24 मार्च 2010

लोहिया की विरासत और समाजवाद 
डॉ.लाल रत्नाकर 
'लोहिया का उद्देश्य मुलायम और माया के जनाधार के लोगों के विकास और राजनितिक पकड़ की चिंता के साथ साथ अच्छी सोच और समझ की चिंता भी थी' पर हो उससे उलट रहा है आज वही लोग जिस बेचारगी के दरवाजे पर खड़े है, जहाँ से अन्दर जाने का रास्ता या बाहर आने की अनुमति उनके उक्त नेताओं ने अपने पास सहेज लिया है. उनकी मर्ज़ी और लोहिया का समाजवाद का घाल मेल वर्तमान राजनीतिकारों की मंशा की मुह निहार रही है , दलित आन्दोलनों के प्रणेता कांशी राम , महात्मा फुले या पेरियार सबके सब बाबा साहब अम्बेडकर के कद और हद के समीप कितने खड़े हो पाए यह चिंतन का विषय है, गायकवाड जैसे उदार समाजसेवी का संरक्षण 'बाबा' को जो मुकाम दिलाया वह वास्तव में दूरदर्शिता थी .
आज देश तमाम तरह के आन्दोलनों को दबाने में लगा है पर बाबा और लोहिया के कथित उत्तराधिकारियों को उनके आंदोलनों के आगे बढ़ाने के बजाय उनको आगे बढ़ाने में लगे है जिनका कहीं से भी उन उद्येश्यों से कोई सरोकार ही नहीं है, यही कारण है की लोहिया और बाबा के तथाकथित उत्तराधिकारी 'खुद','अपने' या "अपनों" को बड़ा करने में लगे है, इनके अपनों के आसपास घूम आईये समाजवाद या दलित उत्थान का सारा सरोकार समझ आ जायेगा .
गाँधी  के आन्दोलनों का 'मजाक' कांग्रेसियों से ज्यादा कौन उड़ा रहा होगा, एक तरफ गाँधी का 'स्वदेशी आन्दोलन' और दूसरी तरफ कांग्रेस का विदेशी नेतृत्वा, यह मजाक नहीं तो क्या है. दलितों और पिछड़ों के संसद के प्रवेश से बाहर रखने या दरवाजे बंद करने के 'उपाय' स्वरुप 'महिला आरक्षण बिल' वाम, दक्षिण और धर्मनिरपेक्ष सनातनी समाजवादियों का ही उपाय तो है . जिसका विरोध  लोहिया और बाबा के तथाकथित उत्तराधिकारी कर तो रहे है पर अलग-अलग.
लोहिया  को सच्ची श्रद्धांजलि होगी इनका एक साथ खड़े होकर सामाजिक बदलाव के लिए आगे आना और उधार की काबिलियत से दूर रहना .
इनकी कहानियों के सबूत विभिन्न समाचारपत्रों से साभार -

लोहिया की थाती के लिए सपा-बसपा में सियासत

Mar 24, 02:04 am

लखनऊ। डा.राम मनोहर लोहिया की प्रतिमा अनावरण के मुद्दे को लेकर राजधानी में मंगलवार को जमकर सियासी ड्रामा हुआ। बगैर किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और समर्थकों ने लोहिया अस्पताल में लगी प्रतिमा का पुलिस से धींगामुश्ती के बीच अनावरण कर दिया। देर शाम प्रदेश सरकार की तरफ से भी इस प्रतिमा का अनावरण कराया गया।
मुलायम सिंह यादव की पिछली सरकार के दौरान यहां लोहिया अस्पताल के परिसर में डा.लोहिया की प्रतिमा लगाई गई थी। इस बीच सत्ता बदल गई और प्रतिमा का अनावरण नहीं हो पाया था। मंगलवार को लोहिया जयंती थी। सुबह लगभग साढ़े नौ बजे समाजवादी पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ता अस्पताल परिसर में पहुंच गए। उन्होंने डा.लोहिया की प्रतिमा पर लिपटी पन्नी को हटाते हुए धुलाई शुरू कर दी। यह जानकारी जब प्रशासन को हुई तो हड़कंप मच गया। जिलाधिकारी और डीआईजी भारी लावलश्कर के साथ मौके पर पहुंचे। लगभग साढ़े दस बजे सपा प्रमुख मुलायम सिंह, राज्यसभा सदस्य भगवती सिंह, सांसद सुशीला सरोज तथा पूर्व विधायक राजेंद्र यादव भी अस्पताल पहुंच गए और शुरू हुई अनावरण-माल्यार्पण की जिद्दोजहद। प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के लिए कार्यकर्ताओं ने जैसे ही सीढ़ी लगाई पुलिस वालों का हुजूम उन पर टूटा पड़ा। एक ओर मुलायम सिंह और कार्यकर्ता तो सीढ़ी की दूसरी ओर पुलिसकर्मी। किसी तरह खींचतान कर सपाइयों ने सीढ़ी खड़ी की। उस पर भगवती सिंह तथा मुलायम सिंह चढ़े। कार्यकर्ता पूरी ताकत लगाकर सीढ़ी को नीचे से पकड़े हुए थे। लेकिन पुलिस वाले पूरा जोर लगाकर सीढ़ी गिराने में लगे रहे। इसी बीच नेताओं ने दो मालाएं प्रतिमा की ओर उछालीं। धक्कामुक्की में एक माला प्रतिमा के गले में पड़ी, लेकिन दूसरी कंधों पर ही अटक गई। नेता उतर भी नहीं पाए थे कि पुलिस कर्मियों ने सपा कार्यकर्ताओं को तितर बितर करने के लिए सीढ़ी पर डंडे मारने शुरू कर दिए। उन्हीं में से एक डंडा भगवती सिंह के पैर में लगा। उन्हें लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वहीं दर्जनों कार्यकर्ताओं को भी चोटें आई। मुलायम सिंह को रोकने की कोशिश कर रहे अधिकारियों को उनके गुस्से का सामना करना पड़ा। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में अफसरों को नसीहत दी कि सरकारें तो आती-जाती रहती हैं, अधिकारियों को किसी पार्टी के कार्यकर्ता की तरह काम नहीं करना चाहिए और हद में रहना चाहिए। सपा प्रमुख ने कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री के इशारे पर प्रतिमा के अनावरण से रोकने की कोशिश हुई थी।
इसके बाद देर शाम प्रदेश सरकार की तरफ अनावरण समारोह हुआ। अस्पताल के निदेशक आरएस दुबे ने प्रतिमा का अनावरण किया। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा नेताओं द्वारा सरकार पर लगाए गए आरोपों को बेबुनियाद एवं तथ्यों से परे बताया है। उन्होंने कहा है कि सपा को अस्पताल जैसी जगह को राजनीति का अड्डा बनाने से बाज आना चाहिए। सरकार को बदनाम करने के लिए सपा इस प्रकार के ड्रामे रने में हमेशा से माहिर है।

लोहिया प्रतिमा के अनावरण को पुलिस से भिड़े मुलायम

Mar 24, 02:05 am

लखनऊ। मंगलवार को राम मनोहर लोहिया अस्पताल के परिसर में लोहियाजी की प्रतिमा अनावरण के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव का पुलिस से टकराव हो गया। पुलिस और सपा कार्यकर्ताओं के बीच जमकर धींगामुश्ती हुई। पुलिस के डंडे से राज्यसभा सदस्य और प्रदेश के पूर्व मंत्री भगवती सिंह चोटिल हो गये। पुलिस की कोशिश रही कि मुलायम सिंह यादव और उनके समर्थकों को प्रतिमा के अनावरण से रोका जा सके लेकिन मुलायम और समर्थकों ने घेराबंदी को नाकाम करते हुए प्रतिमा का अनावरण कर दिया। पुलिस अफसरों को मुलायम सिंह यादव ने जमकर फटकार भी लगाई। बाद में पत्रकारों से बातचीत में सपा प्रमुख ने अफसरों को नसीहत दी कि सरकारें तो आती-जाती रहती हैं, अधिकारियों को किसी पार्टी के कार्यकर्ता की तरफ काम नहीं करना चाहिए और हद में रहना चाहिए।
मालूम हो कि राम मनोहर लोहिया अस्पताल के परिसर में मुलायम सिंह यादव की पिछली सरकार में डा.लोहिया की प्रतिमा लगाई गई थी लेकिन अनावरण नहीं हो पाया था। इस बीच सत्ता बदल गई और आज तक इस प्रतिमा का अनावरण नहीं हो पाया था। पिछले विधानसभा सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने सदन में यह मुद्दा उठाया था। मंगलवार को लोहिया जयंती थी। पूर्वान्ह लगभग साढ़े नौ बजे समाजवादी पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ता अस्पताल परिसर में पहुंच गए और प्रतिमा पर लिपटी पन्नी को हटाते हुए उसकी धुलाई शुरू कर दी। जानकारी जब प्रशासन को हुई तो हड़कम्प मच गया। डीआईजी, जिलाधिकारी, डीआईजी, एसएसपी भारी लावलश्कर के साथ मौके पर पहुंचे। साढ़े दस बजते ही सपा प्रमुख मुलायम सिंह, भगवती सिंह, सांसद सुशीला सरोज तथा पूर्व विधायक राजेन्द्र यादव भी अस्पताल पहुंच गए। इसके बाद शुरू हुई हुई लोकार्पण की जिद्दोजहद। प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के लिए कार्यकर्ताओं ने जैसे ही सीढ़ी लगाई पुलिस वालों का हुजूम उन पर टूटा पड़ा। सीढ़ी की खींचतान शुरू हो गई। एक ओर मुलायम सिंह और कार्यकर्ता तो सीढ़ी की दूसरी ओर पुलिसकर्मी। किसी तरह खींचतान कर सपाइयों ने सीढ़ी खड़ी की। उस पर भगवती सिंह तथा मुलायम सिंह चढ़े। कार्यकर्ता पूरी ताकत लगाकर सीढ़ी को नीचे से पकड़े हुए थे लेकिन पुलिस वाले पूरा जोर लगाकर सीढ़ी गिराने में लगे रहे। इसी बीच नेताओं ने दो मालाएं प्रतिमा की ओर उछालीं। धक्का मुक्की में एक माला प्रतिमा के गले में पड़ी लेकिन दूसरी कंधों पर ही अटक गई। अभी सीढ़ी पर चढ़े नेता उतर भी नहीं पाये थे कि पुलिस कर्मियों ने सपा कार्यकर्ताओं को तितर बितर करने के लिए सीढ़ी पर डंडे मारने शुरू कर दिये। उन्हीं में से एक डंडा भगवती सिंह के बायें पैर में लगा और वह चोटिल हो गए। उन्हें लोहिया अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में भर्ती कराया गया है। दर्जनों कार्यकर्ता भी जख्मी हुए हैं। मुलायम सिंह ने पत्रकारों से कहा कि यह वह लोग हैं जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन आज उन्हीं महापुरुष की प्रतिमा के लोकार्पण को लेकर इतना हंगामा किया जा रहा है। ऐसा वह लोग कर रहे हैं जिन्हें गुलामी पंसद हैं। वह नहीं चाहते कि प्रतिमा का अनावरण हो। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के इशारे पर उन्हें प्रतिमा के अनावरण से रोका गया है।

केंद्र में हिम्मत नहीं कि माला की जांच कराये : मुलायम

Mar 24, 02:02 am

लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि केन्द्र सरकार के पास मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद और ओम प्रकाश चौटाला के खिलाफ सम्पत्ति की जांच कराने के लिए समय है किन्तु उसकी हिम्मत 'माया की माला' की जांच कराने की नहीं है। उसे डर है कि इस दिशा में कदम बढ़ाया तो सरकार नहीं बचेगी। माला को लेकर आय कर विभाग ने भी खूब ताल ठोकी थी किन्तु उसकी भी हिम्मत जवाब दे गयी है। सपा अध्यक्ष ने कहा कि उनका अनुमान है कि माला में 51 करोड़ से कम के नोट नहीं थे। ऊपर से नोटों की पत्तियां दिखाई दे रही थीं और अन्दर में हजार रुपये के नोटों की गड्डियां थीं। उन्होंने कहा कि पहले दिन की माला में जो नोट नहीं आ पाये उससे दूसरी माला बनाकर अगले दिन पहनाया गया। इसकी कीमत 18 लाख बताई गयी जबकि उसमें अधिक के नोट थे। उन्होंने अपने कार्यकत्र्ताओं को निर्देश दिया कि वे रुपये की माला न पहने और न किसी को पहनायें क्योंकि रुपया राष्ट्रीय करेंसी है जिसके साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए।
मुलायम सिंह यादव मंगलवार को डा. राममनोहर लोहिया के जन्म शताब्दी समारोह में बोल रहे थे। लोहिया पार्क में आयोजित समारोह में महंगाई व महिला विधेयक को लेकर उन्होंने केन्द्र सरकार पर जमकर निशाना साधा। कहा कि पुरुषों को संसद में पहुंचने से रोकने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय साजिश के तहत महिला विधेयक लाया गया है। वर्तमान स्वरूप में उन्हें यह कतई मंजूर नहीं है। महंगाई के बारे में कहा कि सरकार में इच्छाशक्ति होती तो महंगाई पर काबू पाया जा चुका होता किन्तु प्रधानमंत्री नहीं चाहते हैं कि इसपर काबू पाया जाए। उनके सहयोगी शरद पवार का हर बयान महंगाई बढ़ाने वाला है।
डा. लोहिया के आदर्शो पर चलने की अपील करते हुए सपा अध्यक्ष ने कहा कि हमें संकल्प करना होगा कि जहां कहीं भी अन्याय, भ्रष्टाचार, लूट-खसोट और घूसखोरी होगी उसका विरोध करेंगे। समाजवाद पार्टी संघर्ष से नहीं डरती। यह बात जनवरी में साबित हो चुकी है। साइकिल यात्रा के दौरान युवाओं ने जो उत्साह दिखाया उससे लगा की सपा के लोग व्यवस्था परिवर्तन में पीछे नहीं हटने वाले।
प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि हमारे नवजवान सड़कों पर इसी प्रकार संघर्ष करते रहे तो सरकार बनाने से हमें कोई नहीं रोक सकता है।

महिलाओं पर मुलायम की टिप्पणी से विवाद

Mar 24, 02:03 am

लखनऊ। मंगलवार दोपहर लोहिया जंयती के अवसर पर आयोजित समारोह में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की महिला आरक्षण को लेकर की गई जिस टिप्पणी पर खूब जोर का ठहाका लगा था, शाम होते-होते वह टिप्पणी राजनीतिक विवाद में तब्दील हो गई। बसपा से लेकर, कांग्रेस, भाजपा और रालोद तक ने इस मुद्दे पर मुलायम सिंह यादव को घेराबंदी शुरू कर दी और उनसे इस कृत्य के लिए माफी मांगने की मांग पर अड़ गये हैं।
बसपा ने मुलायम के बयान को 'घटिया' करार दिया है। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक बयान में कहा कि महिलाओं को लेकर की गयी टिप्पणी की उनकी पार्टी निंदा करती है और उसे ओछी और घिनौनी मानसिकता का प्रतीक करार देती है। उन्होंने कहा कि सपा प्रमुख के बयान से साफ है कि उनकी इसी सोच की वजह से उनके शासनकाल में महिलाएं सुरक्षित नहीं रहती हैं। गुण्डे उनके साथ बदसलूकी और अपराध करते हैं।
भाजपा के सपा प्रमुख के बयान को हतप्रभ करने वाला करार दिया। प्रवक्ता हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि एक बड़े राजनेता से किसी भी वर्ग की महिलाओं के लिए इस तरह की टिप्पणी की उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि अभिजात्य वर्ग की महिला होना कोई गुनाह नहीं है और उन महिलाओं की भी इज्जत होती है। राष्ट्रीय लोकदल के महासचिव मुन्ना सिंह चौहान ने कहा कि अफसरों की पत्नियों व फिल्म अभिनेत्रियों को टिकट देने और उन्हें संसद पहुंचाने की शुरुआत मुलायम सिंह यादव ने ही की थी, इसलिए उन्हें इस वर्ग की महिलाओं पर कोई टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं रह जाता। रालोद मुलायम के बयान का हर स्तर पर विरोध करेगी।
कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा कि महिलाओं को लेकर मुलायम की टिप्पणी राजनीति में हद दर्जे की गिरावट की प्रतीक है। कांग्रेस इस तरह के बयानों की निंदा करती है।
विवाद की टिप्पणी
''वर्तमान स्वरूप में महिला आरक्षण विधेयक पास हुआ तो संसद में उद्योगपतियों एवं अधिकारियों की ऐसी-ऐसी लड़कियां आ जायेंगी, जिन्हें देखकर लड़के पीछे से सीटी बजायेंगे।''
-मुलायम सिंह यादव




अनीश्वरवादी, एक-पत्नी समर्थक लोहिया का हथियार थे राम

लेखक: के विक्रम राव


लोहिया अनीश्वरवादी थे। यों भी समाजवादी अमूमन इहलोकवादी होता है, क्योंकि भौतिकता ही उसकी विचारधारा की बुनियाद होती है। ईश्वर को माने तो उसके बनाए नियमों को भी मानना पड़ेगा। मसलन, पूर्वजन्म और नियति वाले विश्वासों को अंगीकार करना होगा। तो फिर वर्णव्यवस्था तार्किक बन जाएगी। कर्मणा कोई भी महत्त्व नहीं हासिल कर पाएगा। इन ढेर सारे कारणों के चलते ही जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्र देव और लोहिया ने कभी परमसत्ता को नहीं माना। हालांकि अपनी पत्नी प्रभा देवी का मन रखने के लिए जयप्रकाश नारायण विधुर जीवन में विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने लगे थे। मगर अविवाहित लोहिया पर किसी का दबाव नहीं था। फिर भी लोहिया का धर्म, ईश्वर, लोक-परलोक, वर्ण व्यवस्था, कर्म का सिद्धांत आदि पर अपना सोच था।
एक बार महात्मा गांधी ने लोहिया से कहा था कि ईश्वरवादी ही अच्छा सत्याग्रही हो सकता है। मगर उन्होंने दिखा दिया कि सिविल नाफरमानी के लिए आस्तिकता अनिवार्य नहीं है। अनीश्वरवादी होकर भी लोहिया सनातनी संकेतों, संदेशों, प्रतीकों, और चिह्नों का सम्मान करते रहे। राम के अस्तित्व पर जब विवाद उठता था तो लोहिया का जवाब बड़ा सटीक होता था- प्रश्न यह नहीं है कि राम हुए या नहीं, वे भगवान थे या नहीं, बल्कि सोचने का मुद्दा यह है कि करोड़ों लोगों के मानस में रमे इस राम पर सवाल उठाना लोकास्था का तिरस्कार करने जैसा होगा।
कुछ ऐसी ही बात अमेरिकी लोकनेता बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कही थी। किसी ने उनसे पूछा कि क्या भगवान है? तो फ्रैंकलिन का उत्तर था, जब भगवान है तब तो इतना जुल्म, अनाचार, खराबी, दुष्टता है। अगर भगवान न होता तो हालत और बदतर हो जाती।’
लोहिया ने राम को मंदिर की मूर्ति से ऊपर उठा कर लोकाचार का हिस्सा बनाया, जब चित्रकूट में रामायण मेला आयोजित कराया था। इस विषय पर केवल दो मानवीय पहलुओं का जिक्र लोहिया ने किया- यहां उन्हें दोहराया जा सकता है। स्फटिक शिला पर बैठ कर राम ने जब जंगली फूलों से काशाय वस्त्रधारिणी सीता को संवारा था तो मर्यादा पुरुषोत्तम के रूमानी पक्ष को लोहिया ने गौरतलब बताया था। चित्रकूट, जो दक्षिण-उत्तर प्रदेश में है, से लोहिया ने उत्तर की ओर निहारा था और संकल्प लिया था कि नेहरू वाली दिल्ली को बदलना होगा। दिल्ली बदली भी, क्योंकि लोहिया ने नीवें हिला दी थीं।
जब द्रविड़ नेता पेरियार रामास्वामी नायकर के घोर उत्तर-विरोधी हिंदी के प्रति द्वेष को दूर करने, कम करने का प्रयास किया तो लोहिया ने राम का ही नाम लिया था। नायकर के माता-पिता ने लोहिया के माता-पिता की तरह राम का नाम अपनी संतान को क्यों दिया? नायकर काफी सोच-विचार में पड़ गए। पर उनको मलाल था नेहरूवादी प्रवृत्तियों से, जो जातिविहीन समाज का ढिंढोरा पीटती हैं, मगर अभिजात वर्ग को ही सत्ता से चिपकाए रहती हैं। राष्ट्रीय कांग्रेस के निस्वार्थ सैनिक रहे रामास्वामी नायकर क्यों अंग्रेजभक्त, द्रविड़िस्तान समर्थक, विप्र विद्वेषी हो गए थे? लोहिया ने इसका विश्लेषण किया और पोंगापंथ पर हमला किया। इन्हीं नायकर के लिए लोहिया का सम्यक व्यक्तित्व उभरा था। नायकर जान गए कि लोहिया का धर्म रूढ़िगत, बुतपरस्त अंधश्रद्धा नहीं, बल्कि मानवीय है। भूगोल और जाति से परे है।
आंबेडकर से भी लोहिया की ऐसी ही बात हुई थी, जिस पर मधु लिमये ने काफी विस्तार से कहा और लिखा था। गांधीवादी लोहिया से बौद्ध आंबेडकर भी प्रभावित हुए थे। धर्म के बारे में लोहिया ने कहा था कि यह दीर्घकालीन राजनीति है। उनकी नजर में तब लीला पुरुषोत्तम कृष्ण थे। कुशलतम राजनेता कृष्ण थे, जिन्होंने कुरुक्षेत्र से पहले भी राजनीति और कूटनीति को नया आयाम, भिन्न शक्ल दी थी। उस युग के साम्राज्यों की धुरी पर लोहिया काफी लिख चुके हैं। मगध, मथुरा, हस्तिनापुर, द्वारका आदि सत्ता के केंद्रों पर लोहिया का विश्लेषण उनकी पैनी सूझ को दर्शाता है। इन सभी धुरियों को एकाग्र करने वाले कृष्ण हिंदुओं के लिए भले भगवान हों, पर लोहिया के लिए जंबूद्वीप को पिरोने वाले जननायक हैं।
लोहिया धार्मिक नहीं हो सकते थे, क्योंकि राजनीति को वे सिर्फ अल्पकालीन धर्म मानते थे। शायद लोहिया ने भारतीय जनवाद में धर्म के सशक्त प्रभाव को सही पहचाना और निर्बाध, निर्मल तरीके से अपनाया। बालगंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव को ब्रिटिश-विरोध का उपकरण बनाया। खूब कारगर रहा। रामायण मेला को लोहिया ने उसी तरह नए अंदाज में प्रचारित किया। लोहिया जान गए कि आम भारतीय जन के मन को जीतना है तो राम से अधिक सशक्त माध्यम क्या हो सकता है।
यही बात लोकसभा में कांग्रेसी विपक्ष के नेता के तौर पर पीवी नरसिंह राव ने कही थी। उन्होंने राजग सरकार पर हमला करते वक्त कहा था कि उनकी सरकार भारतीय जनता पार्टी और कारसेवकों का मुकाबला तो कर सकती थी। राम का विरोध कैसे करती? भाजपा तो राम नाम की ओट में राजनीति कर रही थी। नरसिंह राव से बीस वर्ष पूर्व ही लोहिया ने राम की शक्ति का अहसास कर लिया था, मगर विध्वंस के लिए नहीं, विरोध और सृजन के लिए।
लोहिया की इतिहास दृष्टि के मद्देनजर धर्म पर गौर करें। मध्ययुगीन भारत में धर्म, बल्कि मजहब के नाम पर सत्ता जालिम हो गई थी। इसीलिए लोहिया ने रजिया सुल्तान को भारतीय कहा और जहीरुद्दीन बाबर को लुटेरा। रजिया कठमुल्लों से उस बर्बर युग में टकराई भी थीं, जिन्हें महिलाओं का सुल्तान बनना अधार्मिक लगता था। बाबर को लुटेरा कह कर लोहिया ने दो भ्रम मिटा दिए थे। इस्लाम के नाम पर बाबर ने भारत के खिलाफ जिहाद छेड़ा था। तब दिल्ली का बादशाह इब्राहिम लोदी था। दिल्ली दारुल इस्लाम थी। तो आक्रमणकारी बाबर फिर ढोंगी जिहादी हुआ।
अयोध्या, मथुरा और काशी की बाबत लोहिया का स्पष्ट आकलन था। उन्होंने पुणे के मुसलिम सत्यशोधक संघ के संयोजक और सोशलिस्ट चिंतक हमीद दलवाई के साथ कई बार विचार-विमर्श भी किया था। आम भारतीय की प्रतिक्रिया छिपी नहीं है कि इन मुसलिम बादशाहों को राम और कृष्ण के जन्मस्थल और विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की भूमि ही नजर आई मस्जिद बनवाने के लिए?
तार्किक बात भी है कि भारत के बहुसंख्यक निरीह, निहत्थे हिंदुओं की आस्था के मूलाधिकार का हनन अपने बर्बर सैन्य बल द्वारा राजमद में चूर इन बादशाहों ने किया था। यह सीधे लोकसत्ता बनाम राजसत्ता की टक्कर थी। बर्बरता द्वारा मानवता का दमन था। इसीलिए लोहिया और हमीद दलवाई प्रयासरत थे कि हिंदू-मुसलिम सौहार्द दृढ़ बनाने के लिए इन ऐतिहासिक विकृतियों को दुरुस्त किया जाए। वह शांतिपूर्वक और सहमति के आधार पर हो। गांधी जी की तरह लोहिया भी महसूस करते थे कि इस्लाम और हिंदुत्व जब तक सह-अस्तित्व पर आधारित नहीं होंगे पाकिस्तान जैसी विखंडनकारी प्रवृत्तियां मजबूत रहेंगी। धर्म का भ्रम ही उसे तरजीह देता रहेगा।
चार दशक पूर्व लोहिया का सोच कितना दूरगामी था, इसका आज के विषाक्त हिंदू-मुसलिम रिश्तों को देख कर अंदाजा हो जाता है। धर्म, मजहब और रिलीजन के विषयों पर लोहिया की उक्ति बड़ी सटीक और माकूल रही। मुंबई में एक सार्वजनिक सभा (1966) में लोहिया ने सुझाया था कि मतांतर कराने वाली आस्थाओं और अपरिवर्तनशील धर्म के रिश्तों को तय करने के लिए कुछ आचरण-संबंधी नियम रचित हों। मतांतर के नाम पर छीना-झपटी की इजाजत नहीं दी जा सकती।
ब्रिटेन के सोशलिस्ट प्रधानमंत्री रेम्से मेकडोनाल्ड के सांप्रदायिक एवार्ड के खिलाफ जब महात्मा गांधी ने आमरण अनशन किया था तो यही लक्ष्य था। दलितों को सवर्ण हिंदुओं से काट कर अंग्रेज साम्राज्यवादी भारत राष्ट्र-राज्य को ही तोड़ने पर आमादा थे। बौद्ध, ईसाई और इस्लाम द्वारा इन दलित हिंदुओं के मतांतर की ब्रिटिश राज की साजिश थी। भीमराव आंबेडकर ने तब गांधीजी के साथ पुणे करार पर हस्ताक्षर किया और साम्राज्यवादियों के खेल को खत्म कर दिया।
लोहिया भी इसी गांधीवादी दृष्टिकोण से प्रभावित थे, जब उन्होंने मुंबई में मतांतरण पर अपनी राय रखी थी। मगर गांधीजी से भी भिन्न मत सनातन विषयों पर लोहिया रखते थे। जैसे गांधी की रामराज्य वाली अवधारणा से लोहिया अलग थे। उन्हें सीता के प्रति राम का रुख एक पुरुष-प्रधान समाज का कठोर रूप लगा। इसीलिए लोहिया सीतारामराज वाली कल्पना के प्रतिपादक रहे जहां नर-नारी में गैरबराबरी न हो।
लोहिया ने वर्ण और नारी के मसले को भी धर्म से जोड़ा था। वर्ण से उनका आशय जाति से नहीं था। चमड़ी के रंग से था, जैसे राम और कृष्ण काले थे जबकि सीता, सत्यभामा और राधा गोरी थीं। स्पष्ट बात है कि काला रंग अनार्य का रंग माना जाता रहा था। तो क्या राम और कृष्ण आर्य नहीं थे? इसी भ्रम को लोहिया ने तोड़ा था।
उनकी राय थी कि धर्म वर्ण के आधार पर भेद नहीं करता है। इसीलिए लोहिया ने रंग-भेद नीति के खिलाफ अमेरिका में अपनी गिरμतारी के समय दूरगामी बात सोची भी होगी कि लोकतांत्रिक अमेरिका भी बदलेगा और रंग के आधार पर चल रही राजनीति को खत्म करेगा। अमेरिका बदला, मगर पांच दशक के बाद जब बराक ओबामा राष्ट्रपति बने। इतना ही नहीं, इस दरम्यान मार्टिन लूथर किंग जूनियर और जॉन केनेडी को प्राणोत्सर्ग करना पड़ा था। वर्ण के आधार पर सवर्ण और अवर्ण का भेद करने वाले सनातन धर्म पर लोहिया ने तीखा प्रहार भी किया था।
इसी धर्म और मजहब के कारणों को प्रचारित कर अंधविश्वासी लोगों ने नारी को दोयम दर्जा दिया है। स्त्री-पुरुष की गैर-बराबरी के खिलाफ लोहिया ने अनवरत संघर्ष चलाया। वे स्त्री संबंधी विषयों पर आम भारतीयों के दोहरे चरित्र की खिल्ली उड़ाते थे। एक जगह उन्होंने बेबाकी से लिखा भी कि अगर कोई अविवाहिता मां बन जाती है तो वह कोई गुनाह नहीं करती, बल्कि युगों पूर्व नर-नारी के लुप्त हुए सामान्य रिश्तों को पुनर्स्थापित करने का प्रयास करती है। उनकी राय में राष्ट्र के हित में अविवाहिता का एक स्वस्थ शिशु कई गुना बेहतर है, बजाय किसी गृहिणी की आधा दर्जन रुग्ण संतानों के। उन्होंने चीन की तारीफ की थी जहां स्त्री और पुरुष एक सरीखे दिखते हैं। भारत में परिधान से इतनी लैंगिक विषमता उन्हें क्षुब्ध करती थी।
उनके आकलन में मातृ-प्रधान केरल और कुछ दक्षिण भारतीय समाज में जन्मे बच्चों में हिंदी प्रदेशों की तुलना में अधिक निपुणता और चतुराई दिखी। आधार यही था कि मां के महत्त्व के कारण शिशु को मां, पिता और मामा को संतुष्ट रखने का प्रयास करना पड़ता है। जबकि उत्तर भारत में केवल पिता को उसे मनाए रखना पड़ता है। लोहिया ने अभियान चलाया था कि जहां-जहां पिता का नाम लिखना पड़ता हो, वहां-वहां मां का नाम लिखने वाला कॉलम भी होना चाहिए।
यही बात लोहिया ने समान सिविल संहिता के बारे में कही। वे एक-पत्नी व्रत के समर्थक रहे। फर्रुखाबाद के लोकसभाई चुनाव के अभियान में एक मुल्ला ने लोहिया से पूछा था कि आप मुसलिम पर्सनल कानून पर क्या सोचते हैं। उन्होंने कहा था कि एक पुरुष के एक से अधिक बीवी रखने के वे खिलाफ हैं। नतीजे में पिछले उपचुनाव में हजारों वोटों से जीतने वाले लोहिया 1967 की फरवरी में चौथी लोकसभा के लिए सिर्फ पांच सौ वोटों से जीते थे। उधर इलाहाबाद से बरेली तक कई विधानसभा सीटों पर लोहिया की पार्टी के उम्मीदवारों का सफाया हो गया। पर लोहिया की दृष्टि में धर्म के नाम पर राजनीति करना पाप था। आज शायद पाप की परिभाषा ही बदल गई। उसके राजनीतिक मानक भी। ((जनसत्ता से साभार))




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