5 जुल॰ 2009

समझ और व्यग्रता

समझ और व्यग्रता
- लाल रत्नाकर
मायावती जी की व्यग्रता बढ़ रही है की दलित अब उनकी दलित विरोधी छवि को समझ गए है, यह बात संभवतः उनको समझ में अब भी नहीं आ रही की गाँधी और इंदिरा गाँधी की समझ को अपना सरोकार बनाए जाने से पहले - बाबा साहब और कांशी राम जी के मिशन को भी नहीं समझ पाई है , उसके लिए मन में वह ज्वाला होनी थी जो दूर - दूर तक उनमे कहीं नज़र नहीं आती.
समय सब कुछ सिखा देगा इनका प्रयोग सदियों के दलित आन्दोलन को पलीता लगा गया है, सतही लोकप्रियता से सत्ता की चाभी इनको कभी नहीं मिली,इनका इस्तेमाल वर्ग संघर्ष के एक धारदार हथियार के रूप में किया गया, सहज पिछडे और दलित राज्य की स्वीकार करने की स्थिति अभी इस देश में उत्पन्न नहीं हुयी है.
अभी भी गुंजाईश है मन बड़ा बनाईये घबराईये मत पिछडों और पिछडो की सबसे मजबूत जाति यादवों से ईमानदारी से हाथ मिलाईये तभी देश की सत्ता पर पहुँच सकती है पर ब्राहमणों जैसे गठजोड़ से नहीं.
दोनों की ईमानदारी और हिस्सेदारी की न्यायिक समझ से ही यह संभव है अन्यथा भटकाव ही भटकाव है !

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