26 अप्रैल 2010

जिनके दोनों कन्धों पर द्विज और दुसाध! सवार हों......


डॉ.लाल रत्नाकर 
एक फासला जिस अवाम के बीच सफलताओं के पाने के बाद नेता के रूप में मुलायम सिंह यादव ने पैदा किया है , वह पिछड़ों ही नहीं यादवों के बीच भी आसान नहीं फिर से वापस आ पाना, यदि अब वह पिछड़ी जातियों के नेता बनते है तो आश्चर्य ही होगा, अब जब मुलायम सिंह यादव के दोनों कन्धों से द्विज और दुसाध भले ही उतर गए है या नयों ने सवारी कर ली है, पर जो अब तक सवार थे उन्होंने बेनी प्रसाद वर्मा, मो.आजम खान व् राज बब्बर जैसों को उतार कर फेंकवा  दिया गया था और तब जो उनके दोनों कन्धों पर बैठा था वह पानी पी पी कर गालियाँ दे रहा है. क्या इसी वजह से पिछड़ों को गले लगाने की राय यादवों को दे रहे है, आपके यादवों ने उन्हें  बहुत दूर तो नहीं कर दिया है. नहीं नहीं आपके जो नए सवार थे उनकी वजह से यादव भी काफी दूर भगा दिया गया था, तभी तो पिछड़ों ने नए समीकरण गढ़ने शुरू कर दिये है . आपके पिछड़ों में जिन्हें आपने आगे किया था उनकी परीक्षा कभी आपने ली क्या वह यादवों से नज़र चुराते थे और दुसाधों से घबराते थे .

अब वह समय नहीं रहा जब राजनितिक व्यक्ति इमान, बचन और  करम का सामंजस्य रखता हो, पर कभी था, पर अब वह भगवान के बाद वरदान देने की हैशियत रखता है , पर तब यह राजनितिक भगवान भूल जाता है की जब जनता साथ छोड़ जाएगी तो भगवान भी बीरान हो जायेगा, अयोध्या की तरह, इसी लिए नए देवी देवताओं की प्रतिमाओं की स्थापना का दौर प्रारंभ हो गया है. जिसे नए सिरे से भारतीय समाज में नए युग का शुभारम्भ कहा जा सकता है, यह आश्चर्य की बात नहीं की इस बार फिर द्विजों ने ही इस सामाजिक बदलाव में योगदान देना प्रारंभ किया है, इसका अंत कैसे होगा इसकी योजना भी उन्होंने बना ली है, सदियों के बहकावे और शूद्रों के भुलावे की योजना के लिए ये क़ुरबानी देना वो जानते है .


अब आबादी के हिसाब किताब से बटवारे का सवाल कहीं न कहीं अटकता नज़र आ रहा है, सामाजिक सन्दर्भों का घाल मेल का सारा खेल किस तरह रचा जा रहा है, उसकी  फिर से  अध्यक्षता जिस समाज के द्वारा कराई जा रही है, उसी से भविष्य की संभावनाओ का पता चलता है, अतः अब हमें सीख लेनी चाहिए इस प्रकार के उपक्रमों एवं  प्रकरणों से और बड़े- बड़े आन्दोलनों के साथ साथ ऐसी योजनाओं पर काम करना चहिये जिससे समाज के उन लोगों तक उसका लाभ पहुंचे.


पर हो उससे उलटा गया है आज जो जहाँ बैठे है वहीं लूट पाट पर आमादा है, यही काम जब आपके पास ओ आये थे तो बढ़ाने के लिए ही आये थे, जितना हो सका किये भी और वर्षों की शाख को पलीता लगा गए. भला हो प्रोफेसर का किसी तरह उसे भगा पाए पर आपने तो अंत तक उसी के साथ के लिए हाथ बढ़ाते रहे थे नेता जी. चलिए यह भी ठीक है पर आप कुसमय किसी न किसी को जोड़ते ही रहते है, इसी तरह का काम फिर  इन वाम पन्थियो के साथ खड़े होकर करने की जो योजना बना रहे है, बहुत ही खतरनाक होगी ऐसा नहीं है इस तरह के लोग बड़ी दुकान लगा कर बैठे है आपके भले के लिए नहीं नेता जी, इन्हें पहचानिए जब भी आप बड़े होने लगते हो तो ये पर कुतर देते है . पर माननीय मुलायम सिंह जी है की वह उधार ही चले जाते है एशा क्यों है, यह बात समझ में ही नहीं आती राजनीति के शिवा और कोई रास्ता भी तो नहीं है जिससे यह सब ठीक हो सके पर हर सदी में कोई न कोई एशा व्यक्ति खड़ा हो जाता है जो जो सब गड्ड म गड करके रख देता है, यह विडम्बना कब समाप्त होगी हमारे समाज से .


दलित राजनीति की बिडम्बना   
या दुर्दशा के लिए जिस तरह आज शिबू सोरेन बिचारे हो गए है, भाजपा ने कभी उत्तर प्रदेश में भी यही किया था बार-बार यही हाल करने से एक लाभ तो हो रहा  की इनकी बनियागीरी समझ आ रही है .
सोरेन   का मामला आदिवासी कम अनुभवहीनता ज्यादा ही नज़र आ रहा है पर इतने पर भी दलितों और आदिवासियों को समझ नही आ रहा है. कि किस प्रकार ऊँची जातियों के लोग तमाम तरह के फरेब करके सर्वजन कि बात करने वाले और दलितों से यही करवाने वाले शायद यह भूल जाते है कि जब जब वो पॉवर में होते  है तो उनका सर्वजन किस तरह के होता है ५० साल के पिछले शासनकालों में देखने को निरंतर मिलता रहा.
देश पिछले हजारों सालों से इस सर्वजन कि मानसिकता से भली-भांति वाकिफ हो गया है पिछले  63 वर्षों में नाना प्रकार के सुधारों के बावजूद हम आज तक कहाँ पहुंचे है इसका असर यह हुआ है कि दलित जनता ने एका दिखा कर एक बड़े प्रदेश 'उत्तर प्रदेश' का राज्य चलाने का मौका मिला है . उत्तर प्रदेश कई प्रकार के प्रयोगों से गुजरता है. 



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