28 मई 2010

'माया' मनु की या "कबीर" की !
डॉ.लाल रत्नाकर 
एक खबर टी.वी. चैनल पर चल रही थी उत्तर प्रदेश की मा.मुख्यमंत्री कु.बहन मायावती बोल रही थी मेरा तो नाम ही 'माया' है सामान्यतया माया का अर्थ हर उस वस्तु के लिए उपयोग में लाया जाता है जिससे कुछ प्राप्त हो रहा हो यथा धन दौलत हीरे मोती जवाहरात समृद्धि का हर वह इंतजाम जो आम आदमी को मुहैया नहीं होता, जब इस तरह की माया आने लगती है तो वह मायामय हो जाता है.
"कबीर दास" को लगता है माया कभी रास नहीं आयी तभी तो उन्होंने कहा "माया महाठगनी हम जानी" उन्हें जरूर माया ने ठगा रहा होगा यानि जब भी वह माया के चक्कर में पड़े होंगे तो ठगे जरुर गए होगे, तभी तो उन्होंने इतने बड़े कवी बने यदि वह माया के चक्कर में आते तो कैसे रच पाते-



चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । 
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥ 
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । 
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर । 
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय । 
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय । 
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद । 
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय । 
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । 
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और । 
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥ 
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । 
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय । 
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥
जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥ 
कबीर की कुण्डलियाँ                  
माला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेर 
कर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेर
मन का मनका फेर ध्रुव ने फेरी माला
धरे चतुरभुज रूप मिला हरि मुरली वाला
कहते दास कबीर माला प्रलाद ने फेरी
धर नरसिंह का रूप बचाया अपना चेरो
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आया है किस काम को किया कौन सा काम
भूल गए भगवान को कमा रहे धनधाम
कमा रहे धनधाम रोज उठ करत लबारी
झूठ कपट कर जोड़ बने तुम माया धारी
कहते दास कबीर साहब की सुरत बिसारी
मालिक के दरबार मिलै तुमको दुख भारी
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चलती चाकी देखि के दिया कबीरा रोय
दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय
साबित बचा न कोय लंका को रावण पीसो
जिसके थे दस शीश पीस डाले भुज बीसो
कहिते दास कबीर बचो न कोई तपधारी
जिन्दा बचे ना कोय पीस डाले संसारी
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कबिरा खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर 
ना काहू से बैर ज्ञान की अलख जगावे
भूला भटका जो होय राह ताही बतलावे
बीच सड़क के मांहि झूठ को फोड़े भंडा
बिन पैसे बिन दाम ज्ञान का मारै डंडा
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समाजवादी पार्टी के नेता पिछले दिनों माया-के महा नायक के चक्कर में पड़े होंगे तभी तो ठगे जरुर गए होगे, और उम्मीद है की जया से कुछ शांति की उम्मीद बंधी हो या माया का कोई नया चक्कर चला हो पर जया और माया को एक साथ जिस नज़रिए से त्रिपाठी जी ने देखा है हो न हो वह राजनीति में तो होता ही है, जया को समाजवादी पार्टी यदि फिर से राज्य सभा भेज रही है तो यह अमर की कु-चाल यदि समाजवादी पार्टी नहीं समझ रही है तो इसका अर्थ राजनीति में यही लगाया जा सकता है की वहाँ परमानेंट न 'दोस्ती' होती है और 'न' "दुश्मनी" अमर की उम्मीदें मुलायम से ही पूरी हो सकती है - भूल चुक लेनी देनी. 


अंततः जया ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ने से माना कर दिया है |



4 टिप्‍पणियां:

माधव( Madhav) ने कहा…

nice

पंकज मिश्रा ने कहा…

जादू है जुनून है ये कैसी माया है।

http://udbhavna.blogspot.com/

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया पोस्ट..कबीर के मनके अच्छे चुने!!

www.kavita-ratnakar.blogspot.com ने कहा…

Thanks
Aavaj

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