29 जन॰ 2010

निक्कम्माबाद सारे  वादों से खतरनाक है, 
डॉ.लाल रत्नाकर 
बहस के स्तर पर राजनितिक परिचर्चा करना आज बेमानी सा हो गया है, समग्र सुविधा भोगी राजनैतिक स्थितियां ही प्रधान हो गयी है, जहाँ भारतीय राजनीति जा रही है वहां बहुत कुछ सामान्य होने नहीं जा रहा है बल्कि बहुत ही खतरनाक होने की संभावना बन गयी है, परिवारवाद जातिवाद से बड़ा जहर है जातिवाद साम्प्रदायिकता से ज्यादा खतरनाक है पर निक्कम्माबाद सारे  वादों से खतरनाक है, अतः जो राजनितिक निक्कम्मों की फौज आज आयी है वह बहुत तेजी से पतनोंमुखी है, जो कुकुरमुत्ते राजनितिक वातावरण में पनपे है उनका लेखा जोखा देना ज्यादा ही खतरनाक है |
आज देश का सर्वोच्च पद जिस तरह के राजनितिक व्यक्तियों से भरा जाना चहिये था वह नदारद है पर जिस तरह से राज्कुंवारों को ट्रेंड करके राजनीति में लाये जाने की योजनायें बनाई जा रही है वह भयावह ही नहीं भयानक भी है, जिस नवजवान की खेलने कूदने की उम्र हो और मनोवैज्ञानिक तरीके से भी उनका राजनीति में जाने का मन न हो फिर भी उसे धकेला जा रहा हो, वह क्या करेगा इसे हिंदुस्तान कई बार देख चुका है |      
पर चिंता का विषय यह नहीं है जो है उसका खुलासा करना पड़ेगा आजकल हर मोर्चे पर कड़ी मेहनत की जरुरत है पर एक और व्यवस्था बना लिया है आजकल घुशखोरी का रास्ता खुल गया है जिसे जीवन का आवश्यक हिस्सा है | 


मंच से ही होना चहिये |

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