जीओएम करेगा जातिगत जनगणना!कैबिनेट बैठक में हुई गरम बहस
सितंबर-अक्तूबर तक दे सकता है रिपोर्ट
सितंबर-अक्तूबर तक दे सकता है रिपोर्ट
निर्मल पाठक
नई दिल्ली। जातिगत जनगणना के पक्ष में कैबिनेट के बहुमत को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मसले के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कर सुझाव देने के लिए एक मंत्रिमंडलीय समूह के गठन का फैसला किया है। सरकार की ओर से अभी इस समूह की घोषणा नहीं की गई है पर माना जा रहा है कि प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में बनने वाले इस जीओएम में गृह मंत्री पी चिदंबरम, कृषि मंत्री शरद पवार, सामाजिक कल्याण मंत्री मुकुल वासनिक, आदिवासी कल्याण मंत्री कांतिलाल भूरिया और कानून मंत्री वीरप्पा मोइली को रखा जा सकता है।
जीओएम के गठन का सुझाव प्रणब ने रखा
सूत्रों के अनुसार, कैबिनेट की बुधवार को हुई बैठक में इस मसले पर गरमा गरम बहस के बीच जीओएम के गठन का सुझाव प्रणब ने ही रखा। उनका तर्क था कि जातिगत जनगणना काफी पेचीदा मसला है और कोई भी फैसला करने से पहले इसके संभावित परिणामों को भी ध्यान में रखना जरूरी है। प्रणब के पहले बोले चिदंबरम का मानना था कि जनगणना के इस दौर में जाति को शामिल करना काफी मुश्किल होगा। उनका सुझाव था कि जब यूआईडी योजना के तहत बायोमेट्रिक पहचान पत्र बनें उस समय जाति को गणना में शामिल किया जा सकता है। जनगणना के इस दौर में अभी मकान आदि संपत्तियों की गणना का काम चल रहा है। दूसरे दौर में व्यक्तियों की गणना होनी है। इसके बाद बायोमेट्रिक पहचान का काम शुरू होगा।
सर्वदलीय सहमति का उदाहरण भी रखा
चिदंबरम के इस सुझाव से बैठक में मौजूद ज्यादातर सदस्य सहमत नहीं थे। द्रमुक नेता व कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन तथा शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी ने यहां तक कहा कि जनगणना में जाति को शामिल किया जाना है, यह तय हो चुका है इसलिए हमें अब आगे की बात करनी चाहिए। मोइली और संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल की भी राय यही थी। दोनों का मानना था कि जब जाति हर जगह मौजूद है तब उसे नकारना पाखंड ही होगा। दोनों वरिष्ठ मंत्रियों ने संसद में इस मसले पर सर्वदलीय सहमति का उदाहरण भी रखा।
आनंद और सिब्बल के तेवर पहले से नरम
सूत्रों का मानना था कि लोकसभा में इस मसले पर प्रधानमंत्री की ओर से दिए गए आश्वासन के बाद कैबिनेट में भी जातिगत जनगणना के समर्थकों का हौसला बढ़ा है। कैबिनेट की पिछली बैठक में जातिगत जनगणना का विरोध करने वाले आनंद शर्मा और कपिल सिब्बल जैसे मंत्रियों के तेवर इस बार पहले से नरम थे। बैठक में चिदंबरम और वासनिक के बीच हलकी बहस भी हुई। चिदंबरम का कहना था कि बायोमेट्रिक पहचान प्रक्रिया पूरी होने के बाद सामाजिक कल्याण मंत्रालय जातिगत गणना का विश्लेषण कर सकता है। वासनिक इससे सहमत नहीं थे। सूत्र मान रहे हैं कि जीओएम सितंबर-अक्तूबर तक अपनी रिपोर्ट दे सकता है।
जातीय जनगणना के विरोधी पक्ष का तर्कः
-आरक्षण कोटे का फायदा उठाने के लिए ओबीसी, एससी-एसटी वर्ग में गणना कराने की आशंका
-निजी स्वार्थ और सियासी मकसद के लिए इसके आंकड़े का इस्तेमाल किया जा सकता है
- मंडल आयोग की तरह नए आंकड़ों के आधार पर संवैधानिक सीमा से आगे आरक्षण की मांग संभव
- सामाजिक-जातीय वैमनस्य का नया दौर शुरू होने का खतरा
- जनगणना कर्मचारियों को जाति पहचान दर्ज करने के तौर-तरीकों का प्रशिक्षण नहीं
- राज्यों के ओबीसी वर्ग की जातियों में एकरूपता नहीं, इसलिए सही आकंड़े पर पहुंचना कठिन
- जनगणना में प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं, इसलिए फर्जी तरीके से कोटा वर्ग में नाम दर्ज कराने का खतरा
जनगणना के पैरोकारों का तर्कः
- आजादी के बाद जाति आधारित गणना नहीं, इसलिए सही आंकड़े का पता नहीं
- जाति देश की हकीकत, इसलिए सही आंकड़े की जरूरत
- ताकि ओबीसी या एससी-एसटी को उनकी संख्या के हिसाब से मिले आरक्षण
नई दिल्ली। जातिगत जनगणना के पक्ष में कैबिनेट के बहुमत को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मसले के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कर सुझाव देने के लिए एक मंत्रिमंडलीय समूह के गठन का फैसला किया है। सरकार की ओर से अभी इस समूह की घोषणा नहीं की गई है पर माना जा रहा है कि प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में बनने वाले इस जीओएम में गृह मंत्री पी चिदंबरम, कृषि मंत्री शरद पवार, सामाजिक कल्याण मंत्री मुकुल वासनिक, आदिवासी कल्याण मंत्री कांतिलाल भूरिया और कानून मंत्री वीरप्पा मोइली को रखा जा सकता है।
जीओएम के गठन का सुझाव प्रणब ने रखा
सूत्रों के अनुसार, कैबिनेट की बुधवार को हुई बैठक में इस मसले पर गरमा गरम बहस के बीच जीओएम के गठन का सुझाव प्रणब ने ही रखा। उनका तर्क था कि जातिगत जनगणना काफी पेचीदा मसला है और कोई भी फैसला करने से पहले इसके संभावित परिणामों को भी ध्यान में रखना जरूरी है। प्रणब के पहले बोले चिदंबरम का मानना था कि जनगणना के इस दौर में जाति को शामिल करना काफी मुश्किल होगा। उनका सुझाव था कि जब यूआईडी योजना के तहत बायोमेट्रिक पहचान पत्र बनें उस समय जाति को गणना में शामिल किया जा सकता है। जनगणना के इस दौर में अभी मकान आदि संपत्तियों की गणना का काम चल रहा है। दूसरे दौर में व्यक्तियों की गणना होनी है। इसके बाद बायोमेट्रिक पहचान का काम शुरू होगा।
सर्वदलीय सहमति का उदाहरण भी रखा
चिदंबरम के इस सुझाव से बैठक में मौजूद ज्यादातर सदस्य सहमत नहीं थे। द्रमुक नेता व कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन तथा शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी ने यहां तक कहा कि जनगणना में जाति को शामिल किया जाना है, यह तय हो चुका है इसलिए हमें अब आगे की बात करनी चाहिए। मोइली और संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल की भी राय यही थी। दोनों का मानना था कि जब जाति हर जगह मौजूद है तब उसे नकारना पाखंड ही होगा। दोनों वरिष्ठ मंत्रियों ने संसद में इस मसले पर सर्वदलीय सहमति का उदाहरण भी रखा।
आनंद और सिब्बल के तेवर पहले से नरम
सूत्रों का मानना था कि लोकसभा में इस मसले पर प्रधानमंत्री की ओर से दिए गए आश्वासन के बाद कैबिनेट में भी जातिगत जनगणना के समर्थकों का हौसला बढ़ा है। कैबिनेट की पिछली बैठक में जातिगत जनगणना का विरोध करने वाले आनंद शर्मा और कपिल सिब्बल जैसे मंत्रियों के तेवर इस बार पहले से नरम थे। बैठक में चिदंबरम और वासनिक के बीच हलकी बहस भी हुई। चिदंबरम का कहना था कि बायोमेट्रिक पहचान प्रक्रिया पूरी होने के बाद सामाजिक कल्याण मंत्रालय जातिगत गणना का विश्लेषण कर सकता है। वासनिक इससे सहमत नहीं थे। सूत्र मान रहे हैं कि जीओएम सितंबर-अक्तूबर तक अपनी रिपोर्ट दे सकता है।
जातीय जनगणना के विरोधी पक्ष का तर्कः
-आरक्षण कोटे का फायदा उठाने के लिए ओबीसी, एससी-एसटी वर्ग में गणना कराने की आशंका
-निजी स्वार्थ और सियासी मकसद के लिए इसके आंकड़े का इस्तेमाल किया जा सकता है
- मंडल आयोग की तरह नए आंकड़ों के आधार पर संवैधानिक सीमा से आगे आरक्षण की मांग संभव
- सामाजिक-जातीय वैमनस्य का नया दौर शुरू होने का खतरा
- जनगणना कर्मचारियों को जाति पहचान दर्ज करने के तौर-तरीकों का प्रशिक्षण नहीं
- राज्यों के ओबीसी वर्ग की जातियों में एकरूपता नहीं, इसलिए सही आकंड़े पर पहुंचना कठिन
- जनगणना में प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं, इसलिए फर्जी तरीके से कोटा वर्ग में नाम दर्ज कराने का खतरा
जनगणना के पैरोकारों का तर्कः
- आजादी के बाद जाति आधारित गणना नहीं, इसलिए सही आंकड़े का पता नहीं
- जाति देश की हकीकत, इसलिए सही आंकड़े की जरूरत
- ताकि ओबीसी या एससी-एसटी को उनकी संख्या के हिसाब से मिले आरक्षण
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