3 सित॰ 2010

भगवा रंग पर कब्ज़ा
डॉ.लाल रत्नाकर



सदियों तलक रहा है यह देश गुलाम ? आखिर क्यों जब इसकी स्मिता लोगों को गिरवीं हो जाती है तो गुलामी की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, क्या रंगों पर कब्ज़ा उस प्रक्रिया का अंग तो नहीं बनने जा रहा है ?
यथा -
भगवा-नीला-काला-हरा-सफ़ेद-गुलाबी -पीला |
जबकि इन रंगों के अपने मायने हुआ करते है , हम कहीं न कहीं इनके मूल्यों को समाप्त तो नहीं करते जा रहे है इन पर कब्ज़ा कर कर के, आम जीवन इन रंगों के साथ अपने जीवन में उत्सवी आनंद व् मंगल की कामना करता रहा है. पर आज इन्हीं रंगों पर राजनितिक दलों ने , धार्मिक मठों ने आधिपत्य जमा रखा है एसे में हमारे सांस्कृतिक विरासत पर आधिपत्य का मामला काफी भयावह है.
यदि यही हालात रहे तो हमारे रंग भी गुलाम हो जायेंगे . अब सवाल यह बनता है की ये राजनितिक और धर्माधिकारी क्या करें
 कहाँ से ले प्रतीक अपने अपने अभियानों के लिए या रंग पर आमजन के रंगों की कीमत वसूलने का हक़ ओह कब्ज़ा ना करें तो ही ठीक रहेगा -
परन्तु आज हमारे बीच इन्ही रंगों की अनदेखी ही नहीं उनके मायने भी बदल रहे है, बगैर दलों के नाम लिए यहाँ यह कहा जा सकता है कि यह हाल करीब करीब सभी दलों की है जहाँ इन रंगों का सम्मान होने कि बजाय ज्यादा अपमान ही किया जा रहा है, यहाँ तक कि राष्ट्रध्वज भी इससे बच नहीं पा रहा है
पिछले दिनों इसी तरह कि एक खबर आयी -
     दरअसल!रघु जी की चिंता जायज है, पर जो इन्होने तर्क दिए है वह आज अप्रासंगिक हो रहे है जैसे इनका भारतीय राजनीति में जो हश्र हुआ वह राजीव गाँधी या इंदिरा गाँधी का नहीं हुआ वह भले ही नेहरू के बंशज होने के नाते या समरथ को नहिं दोष गोसाई वाली युक्ति का सवाल हो पर ऐसा नहीं की 'इन खप पंचायतों वालों ने सगोत्रीय शादियाँ न की हों या जाती से बाहर न किया हो ऐसा नहीं है' पर जब किसी सूबे के भूतपूर्व वर्तमान और भविष्य के मुख्यमंत्री और नए ज़माने के किसान नेता ने इसका दायित्व संभाला हो तब ऐसा कैसे नहीं होगा.
अब सवाल है रघु जी की जब आप जैसे बुद्धिजीवी राजनेता समाजवादियों को पूंजीवादियों की झोली में जाने से रोकने में सफल नहीं हो पाते है, खाप के अलमबरदारों की लाथैईट का भार और ताप तो किसी न किसी को झेलना ही पड़ेगा.चाहे वह उन्ही की जाती के ही क्यों न हों ? यह पागलपन एसी ही कौमों में होता है जो एक ज़माने में इन मान्यताओ के घोर विरोधी रहे हों.
गणेश जी के दूध पिने का सवाल हो या 'शिला पूजन'का तिक्कैत के टिके रहने का मामला.जिसकी लाठी उसकी भैंस.ये जवान जो सम्मान ही करना नहीं जानता किसी का करना 'उसी की हत्या से' उपजता है ‘आनर किलिंग’का मामला |
यदि वास्तव में इन किसानों की उपज को बचाना है तो सांस्कृतिक सदभाव बढ़ाना होगा नहीं तो यह चैनल तभी तो चलेंगे 'तेरे बिन लादेन' देख लीजिए. कहाँ जाये किसी सरकारी मशीनरी से ही तो इन चैनलों को भी मान्यता मिलती होगी, क्या मोटी रकम से यह खेल हो रहा है या और कोई तरीका है ?
इस नीले रंग का कत्तई मतलब नहीं कि यह बहुजन समाज पार्टी के प्रचार कि नियती से इन्हें पहनाया गया है या यह पहनी है -
   

Color or colour (see spelling differences) is the visual perceptual property corresponding in humans to the categories called redgreenblue and others. Color derives from the spectrum of light (distribution of light energy versus wavelength) interacting in the eye with the spectral sensitivities of the light receptors. Color categories and physical specifications of color are also associated with objects, materials, light sources, etc., based on their physical properties such as light absorption, reflection, or emission spectra. By defining a color space, colors can be identified numerically by their coordinates.
Because perception of color stems from the varying sensitivity of different types of cone cells in the retina to different parts of the spectrum, colors may be defined and quantified by the degree to which they stimulate these cells. These physical or physiological quantifications of color, however, do not fully explain the psychophysical perception of color appearance.
The science of color is sometimes called chromatics. It includes the perception of color by the human eye and brain, the origin of color in materials, color theory in art, and the physics of electromagnetic radiation in the visible range.
स्टैन्डर्ड RYB वर्ण चक्र
"कांग्रेस नेता भगवा को शर्मसार न करें
भगवा आंतकवाद के अपने बयान पर गृह मंत्री पी चिदंबरम के कायम रहने व कांग्रेस के अन्य नेताओं द्वारा उसका विरोध करने पर रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस के नेता आपसी खींचतान व एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रतिस्पर्धा में भगवा को शर्मसार न करें।
भगवा रंग देश की सांस्कृतिक विरासत, साहस, शौर्य व स्वाधीनता आंदोलन का प्रतीक है। गृहमंत्री को समझना चाहिए कि भारत के लोगों का इस पर सदियों से पेटेंट हैं। स्वामी विवेकानंद ने भगवा रंग             में ही शिकागो में भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का रंग बिखेरा था। आदि शंकराचार्य ने भी भगवा वस्त्रों में पूरे देश का भ्रमण कर उसे एकता के सूत्र में बांधा था।"(दैनिक जागरण ०२-०९-२०१० से साभार)

CMYK वर्ण प्रतिरूप, या चार-वर्ण मुद्रण                      
रंगों के बारे में और जानकारी के लिए 

मुख्य लेख : CMYK वर्ण प्रतिरूप

व्यकलित वर्ण मिश्रण – रानी और क्यान प्राथमिक को कई बार पर्पलऔर नीला-हरा, या लाल और नीला भी कहा जाता है।


1 टिप्पणी:

akvashokbindu ने कहा…

jo satya ko chhipaye vah KAAFIR kahlaye . ayoddhaya me 1690 saal pahle kya tha? jo chhipaye vah meri najar me KAAFIR kahlaye.
khair....


VERY GOOD

akvashokbindu.blogspot.com/

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