28 जून 2022

अखिलेश जी के नाम खुला पत्र।


 



मान्यवर
राजनीति में आपके पारिवारिक इतिहास के साथ साथ ही हम लोगों के परिवार में भी राजनीति समझने की शुरुआत हो गई थी। आपको मौका मिला और आपने अपने पिताजी की राजनीतिक जागीर के मालिक बन गए।
पूरे प्रदेश को खुशी हुई और हम लोगों ने भी सोचा कि एक युवा राजनीतिज्ञ हमारे देश और प्रदेश को मिल गया है।
आप उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पाकर एक और उम्मीद खड़ी हुई थी कि शायद आप कुछ प्रदेश के लिए बेहतर करेंगे, जैसा कि आपने करने का प्रयास भी किया विशेष रुप से आपकी कई योजनाएं जो समय के साथ पूरी हुई और यशस्वी भी।
लेकिन दोबारा चुनाव में आपकी बुरी पराजय हुई जिस के कारणों पर विचार न करने के कारण आप लगातार चुनावी राजनीति बाहर होते जा रहे हैं।
इसके बहुत सारे कारण हैं मैं उन्हें यहां गिनाना नहीं चाहता, लेकिन एक बात जरूर पूछना चाहता हूं कि जिस आवाम की राजनीति आप कर रहे हैं क्या उसके वैचारिक धरातल को आप समझते हैं।
आज यदि हम वैचारिक रूप से अपनी आवाम को जागरूक नहीं कर पाएंगे तो जिस तरह का सांस्कृतिक साम्राज्यवाद अपने प्रचंड प्रकोप से समाज को फिर से गुमराह कर रहा है उससे निकाल पाना बहुत मुश्किल है।
देश समाज धर्म राजनीति अर्थ शिक्षा रोजगार और सांस्कृतिक सुचिता का बहुत बड़ा संभाग एक देश और प्रदेश के सामने खड़ा होता है।
कानून और व्यवस्था न्याय और अन्याय तमाम ऐसे मसले हैं जो अपने आप में आज आम आदमी को कम से कम परेशान करके उन्हें जिस तरह से असहाय बनाया जा रहा है उसमें राज्य का बहुत बड़ा योगदान है।
इसका उद्देश्य भी होता है जिन लोगों को राज्य को अस्थिर करके अपने अजंडे लागू करने होते हैं, उनके लिए आवाम और संविधान की कोई चिंता नहीं होती। जो मूल रूप से वर्तमान सरकार का प्रमुख उद्देश्य है।
महत्वपूर्ण सवाल यही खड़ा होता है कि आपका उद्देश्य क्या है क्या केवल प्रदेश का मुख्यमंत्री बन कर के स्थानापन्न होना या वैचारिक रूप से प्रदेश को एक समृद्ध दिशा में ले जाने का प्रयास करना। कई बार आपके संदेश प्रदेश में वर्तमान सरकार की सिद्धांतों की नकल दिखाई देते हैं। जबकि आपके सामने बहुत बड़ी चुनौती है जिसे हिंदू और मुसलमान करके पूरे देश की आवाम को बांटा गया है जबकि हमारा संविधान सबको बराबरी का अधिकार देता है क्या आपने कभी सोचा कि इस स्तर पर आपकी और आपकी पार्टी कुछ करने को तैयार है।
जितना मैं समाजवाद के बारे में जानता हूं वह संविधान का एक बहुत अनोखा स्वरूप है जिसमें समता समानता बंधुत्व और स्वतंत्रता की बात की जाती है क्या सचमुच इस अवधारणा पर आप कभी सोचते हैं।
यदि आप एक धर्म की बात करें तो वह धर्म उतना ही आवाम को गुमराह करता है जितना हम दूसरे धर्म की निंदा करके आवाम को समझाते और बताते हैं जबकि ऐसा नहीं है जिस जिस धर्म के खिलाफ हम आज लोगों को भड़का रहे हैं वही धर्म था जो लोगों में सदियों की जकड़ी हुई बेड़ियों से बाहर निकाल कर के मनुष्य के रूप में उनकी पहचान बनाने में सफल हुआ है उसे किश्चयन कह लीजिए इस्लाम/मुस्लिम कह लीजिए, बौद्ध जैन और सिख की बात तो बाद की बात है क्योंकि उन्होंने उसी परंपरागत से बाहर आकर अपनी एक अलग पहचान दर्ज कराई है जिसमें वह अपने लोगों के हित की कामना करते हैं।
क्या यह संभव नहीं है कि हम भी उस धर्म से निकलकर,अपना एक धर्म खड़ा करें उसे खड़ा करने की भी जरूरत नहीं है श्री रामस्वरूप वर्मा जी द्वारा प्रतिपादित किया गया अर्जक संघ आज भी प्रासंगिक है और बहुजन चेतना को बढ़ाने वाला है। यही नहीं हमारे पास पेरियार हैं हमारे पास ज्योतिबा फूले हैं और हमारे पास अन्य बहुत सारे ऐसे चिंतक हैं जिन्होंने समाज को पाखंड से बाहर निकालने की भरपूर कोशिश की है और इस जटिल ब्राह्मणवाद को बार-बार चुनौती दी है।
जब हम महात्मा बुद्ध की बात करते हैं तो निश्चित तौर पर बुद्धिज्म एक ऐसा रास्ता है जो हमें नैतिक और ईमानदार तरीके से जीवन जीने का रास्ता बताता है और एक दूसरे से प्रेम भाईचारा आदि आदि का संदेश देता है।
हो सकता है आपको हमारी बात नागवार लगे क्योंकि यदि आप उस खांचे से नहीं निकलना चाहते हैं, हमारी आवाम को सदियों से दबाए हुए हैं और पशुवत जीने के लिए अरे का अनेक तरह के ग्रंथ आज की रचना की हुई है। हमें बेहतर जिंदगी जीने के लिए तमाम तरह की बाधाओं से बाहर निकालने के लिए भी योजना बनानी होगी क्योंकि जैन और सिख इस समाज से निकल कर के अपना एक अलग अस्तित्व कायम किए हुए हैं यह अलग बात है कि हम उनकी वैचारिकी को नहीं समझ सकते और उनके भी तमाम लोगों ने अपने पूर्वजों की वैचारिकी को धूमिल किया है।
इस्लाम में गए हुए लोग भी उसी तरह के लोग हैं जिस तरह से जैन और सिख अपना एक अलग रास्ता अख्तियार किए इस देश का मुसलमान कोई सऊदी अरेबिया से नहीं आया है बल्कि वह यही के तमाम अंधविश्वास पाखंड छुआछूत भेदभाव से बाहर आकर एक ऐसे धर्म को स्वीकार किया जिसमें मानवता को खंड खंड में विभाजित नहीं किया गया था यानी यहां की वर्ण व्यवस्था ऐसा अस्त्र है जो आपको उस सिस्टम में आते ही कई भागों में बांट देता है।
यदि आप किसी ब्राह्मण से ज्यादा कुलीन हैं शिक्षित हैं संपन्न हैं और अच्छी विचारधारा के हैं तो आपको ब्राह्मण से ऊपर यहां तक कि उसके बराबर का भी सम्मान नहीं दिया जाएगा भले ही वह अंगूठा छाप और किसी मंदिर का पुजारी टाइप ही क्यों ना हो। यही है असली समस्या जिसका निदान सांस्कृतिक राजनीति से करना होगा राजनीति के विविध क्षेत्र हैं जिसमें आर्थिक राजनीतिक सामाजिक राजनीति धार्मिक राजनीति शैक्षिक राजनीति गुंडा राजनीति आदि आदि।
आपको यह कहते हुए अपनी बात खत्म नहीं करेंगे कि यह सब काम आपको करना है यह सब काम करने वाले और लोग हैं जिनकी आपको पहचान करनी होगी आपके इर्द-गिर्द दिखने वाला कोई ऐसा व्यक्ति समझ में नहीं आता जो इस तरह की उपक्रमों को आरंभ कर सके और आप उसकी बैकग्राउंड में रहते हुए रक्षा।
मान्यवर यह आप निश्चित मान लीजिए कि जब तक इस तरह का परिवर्तन करने की योजना नहीं होगी तब तक सामाजिक और राजनैतिक बदलाव बिल्कुल संभव नहीं है, आपकी पार्टी में और आप के पदाधिकारियों में हो सकता है बहुत अच्छे लोगों को लेकिन मैं जितने लोगों को जानता हूं और जिनके ऊपर आपका बरदहस्त है वह नेता जी द्वारा बनाए हुए संगठित समाज को निरंतर कमजोर करने पर लगे हुए हैं यहां नाम लेकर बनाने की जरूरत नहीं है एक नहीं हजारों ऐसे आप के कार्यकर्ता हैं जो यही नहीं जानते कि उन्हें राजनीतिक रूप से क्या करने की जरूरत है।
उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है कि आप नए सिरे से राजनीतिक पारी शुरू करने का प्रयास करेंगे और अच्छे लोगों को जो सामाजिक बदलाव को एक आंदोलन बनाना चाहते हैं खास करके बहुजन और दलित समाज के लोग यदि इनके स्थान पर ब्राह्मणों की भर्ती की गई या राजपूतों को अवसर दिया गया तो निश्चित रूप से यह आंदोलन खड़ा नहीं हो सकता यह मैं आपको गारंटी के साथ बता सकता हूं।
इसलिए पूरा आवेदन कर रहा हूं और आग्रह कर रहा हूं कि आप एक बार नए सिरे से सोचिए और हम जैसे सिरफिरे लोगों को मौका देकर के नई राजनीति की शुरुआत करिए।
साधुवाद सहित।

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