17 अक्तू॰ 2016

बदलती राजनीती की ओर ;



बदलती राजनीती की ओर ;

वैसे तो किसी प्रदेश और देश की राजनीती तय करने के लिए काम की कोई महत्ता अब नहीं है, यदि काम महत्वपूर्ण होता तो दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती शिला दिक्षित से अधिक काम कोई किया ही नहीं था ? लेकिन वह कांग्रेस के भ्रष्टाचार और निकॅम्मेपन की शिकार हुईं और स्वयं तक चुनाव हार गयीं ! लेकिन उत्तर प्रदेश में मौजूदा सर्कार ने कुछ काम ऐसे जरूर किये हैं जिसे "बौद्धिक और सदियों से संघर्षरत और जरुरत मंद पिछड़ा समाज, दलित समाज और मुस्लिम समाज जिस तरह से छाला गया है" बखूबी समझ रहा है ?

जिस तरह के मुट्ठीभर मूर्ख सवर्णों के लफंगों ने आपके दौर में सारी समाजवादी सोच का रसपान किया है संभवतः कांग्रेस और भाजपा के समय भी नहीं इतना बेहूदा लोग आगे आये होंगे ? इसे सरकार में रहकर वह क्या समझते हैं क्या यह वैचारिक रूप से कंगाली को ही नहीं दर्शाता है ?

जिसको मुट्ठीभर सामंती सोच के लोगों के कारण सदियों के किये गए दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों के संघर्ष से प्राप्त हक़ को संज्ञान या अज्ञान में समाप्त करके क्या सन्देश दिया गया है ? सत्तामद में किया गया यह निर्णय क्या आत्मघाती नहीं है ?

एक ही जाती (ब्राह्मणों) के नियुक्तियों वाला सिद्धार्थ विश्वविद्यालय हो, उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग हो, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग हो या अन्य अनेकों आयोग जिनमें कोई काम ही नहीं हुआ उसके पीछे वही एक ही जाती (ब्राह्मण) है जो न्यायालयों व सरकार के दामन में बैठकर विभिन्न आयोगों को पंगु कर दिया !

सरकार के मुख्य सचिव का दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों के घोर विरोधी तुगलकी फरमान ने आरक्षण को लगभग निष्प्रभावी बनाने का काम किया है।
जिस कुशलता से मौजूदा सरकार ने दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों के हितों के संबैधानिक हकों का नुकसान किया है संभवतः इतिहास में कोई नहीं करेगा ?

क्योंकि इन हकों की रक्षा का दायित्व सरकारों का ही होता है क्या इस सरकार ने आगे जाकर किसी भी तरह के संवैधानिक हक़ की रक्षा करने का प्रयास किया है।
किसी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में प्रदेश के महाविद्यालयों में एक भी नियुक्ति न हुयी हो जबकि हज़ारों पद खाली पड़े हों और हज़ारों योग्य युवा बेरोजगार, उस सरकार के विकास के ग्राफ को कैसे नापेंगे ?

जो सरकार पांच सालों तक भ्रष्ट और गुंडों को मंत्रीमंडल में रखे हो और अंत में उन्हें निष्काषित कर ईमानदार दिखने का नाटक करे ? और पुराने और निष्ठावान समाजवादियों को मंत्री मंडल से हटा दी हो साथ ही दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों के ईमानदार अफसरों को वर्दास्त नहीं कर पाती हो या सरकार में बैठे तिकड़मी अफसरों ने दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों के विरोध का काम किया है !

लखनऊ को स्वर्ग और सैफई को लखनऊ बनाईये यही यही मौजूदा सरकार का विकास है ? ज़रा जमीन पर घूमिये घर घर राजनेता मिलेंगे ज्ञान और शिक्षा से महरूम, फिर भी किसी को यदि लगता है की अलग पार्टी बनाकर वह युग पुरुष बनने जा रहा है तो स्वागत योग्य है।
हमने तो यह गलत फहमी निकाल ही दी है कि दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों के मौजूदा नेताओं के पास उनके विकास का कोई कार्यक्रम है ?

लैपटॉप बाटना और शिक्षित करना दो अलग सोच है ? मेरे यहाँ भी अनेक विद्यार्थी उस लैपटॉप के मालिक हैं जिन्हें वह मुफ्त में मिला है, पर उनमें विषय की गुणवत्ता ही शून्य है ? इस गुणवत्ता को नापने के सरकारी पैमाने केवल कागजी हैं ? और इसी तरह का फरमान है स्मार्ट फोन जिसे चाइना का युवा बनाता है यहाँ की सरकार मुफ्त में बाँट कर उन्हें मूर्ख से मूर्खतर बनाकर वोट के लालच में उन्हें मुफ्तखोर और लालची बना दे रही हैं ?
आपको पता है की नियुक्तियां कैसे हो रही हैं (जो थोड़ी बहुत कहीं हुयी हैं) ट्रांसफर में कितने पैसे लिए गए हैं ?

यदि यह सब केवल लफंगों और कथित धनपशुओं की औलादों के सुझाये गए मार्ग हैं तो आप सरकार के मुखिया के रूप में आगे बढिए सारे सवर्ण आपके स्वागत को तैयार हैं ? क्योंकि सवर्ण मीडिया ने आपकी सरकार के विरोध में अपना काम करना शुरू कर दिया है जिसे आपने सर्वाधिक यशभारती और अन्य विज्ञापन देकर उपकृत किये हैं।

अनुभवी लोग जानते हैं की वोट लेने के लिए क्या किया जाता है, स्मरण करिये अमर सिंह ने भी पार्टी बनाई थी क्या हुआ उसका ?

समय है उलटा चलिए जहाँ तक गए हैं वापस आइये हिंदुस्तान जातियों का देश है जातियों के समूह के वर्ग हैं जिन्हें दलित, पिछड़ा, सवर्ण और अल्पसंख्यक (मुस्लिम) कहा जाता है यही हैं वह 85 % आवादी, जिन्हें सवर्णों ने अब तक मूर्ख बना रखा है आप भी संयोग से उसी वर्ग से आते हैं क्या यह सत्य नहीं है ?

बड़े बुजुर्ग दूसरी जातियों में शादी व्याह का बुरा मानते रहे हैं। पर जाती तोड़ने के लिहाज़ से यदि समाजवादियों अंतरजातीय शादियों की शुरुआत की है तो स्वागत योग्य है पर केवल लड़कियां लाना और लडकियां औरों में न देना या केवल खास जाती विशेष की कन्याएं लाना ही जाती तोड़ने का मार्ग नहीं है ?

यहाँ तक की आपके अपने यादव बंधुओं में भी शादी व्याह का शखायी बंधन बरकरार है ? वैसे यादवों या पिछड़ों दलितों और मुस्लिमों में जीतनी काबिल लड़कियां हैं उन्हें किसी से कमतर भी नहीं आंका जा सकता है।

बरक्स नयी राजनीती जिसमें अयोग्य और खानदानी युवाओं को सितारे हिन्द बनाने में जो लगे हैं उन्हें यह जरूर समझना होगा की जिस आवाज के साथ विरोध की राजनीती का आगाज़ हुआ था परिवारों का राज हटाओ तो परिवारवाद को कैसे पछाड़ेंगे और कहाँ से लाएंगे लोहिया, चौ.चरण सिंह, चंद्रजीत यादव, राम स्वरुप वर्मा, राम सेवक यादव,लक्ष्मी शंकर यादव, श्याम लाल यादव,राम नरेश यादव, मुलायम सिंह यादव, बेनी प्रसाद वर्मा, सोने लाल पटेल, स्वामी प्रसाद मौर्या आदि अनादि (ये सब उत्तर प्रदेश) से हैं ! 

डॉ.लाल रत्नाकर

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