17 फ़र॰ 2010


प्रस्तुत लेख 

रविवार .कॉम से साभार है -
"आम जनता और छोटे कर्मचारियों के सामने शेर बने फिरते आईएएस अधिकारी फिलहाल उ.प्र. में भीगी बिल्ली बने हुए हैं."
'इस राज के लिए कौन जिम्मेदार है, उसका सवाल खड़ा करता लेख'

मुद्दा 

हरमिंदर राज सिंह की मौत पर उठे सवाल

संदीप पांडेय, लखनऊ से



हरमिंदर राज सिंह उ.प्र. कैडर के 1978 बैच के आईएएस अधिकारी थे. 29 नवम्बर, 2009, मध्यरात्रि के बाद एक बजकर बीस मिनट पर उन्होंने आत्महत्या कर ली. जिस तत्परता से प्रदेश सरकार ने इस मामले को निपटाया तथा हाल ही में लखनऊ में हुई बैठक, जिसमें उनकी मौत पर सवाल उठने की आशंका थी; पर शासन-प्रशासन की प्रतिक्रिया ने इस मौत को और रहस्यमयी बना दिया है.




आत्महत्या के पहले हरमिंदर राज अपने साथी देशदीपक वर्मा के यहां एक पार्टी में थे, जहां वे नाचे भी थे. आत्महत्या के बाद उनकी पत्नी ने बजाए गृह सचिव या किसी अन्य मित्र आईएएस अधिकारी को फोन करने के, पुलिस का सार्वजनिक नम्बर 100 मिला कर सूचना दी. 

घटना स्थल पर कोई पत्र नहीं था, जिसमें आत्महत्या की वजह बताई गई हो. पिस्तौल की गोली कुछ दिनों बाद मिली किन्तु पिस्तौल का बैलिस्टिक परीक्षण नहीं हुआ. उनका लैपटॉप, कम्प्यूटर भी नहीं मिला. मोबाइल फोन पर शाम छह बजे के बाद कोई कॉल नहीं दर्ज है, जबकि साढ़े आठ-नौ बजे कोई फोन आने के बाद ही हरमिंदर राज पार्टी छोड़ कर गए. 

उनकी पत्नी को नींद की गोली दे दी गई और बिना किसी परिवार के सदस्य की उपस्थिति में पोस्ट-मार्टम करके उनका पार्थिव शरीर तड़के सुबह ही घर वापस भी आ गया. जानकार अधिकारी बताते हैं कि जब तक कानून व व्यवस्था बिगड़ने का खतरा न हो, इतनी जल्दीबाजी में आमतौर पर पोस्ट-मार्टम नहीं किया जाता है. उनका हैण्ड-वॉश परीक्षण भी नहीं हुआ. 

दोपहर को एक व्यवसायिक हवाई जहाज से उनका शरीर दिल्ली रवाना कर दिया गया तथा उनके परिवार के मुख्य सदस्यों को राज्य विमान से भेजा गया. परिवार के सदस्य मीडिया से कोई बात न करने पाएं, यह सुनिश्चित किया गया. दो वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों पंकज अग्रवाल व अनूप मिश्र को परिवार जनों के साथ शरीर दिल्ली पहुचाने की जिम्मेदारी दी गई थी.

ऐसा बताया जा रहा है कि आत्महत्या के बाद प्रदेश सरकार के तीन आला अफसर जिनमें एक आईएएस व एक आईपीएस शामिल हैं, सबसे पहले घटनास्थल पर पहुंचे हैं. ऐसा भी कहा जा रहा है कि हरमिंदर राज के ऊपर कोई बड़ा भारी दबाव था. अब यह दबाव जेल तोड़ कर परिस्थितिकी पार्क बनाने, लखनऊ में वर्तमान समय में डॉ अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल अधिनियम के तहत बन रहे स्मारकों के बजट, दादरी में सिंचाई विभाग की जमीन एक बिल्डर को देने, नोएडा में 10-12 किलोमीटर लम्बे एक वन विभाग की जमीन के टुकड़े को स्मारक को देने, कानपुर शहर के बीचों-बीच एक बड़ा भू-भाग सिंहानिया को देने का मामला था या कुछ और यह जांच का विषय होना चाहिए. ऐसा बताया जा रहा है कि उन्होंने अपनी मौत से चन्द दिनों पहले ही अपनी पत्नी से कहा था कि उन्हें अपने सामने अंधेरा ही अंधेरा दिखाई पड़ रहा है.

कुछ दिनों पहले प्रदेश के दो बड़े अधिकारियों, प्रमुख सचिव, वन, वी.वी.एस. विश्वेन तथा जिलाधिकारी, श्रावस्ती, का महत्वपूर्ण बैठकों से पहले दिल का दौरा पड़ने से निधन हो चुका है. प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारियों में तनाव बढ़ा है, इसका प्रमाण है सचिवालय स्वास्थ्य केन्द्र में तनाव की दवाई की दस गुणा बढ़ी खपत.

अब हरमिंदर राज सिंह पर किस किस्म कर दबाव था, इस बात का तो सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है. किन्तु उनको जानने वाले यह बताते हैं कि हरमिंदर राज जैसे जिंदादिल इंसान द्वारा आत्महत्या किया जाना, वह भी बिना कारण बताए, अविश्वसनीय प्रतीत होता है. यह बताया जा रहा है कि उनको धमकी दी गई थी कि वे कोई अमुक काम नहीं करेंगे तो उनके पूर्व के एक मामले में उनके खिलाफ कार्यवाही कर उन्हें जेल भेज दिया जाएगा. गाजियाबाद में रह रहे उनके अभियंता पुत्र को भी जान से मारने की धमकी दी गई थी.

23 दिसम्बर को एक सामाजिक संगठन की ओर से लखनऊ में एक बैठक रखी गई थी, जिसमें अन्य मामलों के अलावा हरमिंदर राज की रहस्यमयी मौत पर भी सवाल उठने की सम्भावना थी. हरमिंदर राज का नाम आते ही शासन-प्रशासन इतना बेचैन हो उठा कि उसने पूरी कोशिश की कि हरमिंदर राज का मुद्दा न उठे.

स्थानीय अभिसूचना से लेकर नगर मैजिस्ट्रेट, जिलाधिकारी, मण्डलायुक्त व मुख्यमंत्री कार्यालय के एक सचिव पूरे दिन इस बात को लेकर परेशान रहे कि कोई सेवारत आईएएस अधिकारी बैठक में न पहुंचे, बैठक के बाद शहीद स्मारक पर भ्रष्टाचार-मुक्त व भय-मुक्त समाज के लिए मोमबत्ती जलाने का कार्यक्रम न हो तथा बैठक व मोमबत्ती जलाने की कोई खबर या तस्वीर अखबारों में न छपने पाये.


जिस दिन आईएएस व आईपीएस जैसी वरिष्ठ सेवाओं के अधिकारी तय कर लेंगे कि वे किसी भी किस्म के भ्रष्टाचार में सहयोगी नहीं बनेंगे बल्कि भ्रष्टाचार करने वाले किसी भी व्यक्ति, भले ही वह उनका कोई मंत्री ही क्यों न हो, के खिलाफ तुरंत कार्यवाही करेंगे, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने में देरी नहीं लगेगी.






उपर्युक्त कार्यक्रम पर शासन-प्रशासन की प्रतिक्रिया देखते हुए अब यह शक यकीन में तब्दील हो गया है कि हरमिंदर राज की मृत्यु कोई साधारण आत्महत्या नहीं थी. जिस तरह से ऊपर से नीचे तक सारा शासन-प्रशासन एक छोटे से कार्यक्रम की आवाज दबाने में जुट गया, यह साफ है कि इस आत्महत्या में कोई बहुत बड़ा राज छुपा हुआ है. या तो कोई बहुत बड़ा व्यक्ति इस आत्महत्या के लिए जिम्मेदार हो सकता है अथवा किसी बड़े भ्रष्टाचार का राज खुल सकता है. उ.प्र. में वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को बुरी तरह अपमानित किया जाता है, यह किसी से छुपी बात नहीं है



किन्तु आईएएस अधिकारी खुद इस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं. उन्होंने विभिन्न सरकारों द्वारा भ्रष्टाचार व अनियमितताओं को अंजाम देने हेतु सहयोगी भूमिका निभाई है. और वह भी सिर्फ निजी स्वार्थ के लिए, ताकि उनको बढिया पद व सुविधाएं मिल जाएं. समाज में आम धारणा यही है कि जन-प्रतिनिधियों को भ्रष्टाचार करना प्रशासनिक अधिकारी ही सिखाते हैं. जिस दिन आईएएस व आईपीएस जैसी वरिष्ठ सेवाओं के अधिकारी तय कर लेंगे कि वे किसी भी किस्म के भ्रष्टाचार में सहयोगी नहीं बनेंगे बल्कि भ्रष्टाचार करने वाले किसी भी व्यक्ति, भले ही वह उनका कोई मंत्री ही क्यों न हो, के खिलाफ तुरंत कार्यवाही करेंगे, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने में देरी नहीं लगेगी.

हरमिंदर राज के ही मामले में बजाए घुट-घुट कर खुसुर-पुसुर करने के यदि 20-25 आईएएस अधिकारी भी शासन से असहयोग की चेतावनी भर दे दें तो वर्तमान समय में सरकार द्वारा बनाया गया आतंक का माहौल टूट सकता है. यदि इस मामले में हरमिंदर राज के परिवार का कोई व्यक्ति जांच की मांग नहीं करता तो आईएएस अधिकारियों का संगठन कर सकता है. लेकिन इसके लिए फिलहाल आईएएस अधिकारियों में कोई हिम्मत नहीं दिखाई पड़ती. आम जनता और छोटे कर्मचारियों के सामने शेर बने फिरते आईएएस अधिकारी फिलहाल उ.प्र. में भीगी बिल्ली बने हुए हैं.

2 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बात आपकी ठीक है. लेकिन अधिकारी भी संवेदनहीन हैं. एक मामले को दस साल से उठाया जा रहा है लेकिन एक मामले को सेटल कर दिया गया और उसी तरह के दूसरे मामले को नहीं निपटाया गया. श्रीमान हरमिंदर राज सिंह जी आवास आयुक्त भी रह चुके हैं और आवास सचिव भी. मैं उनकी बुराई नहीं कर रहा बल्कि यह बताना चाहता हूं कि जनहित का कोई भी कार्य अधिकारी नहीं करना चाहते बल्कि राजनीतिक दबाव में गलत कार्य भी कर बैठते हैं.

Dr.Lal Ratnakar ने कहा…

देखिये आप जो कुछ लिक्खे है वह संभव है सही सही है पर किसी भी आदमी का मर जाना और येसी संदिग्ध हालत में यह कितना ठीक है ? अतः भारतीय नागरिक होने के नाते आपको भी सच का एहसास तो करना ही चहिये भले ही आप का कोई कितना भी बुरा किया हो, आप उस जैसे मत हो जाईये |
ईमानदारी और अधिकारी पर्याय है यह तय है की इस देश में ईमानदारी हो जाय तो क्या नहीं हो सकता, पर येसा कौन करेगा |

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