1 अक्टूबर 1936 को रेवाड़ी हरियाणा में जन में प्रोफेसर केसी यादव अपनी शिक्षा दीक्षा के बाद कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष रहे प्रोफेसर के साथ-साथ वहां के विभाग को इन्होंने अपने लेखन से और अपने कौशल से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले जाने में सफल हुए। और विश्वविद्यालय की प्रशासनिक सभा कार्यकारिणी एवं एकेडमिक संदर्भों में लंबे समय तक उनका जुड़ाव बना रहा है। लालू प्रसाद पर इनकी पुस्तक अपने समय की वह पहली पुस्तक की जिसके चारों तरफ चर्चा हुई।
सामाजिक न्याय से जुड़े रहने के कारण हमेशा इनका दृष्टिकोण समाज के उत्थान को लेकर के बहुत ही प्रभावशाली था जिसकी वजह से समाज के विभिन्न मंचों पर इनकी उपस्थिति अपरिहार्य रूप से सुनिश्चित हो जाती थी।
हरियाणा सरकार के बहुत सारे ऐसे उपक्रमों को इन्होंने अंजाम दिया जिसकी परिकल्पना नहीं की जा सकती जैसे अंबेडकर फाउंडेशन और गुड़गांव में बहुत सारे ऐसे काम किए जो हमेशा हमेशा इनके लिए ही नहीं पूरे समाज के लिए यादगार साबित होंगे।
जहां तक यादव समाज का संबंध है हरियाणा को इन्होंने बहुत मजबूती दी वहां के लोगों को अखिल भारतीय यादव महासभा से जोड़कर हरियाणा यादव महासभा का बहुत ही सुगठित एवं संगठित स्वरुप इनके साथ जुड़ा रहा जिसकी वजह से कई जगह तो ऐसा लगता था कि जैसे अखिल भारतीय यादव महासभा ना होकर हरियाणा यादव महासभा ही है।
"डॉ सर अपने ज्ञान , कौशल और विद्वता से समाज , विशेषकर हरियाणा राज्य ( हरियाणा राज्य की संस्कृति और विरासत को सहेजने और संरक्षित करने के लिहाज से उन्होंने बहुत बड़ा काम किया है) वैसे तो उन्होंने अनेको उल्लेखनीय कार्य किये हैं , महासभा के इतिहास और इमेज बिल्डिंग पर भी कम काम नहीं किया । उनके योगदान से ही महासभा के सोवेनिर को एक नए कलेवर में प्रकाशित कर पाये । अनेको एतिहासिक पुस्तकों को महासभा की और से फिर से प्रकाशित करवाया ।
कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में अपना मुक़ाम ऐसा बनाया की लोग उन्हें हमेशा सरहाते रहे है ।
अम्बेडकर चेयर के अध्यक्ष पद पर रहते हुए वंचितों और दलितों की आवाज़ भी बने रहे । मंडल कमिशन की हरियाणा में लागू करवाने में महत्व पूर्ण भूमिका अदा की । उनके जीवन को मात्र कुछ शब्दों में बांधा नहीं जा सकता ।
हमने एक बेहद क़ीमती साथी , पथप्रदर्शक एवं संरक्षक खो दिया । ईश्वर उनके परिवार के सदस्यों को इस सदमे को सहन करने की ताक़त दें ।
हमारी श्रद्धांजलि उनके चरणो में।"
यह संदर्भ हमने श्री सत्य प्रकाश यादव की ओर से डाली गई व्हाट्सएप की पोस्ट से लिया है चित्र हमारे अपने हैं जिनको मैंने उनके भोपाल प्रोग्राम के समय खींचा था वैसे तो हमारे पास उनके बहुत सारे चित्र हैं क्योंकि जिस तरह से उनका हमारा जुड़ाव था वह अपने आप में एक गुरु शिष्य जैसा था जहां उनकी अकादमीयता मैं चित्रों की जरूरत होती थी उसके लिए मैं हमेशा काम करता रहा।
उन्होंने एक बार हमारी प्रदर्शनी के लिए गुड़गांव के तमाम अधिकारियों से बात की थी जिसमें उस समय के वहां के एडमिनिस्ट्रेटर और गुड़गांव में तमाम सुविधा संपन्न यादव एवं राव के मध्य ले जाने का उनका सहयोग हमेशा स्मरणीय रहेगा।
उनसे मेरी मुलाकात अकस्मात दिल्ली में अपना एक कैटलॉग तैयार करिते समय मानक प्रकाशन के मालिक भाई मथुरा प्रसाद जी के कार्यालय में हुई थी उसी समय हमारी प्रदर्शनी दिल्ली की ललित कला अकैडमी में आयोजित होनी थी, डॉ. केसी यादव अपने बहुत सारे सहयोगियों के साथ मेरी उस प्रदर्शनी में उपस्थित उपस्थित ही नहीं थी बल्कि एक प्रशंसक और उन्नायक के रूप में भविष्य में वह मेरी कला के लिए मेरा बहुत सहयोग किए।
मुझे याद है कि मैं कितनी बार उनके घर पर विलंब हो जाने की वजह से ठहर जाता था तब मेरे पास उस तरह के साधन भी नहीं थे कि मैं देर रात होने पर भी गुड़गांव से वापस आ जाता। की बात तो सीधे गुड़गांव से आकर मैंने अपनी कक्षाएं ली।
बहुतेरे प्रसंग है लिखने पर बहुत लंबा हो जाएगा मैं फिर इत्मिनान से उन पर लिखूंगा।
विनम्र श्रद्धांजलि के साथ।
लाल रत्नाकर
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