29 अक्तू॰ 2013

साहित्यकार राजेंद्र यादव का निधन

साहित्यकार राजेंद्र यादव
राजेंद्र यादव के उपन्यास सारा आकाश पर एक फ़िल्म भी बनी थी
हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर राजेंद्र यादव का सोमवार देर रात निधन हो गया. वह 85 साल के थे.
उनका जन्म 28 अगस्त 1929 को उत्तर प्रदेश के आगरा ज़िले में हुआ था. उनकी शिक्षा-दीक्षा भी आगरा में ही हुई.
उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से 1951 में हिंदी विषय से प्रथम श्रेणी में एमए की डिग्री हासिल की थी. उन्होंने विश्वविद्यालय में पहला स्थान हासिल किया था.
बहुमुखी प्रतिभा
अपने लेखन में समाज के वंचित तबके और महिलाओं के अधिकारों की पैरवी करने वाले राजेंद्र यादव प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद की ओर से शुरू की गई साहित्यिक पत्रिका क्लिक करें हंस का 1986 से संपादन कर रहे थे.
अक्षर प्रकाशन के बैनर तले उन्होंने इसका पुर्नप्रकाशन प्रेमचंद की जयंती 31 जुलाई 1986 से शुरू किया था.
प्रेत बोलते हैं (सारा आकाश), उखड़े हुए लोग, एक इंच मुस्कान (मन्नू भंडारी के साथ), अनदेखे अनजान पुल, शह और मात, मंत्रा विद्ध और कुल्टा उनके प्रमुख उपन्यास हैं.
इसके अलावा उनके कई कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं. इनमें देवताओं की मृत्यु, खेल-खिलौने, जहाँ लक्ष्मी कैद है, छोटे-छोटे ताजमहल, किनारे से किनारे तक और वहाँ पहुँचने की दौड़ प्रमुख हैं. इसके अलावा उन्होंने निबंध और समीक्षाएं भी लिखीं.
आवाज़ तेरी के नाम से राजेंद्र यादव का 1960 में एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुआ था. चेखव के साथ-साथ उन्होंने कई अन्य विदेशी साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद भी किया था.
उनकी रचना सारा आकाश पर इसी नाम से एक फ़िल्म भी बनी थी.
राजेंद्र यादव ने कमलेश्वर और मोहन राकेश के साथ मिलकर हिंदी साहित्य में नई कहानी की शुरुआत की थी.
लेखिका मन्नू भंडारी के साथ राजेंद्र यादव का विवाह हुआ था. उनकी एक बेटी हैं. उनका वैवाहिक जीवन बहुत लंबा नहीं रहा और बाद में उन्होंने अलग-अलग रहने का फ़ैसला किया था.
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'विवादों से हार नहीं मानी राजेंद्र यादव ने'
हिंदी साहित्य की मशहूर पत्रिका 'हंस' के संपादक, हिंदी में नई कहानी आंदोलन के प्रवर्तकों में एक, कहानीकार, उपन्यासकार राजेंद्र यादव का जीवन विवादों से भरा रहा. मगर उन्होंने कभी इससे हार नहीं मानी.
समाज के वंचित तबके और स्त्री-पुरुष संबंधों को अपने लेखन का विषय बनाने वाले राजेंद्र यादव के जीवन पर बीबीसी ने बात की दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर मैनेजर पांडेय से.
हंस का भविष्य अंधकारमय: मैनेजर पांडेय
राजेंद्र यादव पिछली आधी सदी से हिंदी साहित्य में सक्रिय रहे. उन्होंने तीन-चार क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण काम किया है. नई कहानी के लेखकों में महत्वपूर्ण थे राजेंद्र यादव. उन्होंने कुछ अच्छे उपन्यास भी लिखे जिस पर 'सारा आकाश' जैसी फ़िल्म भी बनी. जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने 'हंस' पत्रिका निकाली, जो हिंदी की लोकप्रिय और विचारोत्तेजक पत्रिका मानी जाती है.
"राजेंद्र यादव विचार और व्यवहार में लोकतांत्रिक आदमी थे. मतभेदों से न वे डरते थे, न घबराते थे और न बुरा मानते थे."
प्रोफ़ेसर मैनेजर पांडेय, आलोचक
इसके जरिए उन्होंने दो काम किए, पहला यह कि उन्होंने स्त्री दृष्टि और लेखन को बढ़ावा दिया. स्त्री दृष्टि पर उनकी राय विवादास्पद लेकिन विचारणीय रही. उन्होंने दूसरा काम यह किया कि 'हंस' के ज़रिए उन्होंने दलित चिंतन और दलित साहित्य को बढ़ावा दिया. दलित साहित्य को हिंदी साहित्य में स्थापित करने में राजेंद्र यादव ने उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
राजेंद्र यादव विचार और व्यवहार में लोकतांत्रिक आदमी थे. मतभेदों से न वे डरते थे, न घबराते थे और न बुरा मानते थे. मैं पिछले 20 साल से 'हंस' के लिए लिख रहा हूं. कई मुद्दों पर मतभेद के बाद भी उनसे मेरा संबंध आत्मीय बना रहा, कभी उसमें खटास नहीं आई. उनका जाना हिंदी साहित्य के लिए बहुत बड़ी घटना और नुक़सान है.
इससे 'हंस' का भविष्य अंधकारमय हो गया है. उसका भविष्य क्या होगा यह न तो राजेंद्र यादव को मालूम था और न हम लोगों को. हम इस पर उनसे चर्चा किया करते थे. 'हंस' अगर अब चलती भी है तो, उसमें वह बात नहीं होगी जो राजेंद्र के समय थी. दूसरा बड़ा नुक़सान यह है कि हिंदी के विभिन्न मुद्दों पर होने वाली बहसों में शामिल रहते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाएगा.
हिंदी में दलित साहित्य को आगे बढ़ाने में राजेंद्र यादव का बहुत बड़ा योगदान है. मेरी जानकारी में हिंदी में दलित साहित्य पर पहली गोष्ठी उन्होंने 1990 के दशक में कराई थी. 

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