27 अग॰ 2009

जिसका खामियाजा वह आज तक झेल रहा है |


डॉ.लाल रत्नाकर
आज हम जिस मुल्क में रह रहे है कहने को तो अपना मुल्क है पर जिस दोहरे मानसिक उलझनों के शिकार हम है क्या वह सहज है यदि ये सहज नहीं तो फिर असहज क्यों है सदियों की गोल बंदी ने सामाजिक संस्कारों में जिस बेहूदगी से हमारी कम्युनिटी को प्रस्तुत किया है जिसमे निराशावादी नजरिया नहीं उससे ख़राब दशा में (कुछ को छोड़ कर) यदि किसी भी निरीह जानवर को भी एसी स्थिति में नहीं रखा जा सकता, फिर भी हमारे नेता उनकी बात करते है जो ऐसा करने के लिए जिम्मेदार है | उनके बगैर हमारी जीती हुयी लड़ाई को भी वो उन्ही के हवाले कर देते है, किसे विश्वास नहीं है उन्हें या हमें, एसे अवसरों पर उनका साथ हर बार हमें परास्त कराता है पर 'उनको' सदबुद्धि कब आएगी पता नहीं, पर जिस संगठन के बल हम सारा आन्दोलन चलाना चाहते है उसकी अपनी सीमाएं हैं, उनके पदाधिकारी किससे किससे लड़ाई कर सकते है सब तो अपने ही है-लंठ,गुंडे,धूर्त,मूर्ख और न जाने क्या क्या | प्रतिभा के बदले पराक्रमी बनने की जल्दी यह सब जिस लालच में हो रहा है वह समाज के उत्थान में नहीं है.हम अकल से नक़ल भी नहीं करते जिससे बराबरी करनी है या करना है उससे बड़ा तो लायो, जो काबिल थे उन्हें उन्होंने जातीय दुर्भाव से छोड़ दिया था, अपने नकारे को आगे किया था, जिसका खामियाजा वह आज तक झेल रहा है |
जब हम जीतते है तो उन्हें फिर उन्हें हम पीछे ही छोड़ जाते है अब आगे आते है वो लंठ,गुंडे,धूर्त,मूर्ख और न जाने क्या क्या, क्यों एसा होता है हमारे समुदाय के साथ ,जिस समुदाय और जाती का इतना गौरवशाली इतिहास रहा हो उसको उसी के देश में इस कदर अपमानित होना पड़े कुत्सित कर्मों का यह कौशल किसका है, उसे आज हम सब पहचानते है पर चुप क्यों है, जिसकी वजह से सारी लड़ाई जिसे महाभारत से लेकर यू.पी.ए.की सरकार बचने तक का गौरव प्राप्त हो.जिसके सूरमाओं का अपमान आज के शिखंडी कर रहे हो और सूरमा चुप बैठा हो यह अपमान भी हमारे ही सूरमा ही सह सकते है .
'आज के अभिमन्यु' के रूप में जब ये कौरवों के समान अहंकारी दम्भी दुश्मनों के शिकार हमारे सूरमा क्यों अपनो पर भरोसा नहीं कर रहे है , पुत्र मोह,पत्नी मोह त्याग कर आगे प्रबुद्ध अपनों को लाये इनका कष्ट आधा हो जायेगा| ये शायद दूसरों से नहीं अपने और अपनों से डर रहे है, क्योंकि इन्होने अपने योग्य को पछाड़ कर सब कुछ हासिल किया है , तब के वो और अब के ये सब समझते है और जानते है 'जनता की जीती लड़ाई अपनों के नाम' और अपनी हार को जनता के सर. कब तक चलेगा यह खेल.

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