आज हमारे राजनेता अपने आपको को बौना कराने में लगे है , इनकी सारी राजनैतिक दशा दिशा में बेईमान से बेईमान;भ्रष्टाचार;दुराचार;साम्प्रदायिकता;अनाचार;अत्याचार;निक्कम्माबाद से ग्रस्त है ,इसी के इर्द गिर्द सारी अवाम को घुमाना शुरू कर दिया है .
साभार - दैनिक भाष्कर
गडकरी के सामने साख का संकट
साभार - दैनिक भाष्कर
स्मिता मिश्रा
नई दिल्ली ढाई महीने पहले भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इंदौर के अधिवेशन में पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी को विक्रमादित्य का सिंहासन कहा था, यानी वह आसन जिसपर बैठने वाला व्यक्ति कुछ गलत नहीं कर सकता। ढाई महीने बाद पार्टी के नेता यह समझ नहीं पा रहे कि उनके बयानों को किस नजरिए से लें। वह इस बात से आशंकित भी हैं गडकरी के शब्दों से पता नहीं दोबारा कौन सा विवाद खड़ा हो जाए।
चंडीगढ़ में यादव बंधु, लालू प्रसाद व मुलायम सिंह के लिए कहे गए गडकरी के शब्दों ने भाजपा के अंदर जबरदस्त हलचल पैदा कर दी है। ज्यादातर नेता इस पूरे प्रकरण से दूरी बनाए रखने का संकेत दे रहे हैं। पार्टी प्रवक्ता भी उनके बचाव में उतरने के बजाय केवल इतना कहते नजर आए कि उनकी माफी के बाद मामला खत्म हो गया है। पार्टी की केंद्रीय टीम के आधा दर्जन नेताओं ने साफ तौर पर माना कि गडकरी की अगली रैली से पहले उनसे विस्तार से चर्चा करनी होगी।
सपा नेता मोहन सिंह ने जिस तरह गडकरी के बयान को सीधे संघ के संस्कारों से जोड़ा है, उससे पार्टी के कई नेताओं में कानाफूसी शुरू हो गई है। मालूम हो कि गडकरी को संघ का ही उम्मीदवार समझा जाता है। उनकी भाषा व लहजे को संघ से जोड़ा जाना लाजिमी ही है।
यूपी के एक वरिष्ठ नेता का कहना था कि, अब तक हम लोग अपने भाषणों को अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी की तर्ज पर तैयार करते रहे हैं। ऐसे में अध्यक्ष पद पर काबिज होने के पांच महीने के अंदर ही नितिन गडकरी के लिए दोबारा अपनी साख बहाल करने की चुनौती खड़ी हो गई है। इसकी वजह उनका हालिया बयान ही नहीं है। कई नेता मामलों को लटकाने के उनके स्वभाव से असमंजस में हैं।
अध्यक्ष बनते ही उन्होंने रातोरात राजस्थान का पेंच सुलझाने की पहल की थी, अब उसकी छाया दिखाई नहीं दे रही। चाहे झारखंड का मामला हो या पार्टी में कार्यभार सौंपने और मोर्चो, प्रकोष्ठों के गठन का, हर काम में देरी से नेता उबने लगे हैं।
बिहार के नेताओं की चिंता कुछ और ही है। उन्हें डर है कि अगले महीने पटना में प्रस्तावित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राजद ने कहीं गडकरी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तो लेने के देने पड़ जाएंगे। बिहार से जुड़े एक केंद्रीय पदाधिकारी का कहना था कि, लगता है पटना में प्रस्तावित रैली अब काफी सोच-समझकर करनी पड़ेगी।
1 टिप्पणी:
lagta hai wo to jayenge hi kisi aur ko bhi le jaayenge
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