24 नव॰ 2021

ताकि सनद रहे।

 ताकि सनद रहे।

https://fb.watch/9tS-FFLCXb/

आज हमें जिन दो बातों पर जबरदस्त चिंता हुई उसमें एक तो वह पोस्ट देख कर जिसे मैंने नीचे लगाया है।
और दूसरा उस पर जिसके लिए लोग उत्तर प्रदेश में यह मन बनाए बैठे हैं कि परिवर्तन होने जा रहा है जो इस कुशासन से निजात दिलाएगा।
यदि सब कुछ ऐसा रहा तो आप इस पूरे वीडियो को देखिए जिसे मैंने नीचे लगाया है उसमें किस तरह की बातें की जा रही हैं और किस तरह से महिमामंडन किया जा रहा है लेकिन उन्हीं बातों में से वह बात भी निकल कर के आ रही है जो बहुत चतुराई से परखी जा सकती हैं।
चतुर लोग हमेशा यह चाहते हैं कि बाकी आवाम मूर्ख बनी रहे और उनकी चतुराई पर उंगली ना उठाए। आज दुनिया जितनी तेजी से बदल रही है कला संस्कृति और साहित्य की समझ पैदा हो रही है शायद भांटो के युग में यह सब संभव नहीं था।
मंचीय कवियों का कोई सम्मान कभी नहीं हुआ मैं कई ऐसे मंचीय कवियों को जानता हूं जो नि:संदेह मनोरंजनकर्ता होते हैं।
सामान्य वर्ग तो उन्हें कवि और कलाकार मानता है, परंतु वह अच्छे कवि नहीं माने जाते।
मेरे कला के क्षेत्र में सामान्य जन उन कलाकारों को बहुत महत्व देते हैं जो नकल करते हैं या कैलेंडर बनाते हैं वही बेसिक रूप से महान कलाकार होते हैं। कला के बारे में यह गलतफहमी ही हमारे समाज का ब्राह्मणवादी चरित्र है जबकि दूसरी ओर कलाओं का मूल्यांकन जिन बिंदुओं पर होता है उन पर या उनके बारे में सामान्यजन को कितनी जानकारी होती है इसका एक उदाहरण इस तरह से दिया जा सकता है कि मोबाइलों के दौर में विज्ञान की उपस्थिति की वजह से इस उपलब्धि को समझा तो जा सकता है लेकिन यही उपलब्धि कलाओं के बारे में समझना बहुत जरूरी है जो कलाओं में आधुनिक और वैज्ञानिक चेतना पैदा करता है।
इसलिए हम कह सकते हैं कि आज हम जिस युग में आगे जाना चाहते हैं लेकिन उन परंपराओं को अपने साथ रख करके कि ब्राह्मण ही सबसे ज्यादा बुद्धिमान है यह बात उनके दिमाग में मैल की तरह जमी हुई है। जिस वजह से उसे बुद्धिमान कहा जाता है उसके बहुत सारे कारण हैं। यही कारण है कि दलित और बहुजन समाज के बुद्धिजीवियों को, साहित्यकारों कवियों कलाकारों को क्यों करीब नहीं आने दिया जाता, क्योंकि वह सच से समझौता नहीं कर सकते।
राज्यसभा की शोभा रहे जावेद अख्तर साहब जो उस समय की नब्ज को पहचानते हैं और बहुत सलीके से सच को सच के तरीके से परोस देते हैं पत्रकारिता के क्षेत्र में यदि देखा जाए तो आज ऐसे ऐसे पत्रकार निश्चित रूप से जो समय की सबसे बड़ी विडंबनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं उनमें आरफा खानम उर्मिलेश जी और बीबीसी में काम करने वाले पत्रकार देश में मौजूद हैं क्या उन्हें आप बुलाने की स्थिति में हैं शायद इसलिए नहीं की वह उपलब्ध नहीं है आप उन्हें जानते नहीं हैं जी हां एक दिक्कत है कि वह आकर के भांटगिरी नहीं कर सकते।
यही फर्क होता है जन सामान्य की चेतना और विशिष्ट की चेतना में इसी बात को हमेशा राजेंद्र यादव जी अपनी चर्चा में रखते रहते थे और वरिष्ठ नेताओं में भी यही चिंता रहती है कि कैसे-कैसे लोग आज आगे आ रहे हैं। इनसे हमारी राजनीति कहां जाएगी जिसके पीछे पेरियार, लोहिया (जयप्रकाश), चौधरी चरण सिंह, रामस्वरूप वर्मा जगदेव प्रसाद कुशवाहा कर्पूरी ठाकुर , मान्यवर कांशी राम और विश्वनाथ प्रताप सिंह की नीति रही हो।
............. क्रमशः जारी।
डॉ लाल रत्नाकर
वह टेक्स्ट जिसमें 'कहते हैं समाजवादी बनते हैं समाजवादी चक्कर में फंसे हुए हैं उनके ! जो हैं दुनिया के घोर व चोर ब्राह्मणवादी|' लिखा है की फ़ोटो हो सकती है






12 घंटे 
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पब्लिक
कितना जटिल होता है सही का चयन करना?
कुछ को छोड़ दिया जाय तो जो महत्वपूर्ण है : विशेषकर यही सबसे ख़तरनाक है कि ऐसे भांट ही भांटगिरी कर रहे हैं। जिसने सब-कुछ कह दिया यही है ब्राह्मणवाद।
जिस मंच पर श्री उदय प्रताप सिंह जैसे महान कवि विराजमान हो उनके सामने ऐसे लोगों का खड़ा होना जिनका एक शब्द शब्द जहर हो!
इसपर मैं अपने ब्लॉग पर विस्तार से लिखूंगा इंतज़ार करिए!

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