6 दिस॰ 2009








समाजवाद और परिवारवाद का पतन या उत्थान करते आज के नेता 
डॉ. लाल रत्नाकर
वाद ''कभी भी ठीक नहीं होता यह कहते हम थकते नहीं है पर आचरण में बिलकूल विपरीत ''जब भी वरन या चयन की बात आती है तो सबसे पहले अपना और पराया दिखाई देने लगता है जब तक यह चलन नहीं रहा होगा तब तक नेता ही ही नहीं पण्डे पुजारी दुराचारी डकैत सभी मज़बूत थे पर जब से यह रोग पकड़ा तब से सबकी थू -थू हो रही है , अब वह अमर हो या कल्याण इनका क्या काम रह गया है समाजवाद के लिए ? पर दिल है की मानता नहीं - जब कल्याण की तूती बोल रही थी उनके पुत्र का क्या जलवा था, पूरा प्रदेश ही उनकी जागीर थी, आज भी जिनकी जागीर प्रदेश बना है उन्हें रोकने के लिए - उच्च से सर्वोच्च तक सब लगे है की कही सब कुछ न उलट जाये , पर अब रूक गया है बदलाव प्रदेश में तो अब भी आतंक ही का माहौल है और अब भी बदलाव और  विकास तो दूर राजनैतिक चेतना भी समाप्त हो गयी है,

अभी जब मै पिछले दिनों अपने एक शुभ चिन्तक से मिला तब दो तरह की दृष्टि देखने को मिली - एक यह की गुंडा यदि अपना है तो बहादुर , विद्वान् पराया है  तो पराया यानि जब तक गुंडे का वजूद नहीं था तब वह निक्कम्मा था और विद्वान् तब महत्व का ''पर यह घाल मेल'' चारों तरफ है राजनीति क्या समाज क्या ' हम जिस भूमंडलीकरण के मुगालते में अपनी मान्यताओ को छोड़ या तोड़ रहे है वह उनको भी तोड़ेगी जो यह मानकर चल रहे है की अब तो उन्होंने सब हथिया लिया है | आज फिर से वही ताकतें सर उठा रही है जो इतनी उज्जड होगी की उनसे लड़ना आसान नहीं होगा , यही लड़ाई राजनीति की बिडम्बना है की दलाल नुमा लोग समाज वाद लाना एसा ही होता है, आइदियोलोजिस्त जिनका हस्र कम से कम से कम येशा न होता | 
इसी आजादी और समाजवाद की लडाई हम लोग चिल्ला चिल्ला कर लड़ रहे थे ? यही हाल शिक्षा का है वहां भी सब एसे ही बैठे है प्रिंसिपल टीचेर बाबु सब घुस ले रहे क्योंकि सब देकर आये है , क्योंकि -लोग या तो कृपा करते हैं या खुशामद करते हैं

लोग या तो ईर्ष्या करते हैं या चुगली खाते हैं
लोग या तो शिष्टाचार करते हैं या खिसियाते हैं
लोग या तो पश्चाताप करते हैं या घिघियाते हैं
न कोई तारीफ़ करता है न कोई बुराई करता है
न कोई हँसता है न कोई रोता है
न कोई प्यार करता है न कोई नफ़रत
लोग या तो दया करते हैं या घमंड

दुनिया एक फँफुदियायी हुई-चीज़ हो गई है। 
सौजन्य -अनुभूति/रघुबीर सहाय
और यही कारण है की आज जिस परिवेश में हम है वहां भीड़ तो है पर भारी नहीं है, यही कारण है की यहाँ ईमानदारी नहीं है लूट की छूट काम की कीमत जहाँ इज्जत में वफ़ादारी नहीं है, साहब गलियां खाते है चमचे मुह तक रहे होते है की यह रहेगा या जायेगा ? नेत्रित्व किसका रहेगा यह तय नहीं है मुगालता यह है की भाई रहेगा या भतीजा रहेगा पुत्र की जमात में ईमानदारी नहीं है | यहा इतनी मारामारी है की परिवार की कोई जिम्मेदारी नहीं है ''नेता राजनितिक विचारधारा का होता है उसी विचारधारा का लोग समर्थन करते है'' बाल बच्चे तो सबके होते है पर इस कदर कोई बौखलाया नहीं होता, राहुल बाबा को लम्बे समय के बाद ब्रह्मिन राजनीति का नेता बनाया जा रहा है जिस ब्रह्मिन राज का पतन विश्वनाथ प्रताप ने कांग्रेस छोड़ के किया था अब वही अमर सिंह करने वाले है मुलायम सिंह को छोड़ कर उनकी जमीन तैयार है | मुगालते में जो हो ओ जाने ?  

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