13 अग॰ 2009

विगत लोक सभा में यादव सांसदों की घटती संख्या


डॉ.लाल रत्नाकर
आल इंडिया यादव महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जो महत्व के मुद्दे थे उनमे विगत लोक सभा में यादव सांसदों की घटती संख्या पर विचार एक राजनैतिक चर्चा के लिए राष्ट्रीय महासचिव सत्य प्रकाश यादव ने कार्यक्रम की तमाम औपचारिकताओ के उपरांत बहस के लिए विचार हेतु सर्वप्रथम उ.प्र. के पूर्वमंत्री अम्बिका चौधरी को आमंत्रित किया उन्होंने तथ्यात्मक पहलुओं को स्पर्श करते हुए बहुत ही चतुराई से राजनैतिक गरिमा को बचाने की भरपूर कोशिश की 'पर सब कुछ ...................' एसा वास्तव में किसी दल के सदस्य होने के नाते उतना सहज नहीं होता. माननीय अम्बिका चौधरी जी कुछ भी जनता के सामने तथ्य प्रस्तुत किये वह राजनैतिक सच्चायी है, अम्बिका चौधरी जी प्रबुद्ध राजनीतिक है पर वह जानते है की जिस राजनैतिक प्लेटफोर्म पर खड़े है वह प्रतिस्पर्धा और प्रबुद्धता से आगे बढ़ने देने वाला नहीं है, आज उनकी कुछ राजनैतिक मजबूरियां है जिनके निहितार्थ है, यैसे वातावरण में वह या उनके जैसे प्रबुद्ध राजनीतिक लोगों के काम आते है. पर वे लोग उन्हें दल के नायक के लायक नहीं समझते और वहां सर्वेसर्वा जो होते है उनका नाम भी यहाँ उल्लिखित करना आल इंडिया यादव महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की अवमानना ही होगी, पर क्या यह यादव महासभा को तय करने का हक है जबाब है नहीं.
यदि हम किसी यैसे समाज की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर रहे होते तो इतनी आप धापी होती, वक्ता को कम से कम श्रोताओं के सवालों के जवाब तो देने ही पड़ते. हमें क्यों डर लगता है सवालों से? यह एक सवाल सारी बहस को खारिज ही नहीं तब अर्थ हिन् कर देते है अतः बहस तो हो जाती है पर उस पर अमल नहीं होता यह अमल में न लाये जाने की प्रक्रिया जिनके स्तर पर भी हो रही है निंदनीय है इसे भी रोका जाना होगा.
इस बहस के अगले वक्ता लखनऊ से आये प्रमोद कुमार यादव जी थे, सहज और शराफत वाले व्यक्तित्व की वजह से सच्चाई जानते हुए सच पर लगभग चुप.और क्रम बढ़ता गया जिसमे जगदेव, राजेश, जयप्रकाश आदि आदि ने वही कहा जो लगभग हर बार कहा जाता है किसी को चुनाव प्रक्रिया पर आक्रोश था किसी को नयी पीढी के अभिनन्दन और किसी को राजनीतिक नेताओं की अनुपस्थिति पर बरसे, कारण सबके अपने अपने थे.पर इन सबके बीच विदूषक का रोल सबको खटक रहा था पर सब चुप थे जो रह रह कर कभी माइक संभालता तो कभी अंगवस्त्रम और तो और इनके कान और उनके कानों में न जाने क्या क्या चलिए ये भी आदत का हिस्सा है,
महामंत्री जी का आदेश और इस लेख के लेखक यानि मुझे बोलने का मौका - दौड़ कर माईक पर जाना कम से कम समय में अपनी बात इस प्रकार कहना - मंचासीन को सम्माननीय अभिवादन और हाल के सम्मानित देश के कोने कोने से आये प्रतिनिधियों का गर्मजोशी से अभिनन्दन. नंबर एक कांग्रेस के राजकुमार और सपा के नौजवा अध्यक्ष यदि देश और प्रदेश को सम्भाल पाएंगे इसकी आशा करना समय वर्वाद करना है वंशवाद के चोचले खारिज होते जा रहे है, अतः नौजवानों को ही आगे लाना है तो नए ज़माने का टैलेंटेड यूथ जो आई टी ट्रेंड और होनहार हो,तभी समाज का उत्थान होगा. पर यदि इस तरह से चयन न हुआ तो जो हुआ है उससे भी ख़राब होगा. वंश के अभिशाप लालू के साले साधू यादव के करम याद तो होंगे ? सभागार से पहलीबार तालियों की गडगडाहट. मेरी मंच से इसी के साथ वापसी और शुरू होता है बहस का नया दौर जिसे हैरत अंगेज तरीके से डॉ. मनराज यादव ने रखा -यद्यपि मै किसी पार्टी का सदस्य नहीं हूँ पर सपा के ९९% लोग जिसके खिलाफ रहते हो और नेता उसी की बात मनाता हो, एसे में पिछले दिनों जो कुछ हुआ वह कम हुआ. जो जातिया यादवो को पसंद ही नहीं करती ओ और पूंजीपति हमारे नेताओ को राज्य सभा और विधान परिषद् में भेजने के लिए वही मिलते है उन्हें पिछडों की वह जातियां जो आबादी के अनुपात में कम है जो सीधे चुनकर नहीं आ सकती है को नहीं भेजते. याद करें जब लालू यादव ने बिहार में येसा किया था तो अति पिछडे उनके साथ थे पर जब उन्हें .........................? तब क्या होगा यही जो हुआ .



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