27 जन॰ 2010


भाष्कर से साभार -
गणतंत्र दिवस स्‍पेशल : 1950 से 2010 तक
Bhaskar Special
लंबी चली लड़ाई। आखिर मिली आजादी। बनाए अपने कानून। जरूरत पड़ने पर बदले भी। कभी तोड़े, कभी मरोड़े भी। अपने हिसाब से परिभाषित किए। लेकिन जीवित रही आत्मा संविधान की। जलती रही ज्योति आजादी की। हर तरह की आजादी की। इस साठ साल के सफर की यादें - कुछ मीठी हैं तो कुछ खट्टी भी। 

बना अपना संविधान : हमें 15 अगस्त 1947 को लगभग एक सदी के ब्रिटिश शासन से आजादी मिली। लेकिन 26 जनवरी 1950 को देश गणतंत्र बना। इस दिन ब्रिटेन के राजा की जगह चुने हुए राष्ट्रपति को भारत का राष्ट्राध्यक्ष बनाया गया और लागू किया गया देश का अपना संविधान। इस संविधान को आजादी के बाद बनी कान्स्टीटच्यूंट एसेंबली या संविधान सभा ने तीन साल चली बहस के बाद तैयार किया।

पहला गणतंत्र दिवस : ब्रिटेन के राजा के प्रतिनिधि के रूप में काम कर रहे अंतिम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने सबसे पहले भारत के एक संप्रभु गणराज्य के रूप में जन्म की घोषणा की। फिर देश के पहले राष्ट्रपति चुने गए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने शपथ ग्रहण की। उन्हें राजगोपालाचारी के स्थान पर राष्ट्राध्यक्ष घोषित किया गया।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने तब : जनता को संबोधित किया - पहले हिंदी में और फिर अंग्रेजी में। उन्होंने कहा, अपने लंबे इतिहास में हम पहली बार इस विशाल भूभाग को एक ही संविधान और एक ही गणराज्य के अधीन आते देख रहे हैं।

राष्ट्रपति बने राष्ट्राध्यक्ष : राष्ट्रपति होता है राष्ट्राध्यक्ष। वह प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है और मुख्य न्यायाधीश की भी। हमारे यहां वेस्टमिंस्टर सिस्टम ऑफ गवर्नेस होने के कारण सभी शक्तियां संसद में और चुनी हुई सरकार का मुखिया होने के नाते प्रधानमंत्री में निहित होती हैं। राष्ट्रपति केवल मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार ही कार्य करता है। फिर भी वह सरकार के फैसलों को एक बार मंजूरी देने से इंकार कर सकता है। पर यदि संसद वही विधेयक उसे दोबारा भेजती है तो उसके लिए मंजूरी देना अनिवार्य होता है। हां, वह उसे अनिश्चितकाल के लिए अपने पास रख भी सकता है। लेकिन वित्त विधेयक को उसे या तो मंजूरी देनी होती है या नामंजूरी। वह उसे पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता। राष्ट्रपति सार्वजनिक महत्व के किसी प्रश्‍न पर अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श ले सकता है लेकिन वह इसे मानने के लिए बाध्य नहीं है।

ऐसे बना संविधान : देश का संविधान बनाने के लिए कैबिनेट मिशन के प्रावधानों के अनुसार राज्यों की विधान सभाओं द्वारा नवंबर 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया था। सभा ने 2 साल 11 महीने और 17 दिन में 105 बैठकें कर संविधान बनाया। डॉ. राजंेद्र प्रसाद सभा के स्थाई अध्यक्ष थे और बीएन राव संवैधानिक सलाहकार। फरवरी 1948 में डॉ. भीमराव आंबेडकर को कांस्टीटच्यूशन ड्राफ्टिंग कमेटी का अध्यक्ष चुना गया। इसी कारण उन्हें संविधान निर्माता कहा जाता है। 26 नवंबर 1949 को संविधान अंगीकार किया गया।

सबसे लंबा लिखित संविधान भारतीय संविधान (395 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां व 95 संशोधन)

सबसे पुराना लिखित संविधान : यूनाइटेड स्टेट्स (1787)

तीन प्रमुख अलिखित संविधान : यूनाइटेड किंगडम, इजरायल व न्यूजीलैंड

इन्हें लेकर रहा है विवाद

शाहबानो मामला : इंदौर की शाहबानो को उसके पति ने 1978 में तलाक दे दिया था और बाद में गुजारा भत्ता देने से भी इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में फैसला किया और उसे भत्ता दिए जाने के आदेश दिए। राजीव गांधी सरकार ने इस आदेश को अप्रभावी करने के लिए मुस्लिम महिला कानून 1986 बनाया। इसके तहत गरीब मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को गुजारे भत्ते से वंचित कर दिया गया।

जाति-आधारित जनगणना : आजाद भारत के इतिहास में पहली बार वर्ष 2001 में जाति आधारित जनगणना की गई, जिस पर आपत्ति जताने वाले पहले व्यक्ति तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन थे। असल में महज दलितों की गणना में ही जाति को आधार बनाया गया था। इससे पहले जाति आधारित जनगणना 1930 में ब्रिटिश शासन के दौरान की गई थी।

आपातकाल में नागरिक अधिकार समाप्त : तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में अदालत द्वारा अपना निर्वाचन अवैध ठहराए जाने पर देश में इमरजेंसी लगा दी। पूरे विपक्ष को जेल में डाल दिया और मीडिया पर सेंसरशिप लगा दी।

इन कानूनों का है अब इंतजार

कॉपीराइट संशोधन विधेयक : फोटोग्राफर्स के कॉपीराइट की अवधि उनके जीवनकाल व अतिरिक्त ६क् वर्ष करने का प्रस्ताव रखा गया है। फिल्म के मामले में निर्देशक व निर्माता को संयुक्त लेखक माना गया है।

इंश्योरेंस व बैंकिंग रेगुलेशन विधेयक : इन्हें संसद की स्थाई समितियों की मंजूरी का इंतजार है। इसके बाद ही इन्हें संसद में रखा जाएगा।

महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा व विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित करने को लेकर देश में लंबे अर्से से बहस चल रही है।

शिक्षा सुधार : केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय दो प्रमुख विधेयकों के सहारे कॉलेजों में कैपिटेशन फीस व अन्य धांधलियों पर रोक लगाना चाहता है।

न्यायपालिका बनाम विधायिका : राइट टू प्रॉपर्टी का कानून नेहरू सरकार की औद्योगीकरण की नीति में आड़े आ रहा था, क्योंकि भूस्वामी अपनी जमीन बेचने को तैयार न थे। 1951 में केंद्र सरकार ने संविधान की नवीं अनुसूची में संशोधन कर निजी संपत्ति का जनहित में सरकार द्वारा अधिग्रहण करने का प्रावधान किया। मार्च 1964 में केशव सिंह नाम के व्यक्ति को उत्तर प्रदेश विधानसभा ने सदन की अवमानना का दोषी ठहराते हुए जेल भेजने के आदेश दिए। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उसे जमानत दे दी। नाराज हो विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष ने जमानत देने वाले दोनों जजों को भी जेल भेजने के आदेश जारी कर दिए।

अपने साथी जजों की गुहार पर हाईकोर्ट की पूर्ण बेंच ने उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। गोलकनाथ केस के लिए 1971 में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के 11 जजों की पीठ बनी जिसने बहुमत से फैसला दिया कि यदि संसद द्वारा पारित कोई संशोधन आम आदमी के मूल अधिकारों से छेड़छाड़ करता है तो उसे खारिज किया जा सकता है। केंद्र सरकार ने 24वां संशोधन कर उसे उलट दिया।

राष्ट्रपति भी घिरे कंट्रोवर्सी में : टक राव तब देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बीच ऊपरी सौहार्द के बावजूद एक-दो अवसरों पर तनाव सतह पर आ गया। जीर्णोद्धार होने के बाद सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने सहमति दे दी थी लेकिन पंडित नेहरू को डर था कि इससे देश में सांप्रदायिक सौहार्द पर असर होगा। लेकिन डॉ. प्रसाद ने अपना फैसला बदलने से इनकार कर दिया।

हालात अब फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल लगाने के इंदिरा गांधी के प्रस्ताव पर आधी रात में दस्तखत कर राष्ट्रपति पद की गरिमा को ठेस पहुंचाई। यदि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति पद की स्वतंत्रता के प्रतीक थे तो फखरुद्दीन अली अहमद उसे राजनीतिक बनाने के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार। यही कारण है कि अब राष्ट्रपति बनने वाले हर व्यक्ति को जोर देकर कहना पड़ता है कि वह रबर-स्टांप राष्ट्रपति नहीं होगा।

इन संविधान संशोधनों पर हुईं बहस हजार

38वां 1975 : राष्ट्रपति, राज्यपाल व उपराज्यपालों द्वारा घोषित आपातकाल को न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर किया

44वां 1978 : आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी द्वारा लाए सभी संशोधन निरस्त

91वां 2003 : दल-बदल कानून में संशोधन कर केवल संपूर्ण दल के विलय को मान्यता। संसद व विधानसभाओं में सदस्य संख्या के 15 प्रश. ही मंत्री बन सकते हैं।

39वां 1975 : इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अदालत द्वारा अवैध घोषित किए जाने पर लाया गया। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष व प्रधानमंत्री के निर्वाचन को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।

73वां 1992 : गांवों की जनता की सरकार में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए ग्राम पंचायतों को जोड़ा गया, पंचायती राज व्यवस्था का जन्म हुआ

ये हैं तीन प्रमुख स्तंभ 

1. विधायिका यानी संसद और विधानसभाएं जो कानून बनाती हैं। संसद जरूरत के मुताबिक संविधान में संशोधन भी करती है।

2.न्यायपालिका यानी अदालतें जो कानून के अनुसार न्याय करती हैं।

3.कार्यपालिका यानी सरकारी अधिकारी जो संविधान के अनुसार सरकार चलाते हैं।

संविधान को सिरे से बदलने की कोशिश : संविधान को 95 बार संशोधित किया जा चुका है। पहला संशोधन 1951 में था। बार-बार संविधान को संशोधित करने की जरूरत से आजिज आ कर केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 22 फरवरी 2000 को भारत के मुख्य न्यायाधीश रह चुके जस्टिस एम एन वेंकटचलैया की अध्यक्षता में एक ग्यारह-सदस्यीय संविधान समीक्षा आयोग बनाया। आयोग ने 30 अप्रैल 2002 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। आयोग ने 248 सिफारिशें कीं लेकिन इनमें से अधिकतर अभी तक लागू नहीं हो पाई हैं।

इसका हुआ सर्वाधिक दुरुपयोग : पहली बार राष्ट्रपति शासन पंजाब में 1951 में लगा था जब बंटवारे के बाद वहां राजनीतिक स्थिति सरकार बनाने के लिए माकूल नहीं थी। फिर नेहरू ने 31 जुलाई 1959 को केरल की नंबूदरीपाद सरकार को यह कहते हुए बर्खास्त कर दिया था कि राज्य में कानून व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। यह पहली बार था कि किसी राज्य में अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल कर चुनी हुई सरकार को बर्खास्त किया गया था। यह तब से 114 बार लग चुका है।

1 टिप्पणी:

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी है धन्यवाद। जय हिन्द

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