आज यहाँ के आदमी को आदमी ही खा रहा है
आज यहाँ के
आदमी को आदमी
ही खा रहा है
जय प्रकाश
का कातिल दानव
मानव कैसे
मानवता के
हत्यारे ठेकेदारों
दया कहाँ है
राजनीति के
मक्कारों की हालत
हत्यारों की सी
जहाँ निक्कमे
नक्कारे तैनात रहें
वहाँ सु रक्षा
खाने के दाने
लेप दिया जहर
तुरंतो खाना
किसने झेला
शहर का कहर
हंस हंस के
मरना मेरा
सत्यार्थ के खातिर
यूँ कब तक
लड़ रहा हूँ
जड़वत ज़माने
से हिम्मत से
आज नहीं तो
कल आना ही होगा
सामने तुम्हे
छुप छुप के
तीर भी चलाने से
कौन मरता
ज़माने और
कई ज़माने तुम्हे
निगल लेंगे
------------डॉ.लाल रत्नाकर
3 टिप्पणियां:
बहुत ही गजब रचना है ..
बहुत उम्दा!
आपने ब्लॉग देखा ख़ुशी हुयी - रत्नाकर
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