लोकतंत्र के पिता
लगभग ईसा पूर्व सातवीं सदी में एथेंस में जबरदस्त असंतोष फैला था, क्योंकि तब वहां कोई एक व्यवस्था नहीं थी। शहर के अमीर और प्रतिष्ठित लोग अपनी मनमानी करते थे। वे समाज के पिछडे और कमजोर वर्गो की एक न चलने देते। यदि वे इस अन्याय के खिलाफ अपील भी करना चाहते, तो कहां करते। उस समय आज की तरह कोई लिखित कानून भी नहीं था। उन्हें अपने हालात से समझौता करना पडता। यानी कुल मिलाकर, वहां तानाशाही थी। लेकिन कहते हैं न, जब परेशानी आती है, तो हल भी जरूर निकल आता है। सो, इस परेशानी का हल लेकर आए सोलोन ।
सोलोन ईसापूर्व 594 का सबसे प्रतिष्ठित नाम था। वे एक कवि थे। अपने समाज की अव्यवस्था के प्रति बेहद संवेदनशील थे। समाज में एक समान व्यवस्था होगी, तभी यह अव्यवस्था खत्म हो सकती है। लेकिन एक समान व्यवस्था के लिए एक समान कानून का होना जरूरी है। सोलोन ने न केवल ऐसा सोचा, बल्कि अपने विचार को अमली जामा भी पहनाया। शहर के बीचोबीच शिलालेख लगाए गए। इन पर व्यवस्था को कैसे संचालित किया जाए, इस बाबत नियम-कानून लिखे हुए थे। एक परिषद भी स्थापित की गई। इसमें कुल चार सौ सदस्य थे। कोर्ट भी बनाया गया। जज मंडली के पास जाने से पहले एक ट्रायल जजमेंट होता था, ताकि किसी के साथ अन्याय न हो और हर किसी को न्याय मिल सके। चूंकि यह लोकतंत्र की स्थापना का शुरुआती प्रयास था। शायद इसीलिए यह पूरी तरह सफल नहीं रहा। इसके बाद कुछ समय तक एथेंस में टाइरैंट्स ने शासन किया। पर यह शासक सोलोन की व्यवस्था को आगे नहीं बढा सका। इसके बाद आए क्लेसथेंस। उन्होंने एक नई तरह की सरकार बनाई। यह सोलोन की व्यवस्था पर ही आधारित थी। इस शासक ने पांच सौ सदस्यीय परिषद बनाई। साथ ही ऑर्कन्स को भी रखा गया। ऑर्कन्स एक अधिकारी था, जो परिषद के ऑर्डर को संचालित करवाता था। इसका चुनाव वहां के आम लोग करते थे। एथेंस के नागरिक दस जनरल का भी चयन करते थे। इन जनरल में से ही किसी एक चुनाव आर्मी चीफ के रूप में होता था। इस तरह, यहां के नागरिक कह सकते थे कि वे एक ऐसे शासन में रह रहे हैं, जिसमें हर किसी का प्रतिनिधित्व है।
जेजे टीम
सोलोन ईसापूर्व 594 का सबसे प्रतिष्ठित नाम था। वे एक कवि थे। अपने समाज की अव्यवस्था के प्रति बेहद संवेदनशील थे। समाज में एक समान व्यवस्था होगी, तभी यह अव्यवस्था खत्म हो सकती है।
दैनिक जागरण से साभार
दैनिक जागरण से साभार
2 टिप्पणियां:
बेहतरीन जानकारी
लेखनी प्रभावित करती है.
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