13 मई 2010

रोजाना पांच घंटे रहें हाजिर
यूजीसी ने प्राध्यापकों के लिए की सिफारिश
एजेंसी
नई दिल्ली। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पर्याप्त वक्त न देने वाले शिक्षकों की कोताही अब नहीं चलेगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की एक कमेटी ने प्राध्यापकों को रोजाना कम से कम पांच घंटे कैंपस में मौजूद रहने की सिफारिश की है। यह कदम उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने और छात्रों की नामांकन दर में बढ़ोतरी के लिए उठाया जा रहा है।

यूजीसी की संयुक्त सचिव रेणु बत्रा ने बताया कि आयोग ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और डीम्ड विश्वविद्यालयों में शिक्षक-छात्र अनुपात तथा शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक कर्मचारियों के संबंध में मापदंड निर्धारित करने के लिए एक समिति का गठन किया था। पांडिचेरी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जेकेए तरीन की अगुवाई वाली इस समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा कि विश्वविद्यालयों, कालेजों में एक समान शिक्षक-छात्र अनुपात तय करना कठिन है क्योंकि शिक्षण के विभिन्न स्तरों पर अलग अलग तरह के पाठ्यक्रम होते हैं। समिति ने कहा है कि स्थायी प्राध्यापकों को विश्वविद्यालयों में हफ्ते में कम से कम ४० घंटे और साल में १८० शैक्षणिक दिन उपलब्ध रहना चाहिए। उनसे रोजाना कम से कम से कम पांच घंटे अपनी मौजूदगी सुनिश्चित करने को कहा गया है।

इसके अलावा समिति ने अपनी सिफारिशों में केंद्रीय विश्वविद्यालयों और डीम्ड विश्वविद्यालयों में पीजी स्तर पर शिक्षक-छात्र अनुपात की व्यवस्था देते हुए कहा कि पीजी स्तर पर विज्ञान संकाय में यह अनुपात १ः१०, मानविकी संकाय में १ः१५, वाणिज्य और प्रबंधन में १ः१५ और मीडिया एवं पत्रकारिता में शिक्षक छात्र अनुपात १ः १० होना चाहिए। स्नातक स्तर पर सामाजिक विज्ञान संकाय में इसे १ः३०, विज्ञान में १ः२५, मीडिया और पत्रकारिता में इस अनुपात को १ः१५ तथा बीएड में इसे एनसीटीई मापदंडों के अनुरूप बनाने की सिफारिश की गई है।

यूजीसी की कुछ और कोशिशें
- शिक्षकों को वरिष्ठता नहीं, बल्कि काम के आधार पर पदोन्नति का प्रस्ताव
-११ वीं योजना के अंत तक १० फीसदी कॉलेजों को स्वायत्तता देने की योजना
- निजी कॉलेजों को सरकारी मदद के लिए ३४ साल पुराने नियम में फेरबदल

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आभार जानकारी के लिए.


एक विनम्र अपील:

कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.

शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

-समीर लाल ’समीर’

बेनामी ने कहा…

जी मेरा आशय किसी को ठेस पहुचना नहीं है मन में आ रहे आवेग को यथावत न लिखकर मिर्च मसाला लगता हूँ .
सादर -रत्नाकर

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