3 अग॰ 2013

सरकार पर हमले - जिम्मेदार कौन !

किसी भी व्यवस्था का जिम्मेदार मुखिया ही होता है, पर उत्तर प्रदेश के हालात इन दिनों ज़रा ख़राब होते जा रहे हैं, इसके मुख्य कारण है मुखिया के करीब सरकार को चलाने वाले अधिकारी, जब मुखिया के इर्द-गिर्द बेईमान अधिकारियों का जमावड़ा हो और उनकी नाकामी मुखिया की नाकामी बन जाए तो आज जिस तरह के हालात प्रदेश के हैं सहज हैं.
दूसरी बात ये की इन गैर जिम्मेदार अधिकारियों को फिल्ड में भेजने से जनता उनका असली स्वरुप देख पाएगी और उन्हें सरकार की नितियों के क्रियान्वयन में अपने अभिमान और छुपे अजेंडे के साथ सरकार की गलत नीतिया भी तय या प्रभावित करने की दशा नहीं रहेगी.
निश्चित तौर पर नॉएडा की एस डी एम् के मामले में गैर जिम्मेदाराना कदम मुखिया के अन्दर बैठे इस काडर के अधिकारियों का ही काम है. जो सरकार की ऐसी की तैसी करवा रहे हैं.
अभी भी वक़्त है मुखिया के बाद जितने भी अधिकारी इसमे दोषी हैं उन्हें हटा दिया जाए तो मुख्यमंत्री के ऊपर लग रहे सारे आरोप स्वतः ध्वस्त हो जायेंगे की मुखिया के अनदेखी में क्या क्या खेल चल रहे हैं.
यह घटना निपटी  भी नही की मुज्जफ्फर नगर जल उठा कैसे हो गया, कौन जिम्मेदार है इन सब के लिए !
मुलायम ने फिर दी मंत्रियों को नसीहत
लखनऊ, एजेंसी
First Published:12-10-13 10:58 PM / Last Updated:12-10-13 10:58 PM

उन्होंने कहा कि अभी तक तो जनता सरकार के कामकाज से संतुष्ट दिख रही है। हमने तमाम योजनाएं चलाई हैं। यह सब ठीक है लेकिन हम सामने बैठे साथियों से हम कहना चाहते हैं कि वे गलतियां ना करें। सपा प्रमुख ने कहा कि इस वक्त जनता हमें अच्छा मान रही है लेकिन अच्छा मानती रहे, यह जरूरी है। अगर आपका व्यवहार जनता और कार्यकर्ताओं के साथ शालीनता भरा होगा तो आप कामयाब हो जाएंगे।
उन्होंने तल्खी भरे अंदाज में कहा कुछ लोग ऐसे हैं जिनका आचरण बदला हुआ है। सत्ता में बैठे लोगों के आचरण पर जनता की बहुत पैनी नजर है। यादव ने सपा विधायकों के प्रति कार्यकर्ताओं की बढ़ती शिकायतों की तरफ इशारा करते हुए कारकुनों से कहा किसी विधायक से गलती हो गई है तो उसका बदला हमसे मत लेना। मंत्रियों और विधायकों को आज का संकेत समझ लेना चाहिए। हमारे पास प्रमाण सहित सारी चीजें हैं। इसलिए बोल रहा हूं।
उक्त खबर 'हिंदुस्तान' १३/१०/२०१३ के अखबार से ली गयी है, आये दिन अपनी ही सरकार की कम्जोरिओं पर तल्ख़ टिप्पणियां क्यों आ रही हैं सबका कारण है की सरकार का नियंत्रण नहीं है.

राजा भैया के इंतजार में 'अग्निपथ'

challenges for raja bhaiya ahead
स्थितिजन्य कारणों से राजा भैया ने फिर अखिलेश मंत्रिमंडल में कुर्सी तो हासिल कर ली है, पर आगे का रास्ता जटिल है।
पूरब से पश्चिम तक ठाकुरों की नाराजगी झेल रही सरकार की लाल बत्ती और बिरादरी के बीच इकबाल बरकरार रख पाना असंभव तो नहीं कठिन जरूर होगा।
इसमें राजा के राजनीतिक कौशल की भी परीक्षा होगी कि किस तरह वे दोनों पक्षों के बीच सामंजस्य बिठाते हैं।
सीओ मर्डर केस से निपटने में राजा भैया को जितनी कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ा, अब मंत्री बनने के बाद उससे जटिल दौर से गुजरना है। पहली परीक्षा तो खेड़ा (मेरठ) के मामले में होनी है।
मुजफ्फरनगर कांड के सिलसिले में ठाकुर बहुल इस गांव में पिछले दिनों एक पंचायत के दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज किया था और सैकड़ों लोगों पर मुकदमे दर्र्ज किए थे। इनमें ज्यादातर ठाकुर हैं।
इस मामले को लेकर इलाके के ठाकुरों में सरकार के प्रति बेहद आक्रोश है। नाराज ठाकुरों ने इस मामले में राजा भैया से भी मदद की अपील की थी।
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के उमाशंकर सिंह बताते हैं कि खेड़ा मामले सहित ठाकुरों के साथ हो रहे अन्याय के अन्य मुददें पर हमने बातचीत की थी, तब तो उनका रुख संतोषजनक था। अब मंत्री बनने के बाद क्या रुख होगा, यह बातचीत के बाद ही पता चलेगा।
उधर, पिछले हफ्ते आजम खां ने जब राजा भैया से उनके घर पर मुलाकात की थी, तब कहा था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जो स्थितियां हैं, उनमें उनके सहयोग की आवश्यकता है।
स्वाभाविक है जल्द ही सपा नेतृत्व चाहेगा कि राजा भैया वहां ठाकुरों के बीच जाकर सरकार विरोधी माहौल को हल्का करने की कोशिश करें। बस, यहीं देखना होगा कि वे किस तरह संतुलन साधते हैं।
उनकी दूसरी परीक्षा लोकसभा चुनाव में होगी। राजा समर्थक कहते रहते हैं कि उनका चुनावी असर प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, कौशांबी और फतेहपुर में रहता है।
सपा नेतृत्व की अपेक्षा होगी कि वे इन सीटों पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर पार्टी प्रत्याशियों को जिताने में मदद करें। जैसी कि चर्चा है सुल्तानपुर में वरुण गांधी भाजपा से चुनाव लड़ेंगे, संजय सिंह मौजूदा सांसद हैं। ऐसे में सपा को सीट निकालना आसान नहीं होगा।
प्रतापगढ़ में रत्ना सिंह का कांग्रेस से चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है, भाजपा से मोती सिंह के नाम की चर्चा है। इन स्थितियों में सीएन सिंह के लिए ठाकुरों का अधिसंख्य वोट जुटा पाना बेहद मुश्किल होगा।
वैसे भी सीएन सिंह से इनके रिश्ते ठीक नहीं माने जाते। जो हवा है, उसमें इस बार कौशांबी व फतेहपुर में सपा को इस बार वॉक ओवर तो नहीं मिलने वाला।
ठाकुर राजनीति का मर्म समझने वाले एक पूर्व विधायक ने कहा कि स्थितियां निश्चित ही बेहद पेचीदा हैं। सत्ता की तरफ ज्यादा झुकते हैं तो बिरादरी के बीच सवाल खड़े होंगे और बिरादरी की तरफ ज्यादा झुकते हैं तो लाल बत्ती देने वाले मुंह फुलाएंगे।
ऐसे में राजा की अग्निपरीक्षा इस बात को लेकर होगी कि खिलाफ हवा में वे साइकिल को कितनी रफ्तार पकड़वा पाते हैं।
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जातिवाद और राजपूत 
समाजवाद में जातिवाद का बढ़ता चलन शायद लोहिया का न हो लेकिन आज जो कुछ किया जा रहा है क्या उससे जातीय समरसता बढ़ेगी, कहना ज़रा कठिन है ! ब्राह्मणवाद के नए हथकंडे के शिकार ये राजनेता समता मूलक सिद्धांतों से हज़ारों कोष दूर होते जा रहे हैं। क्या दलित और पिछड़ों की एकता राजनैतिक स्थिरता नहीं दे सकति वहीँ से असली राजनैतिक स्थिरता संभव भी है, मायावती के लूट पक्ष को छोड़ दिया जाय तो उनका प्रशासनिक पक्ष तो आज भी सराहनीय है .
जातीय संक्रमण का समाजवादी तरिका बहुत ही खतरनाक है, जहां इस दल पर यादव वादी होने का आरोप लगता हो और सच्चाई और हो जिसमें यादव सबसे ज्यादा पिस रहा हो . ऐसा परिवर्तन यादवों के खिलाफ ज्यादा जाता है . 
अब रही बात जातिवाद की तो समाज वादी नेता ने वर्ग की बात करके इस खायीं को कम करने की बात की थी -
यथा - 
समाजवादियों ने (लोहिया जी ने) बाधी  गाँठ 
पिछड़ा पाए सौ में साठ .
इस नारे का क्या हुआ किसी स्तर पर जा कर देखिये।
(संपादक) 

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