1 नव॰ 2009









पिछड़ी जातियों के खिलाफ मुहीम -





डॉ.लाल रत्नाकर 
सामाजिक बदलाव के जिस आन्दोलन ने 'मंडल' के नाम पर पूरे देश में जड़े जमाये  सदियों से बैठे अपराधियों की जड़ें झकझोर दी थी | उन्हें जैसे ही मौका मिला उन्होंने पिछडों में सर्वाधिक बिरोध करने वाली कौम 'जाट' को 'मंडल' में डाल दिया , जिसका न तो जाटों ने बिरोध किया और न ही तथाकथित पिछडे नेताओं ने | इसका परिणाम यह हुआ की आज जो कुछ 'निजीकरण' के बाद बचा था वह इन नव पिछडों 'जाट' को समर्पित कर  पिछड़ी जातियों के खिलाफ सामाजिक बदलाव  से खौफ खाए बड़ी बड़ी जगहों पर बैठे अपराधियों ने अपनी मंशा पूरी कर ली |  
यही कारण है की आज तक बीच की जातियां आराम के दौर में नहीं आयी, इनके पीछे कुछ न कुछ षडयंत्र  होता ही रहता है , राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक या चारित्रिक इन कलंकों को झेलते हुए हमारे समाज के जुझारू लोंगों को वो झकझोरने  वाले तिकरमो में बांध कर रखते है , यह सब क्यों ?
इस पर चर्चा के लिए सामाजिक सरोकारों को देखना होगा - बेहद नाजुक स्थितियों से गुजरते हुए इस माहौल  में कहीं न कही एसा है जिसे समझना होगा . सदियों से अलग थलग पड़े समाज को जब अदम्य मेहनत और साहस ने सबको परास्त करने का जो अवसर मिला क्या उसे येसे लोगो ने हथिया लिया जिनमे यह क्षमता नहीं थी की वह लोंगों को एक जुट करके चल पाते, यही संयोग होता है स्वतः इन स्थितियों का आना नहीं होता है हम इन्हें जाने अनजाने धीरे - धीरे आमंत्रित कर रहे होते है, जब उनका संज्ञान होता है तब तक बात काफी बिगड़ चुकी होती है . 
राजनैतिक समझ -
आज की राजनैतिक दशा जिस परिवर्तनों को समेटे हुए बेहद बिखराव के दौर से गुजर रही है जिसमे पुनः वापस उसी उत्साह के साथ आना बहुत ही मुश्किल लगता है , एसा दिखाई दे रहा है यथा -
(अ) जैसा की आज की राजनीति में आने अथवा नियम कानून बनाकर केवल दौलत मंद लोगों के आराम और एश्गाह का अड्डा राजनीति को बना दिया है उसके चलते विचारवान और गंभीर चिंतन के नीतिकार प्रवेश ही नहीं कर सकते ?
(ब) उसी प्रकार गुंडे और हत्यारे सरेआम राजनीति में प्रवेश कर अपने दबदबे कायम कर राजनेता बन रहे है ?
(स)  माफिया राजनीति के प्रमुख अंग बन गए है ?
(द)  नौकरशाह जीवन भर जनता के खून पीते है और रिटायर्ड होने पर राजनीति, जिसदेश का प्रधानमंत्री एसा हो और देश के सबसे बड़े राजनैतिक दल में एक भी एसा नेता न हो जो देश का प्रधान मंत्री बनाने लायक हो ?
(य) परिवारवाद यह एक एसा रोग है जो देश को फिर राजतन्त्र की ओर ले जा रहा है, देर सबेर दलों और राजनैतिक विचारधाराओ की नहीं व्यक्तियों की लड़ाई होगी .
(र) बड़े बड़े क्रांतिकारी जिस तरह से देश के दुर्भाग्य को बदलने का आन्दोलन किये थे उन्हें आज के राजनैतिक माफिया अपना आदर्श बताकर धता दे रहे है, आज के गुमराह नवजवान जाती और धर्म के नाम पर उन्हें क्रांतिकारी मान रहे है यह किसका दुर्भाग्य है ?
(ल) 'स्त्री' को हमेशा से ही अस्त्र बनाया गया है आज जब देश के आजाद हुए ६० सालों से ज्यादा हुए तब स्त्री की याद आ रही है 'आरक्षण' जो इनके शब्दकोष में बड़ा घिनावना और उपयुक्त शब्द है जब चाहो जैसे इस्तेमाल कर लो | अतः अब याद आयी 'स्त्री' की जब दलित पिछडे इनके बगल चढ़कर बैठने लगे और इनसे भी महान निकले - यथा वही माफिया और गुंडे इनके मुताबिक तो राजनेता नहीं तो बाहुबली ?
यही कारण है की स्त्री इन्हें याद आयी, आरक्षण इनकी स्त्री का पिछडे और दलित स्त्री का नहीं ?
(व्) जाती और संप्रदाय प्रेमी नेता नेत्री इमानदार नहीं ?
अतः भारतीय राजनीति की अनेक विदम्बनायों में यह एक महत्वपूर्ण पहलू है जहाँ देश से हर कोई बड़ा है और अपने को बड़ा करने में लगा है देश छोटा होता है तो हो जाये |
सामाजिक दशा -
यद्यपि सामाजिक बदलाव का जितना बड़ा  काम पूर्व के आन्दोलनकारियों ने किया था उसमे गैर बराबरी के खिलाफ मुहीम में जो अस्सी के दसक में हुआ माननीय कांशी राम के नेतृत्व में यानि -




'ठाकुर बामन बनिया चोर इनको मारो जूते चार' की अवधारणा और दलितों के उत्साह ने देश के सबसे बड़े प्रदेश को झकझोर दिया तब जब उ.प्र. पिछडों कि पकड़ में आ गया था परन्तु नेत्रित्व कि मंशा ने समस्त पिछडों या उनके इमानदार और कर्मठ  नेताओं को धीरे धीरे अलग किया जिसका परिणाम यह हुआ कि इस लम्बे संघर्ष से प्राप्त अधिकारों में उनकी दखल अंदाजी बढ़ती गयी जिनसे पिछडे और दलितों के आन्दोलन ने सत्ता छिनी थी . तब के पिछडे नेतृत्व ने जो कुछ किया  था  और आज उसका खामियाजा सारा समाज भुगत रह है |




और उत्तर प्रदेश की राजनीतिक  मुखिया बहन जी  है जिनके  मंच से  


'ठाकुर बामन बनिया चोर इनको मारो जूते चार' का 

 यही नारा लगवाने वाली और उन्ही के द्वारा  नीछे व् नोचे जा रहे है प्रदेश को तब  जिन्हें यह चोर कह रही थी आज वह कौन सी मजबूरी है जिसके 

चलते यह 

सदियों से 

जड़े जमाये बैठे अपराधियों के साथ सामाजिक बदलाव का सपना संजोये हुए है , 

यह कैसा  सामाजिक गणित  है, पर चोर तो कोई हो सकता है पर चोर और दुसाध भी उन्हें बना दिया जाता है जो इनके चोरों के खिलाफ आवाज़ उठा रहे होते है या चोरो को पकड़ रहे होते है या उनके खिलाफ आन्दोलन कर रहे होते है  |  






आगे जारी ............................

कोई टिप्पणी नहीं:

फ़ॉलोअर