20 जुल॰ 2009

जो इन्हें बाँधकर रखेगी वह है दुर्बुद्धि................................................ !



जो इन्हें बाँधकर रखेगी वह है दुर्बुद्धि................................................ !
डॉ.लाल रत्नाकर


जिस बात की आशंका थी हुआ अंततः वही,माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय पर यह आरोप तो लगना ही था,पर इनका खुलापन ही था की वह एक दलित का उन्होंने खुल कर साथ दिया,यदि यह कहना अवमानना के अर्न्तगत न आता हो तो -
१. "कि दलित के लिए बने कानून यदि कम है,तो और बनाये जाने चाहिए जिससे उसका विकास हो,उन कानूनों के बल अंहकार के मद में उत्पात मचाने का अधिकार तो वे नहीं देते है, पर संबैधानिक मामलों से मुह मोड़ लेना कहाँ का इंसाफ है.
२. दलित मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायलय का बनाया जाय यह आन्दोलन पिछडों के तमाम संगठनों और सामाजिक सोच के बुद्धिजीवी नेताओं ने किया,उतना उन प्रबुद्ध दलितों का भी योगदान रहा.पर इस आन्दोलन से दोनों के राजनेता नदारद थे.
३. पिछले दिनों कौन सी एसी आपदा आ गयी थी कि भारतीय राजनीती के भ्रष्टतम नेताओं कि मनमानी पर मुहं मोड़ लेने कि, दलितों और पिछडे अविवेक पूर्ण क्रिया कलापो पर उचित दिशा निर्देश उतना ही महत्वपूर्ण होता जितना बाबा साहब ने संबिधान में इनको समान हक के हिस्सेदार बनाया पर जो कुछ ये कर रहे है सब दिखाई दे रहा है.
४. कोई भी समझदार दलित इस बात का समर्थक तो होगा कि उनके महापुरुषों कि प्रतिमाएँ लगें ,पर जीते जी को बुत बना दिया जाय तो पागलपन नहीं तो क्या होगा.
५. कांशीराम के पूरे आन्दोलन से जितना खौफ देश कि कई जातियों पर था, आज वही सत्ता पर उस आन्दोलन से ज्यादा शक्तिशाली तरीके से काबिज है,
इसकी जवाबदेही किसकी है ?
आज यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम कितने महान हो गए है क्या यह वैसी ही महानता तो नहीं है जिस महानतम को हम धकेल कर आगे आये है , और क्या एसी तो नहीं जिससे हम कल उतरने जा रहे है , वैचारिक और व्यवहारिक स्थितियों का एक सामंजस्य जब तक नहीं बनेगा तब तक सारे आन्दोलन उस दशा को भेंट चढ़ जायेंगे जिन्हें हम भेंट चढा चुके है ! क्योंकि हम उनसे बदतर करने को प्रतिबद्ध हो गए हमारी दृष्टि बस अपने इर्द गिर्द घूमती रह रही व्यापकता कहने और दिखावे कि बस्तु होकर रह गयी है जिस बड़े आन्दोलन का नारा सुनकर वह एकजुट हुए थे वो धीरे धीरे एक एक कराके अलग होते गए . तब उनका अलग होना उतना मायने न रखता जितना आज हुआ क्योंकि उनका अलग होना जायज था और उसका असर भी हुआ.
जिस समाज ने सपने संजोये थे और कुछ करने कि तमन्ना थी उनको अलग थलग रख कर जो किया गया वह कत्तई उपयुक्त नहीं था उनसे सामंजस्य न बना पाना यह किसकी कमी थी , जिसने जिम्मेदारी ली थी !
गाँधी नेहरू गाँधी ..............यह अच्छे संकेत नहीं हैं , कौन गाँधी जिसको इतना बड़ा बैनर बना के रक्खा है , वहां फिरोज गाँधी कि सल्तनत है , इस बात को कितने लोग जानते है यदि जो जानते है तो उस पर विचार कितने करते है. आज चाहे अनचाहे हम गाँधी नहीं फिरोज गाँधी कि सल्तनत खड़ी करने पर लगे है. क्योंकि इन्होने सत्ता का स्वाद चख लिया है . त्याग के नाम पर वफादारी , ईमानदारी , चरित्र , सत्ता सब कुछ त्याग देंगे पर जो इन्हें बाँधकर रखेगी वह है दुर्बुद्धि................................................ !

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