29 मार्च 2010

पिछड़ों के हिमायती नेताओं को नसीहत 




                                                                                                                        




चलो लिख लो, एक भी दलित नियुक्ति याद नहीं : विभूति

लेखक: विभूति नारायण राय  |  February 22, 2010  |  स्पेशल रिपोर्ट   |   Comments Off
जहां मजबूरी नहीं हो वहां विभूति नारायण राय ने एक भी दलित नियुक्ति नहीं की। या यूं कहें कि उन्हें एक भी दलित नियुक्ति याद नहीं। बावजूद इसके विभूति दंभ भरते हैं कि वो दलित हितों के रक्षक हैं। वो यह भी कहते हैं कि वर्ण व्यवस्था पर उन्होंने जो काम किया है वो अपने आप में एक मिसाल है। विभूति के मुताबिक एक्जीक्यूटिव काउंसिल में यूनिवर्सिटी की तरफ से सिर्फ दो ही बंदे थे- एक वो खुद और दूसरा उनके द्वारा नियुक्त प्रो वाइस चांसलर। अब वही दोनों किसी एक शिक्षक के ख़िलाफ़ हो जाएं तो फिर उसे कौन बचाएगा? इस सवाल के जवाब में विभूति का कहना है कि अगर किसी को शिकायत हो तो वो अदालत जाए। अनिल चमड़िया अदालत जाएं। आप वी एन राय के इंटरव्यू के दो हिस्से पढ़ चुके हैं। पहले हिस्से में उन्होंने कहा था कि अनिल चमड़िया को निकाल कर ग़लती सुधार ली।दूसरे हिस्से में उन्होंने कहा कि दलितों के मुद्दे पर उन्हें किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं।और अब आप इस इंटरव्यू का तीसरा हिस्सा पढ़िए और अपनी प्रतिक्रिया दीजिए – मॉडरेटर





अविनाश – आप इसे यूं भी कह सकते हैं कि एक सपने का टूटना जैसा है। जब हम छोटे से शहर दरभंगा में थे.. उस समय वर्तमान साहित्य के रेग्युलर पाठक थे हम। उस समय बहुत सुंदर इश्यू निकला था। बहुत सारी कहानियां … खलपात्र जैसी कहानी मुझको अभी भी याद है। और लगातार आपके इन कामों से हम वाकिफ रहे हैं। शहर में कर्फ्यू … या फिर दंगों में पुलिस की भूमिका पर आपने जो काम किया था.. और जब आप कुलपति हुए तो हम सबों में एक बहुत ज्यादा उम्मीद थी कि अब वहां का वातावरण एकदम प्रोपिपुल होंगी। अच्छे-अच्छे लोग लाए जाएंगे। प्रोफेसर से लेकर दूसरे तमाम लोग। लेकिन हम लोगों को कहीं-कहीं यह सपना टूटता नज़र आया। अराजकता की स्थिति दिखी। लगा कि दलित के अन्याय हो रहा है। यहां एक जेन्विन टीचर को न्याय नहीं मिल रहा है। तो हम लोगों का दुख बोल रहा है। ऐसा नहीं कि हम आपके ख़िलाफ़ हैं।

विभूति – मेरा भी वक्तव्य लिखिए। लिखिए किअनिल चमड़िया एक अनैतिक अध्यापक हैंऔर उनको मैंने पकड़ा है बच्चों की कॉपियों में नंबर घटाने और बढ़ाने में। उसके लिए एक जांच कमेटी बिठाई गई थी और उस जांच कमेटी ने राइटिंग में रिपोर्ट दी है। अनिल चमड़िया कक्षाओं में नहीं जाते थे। आप उनसे पूछिएगा कि मैंने उन्हें बुला कर कक्षा में जाने को कहा है। इस बात से मुझे दुख हुआ और इस वजह से मेरे मन का उत्साह ख़त्म हो गया कि इनको डिफेंड करें। हालांकि मैंने न तो डिफेंड किया और न ही मैंने उनके ख़िलाफ़ कुछ किया। वो एक ड्यू प्रॉसेस (तय प्रक्रिया) में बाहर हो गए। देखिए अनिल चमड़िया कितने अनैतिक हैं… इस बात से सोचिए कि एक किसी वेबसाइट पर उन्होंने ये कहा है कि मैं (अनिल चमड़िया) दलित हूं। वी एन राय ने मुझे इसलिए निकाल दिया क्योंकि मैं दलित हूं।
अविनाश – ये ग़लत बात है। उन्होंने ऐसा नहीं कहा। उन्होंने इसका खंडन किया है।
विभूति – नहीं। ये वेबसाइट पर आया हुआ है। उसका मैंने प्रिंटआउट निकलवाया है। क्योंकि जिस दिन मिला…. ये आप उनके वकील की तरह बात करोगे तो मैं …
अविनाश – नहीं नहीं … हमने खुद बात की। पूछा कि क्या आपने ऐसा कहा है। उन्होंने कहा नहीं।
विभूति – मैं आपको प्रिंट दे देता हूं।
अविनाश – हमने पढ़ा है।
विभूति – इस तरह तो मैं भी आपको हर बात मना कर सकता हूं। जहां मैं फंसने लगूं। उन्होंने पहला ही स्टेटमेंट दिया है कि वी एन राय ने मुझे इसलिए हटा दिया क्योंकि मैं दलित हूं। मुझे किसी ने फोन करके बताया कि ऐसा आया है। तो मैंने उनका फॉर्म निकलवा कर देखा कि ….
दिलीप – नहीं। यह तर्क तो एक मिनट भी स्टैंड नहीं करता क्योंकि दलित कैटेगरी में तो उनका सलेक्शन ही नहीं हुआ था।
विभूति – नहीं न.. लेकिन देखो कि एक आदमी कितना अनैतिक हो सकता है कि इस कार्ड को भी खेलने की कोशिश कर रहा है। आप ये तो सोचो कि .. आप ये तो देखो कि एक आदमी इतना अनैतिक हो सकता है कि बच्चों के नंबर घटाए बढ़ाए। वो जांच हुई है और हमारे पास उसकी रिपोर्ट पड़ी हुई है। एक आदमी इतना अनैतिक हो सकता है कि वो सत्तर हज़ार रुपये तनख्वाह ले मगर क्लास न ले। अनिल चमड़िया से पूछिए और वो मना कर दें कि मैंने उनसे बुला कर नहीं कहा था कि वो क्लास लें। वो ये मना कर दें। मेरे कहने के बाद उन्होंने क्लास लेना शुरू किया। तो ये सब बातें अनावश्यक विवाद खड़ा करेंगी। मेरा यह मानना है कि मुझे किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है। मैं साम्प्रदायिक और दलित मुद्दों पर तो खुलेआम लिखता रहा हूं। बल्कि 1857 की वर्ण व्यवस्था पर मेरा जो भाष्य था वो एक तरह से इस मुद्दे पर पहला भाष्य हो सकता है वो था। वो किताबों में छपा है।
दिलीप – वाजपेयी के शासनकाल में आपकी कोई किताब आई थी?
विभूति – साम्प्रदायिक दंगों वाली किताब उसी समय आई है। जब ये लोग सरकार में थे।
दिलीप – वो तो पहले का किया हुआ काम था।
विभूति – हां, लेकिन छपी तो इन्हीं के जमाने में थी। जब ये सरकार में थे। जब मैं इलाहाबाद में एसएसपी था तो मुरली मनोहर जोशी और ये क्या नाम है इसका सिंघल … (पीछे से आवाज अशोक सिंघल), हां ये मेरे घर पर माइक लेकर चढ़ गए और गाली गलौज करते रहे। उन्होंने कहा कि अगर शहर में कर्फ्यू पर फिल्म बनेगी तो सारे सिनेमाहाल जला दिए जाएंगे। हिंदी के सौ लेखकों ने अलग-अलग शहरों से दस्तख़त करके इसकी निंदा की है। आप चाहो तो वो भी मैं आपको दिखा सकता हूं।
समरेंद्र – तो फिर आप पर जातिवाद का आरोप अचानक क्यों लगा?
विभूति – ये अचानक नहीं लगा। ये उन लोगों ने लगाया है। जैसी अभी मैं आपसे कुछ कह दूं। अभी मैंने आपसे कुछ सख़्त बातें की हैं तो आप बाहर निकल कर मेरी सारी ग़लतियां निकालेंगे। अभी जातिवाद का आरोप तो सिर्फ़ अनिल चमड़िया ही लगा रहे हैं न? आप देखो मैं वहां एक प्रो वाइस चांसलर ले गया, जो कि मेरा पूरा अधिकार में था, वो एक मुसलमान हैं। रजिस्ट्रार वहां ले गया, मुझे जाति नहीं पता क्योंकि वो महाराष्ट्र के हैं और महाराष्ट्र की जाति समीकरण मुझे नहीं पता। फाइनेंस ऑफिसर मैंने नियुक्त किया वो मुसलमान हैं। एम एस खान .. अभी दो महीने पहले। ये ऐसी नियुक्तियां हैं जो सबसे महत्वपूर्ण नियुक्तियां हैं। ओएसडी नियुक्त किए हैं उसमें एक राकेश श्रीवास्तव हैं और एक नरेंद्र सिंह हैं जो एक ठाकुर हैं। जहां मुझे किसी सलेक्शन कमेटी में नहीं जाना था, वहां मैंने किसी भूमिहार को नहीं नियुक्त किया। आप बताओ। सलेक्शन कमेटी के सभी 12-13 अप्वाइंटमेंट में सिर्फ़ एक भूमिहार हुआ और वो अनिल राय हैं। बाकी जो दूसरी जातियों के हैं वहां मैं जातिवादी नहीं हुआ। जहां पर मुझे किसी सलेक्शन कमेटी की ज़रूरत नहीं थी.. जैसे प्रो वाइस चांसलर। ये वाइस चांसलर का अधिकार था। मैंने सैयद नदीम हसनैन को लखनऊ से लेकर आया। फाइनेंस ऑफिसर.. ऐक्ट मुझे पॉवर देता है कि मैं किसी को अप्वाइंट कर लूं.. जब तक कि नॉर्मल सलेक्शन कमेटी नहीं बैठती। वहां मैं एम एस खान को लाया। रजिस्ट्रार – जहां ऐक्ट मुझे पॉवर देता है कि जब तक किसी का सलेक्शन नहीं हो मैं किसी को कर सकता हूं। वहां मैं खामड़े को लाया जो कि मराठी हैं। जिसकी जाति मुझे पता नहीं। तो एक अनिल राय को लाकर मैं जातिवादी हो गया।
समरेंद्र – ये जो नाम आ रहे हैं भरत भारद्वाज और उपेंद्र राय …
दिलीप – या मनोज राय …
विभूति – मनोज राय क्या मेरा नियुक्त किया हुआ है।
दिलीप – दिल्ली सेंटर आपने भेजा है।
विभूति – दिल्ली सेंटर तो किसी न किसी को भेजना ही था। दिल्ली सेंटर भेजा तो ये तो राय हो गए। इलाहाबाद सेंटर भेजा तो किसी ने ये नहीं कहा कि भई ये तो ठाकुरों को बढ़ावा देते हैं। वहां तो भदौरिया ठाकुर गया।
समरेंद्र – उपेंद्र राय और भरत भारद्वाज किस कैपेसेटी में गए।
विभूति – ऐसा है न कि उपेंद्र कुमार हमारे ओएसडी हैं। उपेंद्र राय कह कर आप उनको बार-बार अपमानित कर रहे हैं। उपेंद्र प्रसाद उनका नाम है और वो ओएसडी हैं और वो हमसे तनख्वाह नहीं लेते। वो भारत सरकार में ज्वाइंट सेक्रेटरी थे और रिटायर हो गए और उनको मैंने सिर्फ़ इसलिए रखा है कि ताकि सरकार में हमारे जो कागजात आते हैं उनकी वो पैरवी करते रहें। लेकिन वो एक पैसा तनख्वाह नहीं लेते। भारत भारद्वाज हमारी जो पत्रिका हैं उसका संपादक करते हैं। लेकिन उसी में ममता कालिया हैं जो हिंदी का संपादन करती हैं। राजेंद्र कुमार हैं जो बहुवचन का संपादन करते हैं। तो अगर आप इन सारे 10-20 लोगों में … अच्छा आपने मनोज राय भी कह दिया। मनोज राय मेरे आने के दो साल पहले का अप्वाइंटी है।
समरेंद्र – इनमें से कोई एक दलित?
विभूति – दलित भी होंगे। (श्योर नहीं)
समरेंद्र – जहां कैटेगरी फोर्स नहीं करती है कि यहां पर दलित आपको रखना है। उससे इतर के जितने भी अप्वाइंटमेंट किए हैं आपने, क्या किसी दलित को भी अप्वाइंट किया है आपने?
विभूति – नहीं… दलित भी हुए होंगे। मैं उस हिसाब से नहीं कभी करता हूं। लेकिन दलित भी हुए होंगे। अगर आप चाहोगे तो मैं पूरी सूची निकाल लूंगा। उसमें दलित भी हुए होंगे। लेकिन ये तो सारी योग्यता है न। अब आप कहिए कि आप प्रो वाइस चांसलर मुसलमान को ले आए दलित नहीं लाए। ये कौन सी बात हुई। या फाइनेंस ऑफिसर आप मुसलमान ले आए दलित क्यों नहीं लाए।
समरेंद्र – कोई एक प्रॉमिनेंट दलित जो याद आता हो?
विभूति – चलो नहीं याद आ रहा। तो नहीं याद आ रहा। लिख दो कोई नहीं याद आ रहा। लेकिन आप उससे यह नहीं कह सकते कि मैं दलित विरोधी हूं। (वी एन राय के फोन की घंटी बजती है) भई, एक दलित नहीं हुआ तो मैं दलित विरोधी हो गया .. इसके सर्टिफिकेट की ज़रूरत मुझे आपसे नहीं है। मेरा जो साहित्य है .. मेरा जो लेखन है .. वो इसके लिए काफी है।
((समरेंद्र, अविनाश और दिलीप आपस में बात करते हैं – लगता है कि हमको मिला समय पूरा हो गया है और अब चलना चाहिए।))
((तभी विभूति जी बोलते हैं और इंटरव्यू जारी रहता है।))
विभूति – जैसे मैं अनिल चमड़िया को अनैतिक नहीं बोलना चाहता था। लेकिन इन्होंने एक तरह से मजबूर किया कि बताइए कि एक व्यक्ति क्लास नहीं ले रहा। मैंने बुला कर कहा तो उसने क्लास लेना शुरू किया। कॉपियों में उसके हाथ से नंबर घटाए-बढ़ाए गए और मैंने ये पकड़ लिया। मैंने बुला कर कहा कि अनिल चमड़िया जी आपने क्या किया। तो उसके लिए एक कमेटी बिठाई गई और कमेटी ने कहा कि साहब यह ग़लत किया। इम्तेहान हमको कैंसिल करना पड़ा। अध्यापक को नैतिक होना चाहिए। अनैतिक नहीं।
समरेंद्र – अंकित पर भी तो आरोप लगे हैं? क्या वो नैतिकता के दायरे में नहीं आता?
विभूति – हां तो… ये सवाल आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। देखिए अंकित पर जो आरोप लगे हैं .. कोई यह नहीं कह रहा कि अंकित जब तक अप्वाइंट नहीं हुआ था तब तक तो किसी ने कहा नहीं था। अंकित नाम के व्यक्ति को मैंने कभी देखा नहीं था। जब वो अप्वाइंट हो गया तब उसके महीने-डेढ़ महीने बाद से… अंकित के जौनपुर विश्वविद्यालय में बहुत सारी दुश्मनियां थीं तो उन लोगों ने खोज खाज करके वो सारी चीजें भेंजी। अब हम उसकी जांच करा रहे हैं। जांच में दोषी पाए गए तो कोई नहीं बचा सकता उनको। बड़ी सिंपल सी बात है।
समरेंद्र – लेकिन अभी तक कमेटी बनी नहीं है।
विभूति – नहीं नहीं। कमेटी बन गई है .. मैं इसलिए नाम नहीं ले रहा …
दिलीप – आरोप लगे तो काफी समय हो गए हैं…
विभूति – जब मुझे प्रमाण के साथ मिलेगा तभी तो करूंगा।
समरेंद्र – न्यूज़ चैनल पर चल गया है। आधे-आधे घंटे का प्रोग्राम बन गया है।
विभूति – न्यूज़ चैनल पर चल जाने से कुछ नहीं होता। राइटिंग में और उसके साथ … सारे डॉक्यूमेंट के साथ वो करीब महीने-डेढ़ महीने पहले हमको मिला। उसी समय मैंने अलग-अलग लोगों को संपर्क किया और अगले तीन-चार दिन में … मुझे लगता है कि जब मैं पहुंच जाऊंगा तो … जिन सज्जन से मैंने कहा है अगर उनकी स्वीकृति आ चुकी होगी तो … जांच कमेटी के नाम भी घोषित कर देंगे। उनको पब्लिक हीयरिंग के लिए मैंने कहा है। कहा है कि आप यहां बैठेंगे और हमारी वेबसाइट पर वो रहेगा। अख़बारों में रहेगा और जिसको जो कहना है आपके सामने आकर कहेगा।
समरेंद्र – क्या टाइमफ्रेम सेट होगा?
विभूति – एक हफ़्ता .. 10 दिन… इसमें क्या है। ये तो भई डॉक्यूमेंटरी वो है।
दिलीप – वो क्लास ले रहे हैं अभी?
विभूति – हां। क्लास ले रहे हैं।
समरेंद्र – मतलब इस सत्र के ख़त्म होने से पहले अंकित पर कोई फैसला आ जाएगा?
विभूति – ये मैं नहीं कह रहा हूं। देखिए ये मेरे हाथ में तो है नहीं। जिस आदमी को जांच कमेटी का जिम्मा है। अध्यक्ष है। वो पहले अपनी रिपोर्ट देगा। फिर वो रिपोर्ट हमें ईसी के सामने रखनी होगी। मान लीजिए ईसी ने उस रिपोर्ट को रिजेक्ट कर दिया तो मैं क्या कर सकता हूं। मैंने अभी आपसे कह दिया कि ये कार्रवाई होगी और ईसी कोई दूसरा फैसला करे तो। अंतिम निर्णय हमेशा ईसी के हाथ में रहता है। मेरे हाथ में नहीं रहेगा।
समरेंद्र – मतलब ईसी में आपका कोई “से” (वकत) नहीं है।
विभूति – नहीं मेरा भी “से” (वकत) है। मैं भी एक मेम्बर हूं। ईसी का जबकि मैं अध्यक्ष हूं।
समरेंद्र – ईसी गठित करने में आपका कोई “से” (वकत) है।
विभूति – नहीं मेरा कोई “से” (वकत) नहीं।
दिलीप – पूरी ईसी कब तक गठित होगी।
विभूति – यह मैं नहीं कह सकता। उसकी वजह है अध्यापकों की सीनियोरिटी चैलेंज्ड है। जब तक वो तय नहीं होता तब तक …
समरेंद्र – कहां चैलेंज्ड है? कोर्ट में?
विभूति – नहीं। कोर्ट में नहीं। वो विजिटर के यहां है। एचआरडी में है। अलग-अलग स्टेजेज पर है। यह पिछले दो साल से स्थिति चल रही है। मेरे आने के पहले से ही ईसी जो थी वो विजिटर नॉमिनी ही थे।
समरेंद्र – मतलब विजिटर नॉमिनी बैठ कर एक फैसला लेते हैं और उसमें यूनिवर्सिटी का कोई रोल नहीं?
विभूति – क्यों नहीं होता है? होता है। यूनिवर्सिटी का रिप्रजेंटेटिव मैं हूं। प्रो वीसी हैं। हम दो तो हैं वहां पर। आठ में हम दो हैं। रजिस्ट्रार भी हैं। लेकिन उन्हें वोटिंग राइट नहीं हैं। हम लोगों को वोटिंग राइट हैं।
समरेंद्र – मान लीजिए… ये एक बड़ा वेग सा सवाल है कि अगर आप किसी के ख़िलाफ़ हुए और विजिटर नॉमिनी में आपका से है…
विभूति – (बीच में टोकते हुए) विजिटर नॉमिनी में “से” (वकत) का मतलब?
समरेंद्र – (खुद को सुधारते हुए) ईसी में आपका “से” (वकत) है। और आपको ही वहां पर यूनिवर्सिटी का पक्ष रखना है। तब वहां पर तो कोई बचाएगा नहीं उसे।
दिलीप – सफाई देने का मौका अनिल चमड़िया को कहां मिलेगा?
विभूति – कोर्ट में मिलेगा। अनिल चमड़िया चाहें तो कोर्ट जाएं।… (समाप्त)

सुनो विभूति, तुम सेकुलर जातिवादी हो…

लेखक: दिलीप मंडल  |  February 5, 2010  |  स्पेशल रिपोर्ट   |   1 Comment
ऐसे समय में जब कई बार छवियों का महत्व वास्तविकता से ज्यादा हो जाता हो, तब ऐसे बच्चे की जरूरत होती है जो कहे कि अरे राजा तू तो नंगा है। ऐसे समय में जब सच कहना सबसे साहसिक कामों में गिना जाता हो, जब हम सलाम करते हैं वर्धा के महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालयके प्रोफेसर (डॉ) एल करुण्यकारा को। प्रोफेसर को 11 दिसंबर को विभूति नारायण राय का साइन किया हुआ एक नोटिस मिलता है, जिसमें उन पर आरोप लगाया जाता है कि 6 दिसंबर की शाम उन्होंने भड़काऊ जातिवादी नारेबाजी की थी और वो जुलूस में शामिल हुए थे। उन पर ये आरोप भी लगाया गया कि उनके ऐसा करने से कैंपस की शांति और समरसता को खतरा पैदा हुआ। विभूति ने नोटिस में ये धमकी दी कि 7 दिनों में नोटिस का जवाब मुझे नहीं मिला तो एकतरफा कार्रवाई की जाएगी। मवालियों की भाषा में जारी इस नोटिस का जो जवाब प्रोफेसर करुण्यकारा ने दिया है वो प्रतिरोध का शानदार दस्तावेज है। वीसी को भेजी गई चिट्ठी का अनुवाद दिलीप मंडल ने किया है।
प्रोफेसर (डॉ) एल करुण्यकारा
निदेशक, बाबा साहेब अंबेडकर दलित और आदिवासी अध्ययन केंद्र
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय।

———————————————-
प्रति,
श्रीमान विभूति नारायण राय
वाइस चांसलर
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय।
विषय: 6 दिसंबर को बाबा साहेब अंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस पर मेरे शामिल होने को लेकर भेजे गए आपके नोटिस के संदर्भ में।
महोदय,
ये मेरा उत्तर उस नोटिस के संदर्भ में है जो आपने मुझे६ दिसंबर को बाबा साहेब आंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस समारोह के दौरान अंबेडकर स्टूडेंट्स फोरम (दलित और आदिवासी छात्रों का संगठन) द्वारा आयोजित मोमबत्ती जुलूस में शामिल होने को लेकर जारी किया था।
सबसे पहले मैं आपको भारतीय इतिहास में 6 दिसंबर की तारीख का महत्व बता दूं। इस तारीख को भारतीय संविधान के रचयिता बाबा साहेब अंबेडकर का निधन हुआ था और इतिहास इस दिन को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाता है।
सांप्रदायिक ताकतों ने बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए जानबूझकर इस दिन को चुना, 5 या 7 दिसंबर को नहीं, क्योंकि 6 दिसंबर को बाबा साहेब का महापरिनिर्वाण दिवस है। सांप्रदायिक ताकतें इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाती हैं तो सेकुलर लोगों के लिए ये काला दिवस है। दोनों ही पक्ष आंबेडकर को भुलाने का नाटक करते हैं और साल दर साल ऐसा हो रहा है। दलित बुद्धिजीवी इसे मनुवादी प्रलाप मानते हैं और इसमें साजिश देखते हैं।
जाति की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए जब कोई सेकुलर व्यक्ति कुछ काम करता है तो मैं उसे सेकुलर जातिवाद कहता हूं। और ऐसा करने वाले को मैं सेकुलर जातिवादी कहता हूं। सेकुलरवाद का यूं तो जातिवाद से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन कुछ लोग सेकुलर होने का लबादा ओढ़कर अल्पसंख्यकों के हितों की बात करते हैं दरअसल खुल्लमखुल्ला जातिवाद करते हैं जो दलितों के विकास में बाधक है। सेकुलर जातिवादी दरअसल स्वघोषित सेकुलर होता है जो सेकुलरवाद की आड़ में अपना मतलब पूरा करता है। लिहाजा सेकुलर जातिवाद और कुछ नहीं, एक धर्मनिरपेक्षतावादी का जातिवादी व्यवहार है। सेकुलर जातिवादी कई बार उदारवादी, प्रगतिशील और कई बार मार्क्सवादी होने का ढोंग करता है, लेकिन उसका छिपा हुआ एजेंडा होता है जातीय वर्चस्व को कायम रखना।
एक सेकुलरवादी, चाहे वो मार्क्सवादी हो या न हो, जरूरी नहीं है कि जातिवाद विरोधी होगा। कोई सेकुलरवादी व्यक्ति जातिवादी और सामंती भी हो सकता है। कोई सेकुलरवादी व्यक्ति काफी पढ़ा-लिखा और जाना माना बौद्धिक हो, इसका मतलब ये नहीं है कि वो जातिवाद विरोधी होगा। वह आकंठ जातिवादी, सामंती और अलोकतांत्रिक हो सकता है। वह देश के कानून और वंचित तबकों के लिए बनाए गए कानूनों और आरक्षण की धज्जियां उड़ा सकता है।
मिसाल के तौर पर किसी संस्थान का प्रमुख मार्क्सवादी या गैरमार्क्सवादी सेकुलर होते हुए वंचित तबकों के लिए बड़ी बड़ी बातें कर सकता है लेकिन साथ ही वो सामाजिक न्याय का दुश्मन भी हो सकता है। वह दिखावे के लिए उदार और प्रगतिशील हो सकता है, लेकिन वह न्याय के लिए कई दिनों से भूख हड़ताल कर रहे दलितों की जिंदगी के प्रति बेपरवाह हो सकता है। दलित शिक्षा से सदियों से वंचित रहे हैं। अंबेडकर की सीख को मानते हुए दलित हर कीमत पर शिक्षा हासिल करना चाहते हैं। शिक्षा के केंद्रों में प्रवेश के लिए दलित जान की बाजी लगाने के लिए तैयार रहते हैं। संस्थाओं में दाखिला पाने के लिए वो अपनी पूरी नैतिक और भौतिक ताकत के साथ जातिवादी शक्तियों से भिड़ जाते हैं। अगर संस्थान का प्रमुख सांप्रदायिक हो तो दलितों के लिए जातिवादी षड्यंत्र का पर्दाफाश करना आसान होता है। लेकिन अगर संस्थान का प्रमुख सेकुलरवादी हो तो दलितों के लिए उसके कामों से परदा उठाना मुश्किल होता है। कई संस्थाओं और खास कर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में जातीय उत्पीड़न के मामलों के दबे रह जाने के पीछे ये भी एक बड़ी वजह है। ऐसा लगता है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय सामाजिक न्याय विरोधी गतिविधियों के अड्डे बन गए हैं।
क्या आपने कभी सुना है कि किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय में किसी अल्पसंख्यक समूह के छात्रों के साथ भेदभाव किया गया है। क्या आपने सुना है कि किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय में अल्पसंख्यक छात्र पीएचडी में दाखिले के लिए भूख हड़ताल पर बैठे हों। ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी। लेकिन ये बात पक्के तौर पर कही जा सकती है कि सेकुलरवादियों के नेतृत्व में चल रहे कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों में जाति आधारित भेदभाव के मामले सामने आते रहते हैं।
इसलिए एक सचेत दलित को अपने अधिकार और आत्मसम्मान के लिए सेकुलर जातिवादी से लड़ना पड़ता है। आम जनता की स्मृति से बाबा साहेब महापरिनिर्वाण दिवस की स्मृति को मिटाने के लिए सेकुलर जातिवादियों ने सांप्रदायिक जातिवादियों से हाथ मिला लिया है। ये प्रभुत्वशाली लोगों द्वारा जातीय श्रेष्ठता को फिर से स्थापित करने की कोशिश है और इससे दलित प्रतीकों और नारों के जरिए ही लड़ा जा सकता है।
दलित बुद्धिजीवियों के लिए 6 दिसंबर को फिर से अंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर स्थापित करने का कोई और उपाय नहीं है। महापरिनिर्वाण दिवस दलित गौरव और आत्मसम्मान का प्रतीक है। सेकुलर और कम्युनल दोनों ही, ग्राम्सी के शब्दों में कहें तो दलित बौद्धिकों को वार ऑफ पोजिशन (बौद्धिक गतिविधि) से वार ऑफ मूवमेंट (जन आंदोलन) की ओर धकेल रहे हैँ। ये विचारधारात्मक पक्षों का सांस्कृतिक संघर्ष है। ….. (जारी)
प्रोफेसर (डॉ) एल करुण्यकारा को वीसी की तरफ़ से भेजा गया नोटिस। आप इस नोटिस की भाषा पढ़ें और खुद ही फैसला करें।

मुलायम कांग्रेस पर बिफरे, पिछड़ा विरोधी करार दिया



लखनऊ। समाजवादी पार्टी के तेवर कांग्रेस के खिलाफ लगातार तल्ख होते जा रहे हैं। पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव रविवार को कांग्रेस पर खूब बिफरे। उन्होंने उसे पिछड़ा विरोधी करार दिया। मुलायम बोले, 'ऐसा दुष्प्रचार किया जाता है कि कांग्रेसी ईमानदार और पिछड़े नेता बेईमान हैं। अगर कांग्रेस के बड़े पदों पर रहे नेताओं की सम्पत्तिकी जांच करा ली जाए, तो पता चल जायेगा कि कौन कितना ईमानदार हैं।'
उप्र पिछड़ा वर्ग संघ द्वारा आयोजित सम्मेलन में मुलायम ने कहा कि कांगेस हर वक्त समाजवादियों के खिलाफ साजिश करती रही है। प्रदेश में जब सपा की सरकार थी, तो कांग्रेसी हर वक्त उसे कमजोर करने की तिकड़म रचते रहते थे। प्रचारित किया जाता था कि सरकार अब बर्खास्त हुई, तब बर्खास्त हुई। अब बसपा सरकार लगातार संविधान विरोधी आचरण कर रही है पर केन्द्र मौन साधे हुए हैं। इससे यह साबित हो जाता है कि दोनों दल आपस में मिले हुए हैं।
सपा प्रमुख ने कहा कि दिल्ली में बैठी कांग्रेस, सपा और पिछड़ों को आगे नहीं बढ़ने देगी। महिला आरक्षण बिल, पिछड़ों और मुसलमानों को राजनीति से बाहर करने के लिए कांग्रेस द्वारा साजिशन लाया गया है। अगर पिछड़े और मुसलमान सपा के साथ एकजुट हो जाएं तो कांग्रेस का भविष्य समाप्त हो जायेगा। उन्होंने कहा कि 55 फीसदी पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को किसी से अधिकार मांगने की जरूरत नहीं है। लोकतंत्र में इतनी बड़ी संख्या उन्हें स्वयं एक बड़ी ताकत का मालिक बना देती है। जिस दिन दिल्ली की गद्दी पर इस ताकत का कब्जा हो जायेगा, व्यवस्था बदल जायेगी।
यादव ने कहा कि सत्ता में आने पर सपा ने सबका ख्याल रखा। किसी के साथ भेदभाव नहीं किया। जो योजनाएं चलाई, सभी जाति वर्ग के लिए चलाई। चाहे बेरोजगारी भत्ता हो, कन्या विद्याधन हो, या छात्रवृत्तिकी सुविधा। पहली सपा सरकार में नौ प्रतिशत, दूसरी सरकार में दस प्रतिशत और तीसरी बार सरकार बनने पर 14.6 प्रतिशत मुस्लिमों की पुलिस में भर्ती की गयी, पर बसपा सरकार ने उन्हें आते ही बर्खास्त कर दिया। भर्ती करने वाले मुस्लिम अफसर भी मायावती सरकार में प्रताड़ना के शिकार हुए। उन्होंने कहा कि दलितों में भी सभी जातियों को समान अधिकार मिलने चाहिए, किसी एक खास जाति को नहीं। उन्होंने यादवों को भी ताकीद किया कि उन्हें अन्य पिछड़ी जातियों को साथ लेकर चलना होगा।

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