6 दिस॰ 2009

हाइकु -

डा.लाल रत्नाकर 




बाथ रूम में 
नहीं है वे जिन्हें
होना था वहाँ 

जिससे मिला 
वह कोई और था 
निकाला काम

जब बात हो
यह कह देना मै 
नहीं आऊंगा 

उसने मुझे 
चूमा बहुत धीमे 
मैंने कसके 

सुबह उठा 
जैसे संगिनी उठी 
सपने टूटे 

तारों की छाँव 
नदी के किनारे का 
हमारा गाँव 

वह नज़र 
भोगा जब उसका 
मैंने कहर 

जिसने सुना 
भरोसा नहीं किया 
आरोपों पर 

निकाला मैंने 
दिल में चुभती सी 
उनकी यादें 

नहीं चाहते 
वह मै आगे आऊ
राजनीति में 

कुचक्र गढ़ा
जान बूझ करके 
तब उसने 

जब सहज 
हो रहा था उसका 
उजड़ा मन

धैर्य नहीं था 
उसके चक्कर में 
फसा हुआ था  

परम वीर 
मिलना ही चहिये
बेईमानों को 

बटी रेवड़ी
अपनो अपनो को  
हमें मिली थी 

वह खुश थे 
सपना भाग गयी 
बेवफा  बीबी 

आप कहाँ थे 
लूट रहा था जब 
घर उनका 

हम सो गए 
जब लूट रहा था 
पडोसी घर 

वह सो गए 
जब बन रहा था 
उनका घर 

षडयंत्र हाँ 
सरकारी दफ्तर 
रचवाते है

उसने पूंछा 
बिकती है नौकरी 
चपरासी की

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