बिहार उत्तर प्रदेश पर असली नज़र है
बिहार और उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी ज्यादा है !

पिछले दिनों हमने देखा मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ हरियाणा महाराष्ट्र और अभी हाल में दिल्ली किस तरह से भाजपा ने अपने कब्जे में कर लिया है।
यह किसी को भरोसा नहीं था कि इन राज्यों में ऐसा होने जा रहा है लेकिन ऐसा हुआ मीडिया ने बहस करके यह समझा दिया कि जनता भाजपा के पक्ष में थी।
उत्तर प्रदेश में भी यही हुआ था जो आम आदमी को भी इस बात की खबर और विश्वास था कि भाजपा नहीं आ रही है लेकिन भाजपा आई।
अब सवाल यह है कि आने वाले दिनों में बिहार में चुनाव होने वाले हैं बिहार भाजपा के लिए उतना मुफीद राज्य नहीं है, लेकिन अभी जिस तरह की भाजपा की योजनाएं हैं और देश की लोकतंत्र की रक्षा की संस्थाएं हैं वह किस तरह से घाल मेल कर रही हैं, यह किसी से छुपा नहीं है।
पिछले दिनों राष्ट्रीय अधिवेशन में बिहार के प्रमुख विपक्षी दल के नेता श्री तेजस्वी यादव ने यह स्वीकार किया था कि अभी तो बिहार में बहुत तरह की ऐसी नीतियां लागू की जाएगी जिससे उनको हराया जा सके।
हमें गंभीरता से विचार करना होगा की आने वाले चुनाव में बिहार के बाद अन्य प्रदेशों को किस तरह से भाजपा प्रदेश बनाने की योजना जारी रहेगी।
उत्तर प्रदेश में पिछले लोकसभा चुनाव में यह पता चल गया कि भाजपा के खिलाफ इस तरह का माहौल है लेकिन उपचुनाव में गणित कुछ और था और वहां के मुख्य विपक्षी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष इस बात को चिल्ला चिल्ला के कहते हैं कि ईवीएम किसी तरह भी विश्वसनीय नहीं है।
समय रहते उत्तर प्रदेश और बिहार को विशेष रूप से पूरे देश के लोगों को विश्वास में लेकर एक आंदोलन खड़ा करना चाहिए जिसमें जनता सड़क पर आए और ईवीएम की बचाए बैलट पेपर से चुनाव कराया जाए और तब तक यह आंदोलन जारी रहे जब तक इस मांग को मान ना लिया जाए।
यह भी विचारणीय है कि कांग्रेस क्या चाहती है पिछले दिनों ऐसा देखने में आया है कि कांग्रेस कई प्रदेशों में अपनी गलत रणनीति की वजह से चुनाव हार चुकी है उसके पीछे कांग्रेस में बैठे संघ के विचारधारा के लोग ज्यादा जिम्मेदार हैं।
राहुल गांधी को इन लोगों से भिन्न माना जा सकता है और उनके साथ इंडिया गठबंधन की अवधारणा के साथ आगे बढ़ाने की जरूरत है और उनको यह समझने की जरूरत है कि यह समय बिहार और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को बढ़ाने का नहीं है यह समय उत्तर प्रदेश और बिहार में भाजपा को ना आने देने की है।
जयराम रमेश कन्हैया कुमार और बहुत सारे ऐसे नाम हैं जो कांग्रेस में बैठकर के संघ की मानसिकता को ज्यादा बल देते हैं।
जब आज नेताजी नहीं है माननीय शरद यादव जी नहीं है आदरणीय लालू प्रसाद यादव जी अस्वस्थ हैं ऐसे में बहुत जरूरी है कि नई पीढ़ी को अपने इर्द-गिर्द ऐसे लोगों को रखने की जो हमारे वरिष्ठ नेताओं के विचारधारा को सहयोग कर सके और वर्तमान नेतृत्व को संघर्षील बनाए रखने में सहयोग करें।
जबकि यहां भी अक्सर यह दिखाई देता है कि ऐसे तत्व समय-समय पर इस विचारधारा को नुकसान पहुंचाते रहते हैं उनका जिक्र करना जरूरी नहीं है।
लेकिन जरूरत पड़ने पर उनके बारे में बताया जा सकता है।
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