गुरुवार, ७ जनवरी २०१०
नेता जी के नाम खुला पत्र
नेता जी के नाम खुला पत्र
आदरणीय नेता जी
'१९९२ के बाद आपसे मुखातिब हूँ इस बीच परछाई की तरह आपकी तस्वीर और राजनीत की शक्ल लिए चलता और लड़ता रहा हूँ सोचा था एक यैसे ईमानदार और इज्जतदार शख्स के पीछे खड़ा हूँ जहाँ से 'देश की शक्ल' बदल देने की हिम्मत , ताकत और जज्बा दिखाई दे रहा था'
"मुलायम सिंह जी मान जाओ जिनके दिल यह कहने को तैयार बैठे है की सपा में सुधार हो जायेगा अमर सिंह के जाने से.अमर को अगर फिर मनाया तो वह निराश होंगे |"
अमर सिंह आपको लगता है की नेता है पर येसा नहीं है आपके पास आने से पहले अमर सिंह को कौन जानता था उनकी हैशियत 'मुलायम की वजह से बनी है' पर आपके समझ में यह क्यों नहीं आता की आपकी राजनैतिक दुर्दशा अमर सिंह की वजह से हुई है "सितारे और पूंजीपति तो मड्राते ही उसी पर या वही है जहाँ संभावनाएं होती है " जयाप्रदा , जया बच्चन या न जाने कितनी सिने तारिकाओं से काबिल सक्षम महिलाएं पिछड़ों और मुसलमानों तथा दलितों के परिवारों में तब भी थी और आज भी है "जिनके आरक्षण के लिए आज आप लडाई कर रहे हो महिला आरक्षण में हिस्सेदारी के लिए" पर क्या उक्त प्रकार की नारी को - राज्य सभा , लोक सभा या अपनी सरकार में किसी काबिल पद पर आपने बैठाया , जरा सोचिये उन्ही के पतियों, पिताओ, भाईओं ने लड़ - लड़ कर आपको बुलंद किया था, पर उस सारी बुलंदी की मलाई अमर की मंडली चट कर गयी , अब देखना ये है की उस मंडली के लोग कहाँ जाते है . एक बात और है नेता जी "सदियाँ लग जाती है किसी आन्दोलन को खड़ा करने में पर पल भर की बेरुखी ध्वस्त कर देती है क्या आपको याद है इसी अमर के चलते कितने यादवों को आपने दण्डित किया था, यदि कहें तो सूचि संलग्न कर दूँ पर उनका नाम लिखना भी ना इंसाफी ही होगी, निठारी से लेकर आपकी चारदीवारी तक के लोंगों ने अमर की वजह से कोसा था आपको "राजनीति में कोई आये कोई जाये पर इमान और इज्जत से राजनीति में रहना आपसे सिखा था फूलन को भी आप पर ही भरोसा था - पर इस अमर ने इज्जत और इमान का सौदा ही नहीं इतने घटिया तरीके से बेचा है, वैसे तो कोई बेसहारा माँ भी अपने औलाद को न बेचती इन्हें क्या पता "कितनों के पिताओं ने अपने बच्चों के होम वर्क भी नहीं देखे होंगे और पागलों के तरह पार्टी के लिए जान तक दे दिये, दलालों की सूचि में नाम आ जाये इसलिए अमर के चक्कर काटने और कटाने वालों को हमने भी देखा है . "लोहिया के कितने यैसे चेले थे .
अतः नेताजी वक्त आ गया है अमर सिंह के सपा से चले जाने का आप विश्वाश करो अभी इनको जाने दो,यह फिर लौट कर आपके पास ही आयेंगे जब आप की शक्ति लौट आएगी 'वह समझदार है आपको यैसे ही नहीं छोड़ के जा रहे है वह जानते है अब उनका काम ख़तम हो गया है हिसाब किताब यैसे लोग नहीं करते है देते भी खूब है लेते भी खूब है |
सादर |
(- चित्रकला जैसे कम लोकप्रिय विषय में पढाई करने के उपरांत जब कला कुल स्वर्गीय राय कृष्णदास के सुझाये "पूर्वी उत्तर प्रदेश की लोक कला" पर प्रोफ.आनंद कृष्ण के निर्देशकत्व में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से शोध किया था. इस कम के लिए जब मै पूर्वी उत्तर प्रदेश का सर्वे किया था और उस समय जो 'सामाजिक सरोकार - सामाजिक भेदभाव नज़र आया था' लगा था यह शायद राजनीति से दूर हो जायेगा उसी जज्बे के साथ राजनीति के करीब आया था १९९१ का गड्वारा, जौनपुर से विधान सभा का चुनाव समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) से पर जल्दी ही मोह भंग हो गया था, पर आज इसलिए यह लिख रहा हूँ की एक डरपोक से ताकतवर कैसे डरता है -?)
मंगलवार, २८ जुलाई २००९
सामाजिक सरोकारों से जुड़े संस्थान बनाने होंगे .
डॉ.लाल रत्नाकर
सामाजिक बदलावों में यादवों के कौशल की जीतनी तारीफ की जाय वह कम है क्योंकि इन्होने ईमानदारी और लगन से इस देश कि सेवा की है,परन्तु उसके बदले जो गति उनकी कि गयी है वह कितनी दर्दनाक है,यह दशा दुनिया के अनेकों देशों में है ओबामा कि स्थिति कोई सदियों से शासक कमुनिटी का तो नहीं था, पर एक राजनितिक परिदृश्य बना जिससे उम्मीद बढ़ी और उन्हें सत्ता मिली दुनिया के सबसे शक्तिशाली मुल्क पर, वही उम्मीद यहाँ भी जगी थी सत्तर के दशक में पर पिछले दिनों क्या भारत के एक बड़े प्रदेश में जो बदलाव हुए और उसका बदलाव वाला आर्थिक असर उन पर कितना हुआ जिन्होंने इसके लिए इतना संघर्ष किया था, और वही हालात इसके पहले वाले शासनकाल में यानि माननीय नेताजी के युग में कितना हुआ जो लोग इन सबका फायदा उठाये वह कोई और थे जिसका न तो सामाजिक आंदोलनों से कोई लेना देना था और न ही उनके पास उस समाज के लिए कोई योजना थी.
न जाने क्यों वह एसे लोगों को बड़ा कराके समाज में क्या सन्देश देना चाहते है, उनके आर्थिक श्रोत बदल जाते है जिसमे राजशाही वाले सारे गुण उनमे आ जाते है जो सामंतवाद को भी मात देने वाले थे! क्या यही कारण थे जिससे इनकी सत्ता समाप्त हो जाती है और उल्टे इनकी कोई पहचान ही नहीं बन पाती यही कारण है की कभी वामपंथ तो कभी दखिन्पन्थ इन्हें खिचता रहता है, कांग्रेसी संस्कृति जिससे सत्तर के दशक में देश उब चुका था इन्हें आकर्षित करने लगे.
जिस राजनितिक बदलाव के लिए ये आगे आये थे उसके लिए इन्होने कौन से संस्थान खड़े किये -
१. सामाजिक संघर्षों के सदियों के आन्दोलन से जुड़े लोंगों को तार-तार कर कराके रख दिया.
२. सामाजिक आंदोलनों का निजी तौर पर इस्तेमाल .
३. सामाजिक सोच के एक भी बुद्धिजीवी को आगे नहीं आने दिया गया और बड़बोलेपन को सबसे बड़ा हथियार समझना.
४. राजनितिक हिस्सेदारी का कहीं कोई मतलब नहीं अपने चहेतों का भरण पोषण करना.
५. परिवार पर भरोसा जो महाभारत में फेल हो चुका था.
आदि आदि न जाने कितने कारण है जिनका निवारण होना है . इसके लिए सामाजिक सरोकारों से जुड़े संस्थान बनाने होंगे बिल्डिंग नहीं जिसमे लोग होंगे, बिल्डिंग को हरपने की शुरुआत होगी और आन्दोलन का रूप बदल जायेगा .
अतः अभी हमें बिल्डिंग नहीं लोग बनाने होंगे जिन्हें हड़पना न आता हो पहले एसे लोग समाज में थे जिनके चलते इतने बड़े बदलाव हुए थे पर हम उन्हें भुला दिये, उसी का परिडाम है ये सामाजिक-राजनितिक बदलाव अब इन पर उनके कब्जे है जिनका इससे कोई लेना देना नहीं है.
मायावती का बुत प्रेम -लालू ,मुलायम का कुल प्रेम आँखों के आगे ही साधू जैसा साला, शिवपाल जैसा भाई और माया की बुताई दिखाई दे रही है
आगे हम सामाजिक सरोकारों से जुड़े कुछ बिन्दुओं को आप के विचार के लिए ला रहे है. इंतजार कीजिये ?
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