26 मई 2010

ऐसा प्रधानमंत्री जो कहीं से ग्राम प्रधान तक का चुनाव नहीं जीत सकता ?
डॉ.लाल रत्नाकर 
भारत के प्रधान मंत्री ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में जाति आधारित जनगरना-२०११ को जिस तरह गोल मटोल जवाब देकर टाल गए है, उससे संदेह के घेरे में कांग्रेस की नियति आ जाती है, जिस देश का प्रधानमंत्री देश की सबसे बड़ी पंचायत में यह स्वीकार करता हो की जाति आधारित जनगरना करायी जाएगी उससे इस प्रकार गोल मटोल जवाब की अपेक्षा नहीं हो सकती पर एसा करके उन्होंने सारी संभावनाओ को दर किनार कर दिया है. लगता है की कांग्रेस की आतंरिक चाल के कोई नए हथकंडे तैयार किये जा रहे है, समय और सत्य की समझ से कोसों दूर जिस बडबोलेपन का आदी समाज सार्वजनिक तौर पर अन्याय और हड़प का सिद्धांत अख्तियार कर सारा समय अपने एसों आराम के लिए चुना और तो और देश के कारीगरों मेहनतकशों किसानों मजदूरों की जिंदगी को नारकीय बनाने की योजनाये बनायीं तब उन्हें यह कहाँ पता था की बराबरी या हिस्सेदारी की मांग तो एक ना एक दिन उठेगी जरुर पर ये टालू किस्म के लोग तब सब कुछ टाल गए थे.आज का एक अहम् मुद्दा जिसे अंग्रेजों ने जरुरी समझा था और तत्कालीन 'विश्वयुद्ध' की विडंबनाओ की वजह से जिसे कट कर दिया गया था उसे देसी अंग्रेजों ने आज तक टाल कर रखा थोड़ी सी संभावना तब 'बनी' जब कांग्रेस की अध्यक्षता एक  विदेशी हाथों में है, अगर वैसी ही नियति इन्होने भी अख्तियार 'न' की तो वर्तमान समय में पूरे देश से कांग्रेस को जाना होगा, यह जाती का सवाल इतना आसान नहीं है जितना आसान आज के बौद्धिक बरगलस करके तमाम सुविधाभोगी जमात द्वारा आज नहीं सदियों से किया जा रहा जो कुछ इनके भ्रष्ट बेहुदे और विकृत मानसिकता से किया जा रहा है, जिसे वक़्त ने बड़ी बुद्धिमत्ता से यहाँ तक खींच कर खड़ा किया है. आज राष्ट्रीय स्तर पर जिस अपराधिक प्रवृत्ति के लोग देश की सत्ता के नियामक बने है उनकी नियती साफ नहीं है. कहने को वह देशप्रेमी राष्ट्रभक्त आदी-आदी कहे जा रहे है लेकिन सारी संपदाओं पर उनके बहकाओं में आकर पिछड़े और दलित उन्हें सारी सत्ता सौंप देते रहे है आज उनकी मौजूदा हालत के लिए यही पिछड़े और दलित की मानसिकता जिम्मेवार है जहाँ उनकी संख्या तक का लेखा जोखा कराने पर इतना बड़ा समाज असहाय है, इसमे कोई दो राय नहीं की हमारा देश विकास की जिस गति को प्राप्त कर सकता था उसे इन्ही सुबिधाभोगी देशद्रोहियों ने नहीं होने दिया है, फिर ऐसा प्रधानमंत्री जो कहीं से ग्राम प्रधान तक का चुनाव नहीं जीत सकता वह जनता जो 'वोट' डालती है उसके लिए क्यों नीति बनाएगा या बनवाएगा वह तो अपने गृह-मंत्री से नंगे भूखों की जायज मांगों पर उन्हें गोलियों से भुनवायेगा.
आज सारा समाज केंद्र की ओर देख रहा है की वह जातीय गरना पर क्या फैसला लेता है और सदियों की छुटी हुयी आधारभूत मान्यताओं  को दरकिनार कराने की साजिश में लगे पूरे तथाकथित समाज बुद्धिजीवियों की विरासत यह देश और दौलत उनकी ही है एसा उनका मानना है. यदि यही हाल रहे तो देश को उन तमाम जातियों को दिल्ली घेरना होगा जिन्हें जानबूझकर छोड़  दिया जा रहा है जिनकी गिनती नहीं हो रही है. नहीं तो सदियों से दबे कुचले लोग जिस जातिवाद का शिकार है उसका कोई निदान करने का उपाय ढूढ़ना पड़ेगा उसका सारा मूल्यांकन तभी होगा जब समग्र इंतजामात करना होगा अन्यथा भारतीय लोकतंत्र का नया स्वरुप गढ़ ही नहीं जा रहा है सर्वत्र दिखाई देने लगा है. राजतन्त्र की पुरानी अवधारणा पर सदियों से लड़ी गयी लड़ाई को दर किनार करके फिर से राजतन्त्र गढ़ा जा रहा है.
पिछड़ी जातियों और दलितों को भी बांटना उनका सदियों का मोनोपली रही है जिससे उनकी हार होती रहती है, इसी हार के बदले बदलते माहौल के लिए बनाये जाने वाली ताकतों का भी जिक्र उनके द्वारा किया जा रहा है, उनकी  दिक्कतें यहीं नहीं खत्म होती है बल्कि वो अब ज्यादा चिंतित हो गए है की कहीं उनकी असलियत खुल न जाय ! आज जब पुरे देश की यह मांग है जाती की पहचान और उनकी संख्या उन्हें यह एहसास हो ऐसी जानकारी से कतराना क्या पुरे अवाम के लिए क्या सन्देश है, जहाँ एक तरफ आई टी और सूचना के अधिकार की बात हो रही हो वहां जातियों की संख्या छुपाने की साजिस का कारण आसानी से समझ आता है पूरी दुनिया इस देश के सबसे खतरनाक इरादे को समझ रही है पर आज के देश के इन्त्ज़म्कारों को यह समझ नहीं आ रहा है.

ऐसे प्रधानमंत्री को क्यों रहना चहिये जिसे उसकी ही कैबिनेट ही घुमा रही हो,उनके यह सच उनकी अध्यक्ष को जो समझा रहे है उन्हें यह भी समझ में आना चाहिए की यू पी ये -१ के कामकाज में लालू प्रसाद यादव का भी योगदान था मुलायम सिंह यादव ने ही अंततः इन्हें बचाया था जिससे उनकी जनता ने उन्हें उसका सबब भी दिया है. यह इनको भी नहीं भूलना चाहिए की जनता कभी भी सबक सिखा सकती है.
मेरे द्वारा सम्पादित एक आलेख पर एक मुस्लिम महिला की टिप्पड़ी -
"बेहतरीन आलेख है मेरी एक निजी अभिव्यक्ति है शायद ये बात तो किसी ने हुसैन मियाँ से पूछी तक न होगी कि जो चित्र उन्होंने बनाया है उसमें जिस तरह से प्रतीकात्मक नग्न स्त्री को भारतमाता जताया है वह "पैंटी" पहने सी लग रही है उसकी योनि नहीं दिख रही है हुसैन चाहते तो उस अंग को भी चित्रित कर सकते थे और हमारे देश में उदार कानून और बौद्धिकता के सहयोग से उसमें गुदामैथुन आदि तक का चित्रण कर देते तो भी इसे हमारे कौल महाशय तर्कसंगत ही मानते। हमारे न्यायमूर्ति धन्य हैं।"


''बे-शक" फरहीन नाज़ जी आप को आलेख अच्छा लगा यह जानकर मुझे भी अच्छा लगा. इसका साधुबाद. पर जो कुछ आप अपनी टिप्पड़ी में लिखी हो वाह सब चित्र के हिस्से है पर आपने जस्टिस कौल के बहाने जिस चित्र शास्त्र को नंगा करने की सोच रखती हो माकूल नहीं है बौद्धिकता की बरगलश में चित्र विधा जिसे भारतीय शास्त्रों ने मान्यता दी है सब प्रतीकात्मक है वास्तविक नहीं, यूरोपीय नग्नता की वहाँ उन्हें मान्यता है अतः वह सब अंग प्रत्यंग वहाँ चित्रित है और उत्कीर्णित भी. यथा सोच और ज्ञान में तादात्म्य बढाईये,बाकि सब तो विश्व हिन्दू परिषद् और बजरंग दल वाले करी रहे है, क्योंकि वह रचनात्मकता विरोधी तो है ही, लम्बे समय से यह देश रचनात्मकता के लिए दलित और विधर्मी को ही उसका उत्तरदायी मानता है यथा - नाई धोबी दर्जी मोची राजगीर पेंटर बढाई लोहार धरिकार चुरिहारिन मेहतर भिश्ती रिक्सवान इक्कावान दुधिया आदी आदी, पर थोड़े दिनों से इस पर भी हमला करने की सुधि बौद्धिक विलाशिता के लोगों ने ली है, जिससे आप जैसों के मनो में यह भावना आई है हुसेन मियां मियां चित्रकार नहीं थे वह भारतीय कला के समग्र उन्नायक है जहाँ भी रहेंगे उसी को बड़ा करेंगे, मैं इस फैसले में काम से काम न्याय के सारे तर्कों से सहमति रखता हूँ काश 'वो भी समझ पाते' जिनकी वजह से देश सैकड़ों वर्षों की गुलामी झेल चुका है.


"आवाज" 

2 टिप्‍पणियां:

RAJENDRA ने कहा…

बहुत ही अच्छा लिखा है ये आवाज जन जन तक पहुंचनी चाहिए अभी तो सब नकली नेहरु गाँधी परिवार के गुणगान में लगे हैं हमारे मनमोहन जी भी - बना क्यों नहीं देते राहुल को प्रधानमन्त्री

RAJENDRA ने कहा…

बहुत ही अच्छा लिखा है ये आवाज जन जन तक पहुंचनी चाहिए अभी तो सब नकली नेहरु गाँधी परिवार के गुणगान में लगे हैं हमारे मनमोहन जी भी - बना क्यों नहीं देते राहुल को प्रधानमन्त्री

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