आप की समीक्षा और सर्वेक्षण ने तो देश के 'जाती मुक्त' कर दिया आप क्या अपने सर्वेक्षण कर्ताओं की जाती जानते है उनका प्रकाशन करने मात्र से ही आपके सर्वे की "हवा" निकल जाएगी, जिस देश में ३+४+४.५+२.५+१= द्विज और पूंजीवादी = ८५% अन्य |(पिछड़े +दलित)
आपको शर्म तो आएगी ही नहीं 'सही' करने का कभी कुछ किया हो तब न.
अतः प्रायोजित सर्वे से बचिए मिडिया में ९५%द्विज है जो समाज विरोधी है(योगेन्द्र यादव का सर्वे) |
दैनिक भास्कर का एक सर्वे-
‘मैं शर्मिदा हूं कि 21वीं सदी में सरकार हमारी जातियां गिन रही है’
‘मैं शर्मिदा हूं कि 21वीं सदी में सरकार हमारी जातियां गिन रही है’
भास्कर न्यूज नेटव��
First Published 02:00[IST](09/06/2010)
Last Updated 2:43 AM [IST](09/06/2010)
देश के २१२ गांव व शहरों से.देश के ज्यादातर लोग जनगणना में जाति को आधार बनाने के एकदम खिलाफ हैं। इक्कीसवीं सदी का भारत दुनिया की एक बड़ी ताकत के रूप में उभर रहा है और लोगों को यह बिल्कुल रास नहीं आ रहा कि ऐसे समय आबादी की गिनती में कोई जात-पात की बात भी करे। इसे ज्यादातर लोगों ने शर्म का ही विषय माना है।
दूसरी तरफ, जाति को अपनी पहचान बताने वाले भी हमारे यहां कम नहीं हैं। ऐसे लोग जातियों को वर्ण व्यवस्था का एक जरूरी अंग भी मानते हैं, लेकिन उन्हें जनगणना में इसके इस्तेमाल पर सख्त एतराज है। देश में जारी 15वीं जनगणना में जाति को आधार बनाने का अभी फैसला नहीं हुआ है, लेकिन सरकार राजनीतिक दबाव में है और बातचीत चल रही है।
अगर फैसला होता है तो 1931 के बाद यह दूसरा और आजादी के बाद पहला मौका होगा, जब आबादी की गिनती में जाति भी पूछी जाएगी। दैनिक भास्कर ने इस अहम मसले पर एक पखवाड़े तक सीधे अवाम की नब्ज को टटोला। आठ राज्यों के 34 शहरों और 178 गांवों तक जाकर सवा सौ से ज्यादा पत्रकारों ने 6753 लोगों की राय ली।
आखिर वे क्या चाहते हैं?
उन्हें जनगणना में जातियांे का आधार कुबूल है या नहीं? वे कैसा समाज चाहते हैं और सियासी दलों के बारे में उनकी सोच क्या है? लोगांे ने खुलकर अपनी पसंद और नापसंद जाहिर की है। खास बात यह है कि गांव हों या शहर, हर जगह लोग जाति जनगणना के विरोध में ही ज्यादा सामने आए हैं।
इस सर्वे के नतीजों से झलक मिलती है कि किस तरह सियासी दलों पर से अवाम का भरोसा उठ रहा है। लोग मान रहे हैं कि दल लोगों को बांटकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। लोगांे को जातियों के सहारे सियासत करने वालों की खूब पहचान है। इसके साथ उन्हें यह भी अंदाजा है कि जाति-जनगणना का सबसे ज्यादा सियासी फायदा किसकी झोली में जाएगा।
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जब देश के अखबारों की यह दशा हो तो क्या होगा .?
अतः
इनका बहिष्कार करो?
1 टिप्पणी:
raajneeti hai, aage dekhiye hota hai aur kya-kya
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
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