9 जुल॰ 2009

घोटाले में घोटाला........................?

अब ये दिन आ गए है सपा के -जो अमर सिंह को भायेगा वही सपा कि निति होगी -?

जहां बसपा होगी, वहां सपा नहीं: अमर

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। समाजवादी पार्टी केंद्र सरकार को समर्थन भले कर रही हो, लेकिन उसका मन कांग्रेस से अब भर गया है। कांग्रेस से रोज-रोज के गिले-शिकवे से आजिज सपा महासचिव अमर सिंह ने दो टूक कह दिया है कि जहां बसपा होगी, वहां सपा नहीं रह सकती। सिंगापुर में अपना इलाज करा रहे सिंह कांग्रेस से इतने आहत हैं कि इस मसले पर फैसले के लिए वह अपनी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक बुलाए जाने की कोशिशों में जुट गए हैं।

अमर सिंह ने सोमवार को सिंगापुर के अस्पताल से ही वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए दिल्ली में पत्रकारों से वार्ता की। उन्होंने कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन कहा, 'इस बार बात सत्यव्रत चतुर्वेदी और दिग्विजय सिंह के बयानों की नहीं है। एक बड़े नेता ने सपा और बसपा को एक तराजू में तौला है। इसलिए फैसले की घड़ी आ गई है। इसके लिए वह सपा प्रमुख मुलायम सिंह से राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक बुलाने की मांग करेंगे।'

गौरतलब है कि बीते दिनों राहुल गांधी अमेठी दौरे पर गए थे। उनसे मुख्यमंत्री मायावती के उस बयान पर सवाल पूछा गया था जिसमें उन्होंने अमर सिंह और दिग्विजय सिंह के मिल जाने और कांग्रेस को सतर्क रहने की बात कही थी।

अमर सिंह को कांग्रेस महासचिव का वह बयान नागवार गुजरा है, जिसमें सपा या बसपा में से किसी एक के साथ रहने के सवाल पर कहा गया था कि कांग्रेस गरीबों के साथ है। यह पूछे जाने पर कि क्या वह सरकार से समर्थन वापसी के लिए सपा कार्यसमिति की बैठक बुलवाना चाहते हैं, उन्होंने कहा कि बैठक का एजेंडा मीडिया को नहीं बताएंगे, लेकिन उनका निजी विचार है कि जहां बसपा रहे, वहां सपा को नहीं रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मसले पर बातचीत के लिए सपा के उत्तार प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव को सिंगापुर बुलाया गया है। जरूरत होगी तो मुलायम सिंह को भी बुला कर बात की जाएगी, क्योंकि इलाज के चलते वह अभी देश वापस लौटने की स्थिति में नहीं हैं। इस मुद्दे पर यहां मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव और प्रो. रामगोपाल यादव कुछ नहीं कह रहे हैं।

बीते छह साल से सपा और बसपा केंद्र में कांग्रेस सरकार को समर्थन कर रही है। अब क्या दिक्कत आ गई है? इस सवाल के जवाब में अमर सिंह ने कहा, 'संसद में कैश फार वोट कांड में मुकदमा हम पर हुआ। समर्थन कराने के कारण सपा में लानत-मलानत मेरी हो रही है। कांग्रेस सत्ता सुख भी ले रही है और हमारे लिए ऊल-जलूल बातें भी कर रही है। इसलिए बुरा लग रहा है।' अमर सिंह ने मायावती पर रीता बहुगुणा जोशी के बयान पर कहा, 'रीता ने जो कुछ कहा ठीक है, क्योंकि मायावती वही भाषा समझती हैं।' सिंह ने कहा कि मायावती ने अपना काला धन कैसे सफेद किया, उसका सारा रिकार्ड वह सोनिया गांधी को सौंप चुके हैं।








सिपाही भर्ती घोटाले में सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

Jul 08, 06:21 pm

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में बताया कि मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री रहते सिपाही बने 80 फीसदी लोग इस पद के काबिल ही नहीं हैं। राज्य सरकार ने जस्टिस डी के जैन और एच एल दत्तू की पीठ के सामने यह दलील दी।

पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि 22 हजार बर्खास्त सिपाहियों में से योग्य उम्मीदवारों को पद पर बहाल किया जाए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बर्खास्त सिपाहियों की याचिका पर अपना फैसला सुनाया था। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इन उम्मीदवारों को अलग से नोटिस जारी किया। इससे पहले राज्य सरकार की ओर से सतीश चंद्र मिश्रा ने दलील दी कि वर्ष 2005 में लगभग सभी दो लाख सिपाहियों की भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी थी। इस पर पीठ ने कहा कि इस मामले में बड़ी संख्या में लोगों का करियर दांव पर लगा हुआ है।

मायावती के करीबी और वरिष्ठ वकील मिश्रा ने कहा कि राज्य सरकार ने दो लाख सिपाहियों की बहाली का फैसला किया है, लेकिन यह कानूनी प्रक्रिया के तहत किया जाएगा। उन्होंने कहा कि दागी और पाक-साफ उम्मीदवार को चिह्नित करने की ठोस प्रक्रिया अपनानी होगी। इस पर अदालत ने कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया। बस इतनी उम्मीद जताई कि मामले का अदालती निपटारा होने तक राज्य सरकार इस 'जटिल मुद्दे' को सुलझा लेगी।

घोटाले में घोटाला ..................?


मायावती जी मिश्रा जी को सब कुछ गड़बड़ घोटाला लग रहा है सिपाहियों की भर्ती में ?

पर उनको डिग्री कालेजों के प्रिंसिपलों की नियुक्तियों में घोटाला नहीं लग रहा है क्योंकि इनसे करोणों रुपये वसूले गए है !
इन गरीबों पर रहम करो ये उनसे अच्छे सिपाही है जिन्हें अब भर्ती किया जाना है क्योंकि बड़ी मात्रा में आप को भर्ती करके वसूली करनी थी जो रुक गयी है ?

मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति को चुनौती

Jul 17, 03:14 am

नई दिल्ली, [माला दीक्षित]। भारत के इतिहास में पहली बार देश के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। एक याचिका में मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए उन्हें पद से हटाए जाने की मांग की गई है। मामले में मुख्य न्यायाधीश को भी प्रतिवादी बनाया गया है। शुक्रवार को न्यायमूर्ति आर.वी. रवींद्रन व न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी की पीठ इस पर सुनवाई करेगी।

केरल के त्रिचूर जिले के वकील और अनुसूचित जाति व जनजाति के वकीलों के संगठन लायर्स एसोसिएशन फार सोशल जस्टिस के संस्थापक पी.ए. चंद्रन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर बालाकृष्णन की केरल हाई कोर्ट के जज के तौर पर शुरुआती नियुक्ति को सवालों के घेरे में ला दिया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति को चुनौती देने का यह पहला मामला है। इससे पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.एस. आनंद की सरकारी रिकार्ड में दर्ज जन्म तिथि को चुनौती दी जा चुकी है, लेकिन बाद में वह याचिका खारिज हो गई थी।

याचिका में कहा गया है कि न्यायमूर्ति बालाकृष्णन को 26 सितंबर, 1985 को केरल हाई कोर्ट का एडीशनल जज नियुक्त किया गया था। आरोप लगाया गया है कि केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री के. करुणाकरन और केरल हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के. भास्करन ने बालाकृष्णन को हाई कोर्ट का जज नियुक्त करने की संस्तुति की थी। उस समय उनके पास हाई कोर्ट का जज बनने के लिए संविधान के अनुच्छेद 217 में बताई गई न्यूनतम योग्यता भी नहीं थी।

याचिका में कहा गया है कि बालाकृष्णन की निचली अदालत की न्यायिक सेवा और वकालत को अगर मिला दिया जाए तो उनके पास कुल 17 वर्ष छह महीने की न्यायिक सेवा का अनुभव बनता है। याचिका में मुख्य सवाल ज्युडिशियल सर्विस और ज्यूडिशियल आफिस की व्याख्या पर उठाया गया है। याचिका कहती है कि जब बालाकृष्णन को केरल हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया उस समय उनके पास जिला जज या उससे नीचे के पद पर नियुक्ति की ही योग्यता थी। संविधान में हाई कोर्ट का जज बनने की जो योग्यता दी गई है, उसके मुताबिक व्यक्ति के पास दस वर्ष तक ज्युडिशियल आफिस में काम करने या हाई कोर्ट में वकालत का अनुभव होना चाहिए।

आरोप है कि मुख्य न्यायाधीश की जब हाई कोर्ट जज के पद पर नियुक्ति ही गलत थी तो फिर वह भारत के मुख्य न्यायाधीश नहीं रह सकते। याचिका में मुख्य न्यायाधीश पर केरल हाई कोर्ट में नियुक्तियों को प्रभावित करने के साथ भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के आरोप भी लगाए गए हैं। इस संदर्भ में चंद्रन ने याचिका में यह आरोप भी लगाया है कि वह [चंद्रन] हाईकोर्ट का जज बनने की योग्यता रखते हैं। उनके मुताबिक केरल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश व कोलिजियम ने उनके नाम पर विचार भी किया था, लेकिन मुख्य न्यायाधीश पर इतना दबाव था कि उनके नाम की संस्तुति नहीं भेजी गई और दूसरे व्यक्ति को नियुक्त कर दिया गया। याचिका में और भी कई आरोप लगाए गए हैं।


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