24 जन॰ 2010


मुलायम भी जनेश्वर को मानते थे अपना नेता

Jan 23, 11:45 pm
इलाहाबाद । संगठनात्मक तौर पर भले ही सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह को सभी लोगों की तरह ही जनेश्वर भी पार्टी का नेता मानते हों पर मुलायम सिंह तो अपना नेता छोटे लोहिया को ही मानते थे। बिना उनकी सहमति के पार्टी का कोई भी निर्णय अंतिम नहीं होता था। मुलायम सिंह यादव ने अंत्येष्टि के दौरान खुद ये बातें बतायीं। उन्होंने कहा कि 45 वर्षों के दौरान उनके और जनेश्वर मिश्र के संबंधों में कभी उतार-चढ़ाव नहीं आया। वह हमेशा पथ-प्रदर्शक की भूमिका में होते थे। जब भी उन पर हमले होते थे छोटे लोहिया का अनुभव और अनुशासन काम आता था। इन्हीं वजहों से शायद मुलायम सिंह आज छोटे लोहिया की अंतिम यात्रा में अपने दोनों भाई रामगोपाल, शिवपाल बेटे अखिलेश सिंह और भतीजे धर्मेन्द्र यादव के साथ दिन भर रहे। घर पहुंचे और वहां से अंतिम यात्रा में पार्थिव शरीर के साथ घाट तक गए। यहां आकर वह खुद को भाग्यशाली मानते हैं।
मुलायम सिंह यादव ने बताया कि वर्ष 1963 में उन्होंने जनेश्वर जी के बारे में सुना और 1965 में उनकी पहली मुलाकात हुई। तब चुनाव हो रहा था और नत्थू सिंह ने चुनाव लड़ने से इंकार कर डॉ.लोहिया के समक्ष उनका नाम रखा था। इस पर जनेश्वर जी ने उनके लिए हामी भरी तो टिकट मिल सका था। कुछ ही समय में मुलायम उनके करीब पहुंच गए। इसी वजह से जनेश्वरजी उनके चुनाव में कई बार गए। यही नहीं जनता पार्टी में मतभेद होने पर मुलायम सिंह के कहने पर ही वर्ष 1977 में जनेश्वर मिश्र चौधरी चरण सिंह के साथ हुए थे। अहम बात यह कि वह चाहे कन्नौज, मैनपुरी अथवा अन्य स्थानों से पर्चा भरे हों जनेश्वरजी नामांकन के दौरान भी पहुंचे थे। यही नहीं वह नई पार्टी बना रहे थे तो जनेश्वर उनके साथ खुले मन से आए। मुलायम सिंह ने जनेश्वर के संघर्षो और हौसले के बारे में भी बताया। बोले कि वर्ष 1963 में फर्रुखाबाद से डॉ.लोहिया चुनाव लड़ रहे थे। सबसे कमजोर क्षेत्र राजीपुर था। जनेश्वर मिश्र को इस इलाके में लगाया गया। एक दिन डॉ.लोहिया सभा करने गए तो वहां 25-30 लोग ही जुट गए। डॉ.लोहिया ने सभा को संबोधित किया लेकिन शाम को पार्टी कार्यालय पर जमकर फटकार लगाई। इसके बाद जनेश्वर जी ने कड़ी मेहनत की। नतीजतन, उस क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोटों से जीत हुई।
मीडिया से मुखातिब मुलायम सिंह ने कहा कि समाजवादी आंदोलन से जुड़े डॉ.लोहिया, जय प्रकाश नारायण, आचार्य नरेन्द्र देव, राज नारायण की पंक्ति के अंतिम बड़े नेता जनेश्वर मिश्र थे। वह छात्र जीवन से ही संघर्षशील रहे और वह हमेशा ही देश के बारे में सोंचते थे। वह छात्र, युवा, गरीब, किसान, मजदूर, उपेक्षित सभी के हित के लिए संघर्ष करते थे। इसके अलावा लोकसभा या राज्यसभा में वह जब भी बोलना शुरू करते थे सभी उनकी सुनते थे। एक बार तो समय से ज्यादा बोलने लगे तो भी तत्कालीन राज्यसभा सभापति भैरो सिंह शेखावत ने मना नहीं बल्कि बड़े गौर से जनेश्वर जी का भाषण सुन रहे थे। संसदीय प्रणाली अथवा बजट सत्र सभी मुद्दों पर बोलने में उनकी कोई सानी नहीं थी। वह हमेशा आदर्श सांसद और नेता के रूप में किए जाएंगे। पार्टी में उनकी कमी हमेशा खलेगी, उनकी क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती। अंत में कहा कि आज वह तथा उनके पार्टी के लोग संकल्प लेते हैं कि डॉ.लोहिया और छोटे लोहिया के बताए रास्ते पर चल कर आमजन के लिए संघर्ष करेंगे और दिल्ली में समाजवाद का परचम लहराएंगे।

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