2 मई 2010


नारको टेस्ट असंवैधानिक: SC

Agency
First Published 11:57[IST](05/05/2010)
Last Updated 11:27[IST](05/05/2010)
supreme courtनई दिल्ली.  देश की सर्वोच्च न्यायालय ने नारको टेस्ट को कानूनी मान्यता नहीं दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वोपरि है। कोर्ट ने बुधवार को एक अहम फैसला देते हुए नारको टेस्ट को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन बताते हुए असंवैधानिक करार दिया है। अब आपराधिक मामलों में आरोपी से सच उगलवाने के लिए बिना आरोपी की मर्जी के नारको टेस्ट नहीं किया जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने ब्रेन मैपिंग, पॉलीग्राफी टेस्ट, नारको टेस्ट और इस प्रकार के अन्य टेस्ट को इस श्रेणी में रखकर असंवैधानिक करार दिया है।

मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन. न्यायमर्ति जे.एम. पंचाल और न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान की खंडपीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अभियुक्त की सहमति के बगैर नारको टेस्ट, ब्रेन मैपिंग या पॉलीग्राफी टेस्ट नहीं किया जा सकता। खंडपीठ की ओर से न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी अभियुक्त का जबरन नारको टेस्ट उसके मानवाधिकारों एवं उसकी निजता के अधिकारों का उल्लंघन है।

क्या है नारको टेस्ट
नार्को एनालिसिस मूलत: नार्कोटिक्स से बना है। नार्कोटिक्स यानि नशीले पदार्थ। सन् 1922 में एक अमेरिकन चिकित्सक रोबर्ट हाउस ने पता लगाया कि यदि कुछ खास रसायनों का मनुष्य द्वारा सेवन किया जाता है, तो कुछ समय के लिए उसकी कल्पना शक्ति और विचार शक्ति खत्म हो सकती है। इस प्रकार वह व्यक्ति कुछ भी सोचने और समझने की हालत में नहीं रहता है और फिर वह वही कहता है जो सच होता है अथवा जो उसके दिमाग में होता है।

जिस व्यक्ति पर नारको किया जाता है वह व्यक्ति जो भी बोलता है वह अनायास ही बोलता है यानि कि कुछ भी सोच समझकर नहीं बोलता। हालांकि कई उदाहरण ऐसे भी हैं जब यह पाया गया कि व्यक्ति ने नारको टेस्ट के दौरान भी झूठ बोला है। वस्तुत: नारको टेस्ट में व्यक्ति की मानसिक क्षमता और भावनात्मक दृढ़ता पर ही सब कुछ निर्भर करता है। नारको टेस्ट कानूनी रूप से सबूत के तौर पर तो नहीं लिए जाते हैं, परंतु विभिन्न अपराधों की जांच में बहुत उपयोगी साबित होते रहे हैं।

चर्चित मामले जिनमें इनका किया गया नारको टेस्ट

निठारी कांड- मोनिंदर सिंह पंढ़ेर और सुरेन्दर कोहली

मालेगांव विस्फोट- साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर

स्टाम्प घोटाला- अब्दुल करीम तेलगी

फर्जी पासपोर्ट- अबू सलेम

जनता से धोखाधड़ी- अशोक जड़ेजा

आरूषि मर्डर केस- राजेश और नूपुर तलवार

क्या होता है नारको टेस्ट में


नारको टेस्ट अधिकतर तीन घंटे में ही संपन्न हो जाता है। नारको टेस्ट 13 प्रकार से किया जाता है इन टेस्टों में विभिन्न प्रकार की दवाओं और मादक पदार्थों का भी उपयोग किया जाता है। जिनमें हीरोइन, मोरफीन और कोकीन प्रमुख हैं।


5 दिन में हुआ नारको


लेकिन आरूषि मर्डर केस में राजेश तलवार का नारको टेस्ट लगभग पांच दिन तक चला था।

कैसे - कैसे खेल किये जा रहे है इस देश में -

सब प्रो. कृष्ण कुमार वगैरह ने किया, वीएन राय पाक साफ!

लेखक: दिलीप मंडल  |  January 30, 2010  |  स्पेशल रिपोर्ट   |   2 Comments

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर विभूति नारायण राय की मानें तो प्रोफेसर अनिल चमड़िया की नियुक्ति निरस्त करने का फैसलाप्रोफेसर कृष्ण कुमारमृणाल पांडेगंगा प्रसाद विमलऔर एक्जिक्यूटिव कौंसिल के बाकी सदस्यों का था। उनका इस फैसले से कोई लेना देना नहीं है और वो तो दरअसल अनिल चमड़िया को लेकर आए थे और उनके हाथ में होता तो वो अनिल चमड़िया को कतई न हटाते।

वीएन राय के इस भोलेपन पर कौन न फिदा हो जाए। लेकिन वी एन राय, क्या आप ये बताएंगे कि
1. दिल्ली में 13 जनवरी को हुई यूनिवर्सिटी की एक्जिक्यूटिव कौंसिल की बैठक में कौंसिल के सदस्यों से आपने अनिल चमड़िया की नियुक्ति के संदर्भ में क्या कहा था?
2. क्या आपने ये कहा था कि मैंने अनिल चमड़िया की नियुक्ति की थी और अब उसे कन्फर्म किया जाना है?
3. या फिर आपने ये कहा था कि अनिल चमड़िया की नियुक्ति करते मैंने गलती कर दी और अब उसे सुधार करना है। या फिर आपने कुछ और कहा था? ये काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि तभी ये पता चल सकता है कि कौंसिल के सदस्यों ने ये फैसला किस पृष्ठभूमि में किया।
4. क्या आपको नहीं लगता कि किसी की नियुक्ति निरस्त करने से पहले उसे अपना पक्ष रखने का कम से कम एक मौका दिया जाना चाहिए?
5. क्या प्रोफेसर अनिल चमड़िया को ये मौका दिया गया, और अगर नहीं तो इसकी वजह क्या थी?
6. आपका ये कहना सही है कि एक्जिक्यूटिव कौंसिल सबसे ताकतवर संस्था है, लेकिन उसके सामने फैसला करने के लिए तथ्य कौन रखता है?
7. आप कहते हैं कि ईसी ने हटा दिया मैं क्या करूं, लेकिन आपने क्या ईसी को ये जानकारी दी थी कि अनिल चमड़िया की नियुक्ति का मामला हाईकोर्ट में चल रहा है?
8. क्या आपने एक्जिक्यूटिव कौंसिल की बैठक में बताया कि किन नियमों के तहत आपने अनिल चमड़िया की नियुक्ति की थी?
9. आप कहते हैं कि “अगर ईसी ने अनिल चमड़िया की नियुक्ति को मानकों के हिसाब से नहीं पाया तो इसमें मेरा दोष क्या है.” ईसी ने अगर प्रोफेसर नियुक्त करने के आपके तरीके पर इतना बड़ा सवाल खड़ा कर दिया तो आपको इस्तीफा नहीं देना चाहिए। प्रोफेसर की नियुक्ति कोई तमाशा नहीं है कि आपने मानकों को ध्यान में रखे बगैर नियुक्ति कर दी। छात्रों के भविष्य और एकेडमिक शुचिता के साथ आप इतना बड़ा खिलवाड़ कैसे कर सकते हैं? और ये सब करके आप अपने पद पर कैसे बने रह सकते हैं?
10. जब ईसी अनिल चमडिया की नियुक्ति के आपके फैसले को मानकों के हिसाब से खारिज कर रही थी, तो आपका डिफेंस क्या था? या आपने अपना दोष कबूल कर लिया? ऐसी हालत में आप पर गलत नियुक्ति करने के लिए मुकदमा क्यों नहीं चलाया जाना चाहिए?
दरअसल इस मामले में सारी जिम्मेदारी प्रोफेसर कृष्ण कुमार, मृणाल पांडे, गंगा प्रसाद विमल और कौंसिल के दूसरे सदस्यों पर डालकर वीएन राय अपने लिए बचाव का पक्ष तैयार कर रहे हैं। ईसी के सदस्य खामोश रहकर इस अन्याय का समर्थन कर रहे हैं। उन्हें मुखर होकर सामने आना चाहिए
नोट-दिलीप जी यहीं से इस देश का दुर्भाग्य शुरू होता है , सारे अपने सड़े हुए को यहाँ प्रतिस्थापित करके इस देश को कबाड़ खाना बना दिये है , गलती से आप वहां हो जहाँ ये आपको नहीं देखना चाहते , अनिल चमडिया ने भी यही गलती कि इनकी ही तरह सड़ कर कबाड़  के किसी कोने कि शरण लेना चहिये था. पर कोना उन्हें नहीं भाया होगा .
दूसरी बात ये कि पहले इन्हें अपना चहिये फिर प्रतिभावान नहीं होना चहिये . नज़रें उठाईये पूरे देश के सभी ऊँचे संस्थानों के कचड़े नज़र आयेंगे . 
--केशा यादव 

कोई टिप्पणी नहीं:

फ़ॉलोअर