10 नव॰ 2009

कांग्रेस नहीं - राज बब्बर की जीत- मुलायम की 'हार' |
डॉ.लाल रत्नाकर
                                   फिरोजाबाद लोक सभा चुनाव परिणाम राज बब्बर के पक्ष में गया है ,यादवों की परंपरागत सीट पर 'राज' ने कब्जा किया | यादवों के गढ़ में कांग्रेस की सेंध और अमर सिंह की नीति और नियति कारगर ?


                                                राज बब्बर ने समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार डिंपल यादव को 85 हज़ार वोटों से हरा दिया है.
समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव कन्नौज और फ़िरोज़ाबाद से जीते थे. उन्होंने फ़िरोज़ाबाद सीट छोड़ी थी जिस पर उनकी पत्नी डिंपल चुनाव लड़ रही थीं.
                                 फिरोजाबाद के चुनाव की चिंता हमने जाहिर की थी, जो होना था वह हुआ लेकिन यहाँ फिरोजाबाद की जनता का धन्यवाद  करना चाहिए, इसलिए नहीं की वह मुलायम के बेटे की पत्नी और उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष की बीबी श्रीमती डिम्पल यादव को पराजित किया है.

                                  बल्कि यह सन्देश दिया है की वफादारी का मतलब गुलामी नहीं होती पहले राज बब्बर को पार्टी से निकाला और जहाँ से बहू लाये, वहा से जब सामने राज बब्बर थे अतः राजबब्बर के सामने घर की बहू को लाना एक बड़ी भूल थी.अखिलेश यादव के नेतृत्व और माननीय मुलायम सिंह यादव के बंशवाद का मुकाबला वह भी 'राजबब्बर' से राजबब्बर जब मुलायम के साथ आये थे तब शायद अमर सिंह सपा में नहीं थे, राजबब्बर की राजनितिक प्रतिबद्धता और चारित्र समाजवादी सोच रखते है, जो अभिनेता के रूप में जब चोटी पर थे संभवतः तब सपा के साथ खड़े थे.
                                 नेताजी कहे जाने वाले माननीय मुलायम सिंह यादव के नेता के रूप में अमर सिंह का काबिज होना सपा ही नहीं पिछडों के नेतृत्व के लिए भूचाल ही है | 

                                  कांग्रेस को यहाँ जीत नहीं मिली है यहाँ राजबब्बर जीते है , और राजबब्बर हर उस व्यक्ति के अजीज है जो ईमानदार और मेहनतकश है 'फिरोजाबाद' के मतदाताओं  ने अभिनेता नहीं नेता चुना है. मुलायम के नए राजनितिक गठजोड़ और कारपोरेट पोलितिशियन और जनता की उपेक्षा ने यह हालात पैदा किये या और कोई बात है कोई कारण तो होगा जिससे मुलायम के घर भर के लोग राजनीति ही पसंद कर रहे है |

                                    राजबब्बर कोई इस्तेमाल करके फेंक दिये जाने वाले कार्यकर्ता नहीं थे जिन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था इतना ही नहीं राजबब्बर विश्वानाथ प्रताप सिंह के साथ किसानो के लिए लड़ते रहे वह आज होते तो जरुर बहुत खुश होते,आज किसानों मजलूमों की बात करने वाला नेता धीरे - धीरे लुप्त होता जा रहा है कल के मुलायम और आज के मुलायम में बड़ा फरक आया है , इसके लिए कौन जिम्मेदार है वह जग जाहिर है .
                                  जब सामाजिक न्याय का आन्दोलन बड़ा होना चाहिए था तब पूंजीवादी ताकतों के सहारे समाजवादी शक्तियां आगे आने की कोशिश में लग गयी है, यद्यपि यह कहना बहुत कठिन है की भारतीय राजनीति में जिन लोगों ने व्यवस्था बदलने की कोशिश की वह व्यवस्था का हिस्सा होकर रह गए.
                                 समाजवाद के लिए बलिदान चढ़ना शायद 'लोहिया' को राश आता रहा होगा पर उनके चेले समाजवाद के जिस जंगल में उलझे है वहाँ उनकी सम्पदा खो गयी है, मरांडी की दौलत का हिसाब किताब सी बी आई कर रही है, यह बात कहते हुए हमें प्रभाष जोशी जी का एक इंटरव्यू रविवार.कॉम से स्मरण हो रहा है -
                     ''जैसे सिलिकॉन वैली अमेरिका में नहीं होता, अगर दक्षिण भारत में आरक्षण नहीं लगा होता. दक्षिण के आरक्षण के कारण जितने भी ब्राह्मण लोग थे, ऊंची जातियों के, वो अमरीका गये और आज सिलिकॉन वेली की हर आईटी कंपनी का या तो प्रेसिडेंट इंडियन है या चेयरमेन इंडियन है या वाइस चेयरमेन इंडियन है या सेक्रेटरी इंडियन है. क्यों ? क्योंकि ब्राह्मण अपनी ट्रेनिंग से अवव्यक्त चीजों को हैंडल करना बेहतर जानता है. क्योंकि वह ब्रह्म से संवाद कर रहा है. तो जो वायवीय चीजें होती हैं, जो स्थूल, सामने शारिरिक रूप में नहीं खड़ी है, जो अमूर्तन में काम करते हैं, जो आकाश में काम करते हैं. यानी चीजों को इमेजीन करके काम करते हैं. सामने जो उपस्थित है, वो नहीं करते. ब्राह्मणों की बचपन से ट्रेनिंग वही है, इसलिए वो अव्यक्त चीजों को, अभौतिक चीजों को, अयथार्थ चीजों को यथार्थ करने की कूव्वत रखते है, कौशल रखते हैं. इसलिए आईटी वहां इतना सफल हुआ. आईटी में वो इतने सफल हुए.''   
                                  
     

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