21 नव॰ 2009


बनारस से लौट कर.

डॉ.लाल रत्नाकर 
जब अब गया तो वहाँ वो नहीं थे जिनसे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय हुआ करता था पर अबकी लगा यह वह नहीं है, यह बदलता हुआ स्वरुप उसी विश्वविद्यालय का है जहाँ की बुलंदी की गूंज चारों ओर फैलती है जो कुछ दिखाई दिया उसके लिए जो जिम्मेदार थे वो भयावह थे उनकी सोच और उनकी समझ ठीक ही होगी क्योंकि जो पढ़ते समय सुनायी देता था , वह इतना साफ दिखाई दे रहा था, उन दिनों हमारे एक मित्र थे जिनकी काबिलियत की बात करना इसलिए भी यहाँ उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि आज वह कनाडा के एक यूनिवर्सिटी में बड़े ओहदे पर है | तब यह गणित समझ नहीं आता था वह अब समझ!आया क्या होगा इस देश का जहाँ इतने अपराधिक मामले और विश्वविद्यालय में उनकी अनदेखी , जो आया जहाँ भी आया वहा उसके आका , उनकी जय जय जयकार करती जाती पीढ़ी , सहज रूप में दिखाई दे रही है | 

1 टिप्पणी:

M VERMA ने कहा…

बनारस फिर भी बनारस है

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