मशहूर हिंदी कवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपने महाकाव्य कुरुक्षेत्र में कहा है - ‘एक व्यक्ति संचित करता है अर्थ कर्म और बल से, और भोगता उसे दूसरा अरे भाग्य के छल से’। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यदि उत्तर प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम को लें तो कुरुक्षेत्र की ये पंक्तियां मुझे प्रासंगिक दिखाई देती हैं। इस महाभारत में पांडव भी है और सत्ता के मोह में अंधे धृतराष्ट्र का साथ निभाने की खातिर अंधी न होकर भी आंखों पर पट्टी बांधने वाली गांधारी है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के कुरूक्षेत्र में महाभारत की चौपाल पर कुंती, शकुनि और द्रौपदी भी आधुनिक परिवेश में अलग-अलग ढंग से अपना चरित्र निभा रहे हैं। लेकिन अगर मंच से कोई नदारद है तो वह है सत्य का साथ देने वाला युधिष्ठिर। इस रंगमंच पर कृष्ण होने का झूठा दम हर कोई भर रहा है। माया के तीर यह सच है कि मायावती के अलावा आज पूरे देश में शायद ही कोई ऐसी राजनीतिक महिला हस्ती है जिसने अपने दम पर राजनीति की और समाज के निचले स्तर से अपना वजूद बनाया। उन्होंने कांशीराम के कट्टरवादी रवैये में जबरदस्त बदलाव किया और बहुजन में फेर-बदल किये बिना उसे सर्वजन तक ला खड़ा किया। लेकिन हजार रुपये के नोटों का करोड़ों का हार पहनने वाली मायावती का यह चरित्र भी जगजाहिर है कि उन्हें ऐसे विवादों में मजा आता है, इसीलिए तो दो दिन से भीषण आलोचना के बावजूद मायावती ने एक बार फिर नोटों की माला पहनकर विरोधियों को चुनौती दे डाली। मुझे तो लगता है कि शायद उन्हें यह पता ही नहीं कि यह पैसा समाज के उन्हीं बहुजनों के शोषण से इकट्ठा होता है, जिनके थोकबंद वोट मायावती के बस्ते में डलते रहते हैं। मैं उस बात को भी गले नहीं उतार पाऊंगा कि मायावती इन मालाओं में गुंथा धन बहुजनों में बांटेंगी। क्योंकि उत्तरप्रदेश में अरबों की लागत से बनने वाले पार्क और मूर्तियों में भी बहुजनों का कोई हिस्सा नहीं रहा है। विरोधियों के सुर मायावती के विरोधियों में सबसे ऊपर समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव हैं। लेकिन उनकी राजनीति का ढांचा भी कमोबेश वैसा ही जातिगत है जैसा मायावती का। भारतीय जनता पार्टी भी उनके विरोधियों में है लेकिन संप्रदायों की टकराहट और उपेक्षा का लाभ उठाने का श्रेय इसी पार्टी को जाता है। सपा और भाजपा के अलावा कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी गांव-गांव जाकर अपनी जमीन तलाशने में जुटे हैं। इन सबका तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो मायावती में सारी क्षमताएं हैं, लेकिन कभी जन्मदिन के नाम पर चंदा वसूली और कभी फिजूलखर्ची के आरोप उन्हें हमेशा विवादों में डाले रहते हैं। ज्योतिष की भाषा में कहें तो शायद मायावती का सूर्य सचमुच तेज है लेकिन राहू और केतु का ग्रहण उनकी आभा को कम करते हैं। नोटों से पहले पार्क और मूर्तियों में माया कांशीराम जयंती पर करोड़ों की माला पहनने के चलते आयकर और संसद तक भूचाल खड़ा करने वाली मायावती ने दो दिन बाद ही एक और माला अपने जिस्म से लपेट ली। विवाद की पूंछ अभी और कितनी खिंचेगी पता नहीं, लेकिन इससे पहले अंबेडकर पार्क और उसमें लगने वाली करोड़ों की मूर्तियों को लेकर भी वे चर्चा में रह चुकी हैं। बस यही है उनके चरित्र की नकारात्मकता।
पता नहीं मैं जब भी मायावती का विश्लेषण करता हूं तो पाता हूं कि उस जैसी लौह-महिला तारीख में कभी-कभार ही सुनने को मिलती हैं, लेकिन इतनी ऐरोगेंसी देखने पर अपना विश्लेषण दुबारा पढ़ता हूं और लगता है कि उसमें कुछ संशोधन करूं। क्या करूं यह समझ नहीं पाता ठीक उसी तरह जिस प्रकार विलियम शेक्सपियर अपने महाकाव्य हैमलेट में कह बैठते हैं - टू बी और नॉट टू बी देट इज द क्वेश्चन
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