1 अक्तू॰ 2010

योध्या 
डॉ.लाल रत्नाकर
राम लला को भी बाट दिया न्यायालय ने, यह मामला इतना आसान नहीं कारोनों हिन्दुओं की मान्यताओं को एक टुकड़ा पकड़ा देना कितना न्याय संगत है यह बहुत ही अफसोस का मामला है, जो भी आया उसे ही एक टुकड़ा दे दिया मुसलमानों को फिर उलझा दिया .   
यदि यह तय है की बाबर आक्क्रनता था और उसने मंदिर तोड़कर  मस्जिद बनाया तो उसे न्यायालय को बाटने का हक़ कहाँ से आ गया. कल को भारत के गरीबों के हक़ हड़प कर कोई मुक़दमा कर दे तो कोर्ट उसे उसमे हक़ दे देगा यह कैसी व्यवस्था है .
बी.  बी.सी. हिंदी से साभार -
अयोध्या
अयोध्या के विवादित जगह का फ़ैसला आस्था के सवाल पर नहीं हो सकता





इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल को लेकर जो फ़ैसला दिया है वह राजनीतिक है, क़ानूनी नहीं.
सुप्रीम कोर्ट में यदि काबिल जजों के सामने यह फ़ैसला जाता है, तो ख़ासी संभावना है कि यह फ़ैसला उलट जाएगा. इस फ़ैसले का कोई आधार नहीं है.
विवादित ज़मीन के मालिकना या क़ानूनी हक़ किसके पास है वह इस बात से तय नहीं किया जा सकता कि रामचंद्र जी का जन्म कहाँ हुआ था, जन्म को लेकर लोगों में आस्था है या नहीं, चार सौ या पाँच सौ साल पहले वहाँ मंदिर था या नहीं.
आज इन बातों से मालिकाना हक़ का सवाल तय नहीं किया जा सकता. चार सौ, पाँच सौ साल पहले मंदिर था या नहीं उस बात से मालिकाना हक़ नहीं तय किया जा सकता.
कानून ये कहता है कि 30 साल से यदि किसी और का उस ज़मीन पर कब्ज़ा है और 30 साल तक आप उस पर अपना हक़ नहीं जता पाए तो आपका हक़ उस पर से ख़त्म हो जाता है.
ये सब सवाल क़ानून के नज़रिए से अप्रासंगिक है अदालत में ये सारे सवाल उठने ही नहीं चाहिए थे.
किसी की भवना के नज़रिए से यह एक सवाल भले हो, लेकिन अदालत की नज़र में यह सवाल नहीं है.
रामचंद्र जी का जन्म वहाँ हुआ था या नहीं इसका ज़मीन के मालिकाना हक़ से क्या लेना देना? यदि राजनीतिक फ़ैसला होता तो वे भले ही इस बात का ध्यान रखते, लेकिन ज़मीन को तीन हिस्सों में बांटने का फ़ैसला आधारहीन है.
प्रशांत भूषण
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील
(बीबीसी संवाददाता बृजेश उपाध्याय से बातचीत पर आधारित)फ़ैसला राजनीतिक है: क़ानूनी विशेषज्ञ

'मुसलमान ठगा-सा महसूस कर रहे हैं'

मुलायम सिंह यादव
यादव ने कहा कि फ़ैसले में आस्था को सबूतों से ऊपर रखा गया है और ये अच्छा संकेत नहीं है
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या मसले पर हाल की अपनी चुप्पी तोड़ते हुए उस पर ‘निराशा’ प्रकट की है.
एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए श्री यादव ने कहा है, “न्यायिक निर्णयों में आस्था को कानून एवं सबूतों से ऊपर रखकर दिया गया यह फैसला देश के लिए, संविधान के लिए और स्वयं न्यायपालिका के लिए अच्छ संकेत नही है.”
मुयालम सिंह यादव ने आगे कहा, “आगे चलकर इस निर्णय से अनेक संकट पैदा होंगे यही नहीं इस निर्णय से देश का मुसलमान ठगा सा है. पूरे समुदाय में मायूसी है.”
अपने बयान में यादव ने कहा कि यह मसला सुप्रीम कोर्ट जाएगा, ‘जहां सबूतों और कानून के आधार पर फैसला होगा और दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा’
यादव ने अपने बयान में वर्ष 1990 की याद दिलाई है, जब वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और पुलिस बलों ने विवादित मस्जिद पर चढाई करने वाले उग्र कारसेवकों पर गोलियाँ चलाकर इमारत को क्षतिग्रस्त होने से बचा लिया था.

अर्जुन से तुलना

न्यायिक निर्णयों में आस्था को कानून एवं सबूतों से ऊपर रखकर दिया गया यह फैसला देश के लिए, संविधान के लिए और स्वयं न्यायपालिका के लिए अच्छ संकेत नही है.
मुलायम सिंह यादव
यादव ने अपनी तुलना महाभारत के अर्जुन से की और कहा कि ‘ मुझे संविधान और कानून कि रक्षा के लिए अपने ही लोगों पर सुरक्षा बालों द्वारा गोलियाँ चलवानी पडी.’
वर्ष 1990 की इस घटना से मुलायम सिंह यादव को मुस्लिम समुदाय में बहुत लोकप्रिय हो गए थे, जबकि मंदिर समर्थक कट्टर हिंदू गुट उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ तक कहने लगे थे.
इसका परिणाम यह हुआ कि 1991 के विधान सभा चुनाव में यादव की पार्टी बुरी तरह हे हारी और उन्हें मात्र 29 सीटों पर संतोष करना पड़ा.
पिछले लोक सभा चुनाव में यादव ने बीजेपी के बागी कल्याण सिंह से हाथ मिला लिया था, जिनके मुख्यमंत्री रहते 1992 में विवादित मस्जिद तोड़ डाली गयी.
संवाददाताओं का कहना है कि मुलायम सिंह यादव अब मुस्लिम समुदाय का विश्वास वापस जीतना चाहते हैं और उनका यह बयान ‘भडकाऊ’ हो सकता है.

कोई टिप्पणी नहीं:

फ़ॉलोअर