4 अग॰ 2009

रक्षा बंधन की शुभ कामनाएं


ख़लील ज़िब्रान ने कहा है कि प्रेम आपको आटे की तरह गूँथता है और आपको तब तक गूँथता रहता है जब तक आप जीवन नाम की रोटी बनाने लायक नरम नहीं हो जाते. तो जो प्रेम आपको जीवन के लिए तैयार करता हो, वह ग़लत या अवैध कैसे हो सकता है? जब समाज किसी प्रेम को अवैध कहता है तो वह इसमें देह को शामिल मानकर चलता है. उसके लिए अशरीरी प्रेम कुछ है ही नहीं. यह सिर्फ़ मैं जानता हूँ और आप जानती हैं कि हमारे प्रेम में कभी देह थी ही नहीं. क्या तो भी हमारा प्रेम अवैध है?

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनायें

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