1 जन॰ 2018

मुझे नववर्ष की शुभकामनाएं न दें .

मुझे नववर्ष की शुभकामनाएं न दें। यह मेरा नववर्ष नहीं है। यह अंग्रेजों का नववर्ष है।यह विदेशी नववर्ष है। यह ईसाईयों का नववर्ष है। मैं विदेशी नववर्ष को नहीं मनाता। मैं अपने नव वर्ष को मनाता हूं। केवल मेरे ही नववर्ष पर बधाइयां भेजें ।
इस नववर्ष की बधाइयां अगर आप भेजेंगे भी तो मुझे नहीं मिल पाएंगी क्योंकि मैंने सभी विदेशी विचारों, परम्पराओं,वस्तुओं,आविष्कारों का बहिष्कार कर दिया है। मैंने अपना मोबाइल तोड़ कर फेंक दिया है। मैंने अपना आईपैड कूड़ेदान में डाल दिया है। मैंने अपना कंप्यूटर टुकड़े टुकड़े कर दिया है। एसी की जगह ताड़ का पंखा ले आया हूँ।
मुझे इस बात का दुख है कि मैंने अपनी इंजीनियरिंग की शिक्षा अंग्रेजी में प्राप्त की थी क्योंकि नववर्ष की तरह अंग्रेजी भी अंग्रेजों की भाषा है,विदेशी है। पर मैं इंजीनियर बना था। नौकरी मिली थी। चीफ इंजीनियर के पद से अवकाश प्राप्त किया था। मुझे दुख होता है कि मैंने ऐसा क्यों किया। मुझे चाहिए था मैं गुरुकुल में जाकर शिक्षा प्राप्त करता। लेकिन तब मुझे नौकरी कहां मिलती? वेतन कहां से मिलता? कोठी कैसे बनाता? गाड़ी कैसे खरीदता? बच्चों को अच्छे स्कूल में कैसे पढ़ाता? 
पर कोई बात नहीं, पुरानी गलतियों पर मुझे दुख है पर आगे कभी ऐसा नहीं करुंगा। मैंने अपने घर की बिजली कटवा दी है क्योंकि बिजली भी विदेशी है।अब मैं अपने फ्लैट में असली घी के दीप जलाता हूं और पूरा वातावरण बहुत शुद्ध हो गया है। मैंने अपनी कार को बेच दिया है और एक बैलगाड़ी खरीदी है जिस पर मैं यात्रा करता हूँ।
कृपया मुझे मेरे नव वर्ष की शुभकामनाएं कागज़ पर नहीं ताड़ के पत्ते पर लिख कर किसी वाहक के हाथ भिजवाएं तभी स्वीकार की जाएंगी। कागज का आविष्कार भी हमारे देश में नहीं हुआ है। यह भी विदेशी है। इस कारण अब मैं ताड़पत्र पर ही लिखता हूं। पेन या पेंसिल का प्रयोग नहीं करता।
धन्यवाद आभार
आपका
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(यह एक मित्र का संदेश है जो उन्होंने मुझे भेजा है उनका नाम बताए बिना साझा कर रहा हूंअ.व.)
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असग़र वज़ाहत साहब की फेसबुक वाल से साभार। 
आरेखण एवं चित्र : डॉ. लाल रत्नाकर  (2018 की पहली पोस्ट)


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