डॉ.लाल रत्नाकर
सबको उम्मीद है मानसून सत्र से, पता नहीं क्या क्या लेकर आ रहा है . पर जिनको घबराहट है इस सत्र से वह देश भर के वो लोग है जो सोच रहे है की देश में एक नयी शुरुआत होने जा रही है अब ठीक से उनकी संख्या का आकलन का पता चल पायेगा. पर मानसून सत्र फिर उनको कहीं निराश करने का मन तो नहीं बना रहा है वरिष्ठ मंत्रियों के समूह ने इतने महत्त्व के मुद्दे को बहुत ही कम करके आँका है.
अब समय आ रहा है उन्हें फिर से स्मरण करने और कराने का जब प्रधानमंत्री संसद में दिये अपने वादे से मुकरने का प्रयास कर रहे होंगे और अपने स्वभाव के अनुरूप 'गाँधी' परिवार के वर्ताव और हित के विपरीत मन बना पाने की कहाँ हिम्मत जुटा रहे होंगे, भावी प्रधानमंत्री को यह एहसास कौन कराये की इस देश की बड़ी अवाम सदियों से इसी आना कानी का शिकार होती रही है, पर यहाँ के सत्तानसिन इसी आना कानी के चलते देश को गर्त की ओर धकेलते जा रहे है .
हर समझदार आदमी इस बात को जानता है की मुट्ठी भर लोग देश की दौलत के स्वामी बने हुए है जिनमे गरीबों के खूं पसीने की गाढ़ी कमाई है."पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह जी ने कहा था 'इस देश में कामगार कम और इंतजामकार ज्यादा है" यह बात आज भी प्रासंगिक है क्योंकि जो कुछ भी कांग्रेसी कर रहे है वह बिलकुल वही कर रहे है . भावी राजकुमार जी दलितों के घर जाना, खाना, उठना, बैठना व् उनके बीच होना क्या बताता है? दलितों को दलित बनाये रखने के अलावा क्या एसी कोई नीति नहीं है जिससे उन्हें इन्सान बनाया जा सके, भावी प्रधानमंत्री जी को बताना होगा की क्या दलितों को लुभाकर देश हथियाना चाहते है या उनके विकास के लिए भी कुछ है .
कमोवेश अन्य जातियों के सन्दर्भ में भी एसा ही है क्योंकि उनके भी विकास के लिए उनके पास कोई उपाय नहीं है, मनरेगा या अन्य योजना जो कुछ दिन पेट पालने की मोहलत देता है पर जीने के लिए केवल यही नहीं है. भावी प्रधानमंत्री जी के पिता जी ने कहा था केंद्र से १०० पैसा जाता है तो १५ पैसा ही गाँव या आम आदमी तक पहुचता है पर भावी प्रधानमंत्री जी जहाँ रात दिन एक किये हुए है वहीं बार बार रोते है की' प्रदेश की सरकार केंद्र का पैसा अन्यत्र लगा रही है या सही जगह नहीं लग रहा है जिससे उनकी योजनाये आम आदमी तक नहीं पहुँच रही है .
वर्तमान प्रधानमंत्री जी यह देश आपको किस रूप में देख रहा है क्या आपको पता है ...?
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