनों को तोड़ न दे महासचिव जी .
राजा भैया को मंत्री नहीं बनाना चाहते थे अखिलेश | |||
नई दिल्ली/एजेंसी | |||
Story Update : Sunday, July 15, 2012 12:13 AM | |||
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को रघुराज प्रताप सिंह ‘राजा भैया’ को मंत्री बनाने पर गहरी आपत्ति थी। यह खुलासा समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद मोहन सिंह ने एक चैनल के साप्ताहिक शो में किया है।
मोहन सिंह ने दो टूक कहा कि राजा भैया को लेकर अखिलेश यादव को भारी आपत्ति थी लेकिन अंतत: उन्हें पार्टी की इच्छा के आगे नतमस्तक होना पड़ा। रघुराज प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश में कारागार मंत्री हैं। इंटरव्यू में सपा महासचिव ने माना कि अखिलेश सरकार ने पिछले दिनों जिस तरह से जल्दबाजी में फैसले लिए उससे सरकार की किरकिरी हुई है। उन्होंने दावा किया कि विधायक निधि से विधायकों को कार खरीदने के लिए धन देने का मुख्यमंत्री का फैसला पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव को नागवार गुजरा था और उन्होंने खुद अखिलेश को यह निर्णय वापस लेने की सलाह दी थी। सिंह के मुताबिक मुख्यमंत्री अभी गलती करो और सीखो की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। मोहन सिंह के अनुसार चूंकि अखिलेश यादव कभी मंत्री भी नहीं रहे और सीधे मुख्यमंत्री बने हैं, इस नाते अनुभव की कमी है और वे अनुभव से तेजी से सीख रहे हैं। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि सपा में सभी नेता और मंत्री दूध के धुले हुए नहीं हैं, लेकिन साथ ही कहा कि सभी को एक साथ बाहर नहीं किया जा सकता। हां, समय के साथ खराब लोग अब खुद-ब-खुद बाहर होते चले जाएंगे। मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव सरकारों की तुलना से जुडे़ सवाल पर सिंह ने कहा कि अखिलेश में अभी राजनीतिक दबदबे की कमी है, जबकि मुलायम सिंह के पास अपना एक सियासी कद और दबदबा था। ................................. मोहन सिंह की बातों से सपा की नाइत्तेफाकीUpdated on: Sun, 15 Jul 2012 11:30 PM (IST)
मुख्यमंत्री ने बिना किसी दबाव के किया अपने मंत्रियों का चयन
- सरकार के फैसले से नहीं हुई कोई किरकिरी
जागरण ब्यूरो, लखनऊ : सपा पार्टी के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय महासचिव मोहन सिंह की बातों से इत्तेफाक नहीं रखती। शनिवार को मोहन सिंह ने एक चैनल में कहा था कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को मंत्री बनाये जाने पर गहरी आपत्ति थी।
रविवार को पार्टी इससे नाराज दिखी। प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने लिखित बयान जारी कर कहा मंत्रिमंडल के सदस्यों का चयन मुख्यमंत्री के विवेक पर होता है। अखिलेश यादव ने बिना किसी दबाव के सहयोगियों का चयन किया। मोहन सिंह की इस बात का भी पार्टी ने प्रतिवाद किया कि अखिलेश सरकार ने पिछले दिनों जिस तरह से जल्दबाजी में फैसले किए उससे सरकार की किरकिरी हुई। पार्टी की ओर से कहा गया कि सरकार की कोई किरकिरी नहीं हुई। जिन निर्णयों पर अखिलेश यादव को जनसामान्य की असहमति दिखी उसे वापस लेकर यह साबित कर दिया कि लोकतंत्र में उनकी गहरी आस्था है।
अखिलेश में अनुभव की कमी के मोहन सिंह के कथन को भी पार्टी ने पसंद नहीं किया। पार्टी ने दावा किया कि अखिलेश यादव राजनीति में नए नहीं हैं। उनकी राजनीतिक परिपक्वता का प्रदर्शन कई मौकों पर हो चुका है। उनको अनुभवहीन कहने वालों को सिर्फ इतना ही बताना काफी होगा कि किसी भी आपराधिक छवि वाले को पार्टी में न लेने का एलान कर अखिलेश यादव ने क्षण भर में पार्टी की छवि बदल दी थी।
सपा प्रवक्ता ने मुख्यमंत्री को परिपक्व साबित करने के लिए बकायदा अखिलेश का पूरा राजनीतिक सफर जारी किया। चौधरी ने कहा कि अखिलेश कन्नौज से 1999 में पहली बार सासद बने। उसके बाद कन्नौज की जनता ने उन्हें फिर दो बार अपना प्रतिनिधि चुनकर भेजा। सपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में न केवल उन्होंने संगठन को मजबूत किया बल्कि चुनाव पूर्व क्रांति रथ यात्रा से सूबे में जो लहर पैदा की उससे ही पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला।
चौधरी ने कहा प्रदेश में सपा सरकार के आज चार माह पूरे हो गये हैं जो सफलता और उपलब्धियों का दिशा संकेत करते हैं। मुख्यमंत्री ने इस बीच विधानमंडल सत्र में न केवल पूरी सक्रियता दिखाई बल्कि कार्यवाही में हिस्सा लेते हुये अपने संसदीय कौशल की भी छाप छोड़ी। वित्तमंत्री के रूप में बजट में नए कर लगाए बिना सपा के चुनाव घोषणा पत्र में किए गए वायदों को पूरा करने की दिशा में सार्थक कदम उठा कर अखिलेश यादव ने राजनीतिक कौशल का परिचय दिया।
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