24 मई 2012

जब यह जहाज डूबने के कगार पर खड़ा हो.-डॉ.लाल रत्नाकर

हो सकता है कि नेता जी ने कांग्रेस से मिलकर सही ही किया हों पर राजनितिक जानकर इसको ठीक नहीं कहेंगे, क्योंकि कांग्रेस पार्टी अब भारतीय पार्टी नहीं है यह अंतर्राष्ट्रीय पार्टी हो गयी है अतः अब कांग्रेस से कोई भारतीय यदि कोई उम्मीद करे तो बेमानी ही है - भ्रष्टाचार के मामले पर, महगाई के मामले पर कोई कंट्रोल यह पार्टी या उसकी सरकार लगाने जा रही है तो यह सोचना भी बेवकूफी ही होगी, क्योंकि इसमें लूटेरों ने अच्छे लोगों को किनारे लगा दिया है और इस कांग्रेस की नयी मालकिन की ऐसी ही इच्छा भी होगी, इसीलिए मेरा मानना है की नेता जी ने कांग्रेस के साथ नजदीकी दिखाकर दूरगामी परिणाम वाला काम नहीं किया हैं. और वो भी तब जब यह जहाज डूबने के कगार पर खड़ा हो.-डॉ.लाल रत्नाकर
अब पछताए होत क्या 
जब चिड़िया चुंग गयी खेत-

सीबीआई और आयकर से डराती है कांग्रेस: मुलायम

लखनऊ/ब्यूरो | Last updated on: February 7, 2013 12:07 AM IST

mulayam says congress scare cbi and income tax
सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने केंद्र सरकार और कांग्रेस पर लोगों को निराश करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस व केंद्र सरकार के पास सिर्फ दो मुद्दे हैं, सीबीआई के जरिये विपक्ष को धमकाना और इनकम टैक्स के बहाने आर्थिक आधार पर दबाना। दोनों एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है।

कांग्रेस को देश की चिंता नहीं। कांग्रेस के राज में महंगाई बेकारी और भ्रष्टाचार बढ़ा है। केंद्र की नीतियों से किसान बर्बाद हुआ है। उन्होंने कहा कि केंद्र से समर्थन वापसी पर पार्टी उचित समय पर निर्णय लेगी। मुलायम ने यह भी स्वीकार किया कि न्यूक्लियर डील पर केंद्र सरकार को बचाने से सपा का नुकसान हुआ है।

सपा मुखिया बुधवार को यहां पार्टी मुख्यालय पर कुछ न्यूज चैनल के सवालों का जवाब दे रहे थे। मुलायम ने कहा कि कांग्रेस सिर्फ एक परिवार की पार्टी है। कांग्रेस पर सिर्फ गांधी परिवार का शासन चलता है। उसकी कोई नीति नहीं है। न्यूक्लियर डील पर केंद्र सरकार को बचाने के कारण सपा को नुकसान हुआ।

सपा अगर केंद्र सरकार को नहीं बचाती तो सरकार चली जाती पर, देशहित में नुकसान उठाकर सपा ने केंद्र को समर्थन दिया। लोकसभा का चुनाव व्यक्ति नहीं मुद्दों के आधार पर होगा। तीसरा मोर्चा ताकतवर होकर उभरेगा और बहुमत मिलेगा। कहा कि देश की जनता भाजपा-कांग्रेस से मुक्ति चाहती है। चुनाव में दोनों दल धराशायी होंगे।

केंद्र में गैर भाजपा-गैर कांग्रेस की सरकार बननी चाहिए। सपा नीतियों पर चलती है और सांप्रदायिकता विरोधी है। उन्होंने कहा कि राम मंदिर व हिंदुत्व का मुद्दा अब चुनावी मुद्दा नहीं बन पाएगा। भाजपा को भी यह बात समझ में आ रही है।

प्रधानमंत्री बनने के बारे में अभी से क्या कहूं 
प्रधानमंत्री बनने के सवाल पर उन्होंने कहा कि इस बारे में अभी से कुछ नहीं कह सकता। उन्होंने कहा कि अखिलेश सरकार के कामकाज से वह खुश हैं। मुलायम ने दुख जताया कि वह चौधरी चरण सिंह के रहते मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। चौधरी साहब उन्हें 1977 में ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, पर कुछ कारणों से यह नहीं हो सका।
.........................................................( साथियों यह मैंने तब लिखा था जब नेता जी की नज़दीकियाँ 

कांग्रेस से दिखाई देने लगी थी, अंदरखाने क्या चलता है राजनीती में वह तो अलग ही है ! पर खुल्लम खुल्ला 

कांग्रेस का साथ करोरों लोगों की इक्षाओं के विपरीत था पर ..हम सोचते रहें उन्हें क्या फरक पड़ता है।)

अब सवाल यह है की सारी पार्टियाँ अपने आतंरिक संकटों की शिकार हैं शसक्त विरोध का सामना कर रही 
हैं। ऐसे में देश संभालने की हिम्मत करने का साहस जैसे भाजपा दिखाना शुरू किया है, उससे तो लगता है की जनता का बड़ा वर्ग भी यह मानता नजर आये की है तो यही बड़े दल की स्थिति में यह दल ही खड़ा भी हो 
सकता है !

नेताजी तीसरे मोर्चे की राजनीती करते हैं, तीसरा मोर्चा बनते बनते बिखर जाता है ! पुरे देश में यह घालमेल चल रहा है न तो वर्गीय राजनेताओं का कोई तालमेल है और न ही राष्ट्रिय सोच का। पारिवारिक राजनीती 'वंशवाद' के मायने बदल रही है राजनेता एक दुसरे को जिस तरह के आरोपों से घेरते हैं , पर वह भूल जाते हैं की वह तो स्वयं उन्ही बुराईयों में आकंठ डुबे हैं।)

जरा गौर करिए इस  खबर पर जो आज  अमर उजाला लिख  रहा है
 - रत्नाकर 

‘मुलायम को भोज में बुलाकर सरकार ने किया धोखा’

नई दिल्ली/अमर उजाला ब्यूरो
Story Update : Saturday, May 26, 2012    12:09 AM
Government cheat us to call mulayam in feast
मुलायम सिंह यादव को यूपीए सरकार के रात्रि भोज पर बुलाकर कांग्रेस ने भले ही राजनीतिक बढ़त हासिल कर ली हो लेकिन एक दिन बाद पेट्रोल के दाम बढ़ने से यह बढ़त धुलती दिख रही है। समाजवादी पार्टी ने इसे लेकर सरकार पर धोखा करने का आरोप लगाया है।
सपा का कहना है कि रात्रि भोज पर तो सरकार ने बुलाया मगर यह नहीं बताया कि वह अगले दिन जनता की कमर तोड़ देगी। यह सहयोगी दलों के साथ सीधा विश्वासघात है। यही नहीं, सपा ने संकेत दिया है कि उत्तर प्रदेश सरकार भी पेट्रोल पर लगने वाले टैक्स में अपनी तरफ से कुछ कटौती कर सकती है।
सपा के वरिष्ठ नेता मोहन सिंह ने अमर उजाला को कहा कि समाजवादी पार्टी को जब भी भोज में बुलाया गया है। वह हमेशा गई है। मगर इस बार फर्क इतना पड़ा कि सरकार ने अपने तीन साल का जश्न मनाने के ठीक अगले दिन भी पेट्रोल के बेतहाशा दाम बढ़ा दिए। इसकी भनक तक पड़ने नहीं दी।
यूपीए सरकार ने सहयोगी दलों और बाहर से समर्थन दे रहे दलों के साथ सीधा विश्वासघात किया है। उन्होंने कहा कि दाम बढ़ाना गरीब जनता के साथ तबाही का सबब है। तीन करोड़ की कार वाला भी और दो पहिया चलाने वाला भी बढ़ी हुई एक ही कीमत चुका रहा है। यह कोई बात नहीं।
मोहन सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार को इस मसले पर सर्वदलीय बैठक बुलाकर विचार करने के बाद ही वृद्घि करनी चाहिए थी। मोहन सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार को कुछ करना ही पड़ेगा। क्योंकि दिल्ली और उत्तर प्रदेश में दामों में इतना ज्यादा अंतर है। ऐसे में दिल्ली की सीमा से जुड़े पेट्रोल पंप तो खाली हो जाएंगे और साथ ही राज्य को वैट का भी नुकसान होगा। व्यावसायिक गतिवधियां भी प्रभावित होगी।
.........................................................
अतः अब  यदि राजनितिक  चेतना  सपा के पास  नहीं है  तो  यह  समझना चाहिए  की  उत्तर  प्रदेश  सरकार  बदलाव नहीं  यथास्थिति की  सरकार हो जायेगी  जो किसी तरह काम चलाऊ  सरकार  जैसा  काम  करेगी  और  जनता का विश्वास  खो देगी की यह कोई  बड़ा  परिवर्तन  भी करने जा रही है .
आज  जो भी इस  सरकार  के आस पास  हैं सबके सब किसी न  किसी  चौकड़ी से घिरे हैं अस्तु  उनके निरपेक्ष उद्येश्य न होकर समनानतर सर्कार चलाने  के हैं .

पांच साल में बदल देंगे यूपी की तस्वीर: अखिलेश

कन्नौज/एजेंसी
Story Update : Tuesday, June 05, 2012    3:16 PM
will change the face of UP in 5 years Akhilseh
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि ‘‘आप सबने बजट देखा होगा .. समाजवादी पार्टी सरकार ने चुनाव घोषणा पत्र में पार्टी के सभी वादों को तीन महीने में पूरा करके दिखा दिया है। हमारे पास अभी पांच साल का समय है .. यह समय बहुत होता है .. हम प्रदेश की तस्वीर बदल देगे और हमें भरोसा है कि पांच साल बाद आप हमें पास करके पांच साल का समय और देंगे।’

मुख्यमंत्री अखिलेश मंगलवार को कन्नौज लोकसभा सीट के लिए 24 जून को होने वाले उपचुनाव में पार्टी उम्मीदवार और पत्नी डिम्पल यादव के पक्ष में जनसभा को संबोधित कर रहे थे।

गौरतलब है कि अखिलेश वर्ष 2004 में पिता मुलायम सिंह यादव के इस्तीफे के बाद हुए उपचुनाव में पहली बार कन्नौज से ही लोकसभा पहुंचे थे, उसके बाद से वे लगातार इस सीट पर चुनाव जीतते रहे है और यह उपचुनाव भी प्रदेश का मुख्यमंत्री बन जाने के बाद उनके इस्तीफे के कारण हो रहा है।

अखिलेश ने उनके ही इस्तीफे के बाद वर्ष 2009 में फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में पार्टी उम्मीदवार एवं पत्नी डिम्पल यादव की हार का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘पहली बार का अनुभव अच्छा नहीं था.. तब कन्नौज के लोगों ने कहा था कि अगर यहां से चुनाव लड़ा होता तो वह ‘डिम्पल’ लोकसभा में होती।

हम चाहते है कि इस बार आप जीत का एक नया इतिहास रचते हुए इन्हें भारी मतों से चुन कर भेजें। ’’ यह याद दिलाते हुए कि कन्नौज के लोगों ने उन्हें सबसे कम उम्र में लोकसभा के लिए चुन कर भेजा था और प्रदेश के लोगो ने उन्हें सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया है, अखिलेश ने कहा, ‘‘प्रदेश में आदर्श आचार संहिता लागू है, ऐसे में मेरे यहां आने पर मीडिया सवाल खड़े कर सकता है, इसलिए डिम्पल का चुनाव यहां की जनता को ही लड़ना और जीतना है।’’

उन्होंने कहा कि हालांकि अगले लोकसभा चुनाव 2014 में होने है और इस लोकसभा का बहुत कम कार्यकाल ही बचा है मगर यहां से पार्टी को ऐतिहासिक जीत मिलनी चाहिए।

अखिलेश ने प्रदेश में व्याप्त बिजली संकट के लिए पूर्ववर्ती बसपा सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि एक भी बिजली कारखाना नहीं लगाया। उन्होंने कहा, ‘‘हम प्रदेश में विद्युत उत्पादन को बढाने की दिशा में काम कर रहे है और हमारी कोशिश होगी कि स्थिति में तेजी से सुधार आये। आप लोग परिवर्तन महसूस कर रहे होंगे, क्योकि अपको पहले से ज्यादा बिजली मिल रही होगी।’’

इस दरिया दिली का मकसद क्या है नेता जी ?
---------------------------------------------------
(आप जिसको समर्थन देने जा रहे हैं वे सदियों से आपके मार्ग अवरूद्ध करते आये हैं)

मुलायम ने इस तरह धोया तेरह साल पुराना ‘विश्वासघात’

धीरज कनोजिया/नई दिल्ली
Story Update : Saturday, June 16, 2012    12:13 AM
mulayem singh washed 13 year old disloyalty
अचानक यूटर्न की सियासत करने वाले मुलायम सिंह यादव ने 1999 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ किए ‘विश्वासघात’ का दाग आखिरकार धो लिया है। प्रणब मुखर्जी पर सहमति की मोहर लगाकर समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ पुराने कटु अनुभवों को खत्म करने की भी कोशिश की है।

भले ही मुलायम की दरियादिली कांग्रेस के हाथ पांव फूलने और तमाम वायदे देने के बाद ही सामने आई हो। मगर तारणहार की भूमिका फिर निभाकर उन्होंने सरकार और कांग्रेस की दरकती साख की मरम्मत कर यूपीए गठबंधन को जीतने का सुनहरा मौका दिया है।

1999 के कड़वे अनुभव को सोनिया गांधी शायद आज तक नहीं भूल पाई होंगी। उस समय सियासी पारी की शुरुआत कर रही सोनिया गांधी मुलायम सिंह के समर्थन के दम पर राष्ट्रपति भवन अपने नेतृत्व में कांग्रेस नेतृत्व की गठबंधन सरकार बनाने का दावा कर आई थीं।

मगर उनके घर लौटने से पहले ही मुलायम ने पाला बदलते हुए समर्थन देने से साफ इंकार कर दिया था। उस समय मुलायम के 20 सांसद थे। इसी विश्वासघात का परिणाम था कि 2004 में कांग्रेस को जब एक बार गठबंधन सरकार बनाने का मौका मिला, तो 39 सांसदों की ताकत लेकर बैठे मुलायम सिंह से उन्होंने दूरी बनाना ही मुनासिब समझा।

हालांकि 2008 आते आते परमाणु समझौते के मसले पर जब वामपंथी दल कांग्रेस की यूपीए सरकार गिराने पर आमदा हो गए तो मुलायम ने पहली बार खुद पर लगे विश्वासघात के आरोप को धोने की कोशिश की। उन्होंने अपने सांसदों के समर्थन के बल पर सरकार को संजीवनी दे डाली और यूपीए सरकार 2009 तक अपना कार्यकाल पूरा कर पाई।

मगर तब भी मुलायम पर भरोसा करने में कांग्रेस हिचकचाहट दिखाई। लिहाजा वह उनके बाहर से समर्थन लेकर ही काम चलाना भलाई समझ रही है। दूसरी ओर मुलायम सिंह कांग्रेस के लगातार तारणहार बनने की भूमिका निभा रहे हैं।

संप्रग सरकार के दूसरे कार्यकाल के तीन साल के शासनकाल में ससंद में ऐसे कई बड़े मौके आए। जब उनके सहयोगी पीछे हट गए लेकिन मुलायम सिंह ने समर्थन देकर सरकार की लाज बचाई। महंगाई और भ्रष्टाचार के मसले पर विपक्ष की ओर से लाए गए कामरोको प्रस्ताव पर सपा ने कांग्रेस का खुलकर साथ दिया।

लोकपाल विधेयक के मसले पर फजीहत झेल रही सरकार को राहत देते हुए सपा ने खुद की ओर से ही इसे टालने का दांव खेल दिया। जब जब ममता बनर्जी सरकार के लिए संकट पैदा करती रही हैं। तब तब मुलायम सिंह ही ऐसे एकमात्र बाहरी सहयोगी हैं, जोकि खुलकर कह रहे हैं कि हम सरकार को गिरने नहीं देंगे।

जागरण से -
सोनिया ने मुलायम-ममता को किया अलग

Jun 16, 01:40 am
नई दिल्ली [राजकेश्वर सिंह]। सपा का मन वैसे तो शुरू से प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति के पद पर देखने का था, फिर भी कांग्रेस की तरफ से उसकी अनदेखी उस पर भारी पड़ गई थी। ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव ने मिलकर राष्ट्रपति पद के लिए कलाम, मनमोहन और सोमनाथ चटर्जी के नाम का एलान क्या किया कि कांग्रेस के हाथ-पांव ही फूल गए। सपा से रिश्तों को पटरी पर लाने की कमान भी खुद सोनिया को संभालनी पड़ी। सोनिया को मुलायम को मनाने में समय जरूर लगा, लेकिन आखिर में वह प्रणब के नाम पर मान गए।
राष्ट्रपति चुनाव में सपा की भूमिका को लेकर पहली बार कांग्रेस की आंख तब खुली, जब मुलायम ने बुधवार को ममता के साथ प्रेस कांफ्रेंस में कलाम समेत तीन नामों का एलान किया। प्रेस कांफ्रेंस के बाद तनाव में आई कांग्रेस के रणनीतिकारों ने महज कुछ घंटों के भीतर ही मुलायम को मनाना शुरू कर दिया। देर रात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ उनकी बैठक तक तय हो गई।
सूत्रों की मानें तो बुधवार देर रात सोनिया से हुई मुलाकात में मुलायम ने कांग्रेस की तरफ से हो रही अनदेखी का सवाल उठाया। यहां दोनों के बीच बातें तो बहुत हुई, लेकिन नतीजे मुकाम तक नहीं पहुंचे। वजह शायद यह रही कि बैठक में सोनिया के अलावा और भी रणनीतिकार मौजूद थे। बात अधूरी जरूर रह गई। लेकिन राष्ट्रपति चुनाव पर एक समझ जरूर बनती दिखी। यही वजह है कि गुरुवार की शाम ममता बनर्जी जब फिर मुलायम के आवास पहुंचीं तो उन्हें पहले जैसी गर्माहट वहां नहीं दिखी। जबकि, मुलायम के घर से ममता के जाने के कुछ देर बाद ही प्रणब पर मुलायम को राजी करने की कोशिशें फिर तेज हो गई। सोनिया व मुलायम गुरुवार को देर रात फिर मिले। इस बार सिर्फ यही दोनों थे। लिहाजा खुलकर बात हुई और मुलायम के सारे गिले-शिकवे दूर हो गए।
सोनिया और मुलायम के बीच बैठकों का ही असर था कि शुक्रवार को सपा ने खुद तो प्रणब के समर्थन का एलान किया ही, सभी दलों से उन्हें निर्विरोध चुने जाने की अपील कर दी। सपा महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने कहा कि प्रणब को संप्रग का प्रत्याशी घोषित होने के साथ पिछली सारी बातें खत्म। सपा उनका समर्थन करेगी। दूसरे दलों, यहां तक कि मेरी समझ से ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को भी उनका समर्थन करना चाहिए। नामांकन के लिए अभी बहुत समय है। उम्मीद है कि प्रणब निर्विरोध चुने जाएंगे।



कोई टिप्पणी नहीं:

फ़ॉलोअर