29 मार्च 2010

इतनी कड़वी बातें तो कोई अपना भी नहीं कहता ......................? 
डॉ.लाल रत्नाकर 
कल अमर सिंह ने जया बच्चन से दूर होने का अफसोस किया है, जो स्वाभाविक भी है जया जो कुछ भी कह और कर रही है वह उनकी भब्यता और भद्रता है, पर अमर सिंह का जातिवाद जिस कदर सड़कों तक पहुचना चहिये वह किसी खम्भे पर लटक कर रह गया है, कोई अनजान सा क्षत्रिय न जाने किस किस संग्रहालय से निकाल कर किसका स्वाभिमान जगा रहे है, इनका सारा स्वाभिमान तो उसी दिन 'चुक' गया था जब ये उन्ही जातिवादियों के यहाँ चौधराहट के लिए चुपके से चौधरी बनने आये थे . तब सारे क्षत्रिय क्या क्या नहीं कह रहे थे, अब न जाने किसका स्वाभिमान खोज रहे है, मनचले उच्चक्के आज भी एसे लोगों की तलास में रहते है जिसे स्वाभिमान बचाना हो, स्वाभिमान तो उसका होता है जिसे दूसरों का स्वाभिमान बचाना आता है, इन्होने किसी का स्वाभिमान छोड़ा हो, मुह का बवासीर कहीं ज्यादा खतरनाक होता है जब दिमाग ठीक न हों, बाकि के लिए तो खान पान से बचाव करने पर मिर्च मसाला न खाए तो काम चल जाता है.
संसद का मोह और समता की छोह किसे नहीं होता, अमर सिंह को भारतीय संसद ने ठीक उसी तरह देखा है, जैसे हर व्यापारी मण्डी में अपने मॉल को देखता है, पर हर राजनेता को इस तरह नहीं देखता कम से कम समाजवाद की जड़ से आया कोई भी कार्यकर्ता इनके जैसा तो नहीं हो सकता, गालियाँ बक कर सबको साथ लाने का नुक्ख्सा हर बार जरुरी नहीं है की काम आ ही जाये, पर कल तक के पिता और बड़े भाई को इतनी कड़वी बातें तो कोई अपना भी नहीं कहता ......................?

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