27 मई 2010

बी.बी.सी.हिंदी .कॉम ने जातिगत गड़ना के लिए अवाम से  सवाल पूछे है उन में से प्राप्त उत्तर साभार- मै यहाँ लगा रहा हूँ .
डॉ.लाल रत्नाकर
कितने महान चिन्तक है इस देश में -
आज  भारतीय  समाज  उस  मुकाम  पर  खड़ा  है  जहाँ  उसने  अनेक  परिवर्तन  देखे  है  सदियों  की  गुलामी से निकल कर वहाँ खड़ा है जहाँ से तमाम उन जातियों को यह डर लग रहा है की कल कहीं उनकी पोल खुल गयी तो क्या होगा इस सर्वे में यह बात बहुत ही स्पष्ट रूप से सामने आयी है की आज इस देश में ही नहीं दुनिया के अनेक देशों में बैठे लोग इस बारे में सोचना शुरू कर दिये है , उन्हें भी यहाँ मुख्य धारा से छूट गए लोगों की जहाँ चिंता है वहीँ उनके भाई बंधुओ की भी चिंता है जिन्होंने सदियों से देश को हड़पकर अपने कब्जे में रखा है इन्हें पढ़े-
भारत में पाखंड बहुत है.यही पढ़े लिखे सभ्य समाज वाले जाति और गोत्र के आधार पर विवाह की वकालत करते हैं. जनगणना में धर्म पूछा जाता है तो इन्हें कोई आपत्ति नहीं. चुनावों में प्रत्याशियों का चयन व मतदान तक में जाति एक बड़ी वजह बनती है. परन्तु जैसे ही कुछ तथाकथित बड़ी जातियों को खतरे का आभास हुआ, इन्हें जाति में संकीर्णता दिखने लगती है. जाति आधारित नीतियां बनायी गई हैं. उन्ही नीतियों के परिणाम के विश्लेषण के लिए जाति आधरित गिनती की आवश्यकता है, तो इस पर आपत्ति क्यों? 
और जरा इन्हें पढ़िए-
जाति आधारित जनगणना बिल्कुल ही किसी के हित में नहीं है. इससे मानसिक संकीर्णता बढ़ती है. जातिवाद से जनता में एक दूसरे के प्रति दूरी बढ़ती है. जातिवाद से सिर्फ़ पिछड़ेपन को ही मदद मिलती है. जातिवाद समाज और देश के लिए जहर है. सब पढ़ें, सब बढ़ें एक साथ, तब देश बढ़े. इसमें जातिवाद कहां से आ गया.
आइये इन्हें देखें-
इसकी सचमुच ही जरूरत है. भारतीय संविधान आरक्षण की बात करता है तो इसके लिए सांख्यिकी आंकड़ों की जरूरत पड़ेगी. हमें यह जानना होगा कि अलग-अलग जातियों में कितने लोग हैं. अगर आरक्षण का आधार जाति न होता तो फिर इस तरह के जनगणना की जरूरत नहीं थी. सही आंकड़े के अभाव में सरकार कैसे जाति आधारित आरक्षण नीति लागू कर सकेगी? यह तर्क संगत नहीं होगा.
यह सच्चाई है-
यहाँ ऐसे लोगों की कमी नहीं जो प्रायः हर मुद्दे पर अपने दोहरे मानदण्ड रखते हैं.एक तरफ तो वे जनगणना में जाति के बारे में जानकारी माँगी जाने का विरोध करते हैं और दूसरी तरफ भारत की चारों पीठों के शंकराचार्यों की नियुक्ति में केवल ऊँची जाति का जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं.वे जातियों को खत्म भी नहीं करना चाहते और उनके सही आँकड़े भी दुनिया के सामने नहीं लाना चाहते.वे गरीबों और अमीरों के लिए जारी दोहरी शिक्षानीति का समर्थन करते हैं पर समान शिक्षा नीति के नाम पर चुप्पी साध लेते हैं.अब ऐसा नहीं चलेगा.
पूरे जवाबों में समाज दो धरो में बट गया है एक धडा जातीय जिक्र आने पर आग बबूला हो जा रहा है जो हमेशा अपनी जाति का ही ख्याल रखता है, और दूसरा धडा है जिसे जातिवादी कहा जाता है उसने कई जगह जातीय गूढ़ समीकरण को समझे वगैर जाति की निन्दा करने की कोशिश किया है पर इस सवाल पर हर समझदार व्यक्ति जातियों की गिनती कराये जाने को जायज ठहराया है आज के इस तकनिकी युग में इस प्रकार के आंकडे आना बहुत ही सिद्दत के साथ सजगता का ही सवाल है. होता क्या है जाति की गड़ना का जिसके लिए इन दलित और पिछड़ों के विरोधियों के मन में क्या है ? पर यदि इसबार इसको रोक लिया गया तो भविष्य में इसको लागू करना जरा कठिन ही नहीं मुश्किल हो जायेगा .
क्योंकि -
सामाजिक सन्दर्भों पर सोचने वाले लोगों का निरंतर ह्रास हो रहा है जो पूरे नियोजित तरीके से किया जा रहा है जिसकी व्यवस्था बहुत ही सुनियोजित तरीके से हो रही है जिसके लिए देश की पूरी मशीनरी लगी हुयी है, जिसे यह दिखाई नहीं देता की वह जो कुछ कर रही है वह किसी न किसी  तरह नज़र तो आता ही है.  
किया जा रहा है  
   

क्या जनगणना में जाति के बारे में जानकारी माँगी जानी चाहिए?

भारत में एक बार फिर जनगणना हो रही है. हाल में भारत की संसद में इस विषय पर ख़ासा हंगामा हुआ है कि क्या जाति कि पहचान को भी जनगणना में शामिल किया जाए.

भारत में आख़िरी बार 1931 में जनगणना के दौरान जाति की जानकारी माँगी गई थी. उसके बाद जनगणना के दौरान जाति की जानकारी नहीं माँगी गई.

अनेक सांसदों ने माँग उठाई कि यदि सरकारी नीतियों में पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए क़दम उठाए जाने हैं तो कम से कम विभिन्न जातियों की संख्या और अन्य जानकारी तो उपलब्ध होनी चाहिए. संसद में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सांसदों को आश्वासन दिया कि वे इस मुद्दे पर सांसदों की भावनाओं से अवगत हैं और जल्द इस विषय में निर्णय लिया जाएगा.

मीडिया में अनेक विशेषज्ञों और राजनीतिक नेताओं ने जनगणना के दौरान जाति के बारे में जानकारी माँगने का विरोध किया है. उनका तर्क है कि आज़ादी के समय देश के बड़े नेताओं ने इसका विरोध किया था और माना था इससे समाज और विभाजित होगा.

ग़ौरतलब है कि राजनीति और सार्वजनिक जीवन में जाति का प्रभाव आज़ादी के बाद से कोई ख़ास कम नहीं हुआ है.

इस विषय पर आपका क्या मानना है? क्या जनगणना में जाति के बारे में जानकारी माँगी जानी चाहिए? क्या जाति के नए आंकड़े आने से ही सही राजनीतिक-प्रशासनिक फ़ैसले लिए जा सकते हैं और नीतियाँ बनाई जा सकती हैं? क्या ऐसा करने से समाज विभाजित होगा?

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प्रकाशित: 5/18/10 4:19 PM GMT

टिप्पणियाँ

टिप्पणियों की संख्या:119
सभी टिप्पणियाँ जैसे जैसे वो आती रहती हैं

Added: 5/25/10 9:45 AM GMT
जाति आधारित जनगणना ही होनी चाहिए. भारत में कौन है जो किसी जाति को नहीं मानते. हर कोई किसी न किसी जाति का है तो फिर जाति-आधारित जनगणना क्यों न हो.
Laraib Sujha saharsa 

Added: 5/25/10 4:55 AM GMT
ये एक ग़लत क़दम होगा. सरकार को इसपर राष्ट्रीय बसह करवानी चाहिए. जातिवाद के ज़हर से पहले भी काफ़ी नुक़सान हो चुका है. 1931 के बाद ये बंद कर दिया गया था. इस जिन को बोतल से वापस बाहर नहीं निकालना चाहिए. जातिवाद देश को मंडल-कमंडल की ओर ले जा सकता है जो देश की एकता और अखंडता के लिए ख़तरा होगा.
yaswant jaipur 

Added: 5/25/10 1:09 AM GMT
देश को बांटने का नायाब तरीक़ा.
PRASHANT GAHMAR 

Added: 5/24/10 2:20 PM GMT
मात्र तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले उन कथित नेतओं के गाल पर यह एक ज़ोरदार तमाचा होगा, यदि जातिगत गणना न की गई तो यह क़दम एक समरस एवं संगठित भारत के विकास के पथ पर मील का पत्थर साबित होगा.
Satish YadavSheopur भारत

Added: 5/24/10 1:10 PM GMT
जाति के आधार पर जनगणना होनी ही चाहिए. सरकार कोई वर्ण व्यवस्था नहीं ला रही है. लोकतंत्र में सब कुछ पारदर्शी होना चाहिए. जाति एक बड़ी समस्या है. भारत आज़ादी के बाद इतना पीछे क्यों है? क्योंकि कुछ जाति देश को दीमक की तरह खा रही थी और खा रही है. भारत को इस दीमक से बचाना है तो जाति के अधार पर जनगणना होनी ही चाहिए.
ashish Belfast 


Added: 5/24/10 1:05 PM GMT
यहां इस बात के दो पहलू हैं. जाति बता देने से सही-सही आंकड़ो की जानकारी होगी लेकिन उसके साथ अगर पिछड़ी जातियों का उद्धार हो तब तो जाति बताने में कोई हर्ज नहीं. लेकिन अगर जाति पता होने पर व्यक्ति विशेष को अपमानित किया जाए तो ये बात हरगिज़ सही नहीं है. इसलिए इस बारे में कुछ ठोस पहल होना बहुत ज़रूरी है ताकि जो व्यक्ति वास्तव में ज़रूरतमंद है उसकी मदद हो सके और जो सरकारी योजनाएं हैं उनसे उन्हें लाभ मिल सके.
Afsar Abbas Rizvi "ANJUM" FIROZABAD U.P India 

Added: 5/23/10 11:26 AM GMT
जनगणना में जाति बिल्कुल ही शामिल नहीं होनी चाहिए.
manju delhi 

Added: 5/23/10 9:15 AM GMT
जाति के नाम पर सिर्फ़ मानव जाति का होना ही उचित है. मानव-मानव एक समान हैं और तभी विश्व बंधुत्व की भावना जाग सकती है.

Added: 5/22/10 4:59 PM GMT
जनगणना में जाति के बारे में जानकारी जरूर मांगी जानी चाहिए. जनगणना में दो बड़े घपले होते रहे हैं-पहला, विस्‍थापित एससी और एसटी को सामान्‍य श्रेणी में गिना जाता है. दूसरा,आदिवासियों को हिन्‍दू के रूप में गिना जाता है जबकि वे हिन्‍दू नहीं हैं. ये दोनों घपले हिन्‍दुओं और सवर्णों की संख्‍या में इजाफा दिखाने के लिए किए जा रहे हैं. जनगणना में जाति की जानकारी लेने से सभी जातियों की वास्‍तविक स्थिति सामने आ जाएगी और साथ ही मुट्ठी भर सवर्णों द्वारा देश के अधिकांश संसाधनों के उपयोग की बात भी जाहिर हो जाएगी.
गंगा सहाय मीणाजेएनयू, नई दिल्‍ली भारत

Added: 5/21/10 6:16 PM GMT
जाति भीरतीय समाज की आधारभूत सच्चाई है जिसे नकारा नहीं जा सकता है. जातिगत जनगणना के जिक्र से जिनके कान के पर्दे भनभना रहे हैं,उन्हें अपने कान बंद कर लेने चाहिए. भारत में जब बहुत कुछ जातीय आधार पर हो चुका है तो इस नेक काम से कैसा गुरेज.
संदीप विज़ंता नई दिल्ली 

Added: 5/21/10 5:10 PM GMT
भारत में हो रहे जनगणना में जाति को शामिल करना एक प्रगतिशील सोच को दर्शाता है,अगर इसमें कोई परेशानी होती तो सरकार इसे किसी भी हालत में शामिल नहीं करती. हमारे देश में जाति प्राचीन काल से चली आ रही है और आगे भी यह खत्म हो जाएगा ऐसा कोई नहीं कह सकता. इसके आधार पर आंकड़े जुटाकर भारतीय समाज को क्या दिशा दी जानी चाहिए,इसका विश्लेषण करना चाहिए,तभी भारत विकसित देश की श्रेणी में जा सकता है.
Maya Anuska Singh Jamshedpur, Jharkhand 


Added: 5/21/10 12:49 PM GMT
मैं सोचता हूं कि इससे सभी की सही संख्या का पता चल जाएगा. पिछड़ी जातियों के लिए अलग-अलग तरह से कल्याणकारी योजनाएं बनाई जा सकेंगी.
raj kumar shukla allahabad 

Added: 5/21/10 11:47 AM GMT
मेरे मुताबिक यह एक सही तरीका है. इससे हम जान पाते हैं कि कितने लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं और फिर इस आधार पर उनके बारे में योजनाएं बन पाती हैं.
manish pune 
पेज-२
जाति आधारित जनगणना बिल्कुल ही नहीं होनी चाहिए. इससे समाज बंटेगा. आज महानगरों को जाति को कोई नहीं पूछता. हमारे नेताओं से विनती है कि वे अब देश के बारे में गंभीरता से सोचें.
manju delhi 

Added: 5/21/10 9:00 AM GMT
जाति आधारित जनगणना बिल्कुल ही किसी के हित में नहीं है. इससे मानसिक संकीर्णता बढ़ती है. जातिवाद से जनता में एक दूसरे के प्रति दूरी बढ़ती है. जातिवाद से सिर्फ़ पिछड़ेपन को ही मदद मिलती है. जातिवाद समाज और देश के लिए जहर है. सब पढ़ें, सब बढ़ें एक साथ, तब देश बढ़े. इसमें जातिवाद कहां से आ गया.
BINOD KUMAR SINGH KANO, NIGIRIA 

Added: 5/21/10 8:31 AM GMT
भारतीय समाज पहले से ही काफी विभाजित है.अँग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की नीति का पालन कर वर्षों तक हम पर शोषणात्मक शासन किया.हमारे देश के कुछ नेता भी उसी नीति का अनुसरण कर हमें कमजोर करना चाहते हैं.समय रहते हमें सावधान होकर उनके मँसूबों पर पानी फेरना चाहिए.सही नीति बनाना है तो आर्थिक आधार पर समाज को समझें. इस आधार पर पिछड़े वर्गों की और आर्थिक रूप से कमजोर समाज के दूसरों तबकों को भी सरकार की नीतियों का लाभ मिल सकेगा.हिंदुस्तान को युवाओं के नेतृत्व में एक क्रांति की जरूरत है.
अशोक पाँडे रीवा मप

Added: 5/21/10 7:34 AM GMT
जाति आधारित जनगणना भारत के लिए बहुत जरूरी है. इससे समाज में हर जाति की स्थिति का पता चलता है. इससे सरकार को नीति बनाने में मदद मिलेगी. जाति विशेष को भी अपनी स्थिति का पता चल जाएगा.
Nittu Kumar HISAR

Added: 5/21/10 6:59 AM GMT
जो लोग इसका समर्थन कर रहे हैं वे वोट की खातिर ऐसा कर रहे हैं. ये लोग इसके सामाजिक प्रभाव को नजरअंदाज कर जाते हैं. उन्हें सिर्फ सत्ता चाहिए, इसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं.
amit bhardwaj village-kailavan 

Added: 5/21/10 6:12 AM GMT
यहाँ ऐसे लोगों की कमी नहीं जो प्रायः हर मुद्दे पर अपने दोहरे मानदण्ड रखते हैं.एक तरफ तो वे जनगणना में जाति के बारे में जानकारी माँगी जाने का विरोध करते हैं और दूसरी तरफ भारत की चारों पीठों के शंकराचार्यों की नियुक्ति में केवल ऊँची जाति का जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं.वे जातियों को खत्म भी नहीं करना चाहते और उनके सही आँकड़े भी दुनिया के सामने नहीं लाना चाहते.वे गरीबों और अमीरों के लिए जारी दोहरी शिक्षानीति का समर्थन करते हैं पर समान शिक्षा नीति के नाम पर चुप्पी साध लेते हैं.अब ऐसा नहीं चलेगा.
सिद्धार्थ कौसलायन आर्य ग्रेटरनौएडा-भारत 

Added: 5/21/10 5:44 AM GMT
कहते हैं-'जाति ना पुछो साधू की'
मगर समाज में साधू बचे ही कितने हैं. सरकार अगर इस डाटा का उपयोग करे तो सही है. नहीं तो राजनीतिक दल इसका इस्तेमाल किस तरह करेंगे, हम सभी जानते हैं.
arjun yadav moradabad 

Added: 5/21/10 5:41 AM GMT
इसकी सचमुच ही जरूरत है. भारतीय संविधान आरक्षण की बात करता है तो इसके लिए सांख्यिकी आंकड़ों की जरूरत पड़ेगी. हमें यह जानना होगा कि अलग-अलग जातियों में कितने लोग हैं. अगर आरक्षण का आधार जाति न होता तो फिर इस तरह के जनगणना की जरूरत नहीं थी. सही आंकड़े के अभाव में सरकार कैसे जाति आधारित आरक्षण नीति लागू कर सकेगी? यह तर्क संगत नहीं होगा.
abhinaw kumar singh vellore 

Added: 5/21/10 5:13 AM GMT
जाति न पूछो साधू की. शुरुआत तो अच्छी थी, पर अंत दर्दनाक अंत के साथ हुआ.
arjun yadav moradabad 


Added: 5/21/10 4:05 AM GMT
यह बहुत जरूरी है. आंकड़ों से स्पष्ट हो जाएगा, नहीं तो नेता और समाज के स्वार्थी तत्व इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते रहेंगे. हमारा भारतीय समाज जाति में ही पूरी तरह डूबा हुआ है. जाति से ही इनकी सोच शुरू होती है. ये जाति पर ही जीते हैं, जाति पर ही मरते हैं.
harsh dev joshi dehradun 

Added: 5/20/10 11:45 PM GMT
जाति की गणना हो तो इतनी बुरी बात नहीं है, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि इन आंकड़ों को "विकास" के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. ये वोट बैंक की गणना के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.
Rahul Singh Rathaure Delhi 

Added: 5/20/10 10:11 PM GMT
मेरे हिसाब से तो नहीं होना चाहिए.
om germany 

Added: 5/20/10 9:55 PM GMT
मेरा तो मानना है कि जनगणना में जाति की जानकारी की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि सारा भारत एक है और हम सब भारतीय हैं. जाति हमें हमेशा एक दूसरे से बांटती है.
Gautam kumargohda rupauli samastipur भारत


Added: 5/20/10 6:06 PM GMT
जाति धर्म का कोई भी कॉलम नहीं होना चाहिए. ये आंकड़े राजनेताओं के काम की चीज़ होती है. प्रधानमंत्री को भी भरोसा नहीं देना चाहिए.








ज़ात-पात ये सब बेकार की बातें हैं. सरकार को ये समझना चाहि कि जिसको हटाने के लिए हम वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं उसको फिर से देश में महत्व देना ग़लत बात है. सरकार को ये चाहिए कि वह ज़ात-पात का मुद्दा न उछाल कर जनगणना में धर्म को प्राथमिकता दे.
NEERAJ KUMAR SONI SITAPUR




Added: 5/20/10 5:44 PM GMT
भारत और हिंदू समाज को बांटने की ये महापापी नीति हमारे नेताओं की निंदनीय सोच को दर्शाती है. इसके दूरगामी ख़राब प्रभाव पड़ेंगे.
anil prakash pandesharjah संयुक्त अरब अमीरात




Added: 5/20/10 4:03 PM GMT
जाति आधारित जनगणना करना भारतीयों को जाति आधारित समाज में बांटना है जो अंग्रेज़ लोग किया करते थे. ये भारत की एकता को बांटना है.
BHAGVAN SINGH YADAV BHUJ GUJRAT 




Added: 5/20/10 3:58 PM GMT
हम सब भारतीय हैं और भारत में विभिन्न संस्कृति के लोग बसते हैं और अगर हम सब अपनी जाति भारतीय लिखेंगे तो यह कितने गर्व की बात होगी. लेकिन हमारे नेता इस बात को नहीं समझते, वो तो अपनी रोटी सेंकना चाहते हैं. अगर हम अपने देश की प्रगति चाहते हैं तो वहां जातिवाद की कोई जगह नहीं है. हम अमरीका और ब्रिटेन से सीख ले सकते हैं.
shripal sharma lamiya sikar raj. bharat 




Added: 5/20/10 3:10 PM GMT
आज जो जातियों को लेकर जनगणना हो रही है उससे कोई फ़ायदा कहीं आस-पास भी नहीं दिखाई दे रहा है. क्योंकि जाति जनगणना करने से भारत में ग़रीबी किसी क़ीमत पर ख़त्म होती नहीं दिखाई दे रही है. क्योंकि जातिवाद का खेल बिहार और उत्तर प्रदेश में यादव बंधुओं के ज़रिए खेला जा रहा है. जिससे वहां की जनता की हालत दयनीय है और वह किसी से छुपी हुई नहीं है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि सरकार गणना करा कर यह खेल पूरे भारत में खेलना चाहती है.
himmat singh bhati jodhpur 




Added: 5/20/10 2:55 PM GMT
भारत में हो रही जनगणना में जाति को शामिल करने में कोई बुराई नहीं है,क्योंकि इससे भारत की असली तस्वीर सामने आएगी.भारत के विकास में इन आंकड़ों का इस्तेमाल किया जा सकता है,आखिर जिनके लिए योजनाएं बनानी है उसकी जानकारी होनी ही चाहिए. जाति की सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता,क्योंकि बच्चे के जन्म से पहले ही उसकी जाति निर्धारित हो जाती,रही इसके विरोध की बात तो वही लोग इसका विरोध कर रह हैं जिन्होंने सबसे ज्यादा जातिवाद फैलाया है.और आने वाले समय में उन्हें इससे परेशानी हो सकती है इसलिए विरोध करते है.
Mithilesh kumar Singh Bokaro Steel City, Jharkhand 




Added: 5/20/10 2:46 PM GMT
जाति के आधार पर हम गिन लिए जाएंगे तो देश विभाजित हो जाएगा, जातिवाद बढ़ जाएगा. नेता लोग अपनी रोटियां सेकेंगे. देश पिछड़ जाएगा आदि-आदि. वाह क्या बचकाने तर्क हैं. जातिवाद चाहे बुरा हो घृणित हो, पिछड़ेपन की निशानी हो परंतु वह समाज की एक सच्चाई भी है. हम पशुओं को गिनते हैं, क़ैदियों को गिनते हैं तब कोई क़हर नहीं टूटता. इस आशंका में कि सब बुरा होगा जातिगत आधार पर जनगणना क्यो रुकवा रहे हैं. जो इससे असहमत है वह अपनी जाती 'भारतीय' लिख दे.
Prem Verma Lalakhedi, Sehore (MP)




Added: 5/20/10 1:48 PM GMT
हाँ, पुछना चाहिए. वरना निम्न जाति व ऊंची जाति का पता केसे चलेगा.
अगर नहीं पुछना है तो जात-पात को खत्म कर देना चाहिए.आऐ दिन इसपर नेता लोग बोलते रहते हैं. सभी को सामान्य जाति मैं शामिल करदेना चाहिए.
ताकि नेताओं को जात-पात पर शोर-शराबा करने का मौक़ा ही ना मिले.
विक्रम बैनिवाल भटटु(फतेहाबाद हरिय़ाणा)




Added: 5/20/10 1:03 PM GMT
नहीं
Sumit Gurgaon 




Added: 5/20/10 12:35 PM GMT
जब जाति इतनी बुरी चीज़ है तो आप इसे खत्म करने की पहल क्यों नहीं करते हो.जब जाति के नाम पर दूसरों को को दबाकर उनका हक खाते रहे तब ठीक था,अब वे अपना हक मागने लगे तो जाति बुरी गई.फिर भी आप जाति को सिर्फ छिपाने की बात करतें हैं, मिटाने की नहीं.ऐसा क्यों?
सिद्धार्थ कौसलायन आर्य ग्रेटर नौएडा-भारत 




Added: 5/20/10 12:20 PM GMT
सरकार का फ़ैसला सही नहीं है. इसके कारण समाज बरबाद हो जाएगा. आरक्षण के बाद से युवाओं को काफ़ी परेशानी का सामना है. इससे हम लोगों की समस्याएं बढ़ेंगी. जागो भारत जागो.
ashish kanpur




Added: 5/20/10 12:02 PM GMT
हां. इसके दो कारण हैं.
(1) आप किसी समुह के लिए कोई कोटा किस प्रकार तय करेंगै.
(2) कोई कैसे जानेगा कि कोटा सिस्टम चल रहा है और लोगों की मेहनत की कमाई का सदुपयोग हो रहा है.
याद रहे कि ये स्कूल और कॉलेज लोगों के पैसों पर चलते हैं जहां कुछ लोगों के दाख़िले कोटे के तहत होते हैं.
Gajokhar बनारस 




Added: 5/20/10 11:28 AM GMT
एक बात तो तय है किऔर कुछ हो या न हो पर राजनीतिक दुकानदारों की दुकानदारी चलाने मे आसानी हो जाएगी.वैसे इस बात का इंतजार तो हमे भी है कि,1931ई. के बाद से लेकर अभी तक जातीय समिकरण मे क्या उतार-चढाव रहा है? लेकिन फिर भी मै बुद्धिजीवियों से आशा करूंगा कि इसे रोको,जाति के समिकरण को यूं आगे बढने न दो. नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब ये स्वार्थी नेता अपनी राजनीतिक दुकान चलाने के लिए इस देश की अखंडता को ही खतरे मे डाल देंगे.जब देश मे सर्वमान्य लोकतंत्र है तो ये जातीय समिकरण क्यों ?
Dilip Mishra Mumbai 




Added: 5/20/10 11:28 AM GMT
जिनको जाति के आधार पर सदियों से फ़ायदा मिला उनको अपनी जाति बताने से कोई ऐतराज़ नहीं होना चाहिए, बल्कि उन्हें गर्व का अनुभव होगा. लेकिन जो ज़ात-पात के सताए लोग हैं हर गाली के नाम पर ज़ात बना दी है वो कैसे बताएंगे अपनी ज़ात? ये सब ख़त्म होना चाहिए.
rajan delhi 




Added: 5/20/10 11:20 AM GMT
भारत में पाखंड बहुत है.यही पढ़े लिखे सभ्य समाज वाले जाति और गोत्र के आधार पर विवाह की वकालत करते हैं. जनगणना में धर्म पूछा जाता है तो इन्हें कोई आपत्ति नहीं. चुनावों में प्रत्याशियों का चयन व मतदान तक में जाति एक बड़ी वजह बनती है. परन्तु जैसे ही कुछ तथाकथित बड़ी जातियों को खतरे का आभास हुआ, इन्हें जाति में संकीर्णता दिखने लगती है. जाति आधारित नीतियां बनायी गई हैं. उन्ही नीतियों के परिणाम के विश्लेषण के लिए जाति आधरित गिनती की आवश्यकता है, तो इस पर आपत्ति क्यों?
Mohammad SaleemAllahabad भारटी 
पेज-४
जातिगत जनगणना! ये एक ऐसी उलझन है जो हर कोई सुलझाने में लगा है. अगर ये आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के हित को ध्यान में रखकर किया जाए तो संभवतः सही निर्णय साबित होगा. आज जब हम इतने विकसित हो गए हैं जहां कोई जातिगत भेद-भाव नहीं है, जैसे होटल, पार्क, रेल, बस या अन्य किसी भी जगह किसी की जाति कोई नहीं पूछता है. ये केवल राजनीति लाभ के लिए उठाया हुआ क़दम हैं जिसका दुरुपयोग रोकना चाहिए.
harendra singhjkpm songadh surat भारत

Added: 5/20/10 10:58 AM GMT
ये सब नेता लोगों की वोट-बैंक की राजनीति है, वरना ज़ात-पात का भारत में अब कोई विषय ही नहीं रहा. आज के समय में किसी को इतनी फ़ुर्सत कहां कि जाति के बारें में पूछे और समझे.
prabandha manigachi,darbhanga,bihar 

Added: 5/20/10 10:41 AM GMT
नहीं.
ranjit kumar riyadh saudiarbiya

Added: 5/20/10 9:42 AM GMT
धर्म, ज़ात-पात, भाषा भारत देश सरकार भरोसे नहीं वरन भगवान भरोसे चलता है, सत्ता हस्तांतरण के समय विंस्टन चर्चिल सिखा गए है कि सत्ता के लिए तीन तरह के झूठ बोलने होते हैं एक "झूठ" , दूसरा "सफ़ेद झूठ" ,तीसरा और सबसे कारगर "आँकड़ों का झूठ". तो जातिगत जनगणना की बहुत ज़रूरत है अगला बहुत बड़ा झूठ देश पर थोपने के लिए और जातिगत राजनीत को बढावा देकर देश का अगला विभाजन करवा कर सत्ता के लिए नए पद पैदा करने के लिए.
उम्दा सोच मुम्बई 

Added: 5/20/10 9:38 AM GMT
राजनीतिज्ञों ने बुद्धिजीवियों की सलाह और चिंता को दरकिनार करते हुए ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण फ़ैसला ले लिया है. राजनीतिज्ञों को क्या लगता है कि हम लोग अंग्रेज़ों के शासन करने के तरीक़ों को भूल गए हैं. बांटो और राज करो. क्यों नहीं हम लोग कर्म प्रधान समाज बना पा रहे हैं.

Added: 5/20/10 9:06 AM GMT
कोई भी काम किया जाए, उसके पीछे कुछ न कुछ उद्देश्य निहित होता है. अब जाति के आधार पर जनगणना करवाने के पीछे यूपीए सरकार के क्या हित हैं ये समझना ज़रूरी है. एक तरफ़ जनता बमुश्किल जाति से ऊपर उठने की कोशिश कर रही है. ऐसे हालात में जाति को ये मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. अन्यथा मुझे और आपको क्या फ़र्क़ पड़ता है कि किसी की जाति क्या है. सरकार को अपने स्तर से ये वर्गीकरण बंद करना होगा, तब जाकर राष्ट्र सही दिशा में बढ़ सकता है.
Aadarsh RathoreNew Delhi भारत

Added: 5/20/10 8:49 AM GMT
नहीं, जाति आधारित जनगणना ग़लत है. देश का संविधान जाति-धर्म के आधार पर किसी के लिए कोइ नीति नहीं बना सकता है. नीति के लिए अर्थिक आधारित फ़ैसले होते हैं. जातिगत सूचक शब्दों के इस्तेमाल से किसी को जेल हो सकती है. ऐसे में वोट के सौदागरों को आपनी कुर्सी के लिए देश में एक नई मुश्किल नहीं पैदा करनी चहिए.
भृपेंदर सिंह अबोहर 

Added: 5/20/10 7:59 AM GMT
जाति का मतलब अब बदल चुका है यदि जाति का अंकन करना ही हो तो अमीर और ग़रीब के अलावा तीसरी कोइ जाति नही है.
naval joshi uttrakhand 

Added: 5/20/10 6:52 AM GMT
नहीं, जातिगत जनगणना केवल समाज को बांट सकती है यह ससमाज को जोड़ नहीं सकती. यह केवल राजनीत में बने रहने के लिए समाज को तोड़ने की साज़िश है समाज को इससे दूर रहना चाहिए. इससे समाज का भला नहीं होने वाला है.
fareed ahmad hyderabad 

Added: 5/20/10 5:59 AM GMT
जाति के स्थान पर ग़रीबी या अमीरी के आधार पर जनगणना हो तो अच्छा है.
s k dabas delhi 

Added: 5/20/10 5:54 AM GMT
जहां तक मेरा मानना है जनगणना में जाति की जानकारी देने से समाज में ऐसा कोई विभाजन नहीं होने वाला है. पूरे देश में जहां पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए क़दम उठाए जा रहे हैं उसमें इस प्रकार के रिकॉर्ड से काफ़ी सहायता मिलेगी. जहां तक विरोध की बात है तो राजनेताओं के पास जाति और धर्म के आलावा आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं है न ही इन्हें जनता की समस्या से कोई सरोकार है, इन्हें तो बस अपनी रोटी सेंकनी है.
mehnaz salim gopalganj 

Added: 5/20/10 4:52 AM GMT
कबीर दास जी बहुत पहले ही कह गए है कि जाति न पूछों साधु की,पूछ लीजिए ज्ञान. हमारे नेताओं को गरीब़ी, अशिक्षा,बेकारी,बीमारी, आय से ज़्यादा महत्वपूर्ण जाति की जनगणना लगता है. जाति को जनगणना में शामिल करने से जातिवाद को बढ़ावा मिलेगा, लोग काम के आधार पर नहीं सिर्फ़ जाति के आधार पर चुनाव लड़ेगें. इसका भी लाभ आरक्षण की तरह केवल मलाईदार तबके को ही मिलेगा. हमें केवल एक विशेष जाति की समस्या के बजाय सभी पीड़ित और वंचित भारतीय की समस्याओं को देखना चाहिए. गाँधी जी ने ख़ुद इसका विरोध किया था.
लक्ष्मी कान्त मणिसाँड़ी कलां, सिद्धार्थनगर, यूपी, भारत

Added: 5/20/10 4:33 AM GMT
क्यों नहीं? जनगणना जाति के आधार पर होनी चाहिए क्योंकि जब मंदिर में जाने की बात होती है तो जाति आगे हो जाती है लेकिन जब अधिकार की बात आती है तो जाति भूल जाते हैं. दलित संख्या में ज़्यादा हैं लेकिन शोषण दलितों का ही ज़्यादा होता है.
Desh Bandhu Rohtak 

Added: 5/20/10 4:10 AM GMT
मेरे विचार से जनगणना में हर चीज़ की जानकारी होनी चाहिए. लेकिन इसे जातिवाद के रूप में लिया जा रहा है.
chunnu kumarOrro, Nawada, Bihar भारत

Added: 5/20/10 4:05 AM GMT
जनगणना में जातिगत संख्या सरकारी योजना को सुचारु रूपसे लागू करने में मदद करेगी. वहीं राजनेताओं को राजनीतिक खेल खेलने का पूरा मौक़ा मिलेगा. इससे सिर्फ़ ये होगा कि आम आदमी राजनेता, सरकार और मीडिया पर निर्भर करेगा.
rajesh kumar sundi bigha ekangar sarai नालंद
पेज-५
जाति के आधार पर जनगणना उचित नहीं. देश को जातिगत आधार पर बांटना संविधान की मूलआत्मा के विपरीत है. जनगणना एक नागरिक होने के नाते सिर्फ़ नागरिक की जानी चाहिए.
PRADEEP KUMAR MISHRA HYDERABAD

Added: 5/20/10 1:08 AM GMT
देश को अगर सचमुच विकसित होना है तो ऐसे क़दम उठाने पड़ेंगे जिससे जातीय और सांप्रदायिक पहचान कम हो. हमारे कुछ राजनेता अपने तत्कालिक लाभ के लिए जातिवाद और संप्रदायवाद को बढ़ावा दे रहे हैं. हमारी वर्तमान सरकार को तो देश-हित से कुछ लेना देना नहीं है उसे तो बीस साल तक देश पर राज करना है, ठीक उसी तरह जिस तर जातिय जनगणना के बड़े पैरूकार लालू जी ने बिहार में 15 वर्षों तक किया और जिसका मूल्य बिहार हमेशा चुकाता रहेगा.
braj kishore singhhajipur, vaishali, bihar भारत

Added: 5/20/10 1:01 AM GMT
अगर कुछ लोग जाति के आधार पर जनगणना कराना चाहते हैं तो राजनेताओं के लिए यह शर्मनाक बात है. इससे भारत के लोगों में भेद-भाव पैदा होगा. हमें जाति की जगह भारतवासी लिखना चाहिए ताकि कोई हम लोगों में भेदभाव न पैदा कर सके.
S.S,GUPTA TORONTO - CANADA 

Added: 5/20/10 12:35 AM GMT
मेरे हिसाब से नेता लोग अपनी खिचड़ी पकाने के लिए यह किया है. कौन सी जाति के ज़्यादा वोटर होंगे उसको बहलाने फुसलाने के लिए ये कर रहे हैं. इसमें एक आम आदमी जो जाति के आधार पर पिछड़ा नहीं है लेकिन वह आर्थिक रूप से पिछड़ा हो तो उसके साथ अन्याय होगा. मेरा एक दोस्त जो निम्न जाति से आता है वो स्पलेंडर से साइकल लेने जाता है, जो सरकार देती है. और एक दोस्त ब्राह्मण है जिसको दो जून की रोटी नहीं मिलती. वो बेचारा पैदल जाता है और उसे साइकल नहीं मिलती क्योंकि वह जाति से निम्न वर्ग में नहीं आता.
mehul joshibilimora भारत

Added: 5/19/10 10:52 PM GMT
समाज को विभाजित करेगा.
harbans lal U.S.A.

Added: 5/19/10 10:16 PM GMT
हमारी पूर्वी संस्कृति के हिसाब से ज़ात-जति का वर्णन करना आवश्यक है.
srdhakal artesia usa 

Added: 5/19/10 8:22 PM GMT
जाति, जनजाति, गोत्र, नक्षत्र सभी को 2011 की जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए. अगर हमारे देश की जनता और नेता यही चाहते हैं तो जनगणना में सभी कुछ होना चाहिए.
Sunil Pandey California

Added: 5/19/10 7:51 PM GMT
क्यों नहीं !!!!!!!!!!!!
Nick Montreal Canada

Added: 5/19/10 7:24 PM GMT
भारतीय नेताओं ने कब भारत विभाजन की कोशिश नही की है अब इसी में क़दम-ताल करते हुए देश में जनगणना में जाति की जानकारी कर देश में अशांति फैलाने का काम कर रहे है. हक़ीक़त यह कि जनगणना सिर्फ़ लिंग पर होनी चाहिए न कि जातिवाद पर. ये बेईमान नेता देश की सनसद में बैठ कर जनता की भलाई पर तो हंगामा नही कर सकते लेकिन देश में जातिवाद बढ़े, भाईचारा ख़त्म करने पर हंगामा करते है. इससे इनका अपना फ़ायदा होता है. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ जनहित याचिका दायर करा कर तुरंत रोक अदालत दारा लगानी चाहिए ताकि देश में जाति से पहचान ना हो.
SHABBIR KHANNA RIYADH( SAUDIA ARABIA )

Added: 5/19/10 7:10 PM GMT
जो समाज पहले ही विभाजित है वह और क्या विभाजित होगा? इसलिए यह कोई यथार्थवादी तर्क नहीं बनता. उपरी स्तर पर हम भले ही यह न मानें लेकिन सच्चाई यही है, जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. जिन दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को आंकड़ों की उपलब्धता नहीं होने से लटकाया जाता रहा है, यह बंद होगा. इसकी तो कोई उम्मीद करना व्यर्थ है. लेकिन अब उन्हें अधिक समय तक बेवक़ूफ़ नहीं बनाया जा सकता.ड र यह है कि कहीं यह जातिवादी राजनीति का गढ़ बनकर न उभर पड़े. तब जातिगत ढंगसे इससे बचना कठिन हो जाएगा.

Added: 5/19/10 6:41 PM GMT
मेरे विचार से सरकार को जनगणना में जाति की जानकारी नहीं मांगनी चाहिए. इसके विपरीत सरकार को अमीर और ग़रीब लोगों की संख्या का पता लगाना चाहिए. इसी दौरान सरकार को चाहिए कि वह हर नागरिक को एक अलग आईडी जारी करे. लोगों के नाम से उनका टाइटल हटा दिया जाए, ताकि कुछ समय बाद देश में कोई भी जाति न हो. चुनाव में वोट आईडी नंबर के हिसाब से पड़े, जिससे पारदर्शिता भी बनी रहेगी.
V.K. Tripathi Riyadh

Added: 5/19/10 5:31 PM GMT
जनजाति की गणना करना सही बात है, ज़्यादातर दुनिया के विकसित देशों में जनगणना में सभी तरह की गणना होती है, हर शहर और राज्य की आबादी की पूरी स्थिति उपलब्ध होती है, जातवाद को बढ़ावा देकर राजकीय पक्षों नें देश का बटवारा किया है. लेकिन देश की उन्नति के लिए और सही स्थिति की जानकारी के लिए यह गणना बहुत ज़रूरी है. देश की उन्नति के लिए जनगणना को ग़लत तरीक़े से नही सोचना चाहीए.

Added: 5/19/10 4:28 PM GMT
भारत में जाति को लेकर विवाद नया नहीं है, जनगणना में जाति को लेकर भी सिर्फ बवाल ही किया जा रहा है. समाजिक संगठन जो ये मसाला उठा रहे हैं, उनको जानना चहिए कि अब वर्तमान समाज में लोगों की पहचान काम के आधार पर होती है, आपको अगर रात 10 बजे रिक्शा लेकर जाना है तो, आप रिक्शेवाले की जाति नहीं पूछते है अपने काम के लिए उससे अनुनय विनय करते है, राजनीति या कोई सामाजिक संगठन, जातिप्रथा को उस तेज़ी से ख़त्म नहीं कर सकता है जो सिर्फ़ आपके किसी भी प्रकार से क़ाबिल बन कर पूरा हो सकता है.
मुकेश भारती गौचर (उत्तराखंड)

Added: 5/19/10 4:25 PM GMT
जब आरक्षण के लिए जाति पूछी जाती है तो जनगणना में क्यों नहीं.
Rakhi Delhi 

Added: 5/19/10 4:16 PM GMT
जनगणना में जाति के बारे में जानकारी बिल्कुल नहीं मांगी जानी चाहिए. क्योंकि इससे जातिगत भेदभाव और बढ़ेगा और जाति के आधार पर राजनीति शुरू हो जाएगी. सरकार को जाति के आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर जनगणना करवानी चाहिए जिससे सभी लोगों को किसी योजना का लाभ मिलेगा.
ishwar tiwari bilaspur, chhattisgarh 








जाति के आधार पर जनगणना उचित नहीं. देश को जातिगत आधार पर बांटना संविधान की मूलआत्मा के विपरीत है. जनगणना एक नागरिक होने के नाते सिर्फ़ नागरिक की जानी चाहिए.
PRADEEP KUMAR MISHRA HYDERABAD 




Added: 5/20/10 1:08 AM GMT
देश को अगर सचमुच विकसित होना है तो ऐसे क़दम उठाने पड़ेंगे जिससे जातीय और सांप्रदायिक पहचान कम हो. हमारे कुछ राजनेता अपने तत्कालिक लाभ के लिए जातिवाद और संप्रदायवाद को बढ़ावा दे रहे हैं. हमारी वर्तमान सरकार को तो देश-हित से कुछ लेना देना नहीं है उसे तो बीस साल तक देश पर राज करना है, ठीक उसी तरह जिस तर जातिय जनगणना के बड़े पैरूकार लालू जी ने बिहार में 15 वर्षों तक किया और जिसका मूल्य बिहार हमेशा चुकाता रहेगा.
braj kishore singhhajipur, vaishali, bihar भारत





Added: 5/20/10 1:01 AM GMT
अगर कुछ लोग जाति के आधार पर जनगणना कराना चाहते हैं तो राजनेताओं के लिए यह शर्मनाक बात है. इससे भारत के लोगों में भेद-भाव पैदा होगा. हमें जाति की जगह भारतवासी लिखना चाहिए ताकि कोई हम लोगों में भेदभाव न पैदा कर सके.
S.S,GUPTA TORONTO - CANADA 





Added: 5/20/10 12:35 AM GMT
मेरे हिसाब से नेता लोग अपनी खिचड़ी पकाने के लिए यह किया है. कौन सी जाति के ज़्यादा वोटर होंगे उसको बहलाने फुसलाने के लिए ये कर रहे हैं. इसमें एक आम आदमी जो जाति के आधार पर पिछड़ा नहीं है लेकिन वह आर्थिक रूप से पिछड़ा हो तो उसके साथ अन्याय होगा. मेरा एक दोस्त जो निम्न जाति से आता है वो स्पलेंडर से साइकल लेने जाता है, जो सरकार देती है. और एक दोस्त ब्राह्मण है जिसको दो जून की रोटी नहीं मिलती. वो बेचारा पैदल जाता है और उसे साइकल नहीं मिलती क्योंकि वह जाति से निम्न वर्ग में नहीं आता.
mehul joshibilimora भारत




Added: 5/19/10 10:52 PM GMT
समाज को विभाजित करेगा.
harbans lal U.S.A. 




Added: 5/19/10 10:16 PM GMT
हमारी पूर्वी संस्कृति के हिसाब से ज़ात-जति का वर्णन करना आवश्यक है.
srdhakal artesia usa 




Added: 5/19/10 8:22 PM GMT
जाति, जनजाति, गोत्र, नक्षत्र सभी को 2011 की जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए. अगर हमारे देश की जनता और नेता यही चाहते हैं तो जनगणना में सभी कुछ होना चाहिए.
Sunil Pandey California




Added: 5/19/10 7:51 PM GMT
क्यों नहीं !!!!!!!!!!!!
Nick Montreal Canada 




Added: 5/19/10 7:24 PM GMT
भारतीय नेताओं ने कब भारत विभाजन की कोशिश नही की है अब इसी में क़दम-ताल करते हुए देश में जनगणना में जाति की जानकारी कर देश में अशांति फैलाने का काम कर रहे है. हक़ीक़त यह कि जनगणना सिर्फ़ लिंग पर होनी चाहिए न कि जातिवाद पर. ये बेईमान नेता देश की सनसद में बैठ कर जनता की भलाई पर तो हंगामा नही कर सकते लेकिन देश में जातिवाद बढ़े, भाईचारा ख़त्म करने पर हंगामा करते है. इससे इनका अपना फ़ायदा होता है. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ जनहित याचिका दायर करा कर तुरंत रोक अदालत दारा लगानी चाहिए ताकि देश में जाति से पहचान ना हो.
SHABBIR KHANNA RIYADH( SAUDIA ARABIA )




Added: 5/19/10 7:10 PM GMT
जो समाज पहले ही विभाजित है वह और क्या विभाजित होगा? इसलिए यह कोई यथार्थवादी तर्क नहीं बनता. उपरी स्तर पर हम भले ही यह न मानें लेकिन सच्चाई यही है, जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. जिन दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को आंकड़ों की उपलब्धता नहीं होने से लटकाया जाता रहा है, यह बंद होगा. इसकी तो कोई उम्मीद करना व्यर्थ है. लेकिन अब उन्हें अधिक समय तक बेवक़ूफ़ नहीं बनाया जा सकता.ड र यह है कि कहीं यह जातिवादी राजनीति का गढ़ बनकर न उभर पड़े. तब जातिगत ढंगसे इससे बचना कठिन हो जाएगा.




Added: 5/19/10 6:41 PM GMT
मेरे विचार से सरकार को जनगणना में जाति की जानकारी नहीं मांगनी चाहिए. इसके विपरीत सरकार को अमीर और ग़रीब लोगों की संख्या का पता लगाना चाहिए. इसी दौरान सरकार को चाहिए कि वह हर नागरिक को एक अलग आईडी जारी करे. लोगों के नाम से उनका टाइटल हटा दिया जाए, ताकि कुछ समय बाद देश में कोई भी जाति न हो. चुनाव में वोट आईडी नंबर के हिसाब से पड़े, जिससे पारदर्शिता भी बनी रहेगी.
V.K. Tripathi Riyadh 




Added: 5/19/10 5:31 PM GMT
जनजाति की गणना करना सही बात है, ज़्यादातर दुनिया के विकसित देशों में जनगणना में सभी तरह की गणना होती है, हर शहर और राज्य की आबादी की पूरी स्थिति उपलब्ध होती है, जातवाद को बढ़ावा देकर राजकीय पक्षों नें देश का बटवारा किया है. लेकिन देश की उन्नति के लिए और सही स्थिति की जानकारी के लिए यह गणना बहुत ज़रूरी है. देश की उन्नति के लिए जनगणना को ग़लत तरीक़े से नही सोचना चाहीए.




Added: 5/19/10 4:28 PM GMT
भारत में जाति को लेकर विवाद नया नहीं है, जनगणना में जाति को लेकर भी सिर्फ बवाल ही किया जा रहा है. समाजिक संगठन जो ये मसाला उठा रहे हैं, उनको जानना चहिए कि अब वर्तमान समाज में लोगों की पहचान काम के आधार पर होती है, आपको अगर रात 10 बजे रिक्शा लेकर जाना है तो, आप रिक्शेवाले की जाति नहीं पूछते है अपने काम के लिए उससे अनुनय विनय करते है, राजनीति या कोई सामाजिक संगठन, जातिप्रथा को उस तेज़ी से ख़त्म नहीं कर सकता है जो सिर्फ़ आपके किसी भी प्रकार से क़ाबिल बन कर पूरा हो सकता है.
मुकेश भारती गौचर (उत्तराखंड) 
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जब आरक्षण के लिए जाति पूछी जाती है तो जनगणना में क्यों नहीं.
Rakhi Delhi 
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जनगणना में जाति के बारे में जानकारी बिल्कुल नहीं मांगी जानी चाहिए. क्योंकि इससे जातिगत भेदभाव और बढ़ेगा और जाति के आधार पर राजनीति शुरू हो जाएगी. सरकार को जाति के आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर जनगणना करवानी चाहिए जिससे सभी लोगों को किसी योजना का लाभ मिलेगा.
ishwar tiwari bilaspur, chhattisgarh 








जाति के आधार पर जनगणना उचित नहीं. देश को जातिगत आधार पर बांटना संविधान की मूलआत्मा के विपरीत है. जनगणना एक नागरिक होने के नाते सिर्फ़ नागरिक की जानी चाहिए.
PRADEEP KUMAR MISHRA HYDERABAD




Added: 5/20/10 1:08 AM GMT
देश को अगर सचमुच विकसित होना है तो ऐसे क़दम उठाने पड़ेंगे जिससे जातीय और सांप्रदायिक पहचान कम हो. हमारे कुछ राजनेता अपने तत्कालिक लाभ के लिए जातिवाद और संप्रदायवाद को बढ़ावा दे रहे हैं. हमारी वर्तमान सरकार को तो देश-हित से कुछ लेना देना नहीं है उसे तो बीस साल तक देश पर राज करना है, ठीक उसी तरह जिस तर जातिय जनगणना के बड़े पैरूकार लालू जी ने बिहार में 15 वर्षों तक किया और जिसका मूल्य बिहार हमेशा चुकाता रहेगा.
braj kishore singhhajipur, vaishali, bihar भारत




Added: 5/20/10 1:01 AM GMT
अगर कुछ लोग जाति के आधार पर जनगणना कराना चाहते हैं तो राजनेताओं के लिए यह शर्मनाक बात है. इससे भारत के लोगों में भेद-भाव पैदा होगा. हमें जाति की जगह भारतवासी लिखना चाहिए ताकि कोई हम लोगों में भेदभाव न पैदा कर सके.
S.S,GUPTA TORONTO - CANADA




Added: 5/20/10 12:35 AM GMT
मेरे हिसाब से नेता लोग अपनी खिचड़ी पकाने के लिए यह किया है. कौन सी जाति के ज़्यादा वोटर होंगे उसको बहलाने फुसलाने के लिए ये कर रहे हैं. इसमें एक आम आदमी जो जाति के आधार पर पिछड़ा नहीं है लेकिन वह आर्थिक रूप से पिछड़ा हो तो उसके साथ अन्याय होगा. मेरा एक दोस्त जो निम्न जाति से आता है वो स्पलेंडर से साइकल लेने जाता है, जो सरकार देती है. और एक दोस्त ब्राह्मण है जिसको दो जून की रोटी नहीं मिलती. वो बेचारा पैदल जाता है और उसे साइकल नहीं मिलती क्योंकि वह जाति से निम्न वर्ग में नहीं आता.
mehul joshibilimora भारत




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समाज को विभाजित करेगा.
harbans lal U.S.A. 



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क्यों नहीं !!!!!!!!!!!!
Nick Montreal Canada






Added: 5/19/10 7:10 PM GMT
जो समाज पहले ही विभाजित है वह और क्या विभाजित होगा? इसलिए यह कोई यथार्थवादी तर्क नहीं बनता. उपरी स्तर पर हम भले ही यह न मानें लेकिन सच्चाई यही है, जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. जिन दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को आंकड़ों की उपलब्धता नहीं होने से लटकाया जाता रहा है, यह बंद होगा. इसकी तो कोई उम्मीद करना व्यर्थ है. लेकिन अब उन्हें अधिक समय तक बेवक़ूफ़ नहीं बनाया जा सकता.ड र यह है कि कहीं यह जातिवादी राजनीति का गढ़ बनकर न उभर पड़े. तब जातिगत ढंगसे इससे बचना कठिन हो जाएगा.

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