9 मई 2017

पराजय भी हमारे लिए एक पाठ ही होती है

डॉ. लाल रत्नाकर 

कई बार हम परास्त हो जाते हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे हम खत्म हो गए हैं जबकि ऐसा होता नहीं हमारी पराजय भी हमारे लिए एक पाठ ही होती है यह भी हमारे अंदर कहीं ना कहीं कोई ना कोई ऐसी कमी है जो लोगों को पसंद नहीं आ रही है इस बीच में जब अपने पुराने क्षेत्र में घूम रहा था तो कुछ ऐसी जानकारियां और बातचीत में लगा की राजनीति को लोग अपने अधिकार और अपनी संपत्ति समझने लगे हैं ।

जबकि ऐसा नहीं है लोकतंत्र में सबको अपनी बात रखने कहने और यहां तक की उस पर चलने की बड़ी जरूरत होती है। यदि हम राजनीति में प्रतिनिधित्व करने के लिए पद के रूप में कोई भी पद हासिल करने का जो भी जुगाड़ करेंगे देर सवेर जनता उसे समझ जाएगी और उसे एहसास होगा कि हमने अपना प्रतिनिधि चुना है। या एक ऐसे महत्वाकांक्षी व्यक्ति चुना है जो हमें अपना गुलाम समझता है। जबकि लोकतंत्र में गुलामी नहीं होती लोकतंत्र बहुत ही मर्यादित तरीके से समाज के लिए काम करने का वह क्षेत्र है जहाँ त्याग और उदारता का बहुत महत्त्व है, जरुरत है। जबकि आज बहुत सारे लोग अति महत्वाकांक्षा में यह जानते हुए अति उत्साहित है कि वह जीत गए हैं और सदा के लिए जीत गए हैंजबकि ऐसा नहीं है।

जनता सब कुछ देख रही है मैं कल जिस कार्यक्रम में था वहां पर एक ऐसे व्यक्ति से मुलाकात हुई जो अभी 15 वी सदी में जिंदा है। जबकि उस कार्यक्रम में पाखंड के खिलाफ कुछ नए तरह के प्रयोग जिन्हें सामाजिक न्याय के पुरोधाओं ने शुरु किया है पर आयोजन था लेकिन किसी पक्ष का संबंधी होने के नाते जिस तरह से वह परब्रम्ह महामानव ईश्वर और पाखंड को ले करके उत्तेजित था उससे लग तो नहीं रहा था कि वह अपढ़ होगा लेकिन यह भी नहीं लग रहा था कि वह सही पढा भी होगा यदि इसी तरह के लोग समाज में नए परिवर्तनों का विरोध करते रहे तो वैसे ही जल्दी कोई इन परिवर्तनों के लिए तैयार भी नहीं होगा। ऐसे लोगों के आने से यह सारा आंदोलन कहीं बिखरता नजर आता है। जिसे संभालने की जरूरत है।

दूसरी ओर एक ऐसे राजनेता से भी मुलाकात हुई जो बहुत कम मतों से इस बार परास्त हुए हैं उनका दर्द अलग तरह का हैं, उनकी पीड़ा अलग तरह की है, उनके शत्रु अलग तरह के हैं उनके मित्र अलग तरह के हैं, लेकिन सब कुछ मिला करके यह लगा कि राजनीति में उनकी अप्रोच केवल और केवल अवसरवादी तात्कालिक सफलता की पराकाष्ठा को समझ पाई है ।


राजनीति हमेशा पराजय से बड़ी होती है यदि पार्टियों की बात करें तो सदियों से भाजपा हार रही थी और हारते-हारते आज वह देश में जीत गई है जो लोग वहां बने हुए हैं उनके दीर्घजीवी कार्यक्रम हैं। यही नहीं अन्यत्र लोग जीतते हारते हैं यहाँ विचार है जो जीते हैं ? अन्यत्र तो राजा हो गए और राजा होकर जो मर गए और वह नहीं हुए ? यदि वे सजग हुए होते तो सजग को वो जैसे ठगते रहे लूटते रहे उनकी वजह से जो आज सरोकारों से संपन्न समाज और आज वह पूरा जग ठगा गया है। 

आज जो हमारा नेता है वह समझता है कि वह लोगों को जल्दी से जल्दी ठग ले और वह जनप्रतिनिधि हो जाए और उसके जनप्रतिनिधि हो जाने से समाज के सारे संकट ख़त्म हो जाएंगे ? क्या खत्म हो जाएंगे अब तक जितने लोग इस तरह से जन प्रतिनिधि हुए हैं उन्होंने कितना समाज को बदल पाया है यह वह कितना समाज को बदलने का प्रयास कर रहे हैं यह सब देखते हुए राजनीति केवल सफलता की जगह नहीं है राजनीतिक परिवर्तन की जगह है और अगर परिवर्तन सामाजिक लेवल पर होगा तो जीत भी दूरगामी होगी और समाज बदलेगा तो राज भी बदलेगा अगर इनसे कोई पूछें पिछले दिनों जो लोग अपने को बदल करके यह बता रहे थे कि वह बहुत विकास कर गए हैं तो जनता ने उन्हें बता दिया यह विकास आपने अपना किया होगा जनता का कोई विकास नहीं किया है तो हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम राजनीति कर किस लिए रहे हैं अपने विकास के लिए या लोकतंत्र में अपनी आवाज बुलंद करने के लिए जनता की विकास की। यद्यपि लालू प्रसाद जैसे लोगों को फ़साने का जो प्रयास है उसके पीछे उनकी राजनितिक समझ तो है पर मुलायम सिंह ने क्या किया ?

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