18 दिस॰ 2010


सुरेन्द्र मोहन 

नई दिल्ली, 17 दिसम्बर: वयोवृद्ध समाजवादी नेता सुरेंद्र मोहन का निधन एक हृदय की गिरफ्तारी के बाद आज सुबह हो गया . वह 84 वर्ष के थे  और उनकी पत्नी, मंजू मोहन, एक बेटा और एक बेटी को वह अपने पीछे छोड़ गए हैं.



मोहन ने, जो राज्य सभा में 1978 और 1984 के बीच एक सत्र की सेवा और ऐतिहासिक सांसद के रूप में  सेवा की. वह एक ऐसे  नेता थे जो कार्यालय के हार काम को देखते थे . दिल्ली में सत्ता का केंद्र होने के बावजूद कभी परीक्षा के किसी दुर्लभ इम्तहान में फेल नहीं हुए.

समाजवादी आन्दोलन को मज़बूत और एक करने के लिए एक समाजवादी कार्यकर्ता स्वर्गीय सुरेन्द्र मोहन ने  व्यापक रूप से लिखा है और केंद्र में दोनों जनता सरकारों के प्रयोगों में एक केंद्रीय भूमिका निभाई - आपातकाल के बाद की जनता पार्टी सरकार और जनता दल उपाध्यक्ष की माननीय श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह अध्यक्षता में पद का निर्वहन किये .


स्वर्गीय सुरेन्द्र मोहन का निगमबोध  घाट पर अंतिम संस्कार किया गया इस अवसर पर आज दोपहर परिवारजन, दोस्तों, सहयोगियों और शुभचिंतकों की एक बड़ी संख्या की उपस्थिति में.


बी.बी.सी.हिंदी से साभार -

सुरेंद्ग मोहन:एक पीढ़ी का अंत

सुरेंद्र का सपना था कि एक बार फिर से सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया जाए.
समाजवादी नेता, चिंतक और विचारक सुरेंद्ग मोहन समाजवादी विचारधारा की उस पीढ़ी से ताल्लुक रखते थे जो अब शायद दोबारा पैदा नहीं होगी.
राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में वो समाजवादी आंदोलन से जुड़े और जीवनभर उसी विचारधारा को मज़बूती से पकड़े, समाज के दबे-कुचले, शोषित और सर्वहारा वर्ग के लिए काम करते रहे.
सुरेंद्ग मोहन का जन्म 4 दिसंबर, 1926 को अंबाला शहर में हुआ था.
प्रारंभिक शिक्षा के बाद वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र हुए और समाजवादी विचारधारा के साथ उनका लगाव यहीं से पनपा.
1948 में कांग्रेस में शामिल समाजवादी दल के नेताओं ने कांग्रेस से अलग होकर ‘सोशलिस्ट पार्टी’ का गठन किया तो सुरेंद्ग मोहन अंबाला में पार्टी के ज़िला सचिव बने.

प्रतिबद्धता

आज के इस दौर में जब लगभग समूचा राजनीतिक तंत्र भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है तब राजनीति की इस काल कोठरी में सुरेंद्र मोहन जैसे दधिचि विरले ही देखने को मिलते हैं.
पारिवारिक परिस्थितियों के चलते उन्हें उच्च शिक्षा के लिए देहरादून जाना पड़ा और 1953 में समाज शास्त्र में एमए करने के बाद वह काशी विद्यापीठ में प्रोफेसर हो गए.
हालांकि इस दौरान वो लगातार ‘सोशलिस्ट पार्टी’ के 'कार्ड होल्डर’ बने रहे. 1955 में जब प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का विभाजन हो गया तो वह पीएसपी में ही बने रहे.
पार्टी ने उनकी लगन और विचारधारा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को देखते हुए 1960 में उन्हें युवा संचालक बनाया और बाद में वह पार्टी के सह-सचिव बने.
1977 में जब कांग्रेस, भारतीय लोकदल, भारतीय जनसंघ और सोशलिस्ट पार्टी को मिलाकर मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी का गठन किया गया तो सुरेंद्ग मोहन लाल कृष्ण आडवाणी के साथ नवगठित जनता पार्टी के महामंत्री बनाए गए.

सादगी

उनका सपना था कि एक बार फिर से सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया जाए. इसकी कोशिश में वो लगातार लगे रहे और पिछले सप्ताह ही उन्होंने इस प्रस्तावित सोशलिस्ट पार्टी का घोषणापत्र भी तैयार किया था.
चुनाव में जनता पार्टी को भारी बहुमत मिला और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में केंद्ग में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ तो सुरेंद्ग मोहन को केंद्ग सरकार में मंत्री बनाए जाने का प्रस्ताव दिया गया.
लेकिन, यह प्रस्ताव उन्होंने बड़ी विनम्रता से ठुकरा दिया और एक साल बाद 1978 में वह मुश्किल से केवल राज्यसभा सदस्य बनने को तैयार हुए.
1979 में जनता पार्टी का विघटन होने के बाद वह चंद्रशेखर की अध्यक्षता वाली जनता पार्टी के महासचिव बने और 1988 में जनता पार्टी का जनता दल में विलय हो जाने के बाद वह जनता दल से जुड़े रहे.
1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने सुरेंद्ग मोहन को पहले बिहार का राज्यपाल और बाद में राज्यसभा का सदस्य मनोनीत करने का प्रस्ताव किया, लेकिन इस प्रस्ताव को भी उन्होंने ठुकरा दिया और बड़ी मुश्किल से केवल खादी ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष इस शर्त पर बनने के लिए तैयार हुए कि संस्था के कर्मचारियों का कुछ भला कर सकें.
आज के इस दौर में जब लगभग समूचा राजनीतिक तंत्र भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है तब राजनीति की इस काल कोठरी में सुरेंद्र मोहन जैसे दधिचि विरले ही देखने को मिलते हैं.
84 वर्ष की उम्र में भी अपने जीवन के आख़िरी दिन तक वो सक्रिय रहे यहां तक की गुरुवार यानी 17 दिसंबर को जंतर-मंतर पर एक धरने पर जाकर बैठे.

'न्यूनतम लिया'

सुरेंद्ग मोहन समाजवादी विचारधारा की उस पीढ़ी के वाहक थे जिनमें प्रेम भसीन, राजनारायण, मधुलिमये, मधु दंडवते, कर्पूरी ठाकुर, जॉर्ज फर्नांडिस और रामसेवक यादव के नाम उल्लेखनीय हैं. उन्होंने न्यूनतम लिया, अधिकतम दिया, तुम्हरे जैसा कौन जिया.
वो अपना जीविकोपार्जन पूर्व सांसद के रूप में मिलने वाली पेंशन और पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखकर करते थे.
दिल्ली की एक सहविकास सोसाइटी में एक फ्लैट के अलावा उनकी अपनी कोई संपत्ति नहीं थी और यह फ्लैट भी वह अपने मित्र रजनी कोठारी की मेहरबानी से हासिल कर सके थे.
सुरेंद्ग मोहन भारत की सोशलिस्ट पार्टी के अंतिम महामंत्री थे और 1977 में सोशलिस्ट पार्टी का जनता पार्टी में विलय होने के बाद देश में कोई दूसरी सोशलिस्ट पार्टी खड़ी नहीं हो सकी.
उनका सपना था कि एक बार फिर से सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया जाए. इसकी कोशिश में वो लगातार लगे रहे और पिछले सप्ताह ही उन्होंने इस प्रस्तावित सोशलिस्ट पार्टी का घोषणापत्र भी तैयार किया था.
सुरेंद्ग मोहन समाजवादी विचारधारा की उस पीढ़ी के वाहक थे जिनमें प्रेम भसीन, राजनारायण, मधु लिमये, मधु दंडवते, कर्पूरी ठाकुर, जॉर्ज फर्नांडिस और रामसेवक यादव के नाम उल्लेखनीय हैं.
उन्होंने न्यूनतम लिया, अधिकतम दिया. तुम्हारे जैसा कौन जिया.


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