26 जन॰ 2010

जहाँ आग लगी हो उसे बुझाने की जुर्रत कौन करे
डॉ. लाल रत्नाकर   
जहाँ आग लगी हो उसे बुझाने की जुर्रत कौन करे 'अमर' की मुश्किलों में उन्हें बचाने की जुर्रत कौन करे, आफत आई है इनके साथ सब्र कौन करे, बेईमान है जहाँ जाते है खा जाते है निगलने का नाम नहीं लेते इतना सब्र कौन करे | चले है उनको लुभाने जिन्हें लूटा करते थे, इन्हें धिक्कारने की जहमत कौन करे चले है नेता बनने, इनको नेता बनने की जहमत कौन करे |
राजनीति करने के लिए पिछड़ों के अति पिछड़ों की राजनीति के जरिये जिस आन्दोलन के चलते उन्हें नेता बनने की जल्दी बाज़ी में लगे है उनका काम इतनी आसानी से नहीं होने जा रहा है, भारतीय राजनीति के पुरोधा भी कभी भी इस तरह के नेता जी लोगों का आविर्भाव भी इस तरह से किया गया होगा इसका जबाब  समय देगा और भारतीय राजनीति का इतिहास कलंकित करने का अधिकार नहीं देगा . 



इन दिनों समाज का आधिपत्य जिनके अधीन है वह बेईमान तो नहीं है .

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