22 अग॰ 2009

कोई नहीं सुनता


कोई नहीं सुनता
जया जादवानी

कोई नहीं सुनता
देवताओं को तो अप्सराओं का
नाच देखने से फुरसत नहीं
वृक्ष से कहो तो वह बस अपनी
शाख पर लदे फूलों को सुनना चाहता है
जड़ें जाने क्या खोज रहीं
अंधेरी तटों के संसार में
जल को तो बताना ही बेकार है
इतने ही वेग से भागता है नदी की ओर
कि हैरान रह जाता है आसमां भी
बादलों को तो अपनी चादर पर
नक्काशी बनाने से अवकाश नहीं
बड़ी देर से कूकती एक कोयल
उड़ गई शाख से बिना कुछ सुने
कहूं तो कहूं किससे
दुनिया भागी जा रही पता नहीं किस ओर
घुमती हूं अपने पिंजर में
बिना खटखटाए दरवाजा
उगती हूँ अपनी आँखों में
आप ही चुपचाप
कहती हूँ आप-आप से
रब्बा! मैंने देखी है उसकी
आँखों में अपने लिए नमी.

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