13 सित॰ 2022

"अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा"

द्वारका एक धार्मिक स्थल और गुजरात के अहीर राष्ट्रीय संगठन "अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा" का 2022 की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक।  

भारत के धार्मिक स्थलों पर जिन लोगों का आधिपत्य है उस पर विमर्श करना आज की बहुत बड़ी जरूरत के साथ-साथ बहुत सारे मसलों का हल भी है।
यही कारण है कि आज तमाम तरह की समस्याएं हमारे सामने खड़ी हुई हैं लेकिन हम उनके निदान के लिए कोई भी विमर्श नहीं कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इन मशीनों पर इससे पहले कोई विमर्श ना हुआ हो यदि आप इतिहास में जाएंगे तो तो जहां राम की बात होती है वहां रावण की भी बात होती है, निश्चित रूप से ब्राह्मण और राक्षस दोनों को द्वंद को देखा जाए या देखा जाना चाहिए इसलिए भी कि समस्याओं की जड़ में कौन है और इन सारी सुविधाओं और सुविधाओं का कारण क्या है समाज निर्माण और शोषण एक बहुत बड़ी समस्या है यह हर स्तर पर लोगों की सोच को प्रभावित करती है और एकाधिकार का सवाल खड़ा करती है।
जब तक हम नए सिरे से इन मसलों को हल नहीं करेंगे तब तक यह समस्याएं इसी तरह खड़ी होती रहेगी और गैर बराबरी सामंत शाही एकाधिकार के साथ-साथ वर्चस्व की प्रवृत्ति घर व्यक्ति में बढ़ती रहेगी और वह वर्चस्व की लड़ाई एक ऐसे बिंदु पर देखें समाप्त हो जाती है जहां व्यक्ति को सांस्कृतिक रूप से किंकर्तव्यविमूढ़ बना दिया जाता है और यही उस धर्म की विशेषता है जिसके मॉडल या सॉफ्टवेयर में जातियों का समुचित स्थान बना दिया गया है।
हमें संविधान के अनुसार जीवन दर्शन निर्माण करने हेतु बहुत ही विविध प्रकार की सोच और शब्द पैदा करने की जरूरत है उसी के हिसाब से समाज में बदलाव संभव है अन्यथा आप सारी लड़ाई करते रहें आपको सांस्कृतिक रूप से परास्त कर दिया जाएगा।
हमें इस विषय को सोचा था कि अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा की इस मीटिंग में उठाऊंगा लेकिन वह संभव नहीं हो पाया।
यही कारण है कि हम ऐसे एजेंडे को तो आते हैं जो निश्चित रूप से वह विचार किए हुए हैं, लेकिन सांस्कृतिक लड़ाई लड़ने की जो धार होनी चाहिए वह लगभग सूख चुकी है और लोग मदांध होकर धर्म की ध्वजा हरा तो रहे हैं लेकिन ध्वजा उनके हाथ में नहीं है उन्हें उसके लिए समय लेकर और गाजियाबाद के साथ उनको तो अपनी होती है जो उनके अधिकारों पर कब्जा किए हुए हैं।



11-09-2022

"दिव्य-द्वारका (५)

संपादकीय

भगवान् श्रीकृष्ण और श्रीमदादिशङ्कराचार्य भगवत्पाद ऐतिह्य के ऐसे दो स्तम्भ हैं, जिनसे सनातन धर्म संरक्षित हुआ भगवान् श्रीकृष्ण ने बाल्यकाल से ही दैवी सम्पत् की स्थापना तथा आसुरी सम्पत् का विनाश करना प्रारम्भ कर दिया था। श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में आज भी उनका उपदेश जनसामान्य की प्रेरणा का स्त्रोत बना हुआ है । भगवान् आद्यशङ्कराचार्य जी ने उसी श्रीमद्भगवद्गीता पर भाष्य लिखकर उसके भाव को प्रकाशित किया और मत-मतान्तरों में बिखर रहे भारत को एकता के सूत्र में आबद्ध कर इस विशाल राष्ट्र की रक्षा की। उनके द्वारा भारत की चार दिशाओं में स्थापित चार शङ्कराचार्य पीठों के आचार्य आज भी हमें प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं।

सनातन संस्कृति के संरक्षकद्वय, भगवान श्रीकृष्ण और आचार्य शङ्कर की संगमस्थली है- द्वारका; जहाँ द्वारका में आज भी भगवान् श्रीकृष्ण की कीर्तिपताका को फहराता त्रैलोक्य सुन्दर मन्दिर विद्यमान है और भक्तिमार्ग के द्वारा जन-जन के उद्धार का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। वहीं आचार्य शङ्कर द्वारा चार पीठों के स्थापना के क्रम में प्रथमपीठ के रूप में स्थापित शारदापीठ, ज्ञानमार्ग का अनन्य प्रचारक सिद्ध हो रहा है। उसके पूर्वपीठाधीश्वरों के अतिरिक्त वर्तमान पीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित जगद्गुरू शङ्कराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज, जो ज्योतिष्पीठ के भी जगद्गुरु शङ्कराचार्य हैं, द्वारा निरन्तर धर्म प्रचार किया जा रहा है, जिसके फलस्वरूप सारे भारतवर्ष में एक बार फिर से धर्म और अध्यात्म की गंगा प्रवाहित होने लगी है।

यह पूज्यपाद वर्तमान पीठाधिपति आचार्यश्री की ही विशेषता है कि उन्होंने लुप्त हो रहे शारदापीठ के वैभव को पुनः प्रतिष्ठापित करने का बीड़ा उठाया है। यही कारण है कि आज द्वारका में लगभग ११ करोड़ रूपये की लागत से आदि शङ्कराचार्य द्वारा स्थापित गद्दी (पीठस्थान) सहित पूरे शारदापीठ का जीर्णोद्धार सम्पन्न हो सका। कहा गया है कि श्रेष्ठ पुरुषों के आचरण को देखकर तदनुयायी भी तद्वत् व्यवहार करते हैं। इस आलोक में देखा जाय तो पूज्यपाद जगदगुरु शङ्कराचार्य जी महाराज की शिष्य सम्पत्ति भी अनुपमेय है और ज्ञान-विज्ञान तथा क्रियादक्ष शिष्यों से सुशोभित है उनका आभामण्डल । महाराजश्री के उसी आभामण्डल के एक नक्षत्र हैं- पूज्य दण्डी स्वामी श्री सदानन्द सरस्वती जी, जिन्होंने अल्पायुष्य में ही अध्यवसायिता, वैदुष्य और क्रियाशीलता के प्रतिमान स्थापित किए हैं। जब से स्वामी सदानन्द सरस्वती जी को शारदापीठ द्वारका, का मंत्री बनाया गया है, तबसे ही उनकी इच्छा थी कि द्वारका की दिव्यता के विषय में प्रामाणिक जानकारी पाठकों को उपलब्ध कराई जाए

प्रकृत ग्रन्थ अपकी ही इच्छा के अनुरूप तैयार किया गया है। इसकी तैयारी में श्रीद्वारकाधीश संस्कृत एकेडमी के प्राध्यापक डॉ. आर. सी. मुरारी और श्रीशङ्कराचार्य अभिनव सच्चिदानन्द तीर्थ संस्कृत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. सनत्कुमार उपाध्याय द्वारा कृत सहयोग सदा अविस्मरणीय रहेगा ।

महामहोपाध्याय 

जयप्रकाश नारायण द्विवेदी"

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यादव बंधुबांधवो एवं भगनियों !

अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के बैनर के तले राष्ट्रीय कार्यकारिणी के एक दिन के अधिवेशन में द्वारका में आयोजित आयोजन में सम्मिलित होने का सुनहरा अवसर मिला। 

इस अवसर पर 10 सितंबर 2022 की अपराह्न मैं द्वारका पहुंच गया और द्वारका पहुंच करके अहीर समाज द्वारा निर्मित दिव्य विशाल आवासीय परिसर में पहुंच कर गुजरात प्रांत के कुछ कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से मुलाकात हुई संयोग से उस समय कच्छ क्षेत्र के यादव बंधुओं का ध्वजा रोहण का कार्यक्रम चल रहा था।

कार्यक्रम लगभग समापन की ओर और उनके पुरोहित रंग बिरंगी पोशाक में बाहर निकले तो उनके बारे में जानकारी करने की इच्छा हुई जिसकी वजह से यादव बंधुओं से मैंने पूछा यह कौन है तो उन्होंने बताया यह हमारे कुल पुजारी हैं तो स्वाभाविक था भारत की सामाजिक व्यवस्था में यह जानना कि क्या द्वारका में भी पूरे देश में चल रहे पुजारी संप्रदाय में कोई वरिष्ठ यादव भी हो सकता है तो उन लोगों ने जो जवाब दिया वह बहुत चकित करने वाला था उन्होंने कहा नहीं नहीं यह ब्राह्मण है।

मैंने उनसे दूसरा सवाल किया कि क्या आपके कुल में कोई पुजारी नहीं हो सकता उन्होंने कहा यह कैसे हो सकता है हमारे लोग कैसे इतना अध्ययन करेंगे, जब मैंने उनको बताया कि तमिलनाडु सरकार ने सभी जातियों के पुजारी बनने का कानून बनाया है तो उन्होंने किंचित हतप्रभ होते हुए इस बात को बहुत हल्के में निकाल दिया कि वह भी पुजारी हो सकते हैं।

फिर बंधुओं मैं पूरे द्वारका में घुमा और हमारी पत्नी और हमारे एक रिश्तेदार भी साथ में आए थे दिन के लगभग दोपहर में हम लोगों ने द्वारका धाम का दर्शन करना चाहा दर्शन के लिए हमारे संबंधी जो आते रहते हैं यहां पर उन्होंने सामान्य औपचारिकता पूरी करते हुए सीढ़ियां चढ़े उस मंदिर की तरफ चलने लगे तो उस भीड़ में यह घबराहट होना स्वाभाविक था कि इस समय हमारे पास फोन भी नहीं है और दो दो महिलाएं हमारे साथ चल रही हैं अगर वह किसी भी तरह क्रम में पीछे छूट गई या अलग हो गई तो उन्हें कैसे तलाशा जाएगा।

ऐसे में आधा ध्यान तो उन्हीं पर रहा कि कहीं वह छूटने जाएं या भीड़ भाड़ में खो ना जाएं फिर हम लोग किसी तरह मंदिर पहुंचे और मंदिर के सभी दरवाजों पर जिस तरह की भीड़ थी उसमें अंदर जाना तो क्या पीछे से भी निकलना आसान कार्य नहीं था कपड़े पसीने से भीग भीग चुके थे हमें अर्ध ध्यान से उस अपने महापुरुष जिनको हमारे पूर्वज के रूप में बताया जाता है उनकी इस गौरवशाली स्मृतिशेष वास्तु की भव्यता बार-बार यह बता रही थी कि हमारा कितना गौरवशाली इतिहास रहा होगा जिसमें देश के इतने लोग एक साथ उनके दर्शनार्थ यहां पर व्याकुल होकर बेचैन एक दूसरे को धक्का-मुक्की करते हुए हाथ दोनों जोड़े हुए व्याकुल हैं कि कैसे हमारे पूर्वज के दर्शन कर पाए।

मन ही मन में गौरवान्वित हो रहा था कि मेरा इतिहास इतना समृद्ध है राजनीतिक और धार्मिक इतिहास तो मैं जानता ही था सामाजिक रुप से भी यह बताया गया कि यह परीक्षेत्र बहुत संपन्न है, जिन के पहनावे आज भी अपनी विशेष पहचान रखते हैं और कई कई तो स्वर्ण आभूषणों से लगे हुए ऐसे लग रहे थे जैसे छोटे में ही कोई फलदार वृक्ष स्वर्ण के आभूषणों से लगा हुआ हो। उनकी जितनी भी गाथा गाई जाए वह किसी भी रुप में कम नहीं है क्योंकि ऐसी कौन जो अपने श्रम और साहस से आज भी अपनी परंपरा को बनाए हुए समृद्धशाली दिख रही है उसको अपने पुजारी की एक जमात तो बनानी चाहिए थी।

आर्थिक युग में जहां पर स्व प्रचार प्रसार के साथ-साथ व्यवसाय का व्यापक ध्रुवीकरण हुआ है यह तो हजारों सालों से हमारे पुरखों को लेकर के जो लोग प्रतीक के रूप में परंपरागत तरीके से अपने परिवारों को इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं यह आश्चर्य का विषय है कि हमारे बुद्धिजीवियों सामाजिक नेताओं राजनीतिक समझ रखने वालों क्या आप केवल भक्त बने रहना चाहते हो आपके ईश्वर हों और उनका कोई दोहन कर रहा हूं सरकारें उनको सुरक्षा दे रही हो, यहां पर वसुधैव कुटुंबकम की बात कह कर सारे धार्मिक स्थानों पर उन लोगों का कब्जा हो जो रात दिन केवल यादव बिरादरी ही नहीं पूरे बहुजन समाज के विनाश की कामना करते रहते हैं आखिर हम कब जागेंगे।

पेरियार की बात यहां ना करते हुए हम केवल स्टालिन की बात करते हैं, कि उन्होंने सत्ता में आते ही उन्हीं पेरियार साहब के बताए हुए रास्ते पर यह कानून बनाया कि अगर तुम्हें धर्म मानना ही है तो अपना पुजारी बनाओ।

आपकी समाज से इंजीनियर बन सकते हैं डॉक्टर बन सकते हैं आईएएस बन सकते हैं वैज्ञानिक बन सकते हैं तो पुजारी क्यों नहीं बन सकते इस पर आपको विचार करना होगा बगैर इस पर विचार किए हुए यदि आप सामाजिक परिवर्तन की परिकल्पना करते हैं तो यह ठीक उसी तरह से है जैसे इस समुद्र में कूद करके आपके भगवान श्री कृष्ण ने बेट द्वारका मैं जाकर अपने को सुरक्षित रखते थे, उन पर शोध करने की जरूरत है कि वह उस समाज से कैसे लड़े होंगे और अपने को सुरक्षित करते हुए पूरी दुनिया को सामाजिक बराबरी का संदेश देते हुए प्रेम और समग्र जीव जंतुओं सहित मनुष्य मात्र को एक माला की तरह पीरो करके कैसे उन्होंने हजारों हजार गोपी का गायों और तमाम तरह के जीव जंतुओं का संरक्षण किया होगा जो हमारे विद्वान साथी अपने कब्जे में कर चुके हैं और यह प्रचारित करते हैं कि यह यादव समाज बुद्धि विवेक से कितना हीन है यह कथा भी प्रचारित कर दी है की महाभारत जैसे युद्ध में 22 कोटी (22 करोड़) यादव आपस में लड़भीड. करके मर गए थे।

1931 के बाद जातियों की जनगणना ही नहीं कराई गई है, जिससे हम आज के ताजे आंकड़े बता सकें की यादवों की आज वास्तविक संख्या क्या है?

यह सही है कि हम अनैतिक रूप से नैतिक बने हुए हैं और आज भी एक दूसरे का जितना विरोध कर सकते हैं अंतर्मन से करते हैं और जो बाहर आता है ऐसा प्रतीत होता है की स्वाभाविक रूप से जैसा द्विजों ने इन्हें कहा है वैसे ही यह महामूर्ख भी हैं।

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मित्रों 

मैं यह बात इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि हमारे समाज में ऐसे ऐसे लोग हैं जिन्हें आप कभी नहीं बुलाते, आप कहेंगे कि क्यों बुलाऊं उसका जवाब यह है कि इसलिए बुलाई है कि आपके बारे में वह क्या सोचता है यदि वह आ जाएं तो मैं समझता हूं कि इससे बड़ा और कोई समाधान नहीं होगा जो लड़ाई आप कर रहे हैं उसको एक रास्ता मिलेगा उसी से जुड़ा हुआ एक लेख जो श्री उर्मिलेश जी ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है यहां पर लगा रहा हूं उर्मिलेश जी से साभार इस निवेदन के साथ कि लोग इसे पढ़ें और इससे कुछ हासिल करने की कोशिश करें :

हम भी क्या लोकतंत्र हैं, दोस्तो!
हत्यारे और बलात्कारी जहां स्वतंत्रता दिवस के खास मौके पर बाइज्ज़त रिहा होते हैं और प्रखर बुद्धिजीवी, मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, प्रोफेसर, पत्रकार और लेखक-बुद्धिजीवी अपराध के किसी ठोस सबूत के बगैर सिर्फ अपने विचारों के कारण जबरन जेलों में डाल दिये जाते हैं! जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र Umar Khalid बीते दो वर्षों से जेल में हैं. उन्होने झारखंड के आदिवासियों पर अपनी Ph.D. की थी. एक अच्छे शिक्षक या समाजशास्त्री बनकर देश और समाज को काफी-कुछ दे सकते थे. पर दो साल से जेल में हैं.
किस 'जुर्म' में उन्हें जेल में रखा गया है? उन पर दिल्ली के दंगे का 'षड्यंत्रकारी' होने का ऐसा आरोप लगाया गया जिसका आज तक एक भी सबूत नहीं! अमरावती(महाराष्ट्र) में दिये Umar Khalid के जिस भाषण को आरोपपत्र में सबूत के तौर पर पेश किया गया, उसमें न तो हिंसा या दंगा भड़काने जैसे किसी आह्वान का एक भी वाक्य या शब्द है और न ही 2020 के दिल्ली दंगों से उक्त भाषण का कोई 'कनेक्ट' है. फिर भी वह पिछले दो साल से जेल में हैं. हम भी क्या लोकतंत्र हैं!
उमर और कन्हैया सहित JNU के कई छात्रों पर सन् 2016 में राजद्रोह का मामला थोपकर उन्हें जेल में सडाने की योजना थी. पर आज तक सरकारी एजेंसियां 'एंटी-नेशनल नारे' लगाने का एक भी सबूत नहीं पेश कर सकीं! हम भी क्या लोकतंत्र हैं, दोस्तो!
विख्यात लेखक और बाबा साहब डाॅ बी आर अम्बेडकर के खानदान से सम्बद्ध प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे भी लंबे समय से जेल में हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार गौतम नवलखा जैसे बुजुर्ग को भी सिर्फ उनके विचारों के कारण जेल में रखा गया. इन दोनो के अलावा मुंबई और अन्य जगहों से कई अन्य लोगों को एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किया गया था. वे सभी जेल में हैं. झारखंड के स्टेन स्वामी भी इसी मामले भी गिरफ्तार किये गये थे. उस 84 वर्षीय बुजुर्ग की पिछले वर्ष जुलाई में गिरफ्तारी की हालत में ही मौत हो गयी.
हम भी क्या लोकतंत्र हैं दोस्तो!
भारतीय जेलों में विचाराधीन कैदियों की बढती संख्या का मामला भी कम चिंताजनक नहीं. सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक सन् 2020 में भारत की जेलों में 3 लाख 71 हजार से ज्यादा विचाराधीन कैदी थे. एक अनुमान में SC, ST, OBC और Minority Community के कैदियों की संख्या 78 फीसद से भी ज्यादा बतायी गयी है.
हम भी क्या लोकतंत्र हैं दोस्तो!

उर्मिलेश जी की पोस्ट से साभार। 

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साथियों!

हमें हमारे गौरवशाली इतिहास पर गर्व तो है ही है लेकिन ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में जिस तरह से हमारे समाज में अपने कौशल और कुशलता से तेजी से बढ़ रहे युवा पीढ़ी को रोकने की हर स्तर पर साजिशें की जाती रही हैं और आज भी की जा रही हैं उसे समझने की जरूरत है जिस नई शिक्षा नीति का मंच से किसी महिला मंत्री ने जिक्र किया था उस नई शिक्षा नीति के बारे में जब आप अध्ययन करेंगे तब आपको पता चलेगा कि वह नई शिक्षा नीति आपको अज्ञानता के आनंद लोक में हिलोरे मारने के लिए लाई जा रही है। जिसमें आप पूरी दुनिया से कटकर भारत के भयंकर पाखंड और अंधकार के दिव्य देवी देवताओं के अध्ययन और अध्यापन में उलझ जाएंगे और चांद तारों को ईश्वर मानेंगे जब पूरी दुनिया उन पर नियंत्रण कर रही होगी इसलिए क्रांति और राजनीति की पृष्ठभूमि हमारा समाज सामाजिक संगठनों को मजबूत करने के लिए बनाया था मैंने हल्की सी जब यादव समाज के संविधान पर दृष्टि डाला था तो उसमें उन्होंने बहुत स्पष्ट तौर पर पाखंड अंधविश्वास और अज्ञानता से निकालकर विज्ञान की तरफ आने वाली पीढ़ी को ले जाने का आंदोलन खड़ा किया था जिसके लिए आज हम कितने तैयार हैं यह मूल्यांकन करना बहुत जरूरी होगा हमारे ही समाज से निकले हुए ललई सिंह यादव रामसेवक यादव और उन्हीं को सहयोग करते हुए माननीय रामस्वरूप वर्मा ने जो रास्ता दिखाया है निश्चित रूप से उसी रास्ते पर चलकर हम सामाजिक राजनैतिक शैक्षणिक और सांस्कृतिक लड़ाई जीत सकते हैं अन्यथा अपना अपना गुणगान करिए और वैचारिक रूप से कंगाली के बहुत विशाल संग्रहालय में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई रहिए।

आज आने वाली पीढ़ी को निश्चित रूप से अभी से तैयार करना होगा।

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साथियों!

हमें हमारे गौरवशाली इतिहास पर गर्व तो है ही है लेकिन ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में जिस तरह से हमारे समाज में अपने कौशल और कुशलता से तेजी से बढ़ रहे युवा पीढ़ी को रोकने की हर स्तर पर साजिशें की जाती रही हैं और आज भी की जा रही हैं उसे समझने की जरूरत है जिस नई शिक्षा नीति का मंच से किसी महिला मंत्री ने जिक्र किया था उस नई शिक्षा नीति के बारे में जब आप अध्ययन करेंगे तब आपको पता चलेगा कि वह नई शिक्षा नीति आपको अज्ञानता के आनंद लोक में हिलोरे मारने के लिए लाई जा रही है। जिसमें आप पूरी दुनिया से कटकर भारत के भयंकर पाखंड और अंधकार के दिव्य देवी देवताओं के अध्ययन और अध्यापन में उलझ जाएंगे और चांद तारों को ईश्वर मानेंगे जब पूरी दुनिया उन पर नियंत्रण कर रही होगी इसलिए क्रांति और राजनीति की पृष्ठभूमि हमारा समाज सामाजिक संगठनों को मजबूत करने के लिए बनाया था मैंने हल्की सी जब यादव समाज के संविधान पर दृष्टि डाला था तो उसमें उन्होंने बहुत स्पष्ट तौर पर पाखंड अंधविश्वास और अज्ञानता से निकालकर विज्ञान की तरफ आने वाली पीढ़ी को ले जाने का आंदोलन खड़ा किया था जिसके लिए आज हम कितने तैयार हैं यह मूल्यांकन करना बहुत जरूरी होगा हमारे ही समाज से निकले हुए ललई सिंह यादव रामसेवक यादव और उन्हीं को सहयोग करते हुए माननीय रामस्वरूप वर्मा ने जो रास्ता दिखाया है निश्चित रूप से उसी रास्ते पर चलकर हम सामाजिक राजनैतिक शैक्षणिक और सांस्कृतिक लड़ाई जीत सकते हैं अन्यथा अपना अपना गुणगान करिए और वैचारिक रूप से कंगाली के बहुत विशाल संग्रहालय में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई रहिए।

आज आने वाली पीढ़ी को निश्चित रूप से अभी से तैयार करना होगा।

आदरणीय प्रो.उदय प्रताप सिंह जी (गुरुजी) के नाम पर राजनीति करने वालों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनकी अपनी वैश्विक पहचान है और उस पहचान का जो योगदान उन्होंने समाज की राष्ट्रीय काई को दिया है और आज भी अखिल भारत वर्षीय यादव महासभा ने मुख्य संरक्षक का स्थान संगठन में रखा है वह उनकी उदारता और ज्ञान का सबसे बड़ा सम्मान है।

गुरुजी राजनीतिक रूप से किस पार्टी से जुड़े रहे और कौन-कौन लोग उन्हें सम्मान देते रहे वह अपनी जगह एक बात है जब कोई पत्रकार पत्रकारिता के स्तर को अपने स्तर पर लाकर किसी का मूल्यांकन करता है तो निश्चित रूप से वह अपने अज्ञान के आनंद लोक का प्रदर्शन करता है।

मैंने कल भी इस पेज पर लिखा था कि एक विद्वान ने दूसरे विद्वान को जिस तरह से अपना दायित्व दिया है वह निश्चित रूप से हमारे बुजुर्ग सामाजिक नेताओं के दिशा निर्देशों एवं उनके आदर्शों पर चलने का प्रयास करेगा ऐसा मेरा विश्वास है।

हमारे नए राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर स्वप्न कुमार घोष एवं राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्री श्याम सिंह यादव को इनके लंबे यादव महासभा के जुड़ाव से देखना चाहिए और जो लोग बंगाल और बसपा का नाम लेकर संगठन के इनके कर्तव्यों और योगदान को कम करना चाहते हैं वह निश्चित रूप से ना तो राजनीति जानते हैं और ना ही सामाजिक कार्य के बारे में उनको कोई पता है।

जहां तक श्री श्याम सिंह यादव का सवाल है वह अपने आरंभिक दिनों से यादव महासभा से जुड़े ही नहीं रहे हैं बल्कि न जाने कितने काम यादव महासभा के पक्ष में करते रहे हैं आज वह सांसद हैं किस दल से सांसद हैं और सांसद होने से पहले किस गठबंधन के सांसद हैं इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए निश्चित रूप से श्याम सिंह जैसा व्यक्तित्व बसपा के चरित्र से बहुत मेल नहीं खाता और ऐसा लगता है कि उन्हें अपने राजनीतिक भविष्य के लिए उसी दल की तलाश है जहां से वह राजनीति में अपना भविष्य बनाए रख सकें।

दूसरी तरफ हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष का सवाल है मैं लंबे समय से उनको जानता रहा हूं वह बिल्कुल सामाजिक और संगठन के प्रति बहुत ही तन्मयता से जुड़े रहे हैं ऐसे में उनको और माननीय मुलायम सिंह जी को अलग करके देखना अज्ञानता की दृष्टि होगी।

राजनीतिक रूप से जिनको अपनी रोटियां सेकने हैं वाह आज संगठन को बेचना चाहते हैं लखनऊ की सपा ने लगभग यही संदेश दिया था लेकिन द्वारका की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने साफ कर दिया है कि उसका राजनीतिक रूप से तेजा इस्तेमाल कोई नहीं कर सकता।

संगठन ने यह भी साफ कर दिया है कि अगर हमारी किसी को जरूरत है तो हम उसका सहयोग करेंगे लेकिन संगठन को बेचकर उसकी कीमत पर कोई संगठन चलाने की बात करेगा तो संगठन उसका हिसाब किताब करना जानता है।

मेरे ख्याल से इस अखबार में जो भ्रामक खबर दी गई है उसके बारे में मैंने अपने कल के आलेख में जिक्र किया था मुझे पूरा भरोसा है कि जो भी जिम्मेदारी संगठन में लोगों को दी गई है उसका निर्वहन करते हुए ऐसी बाहरी शक्तियों को भी मुंह तोड़ जवाब देते रहेंगे जो संगठन पर किसी भी तरह की टीका टिप्पणी करते हैं।

आइए हम लोग अपनी अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग होकर के संगठन को मजबूती प्रदान करें और पूरे बहुजन एकता और सांस्कृतिक अवधारणाओं पर अमल करते हुए अपने ऐतिहासिक गौरव को प्राप्त करें यही आप सब से हमारा निवेदन है।

आपकी अपेक्षाओं के साथ

डॉ लाल रत्नाकर

जातीय जनगणना के संयोजक के रूप में जो दायित्व मुझे दिया गया है हम शीघ्र ही उस पर आपके सुझाव और विचार आमंत्रित करेंगे उम्मीद है आप सहयोग करेंगे।


1 टिप्पणी:

www.ratnakarart.blogspot.com ने कहा…

मित्रों मैं यह बात इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि हमारे समाज में ऐसे ऐसे लोग हैं जिन्हें आप कभी नहीं बुलाते, आप कहेंगे कि क्यों बुलाऊं उसका जवाब यह है कि इसलिए बुलाई है कि आपके बारे में वह क्या सोचता है यदि वह आ जाएं तो मैं समझता हूं कि इससे बड़ा और कोई समाधान नहीं होगा जो लड़ाई आप कर रहे हैं उसको एक रास्ता मिलेगा उसी से जुड़ा हुआ एक लेख जो श्री उर्मिलेश जी ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है यहां पर लगा रहा हूं उर्मिलेश जी से साभार इस निवेदन के साथ कि लोग इसे पढ़ें और इससे कुछ हासिल करने की कोशिश करें :

हम भी क्या लोकतंत्र हैं, दोस्तो!
हत्यारे और बलात्कारी जहां स्वतंत्रता दिवस के खास मौके पर बाइज्ज़त रिहा होते हैं और प्रखर बुद्धिजीवी, मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, प्रोफेसर, पत्रकार और लेखक-बुद्धिजीवी अपराध के किसी ठोस सबूत के बगैर सिर्फ अपने विचारों के कारण जबरन जेलों में डाल दिये जाते हैं! जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र Umar Khalid बीते दो वर्षों से जेल में हैं. उन्होने झारखंड के आदिवासियों पर अपनी Ph.D. की थी. एक अच्छे शिक्षक या समाजशास्त्री बनकर देश और समाज को काफी-कुछ दे सकते थे. पर दो साल से जेल में हैं.
किस 'जुर्म' में उन्हें जेल में रखा गया है? उन पर दिल्ली के दंगे का 'षड्यंत्रकारी' होने का ऐसा आरोप लगाया गया जिसका आज तक एक भी सबूत नहीं! अमरावती(महाराष्ट्र) में दिये Umar Khalid के जिस भाषण को आरोपपत्र में सबूत के तौर पर पेश किया गया, उसमें न तो हिंसा या दंगा भड़काने जैसे किसी आह्वान का एक भी वाक्य या शब्द है और न ही 2020 के दिल्ली दंगों से उक्त भाषण का कोई 'कनेक्ट' है. फिर भी वह पिछले दो साल से जेल में हैं. हम भी क्या लोकतंत्र हैं!
उमर और कन्हैया सहित JNU के कई छात्रों पर सन् 2016 में राजद्रोह का मामला थोपकर उन्हें जेल में सडाने की योजना थी. पर आज तक सरकारी एजेंसियां 'एंटी-नेशनल नारे' लगाने का एक भी सबूत नहीं पेश कर सकीं! हम भी क्या लोकतंत्र हैं, दोस्तो!
विख्यात लेखक और बाबा साहब डाॅ बी आर अम्बेडकर के खानदान से सम्बद्ध प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे भी लंबे समय से जेल में हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार गौतम नवलखा जैसे बुजुर्ग को भी सिर्फ उनके विचारों के कारण जेल में रखा गया. इन दोनो के अलावा मुंबई और अन्य जगहों से कई अन्य लोगों को एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किया गया था. वे सभी जेल में हैं. झारखंड के स्टेन स्वामी भी इसी मामले भी गिरफ्तार किये गये थे. उस 84 वर्षीय बुजुर्ग की पिछले वर्ष जुलाई में गिरफ्तारी की हालत में ही मौत हो गयी.
हम भी क्या लोकतंत्र हैं दोस्तो!
भारतीय जेलों में विचाराधीन कैदियों की बढती संख्या का मामला भी कम चिंताजनक नहीं. सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक सन् 2020 में भारत की जेलों में 3 लाख 71 हजार से ज्यादा विचाराधीन कैदी थे. एक अनुमान में SC, ST, OBC और Minority Community के कैदियों की संख्या 78 फीसद से भी ज्यादा बतायी गयी है.
हम भी क्या लोकतंत्र हैं दोस्तो!

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